शनिवार, 27 जनवरी 2018

मेरा वज़ूद ऐसा है ,

rg
मेरे दुश्मन को है खलता , मेरा वज़ूद ऐसा है ,
गिराने से नहीं गिरता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
दिलों में बस गया है जो ,फकत इक नाम ऐसा है ,
मिटाने से नहीं मिटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मैं आगे हूँ या पीछे हूँ मगर फोकस में मैं ही हूँ ,
हटाने से नहीं हटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मेरे दिल में उमड़ता मुल्क से जो इश्क -ए-समंदर ,
घटाने से नहीं घटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
अगर तूफ़ान हो तुम , मैं भी हूं जलता हुआ दीपक ,
बुझाने से नहीं बुझता ,मेरा वज़ूद ऐसा है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

2 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

शानदार भाव शानदार ग़ज़ल में

Admin ने कहा…

वजूद को इतने स्टाइल में पेश किया कि पढ़ते ही लगे, हां यार, मैं भी कुछ हूं। तूफ़ान और दीपक वाला कॉन्ट्रास्ट भी एकदम शानदार था। "मैं आगे हूँ या पीछे हूँ मगर फोकस में मैं ही हूँ", भाईसाब, क्या ग़ज़ब का ऐटीट्यूड है इसमें। जैसे पूरी दुनिया चाहे अनदेखा कर ले, पर नजरें तुझ पे ही टिकती हैं।