रविवार, 31 मार्च 2013

मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई .


मोदी संस्कृति:न भारतीय न भाजपाई .



Indian_culture : indian flag with map of india Stock Photo
''तरन्नुम,तरन्नुम,तरन्नुम,तरन्नुम ,
है गुमसुम,है गुमसुम,है गुमसुम,है गुमसुम,
ये लोगों का लश्कर कहाँ जा रहा है ,
जहन्नुम,जहन्नुम,जहन्नुम,जहन्नुम.''  
 आज सारा देश होली के रंगों में सराबोर है और जिसे देखो इसे पूर्ण रूप से भारतीय सभ्यता संस्कृति के अनुसार मनाये जाने की बात कह रहा है किन्तु भारतीय सभ्यता संस्कृति की जो धज्जियाँ हमारे कुछ माननीय नेतागण को लेकर उड़ाई जा रही हैं उस और सभी इस बात को कहते हैं कि ''जो जैसा करेगा वैसा भरेगा ,''अर्थात ये हमारे नेतागणों के कुकृत्य ही हैं जिनके कारण आज उनके साथ इस तरह के बर्ताव को अंजाम दिया जा रहा है .जनता तो इस बात को कह सकती है किन्तु जब हमारे नेतागण ''जो कि उसी मंडली के सदस्य हैं ''वे ऐसा कहते हैं तो क्या हमें  हमें विचार नहीं करना चाहिए कि ये ऐसा कहने के कैसे अधिकारी हो सकते हैं किन्तु ऐसा नहीं है हम भी उनके साथ जुड़कर उसी असभ्यता पर उतर आते हैं और भुला देते हैं उस संस्कृति को जिसके गुणगान सारा विश्व करता है और जिसके कारण सभी जगह इस संस्कृति की पूजा की जाती है .
     भारतीय सभ्यता संस्कृति विश्व में हमारी पहचान है ,भारतीयों की सबसे बड़ी संपत्ति है .विश्व की कितनी ही संस्कृतियाँ भारत में आई और सभी को भारत और भारतीयों ने ''अतिथि देवो भवः''कहकर आत्मसात कर लिया और सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह रहा कि भारतीय संस्कृति तब भी जीवन्त रही.हम भारतीयों ने अपने मित्रों के साथ साथ शत्रुओं को भी गले लगाया और उन्हें प्रेम का पथ पढाया .बड़ों को आदर देना ,छोटों से स्नेह करना हमारी संस्कृति सिखाती है .न केवल भारतीय समाज बल्कि भारतीय राजनीति भी इसी सभ्यता को अपनाती रही जहाँ अपने विरोधियों की भी मुक्त कंठ से प्रशंसा की जाती थी .पंडित जवाहर लाल नेहरु जी जो कौंग्रेस के थे उन्होंने भाजपा के अटल बिहारी वाजपयी जी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए कहा था कि ''ये युवक राजनीति में बहुत आगे जायेगा .''सोनिया गाँधी जी जो कौंग्रेस की अध्यक्ष है और भाजपा के लिए आलोचना का सबसे बड़ा मुद्दा वे तक मोदी जी की तारीफ करती हैं और उनके प्रधानमंत्री  बनने की आशा करती हैं .



Sonia Gandhi takes credit for Modi’s victory in Gujarat, says he should become the PM 

 ये भारतीय संस्कृति ही है कि आपसी मतभेदों की प्रचुरता होने पर भी भूतपूर्व भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी जी  वर्तमान कौंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी को अपने बेटे की शादी में आमंत्रित करते हैं

The Times Of India

सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जी भाजपा के भूतपूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण अडवाणी जी के बारे में अपने बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश जी से कहते  हैं -

''......अडवाणी जी  कभी झूठ नहीं बोलते ''

  Samajwadi Party supremo Mulayam's high praise for Advani has BJP divided

 Mulayam Singh and LK Advani

 ये भारतीय संस्कृति है जो उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करती है .ये भारतीय संस्कृति है जो संसद का सत्र आरम्भ होने पर सभी दलों के नेताओं को एक दूसरे के अभिवादन करने को प्रेरित करती है जो सिखाती है कि आपसी मतभेद कभी भी हमारे आपसी शिष्टाचार से ऊपर नहीं होने चाहियें .

भारत एक विकासशील देश है और यहाँ के नागरिकों का विकसित राष्ट्रों की चकाचौंध की ओर आकर्षित होना एक सामान्य बात है किन्तु विदेशियों का भारत की ओर आकृष्ट होना मात्र इसे बाजार समझकर नहीं बल्कि इसकी संस्कृति ही वह चुम्बक है जो विदेशियों को अपनी ओर खींचती है और उन्हें अपने ही रंग में रंग देती है .सेवा सत्कार परोपकार की महत्ता ने मेरी टेरेसा को मदर टेरेसा बनाकर भारत में ही बसा लिया .''पूरब और पश्चिम'' फिल्म का यह गाना भारतीय संस्कृति की महिमा को कुछ यूँ व्यक्त करता है -

''इतनी ममता नदियों को भी जहाँ माता कहके बुलाते हैं ,
इतना आदर इन्सान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते हैं ..''

 किन्तु आज स्थिति पलटती जा रही है .जैसे कि 'पूरब और पश्चिम' से 'फिर भी दिल है हिंदुस्तानी 'में हुआ परिवर्तन -
   ''पूरब और पश्चिम''में कहा जाता है -
 ''होठों पे सच्चाई रहती है ,जहाँ दिल में सफाई रहती है ,
 हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है .''

 और फिर भी दिल है हिंदुस्तानी  में हुआ परिवर्तन -
''हम लोगों कोसमझ सको तो समझो दिलबर जानी ,
जितना भी तुम समझोगे उतनी होगी हैरानी ,
थोड़ी हममे सच्चाई है ,थोड़ी बेईमानी  ,
उलटी सीधी जैसी भी है अपनी यही कहानी....''

 पहले भी राजनीति  में छींटाकशी होती थी किन्तु वह नीतियों सिद्धांतों तक सीमित थी .पहले भी राजनीतिज्ञों की बुराइयाँ होती रही हैं किन्तु जो स्वरुप आज राजनीतिक दलों,मीडिया व् जनता ने लिया है वह निंदनीय है .बुराई की जा रही है किन्तु बहुत सोच-समझकर .आज शराफत की हंसी उड़ाई जा रही है और दबंगई गुंडागर्दी की मसाज की जा रही है .

भारत में सत्तापक्ष हमेशा से आलोचना का शिकार रहा है और भारत ही क्या समस्त विश्व में यही हाल है किन्तु भारत में ये हाल ज्यादा ख़राब यूँ है क्योंकि यहाँ आरम्भ से लेकर अब तक वर्चस्व एक ही दल का है और वह है ''कॉंग्रेस '' 

कॉंग्रेस जिस नेतृत्व के बलबूते ये मुकाम हासिल किये है वह ''खिसयानी बिल्ली खम्बा नोचे''बने दलों व् इनके समर्थकों की आँख की किरकिरी बना हुआ है .साथ ही किरकिरी बनता है वह नेता जिसका झुकाव व् श्रृद्धा इस परिवार के लिए होती है .

From left, Indian Prime Minister Manmohan Singh, Congress party president Sonia Gandhi and Congress party general secretary Rahul Gandhi wave to party supporters during a public rally, in New Delhi, India , Sunday, Nov. 4, 2012.

सोनिया गाँधी- राहुल गाँधी आज इस परिवार के सदस्य हैं और डॉ. मनमोहन सिंह -देश के प्रधानमंत्री इस दल के सदस्य और इस परिवार से गहराई से जुड़े हैं ,ईमानदारी से जुड़े हैं तो न तो किसी को इन सबकी देश के विकास के  प्रति एकनिष्ठ भक्ति ,मेहनत दिखती है और न ही देश से इनका प्यार का जज्बा ,हर एक को दिखती है मात्र वह लोकप्रियता और प्यार जो जनता के मन में इनके लिए है नहीं दीखता वह बलिदान जो इस श्रृद्धा ,विश्वास की नींव है और जिसे ये अपने  चेहरे पर शराफत का पेंट लगाकर भी हासिल नहीं कर सकते .
      भाजपा के प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी  के लिए जबरदस्ती फेविकोल से चिपकने की कोशिश करने में जुटे नरेन्द्र मोदी जी को कौंग्रेस का भविष्य अधर में डालने वाले सीताराम केसरी व् राजीव गाँधी जी की आतंकवादी हादसे में हुई मृत्यु की सद्भावना में प्रधानमंत्री बने पी.वी.नरसिम्हाराव जी में इस परिवार के प्रति निष्ठां में कुछ कमी दिखी तो वे उनकी कुछ तारीफ कर गए नहीं तो ये कम न्होंने कभी सीखा ही नहीं और वे ही वे महान शख्सियत हैं जो आज स्वयं और अपने अंध समर्थकों के जरिये भारतीय राजनीति की परम्पराएँ तोड़ने में लगे हैं . 

राहुल गाँधी जी को यह कहकर की उन्हें देश में कहीं नौकरी भी नहीं मिलेगी कह वे उन्हें कोई चोट नहीं पहुंचाते क्योंकि उन्हें किसी नौकरी की कोई आवश्यकता ही नहीं है वे अपने में देश सँभालने की योग्यता रखते हैं और बेकार में गाल बजाते नहीं फिरते किन्तु इस माध्यम से वे या ज़रूर साबित करते हैं की राजनीति में जहाँ शिक्षा कोई योग्यता नही है वहां लगभग ८०%राजनीतिज्ञ जो यहाँ अपनी पूरी रसोई बना रहे हैं देश में चपरासी बनने की हैसियत भी नही रखते .

शशि थरूर की पत्नी की तुलना ५० करोर की गर्ल फ्रैंड से करना और अपनी पत्नी यशोदा बेन को शादी कर सारी उम्र गाँव में छोड़कर वे नारी शक्ति का अपमान करते हैं और वह भारतीय जनता के पुरोधा बनने को आगे आना चाहते हैं किन्तु भारतीय जनता में से कोई भी आगे आ उनके इन कृत्यों की निंदा नहीं करता .क्या उनकी अपने देशवासियों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है ?क्या ऐसे कृत्यों को वे जायज़ ठहरा सकते हैं ?

narendra Modi labels Shashi Tharoor's wife a 'Rs 50 crore girlfriend'

Shashi Sunanda  

 और उधर शशि थरूर एक सच्चे भारतीय होने का फ़र्ज़ निभाते हुए व्हार्टन मुद्दे पर उनका साथ देते हैं तब भी  मोदी जी के समर्थक शशि थरूर की गाड़ी के शीशे तोड़ देते हैं .
      २७ साल तक पश्चिमी बंगाल पर शासन करने वाले ज्योति बासु जी तक भारत में कभी प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी  के लिए इस तरह कभी प्रचारित नही किये गए जिस तरह मात्र  तीन  जीत पर नरेन्द्र मोदी जी का नाम उछाला जा रहा है और उनका समर्थन करने के लिए कौंग्रेस के सुसभ्य सुसंस्कृत नातों का अपमान किया जा रहा है जबकि भाजपा में स्वयं उनके नाम को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है और न ही उनके द्वारा अपनाये जा रहे इन हथकंडों को लेकर क्योंकि भाजपा के वरिष्ठ व् कद्दावर  नेता गण जानते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में एक क्षेत्रीय नेता की कोई महत्ता नहीं है और राष्ट्रीय चुनाव की हवा को उस तरह के मोड़ नहीं दिए जा सकते जैसे मोड़ एक राज्य की राजनीति में दिए जाते हैं और जो मोड़ मोदी जी अपने राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए आज तक देते आये हैं .

 ये प्रधानमंत्री डॉ..मनमोहन सिंह जी ,यू.पी.ए.अध्यक्ष सोनिया गाँधी जी और कौंग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जी ही हैं जो विरोधी दलों के निरंतर अपमानजनक भाषा के प्रयोग किये जाने पर भी विरोधी पक्ष को कोई आंच नहीं आ रही है जबकि सभी जानते हैं कि  अभी हाल में ही माननीय बाल ठाकरे जी के सम्बन्ध में विवादस्पद टिप्पणी करने के कारण  दो लड़कियां आफत का शिकार हुई बसपा प्रमुख मायावती जी पर अपमानजनक टिप्पणी दैनिक जागरण के कार्यालय को तोड़ फोड़ के रूप में झेलनी पड़ी और ममता बेनर्जी का कार्टून बनाना कार्टूनिस्ट को जेल ले गया .

इसका सीधा साफ मतलब ये है कि आज भारत में कुछ राजनेता और जनता में उनके समर्थक भारतीय सभ्यता संस्कृति के अपमान द्वारा अपना स्थान बनाने में लगे हैं जबकि सभ्यता  संस्कृति इस ओर ध्यान न दे उन्हें बढ़ने के लिए ही प्रेरित कर रही हैं जबकि उनको भी अब इसी ओर कदम बढ़ने होंगे ताकि ऐसी परवर्तियों पर अंकुश लगाया जा सके क्योंकि ईंट  का जवाब हमेशा पत्थर होता है फूल नहीं .महात्मा गाँधी के ''एक गाल पर चांटे के जवाब में दूसरा गाल आगे करने ''का प्रेरक वचन आज की परिस्थितयों में लागू नहीं होता .आज लागू होता है तो बस यही-
     ''दुनिया के लात मारो  दुनिया सलाम करे ,
      कभी नमस्ते जी तो कभी राम राम करे ,
    दुनिया के बाप हो तुम दुनिया तुम्हारी  है .
            शालिनी कौशिक 
                [कौशल ]
 

 

 

 

 









शुक्रवार, 29 मार्च 2013

पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक

 Sexy_BRian pic
अकेलापन एक ज़हर के समान होता है किन्तु इसे जितना गहरा ज़हर नारी के लिए कहा जाता है उतना गहरा पुरुष के लिए नहीं कहा जाता जबकि जिंदगी  का अकेलापन दोनों के लिए ही बराबर ज़हर का काम करता है .नारी  जहाँ तक घर के बाहर की बात है आज भी लगभग पुरुष वर्ग पर आश्रित है कोई भी लड़की यदि घर से बाहर जाएगी तो उसके साथ आम तौर पर कोई न कोई ज़रूर साथ होगा भले ही वह तीन-चार साल का लड़का ही हो इससे उसकी सुरक्षा की उसके घर के लोगों में और स्वयं भी मन में सुरक्षा की गारंटी होती है और इस तरह से यदि देखा जाये तो नारी के लिए पुरुषों के कारण भी अकेलापन घातक है क्योंकि पुरुष वर्ग नारी को स्वतंत्रता से रहते नहीं देख सकता और यह तो वह सहन ही नहीं कर सकता कि एक नारी पुरुष के सहारे के बगैर कैसे आराम से रह रही है इसलिए वह नारी के लिए अकेलेपन को एक डर का रूप दे देता  है और यदि पुरुषों के लिए अकेलेपन के ज़हर की हम बात करें तो ये नारी के अकेलेपन से ज्यादा खतरनाक है न केवल स्वयं उस पुरुष के लिए बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए क्योंकि ये तो सभी जानते हैं कि ''खाली दिमाग शैतान का घर होता है ''ऐसे में समाज में यदि अटल बिहारी जी ,अब्दुल कलाम जी जैसे अपवाद छोड़ दें तो कितने ही पुरुष कुसंगति से घिरे गलत कामों में लिप्त नज़र आते हैं .घर के लिए कहा जाता है कि ''नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ''तो ये गलत भी नहीं है क्योंकि घर को जिस साज संभाल की, सुरुचि की ज़रुरत होती है वह केवल नारी मन में ही पाई जाती है .पुरुषों  में अहंकार की भावना के चलते वे कभी अपनी परेशानी का उल्लेख करते नज़र नहीं आते किन्तु जब नारी का किसी की जिंदगी या घर में अभाव होता है तो उसकी जिंदगी या घर पर उसका प्रभाव साफ नज़र आता है नारी को यदि देखा जाये तो हमेशा  पुरुषों की सहयोगी  के रूप में ही नज़र आती  है उसे पुरुष की सफलता खलती नहीं बल्कि उसके चेहरे  पर अपने से सम्बंधित  पुरुष की सफलता एक नयी चमक ला देती है किन्तु पुरुष अपने से सम्बंधित नारी को जब स्वयं सफलता के शिखर पर चढ़ता देखता है तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और वह या तो उसके लिए कांटे बोने लगता है या स्वयं अवसाद में डूब जाता है.उदाहरण के लिए आप ''अभिमान''फिल्म को ही यद् कर लीजिये जिसमे नायक जब नायिका जो कि उसकी पत्नी है को अपने से अधिक सफल देखता है तो वह उसकी जिंदगी में उथल पुथल मचा कर उसका जीवन ही दुर्भर कर देता है .

     एक नारी फिर भी घर के बाहर के काम आराम से संपन्न कर सकती है यदि उसे पुरुष वर्ग के गलत रवैय्ये का कोई डर नहीं हो किन्तु एक पुरुष घर की साज संभाल  एक नारी की तरह कभी नहीं कर सकता क्योंकि ये गुण नारी को भगवान ने उसकी प्रकृति में ही दिया है आम तौर पर भी हम देखते हैं कि बाहर शहर में अकेले रह रहे पुरुष अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए अपनी पत्नी से इतर रिश्ते को निभाने लगते हैं इसलिए ये कहना वास्तव में सही ही है कि पुरुषों का अकेलापन ज्यादा घातक होता है परिवार के लिए समाज के लिए देश के लिए सभी के लिए .
       शालिनी कौशिक
               

रविवार, 24 मार्च 2013

शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .

शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .
   1993 Mumbai Bomb Blast Case: Sanjay Dutt will file appeal against the conviction
जमील मानवी के शब्दों में -
''तेरी हथेली पर रखा हुआ चिराग हूँ मैं ,
तेरी ख़ुशी है कि जलने दे या बुझा दे मुझे.''
शख्सियत होना और एक चिराग होना एक ही बात है. हर कोई चाहता है कि मैं एक कामयाब इन्सान बनूँ और अपने खानदान का चश्म-ओ-चिराग और दोनों ही स्थितियां ऐसी हैं जिसमे ऐसी चाह रखने वाला ऐसा जलता है जैसे दिया और ये चाहत उसे भीतर तक भस्म कर डालती है भले ही बाहर से वह कितना ही रोशन दिखाई दे भीतर से वह खत्म हो चुका होता है .कुछ ऐसी ही विडम्बना से भरा है संजय दत्त का जीवन .
      साल १९९२ अयोध्या कांड मुंबई के लिए तो भयावह साबित हुआ ही साथ ही दुखदायी कर गया सुनील दत्त का जीवन और भी ,जो कि पहले से ही संजय दत्त की जीवन शैली से आजिज था .अपनी माँ नर्गिस की असमय मृत्यु से संजय दत्त इतने भावुक हुए कि नशेबाज हो गए और बाद में अपने पिता की मदद की प्रवर्ति के कारण कानून तोड़ने वाले और ये बहुत भारी पड़ा सुनील दत्त पर लगातार मिलती धमकियाँ सुनील दत्त को तो नहीं डरा सकी किन्तु ३३ वर्षीय यह युवा अपनी दो बहनों और अपनी पत्नी व् बच्ची के कारण  डर गया और उसने कानून को अपने हाथ में लेने का मन बना लिया किसी भी तरफ से सुरक्षा की गारंटी न मिलना भी इसकी एक मुख्य वजह रहा और इसी डर के कारण  सनम फिल्म के निर्माता हनीफ और  समीर  हिंगोरा की मदद से एक एके -५६ रायफल और एक पिस्टल रख ली लेकिन नहीं जानते थे कि इन्हें रखकर वे अपने परिवार की सुरक्षा तो क्या करेंगे उलटे उनके दिल का दर्द ही बन जायेंगे.
      लगभग १८ महीने जेल में बिता चुके संजय के लिए २००६ में टाडा अदालत ने स्वयं कहा था -''संजय एक आतंकवादी नहीं है और उन्होंने अपने घर में गैर कानूनी रायफल अपनी हिफाजत के लिए रखी थी ''इसके बाद से उन पर टाडा के आरोप ख़त्म कर दिए गए और उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत ६ साल की सजा सुनाई गयी और अब २१ मार्च को जो घटाकर ५ साल कर दी गयी जो १८ महीने जेल में काटने के कारण साढ़े तीन साल रह गयी है .
   यह सही है कि संजय दत्त का अपराध माफ़ी योग्य नहीं है इस तरह यदि हर आदमी हथियारों को अपने घर में स्थान दे अपनी हिफाजत का स्वयं इंतजाम करने लगा तो कानून व्यवस्था डगमगा जाएगी किन्तु संजय दत्त एक आम इन्सान नहीं है एक शख्सियत हैं और इस हैसियत के नाम पर उन्हें क्या मिला मात्र दर्द और असुरक्षा का भाव .जहाँ उन जैसी शख्सियत की सुरक्षा की गुहार का यह अंजाम होता है वहां आम आदमी कैसे अपनी सुरक्षा का भरोसा कर सकता है ?
    एक आदमी जो कि आम है फिर भी स्वतंत्र है क्योंकि वह यदि हथियार रखता है तो किस को पता नहीं चलता पता केवल तभी चलता है जब वह उससे किसी वारदात को अंजाम देता है और बहुत सी बार किसी और का लाइसेंस किसी और के काम भी आ  जाता है अर्थात पिस्टल किसी की और प्रयोग किसी और ने की चाहे लूट कर चाहे चोरी से किन्तु यहाँ तो ऐसा कुछ हुआ ही नही यहाँ तो ऐसा कोई साक्ष्य नही कि संजय दत्त ने उन हथियारों से कोई गलत काम किया हो या उनके हथियार का कोई गलत इस्तेमाल हुआ हो और फिर सुप्रीम कोर्ट तो पहले ही उन्हें अच्छे चाल-चलन के आधार पर जमानत  दे चुकी  है .
   संजय दत्त के अपराध में सजा में माफ़ी नहीं दी जाती किन्तु सजा में विलम्ब को तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही न्याय मान चुकी है .टी.व्.वाथेसरन  बनाम तमिलनाडु राज्य ए.आई.आर.१९८३ सु.को.३६१ में उच्चतम न्यायलय ने कहा -''कि जहाँ अभियुक्त  का मृत्यु दंड दो वर्षों से अधिक विलंबित रखा गया हो ,वहां उसके दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना उचित है क्योंकि इतनी लम्बी अवधि तक अभियुक्त पर मृत्यु की विभीषिका छाई रहना उसके प्रति अन्याय है तथा इस प्रक्रियात्मक व्यतिक्रम के दुष्प्रभाव के शमन के लिए एकमात्र उपाय मृत्यु दंड को घटाकर आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया जाता है।''
    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम लल्लू ए.आई.आर १९८६ सु.को.५७६ के वाद में यद्यपि अभियुक्त ने ग्राम प्रमुख का सर धड से अलग करके उसकी निर्मम हत्या की थी परन्तु मृत्यु दंडादेश पारित किये जाने के बाद दस वर्ष की लम्बी अवधि बीत जाने के कारण उसके मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया .
     ऐसे में जब प्रत्येक मामले में सुप्रीम कोर्ट वाद के तथ्यों व् परिस्थियों को सामने रख अपने निर्णय करता है तो आज जब हम दांडिक मामलों में सुधारात्मक  प्रक्रिया को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं ,साथ ही हम गाँधी के देश के रहने वाले हैं जो कहते थे कि ''पाप से घृणा करो पापी से नहीं .''और जब पूर्व न्यायाधीश मारकंडे काटजू भी संजय दत्त को माफ़ी दिए जाने को कह रहे हैं तब संजय का तब से लेकर अब तक का कोई अपराधिक इतिहास न रहना और इस मामले में भी न उनके हाथ न हथियार का खून से रंग होना और उनका अच्छा चाल-चलन उनके लिए माफ़ी का ही विधान करता है .
     संजय दत्त जैसे व्यक्ति को उस जेल की काल कोठरी में भेज जाना सुधार की ओर बढती हुई बहुत सी अन्य जिंदगियों को भी अपराध  की ओर ही धकेल सकता है जो आज वार्ता व् समर्पण के जरिये अपराध की राह छोड़ फिर से जीवन यापन की ओर ही बढ़ रही है .
   ऐसे में यही सही होगा कि संजय दत्त की वह १८ महीने की जेल और सजा मिलने में इतने लम्बे विलम्ब को आधार मानकर उन्हें माफ़ी दे दी जाये और एक जिंदगी जिससे जुडी कई और जिंदगियां जो आज खुशहाली की राह पर कदम बढ़ा रही हैं उनके पांव में बेड़ियाँ न डाली जाएँ .साथ ही ये कहना कि कानून सबके साथ समान होना चाहिए तो ये तो संजय दत्त भी कह सकते हैं हमारी उस प्रतिक्रिया पर जो हम अन्य हथियार उठाये भटके लोगों द्वारा हथियार छोड़ उनके  मुख्यधारा  में  आने पर देते हैं फिर संजय दत्त को उनसे अलग क्यों रखा जा रहा है क्या हम भूल गए है कि यदि सुबह का भटका शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते .जब हम अन्य अपराधियों के मुख्यधारा में लौटने का समर्थन करते हैं तो यही हमें संजय दत्त के मामले में भी करना चाहिए और वैसे भी संजय दत्त मात्र आर्म्स एक्ट के दोषी हैं भारतीय दंड सहिंता के नहीं टाडा के नहीं लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि संजय दत्त एक शख्सियत हैं आम आदमी नहीं .के,एन,कौल के अनुसार -
    ''खुद रह गया खुदा  भूल गया ,
     भूलना किसको था क्या भूल गया ,
      याद हैं मुझको तेरी बातें लेकिन ,
     तू ही खुद अपना कहा भूल गया .''

            शालिनी कौशिक
                  [कौशल]

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

अमिताभ बच्चन:भारतवर्ष की विभूति

अमिताभ बच्चन:भारतवर्ष की विभूति

 

फुल्ल कमल ,       दूध नवल,
गोद नवल,          पूत नवल,
मोद नवल,          वंश में विभूति नवल,
गेंहू में विनोद नवल,  नवल दृश्य ,
बाल नवल,          नवल दृष्टि ,
लाल नवल ,         जीवन का नव भविष्य ,
दीपक में ज्वाल नवल , जीवन की नवल सृष्टि .
      जानते हैं हरिवंश राय ''बच्चन''जी की इस कविता की सृष्टि किस हस्ती के लिए हुई ,उन्ही के लिए जो न केवल उनके वंश की वरन हमारे भारतवर्ष की विभूति हैं . सितारों की दुनिया बोलीवूड  पर एक लम्बे समय से राज करने वाले अमिताभ जी ने जब हरिवंश राय जी के यहाँ जन्म किया तो एक  कवि ह्रदय से यही उद्गार प्रगट होने थे और हुए किन्तु जैसे कि माँ-बाप को तो अपने सभी बच्चे प्रिय होते हैं किन्तु कितने बच्चे ऐसे होते हैं जो अपने माँ-बाप के सपनों पर खरे उतरें ये सवाल भविष्य के गर्त में ही छिपा रहता है और अमिताभ जी वह विभूति हैं जो अपने माता -पिता के सपनों पर खरे उतरे और न केवल खरे उतरे बल्कि एक बहुत अच्छे पुत्र ,पति ,पिता और सबसे बड़ी बात है कि इन्सान साबित हुए। माता पिता की सेवा को अमिताभ जी ने पूर्ण निष्ठां से निभाया और उन्हें अपने इस कार्य पर कोई घमंड नहीं बल्कि वे कहते हैं -
''हर संतान को यह सब करना चाहिए .मैं ऐसा मानता हूँ और मैंने ऐसा किया इस वजह से कभी कुछ नहीं किया कि आदर्श बनना है या मिसाल रखनी है .''
  आज के युग में ऐसा चरित्र  इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज भौतिकवाद बढ़ रहा है और बच्चा स्वयं अपने माँ बाप से छुटकारा पाने में अपनी स्वतंत्रता मन रहे हैं ,कुम्भ में छोड़ रहे हैं या वृद्धाश्रमो में भेज रहे हैं .
      एक पति के रूप में उनकी खूबियों को जया जी से बेहतर  कोई नहीं बता सकता .वे कहती हैं -
''अमित जी हर फैसले में अपने परिवार के साथ बेशर्त खड़े हुए ,चाहे वह बाद में मेरी फिल्मों में वापसी हो या बच्चों की जिंदगी .वे बेमिसाल बेटे तो साबित हुए ही पति और पिता के रूप में भी बहुत प्यारे हैं .जब वे अस्पताल में मौत से जूझ रहे थे ,पूरा देश  उनके लिए दुआ कर रहा था तब भी उन्हें मेरी और बच्चों की चिंता थी .''
अमिताभ बच्चन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ न केवल लिखते हैं बल्कि उनके खिलाफ खड़े होकर लड़ते भी हैं .और अपने जीवन में भी अपने विचारों को स्थान  देते हैं .जया जी बताती है -
   ''मई  १९७३  में जंजीर रिलीज़  हुई  और तीन साल के बाद 4 जून १९७३ को हम एक दूसरे के हो गए .शादी से पहले ही उन्होंने मेरे घरवालों को बता दिया था कि वे दहेज़ या उपहार स्वीकार नहीं करेंगे और वे उस पर अडिग रहे .''

 आज जहाँ हमारा समाज तलाक जैसी गंभीर समस्या से जूझ रहा है और ऐसे में बोलीवूड जैसी जगह जहाँ रिश्तों के लिए न कोई स्थान है न कोई मर्यादा वहां अमिताभ जी एक ऐसा परिवार लेकर चल रहे हैं जहाँ पूर्ण सामाजिक दायित्वों का निर्वाह किया जाता है .माँ-बाप के प्रति अपने पूरे कर्तव्य निभाए जाते हैं पति पत्नी द्वारा अपने संबंधों को पूर्ण गरिमा और विश्वास के साथ निभाया जाता है और बेटा-बेटी -बहू  के प्रति अपने सभी दायित्व पूर्ण किये जाते हैं और इन संबंधों में जो आपसी प्रेम विश्वास होना चाहिए वह सभी यहाँ देखने में आता है .पति पत्नी के रिश्तों को उन्होंने एक नया मुकाम यहाँ दिलाया है जहाँ आमिर -रीना ,धर्मेन्द्र-प्रकाश कौर-हेमामालिनी ,बोनी-श्रीदेवी जैसे मामले हैं वहां जया जी को सौभाग्यशालिनी ही कहा जायेगा की उन्हें एक महानायक से सीधे सादे इन्सान का प्यार मिला .वे कहती हैं -
''शादीशुदा जिंदगी में रूमानियत हमेशा नहीं रहती ,पर मुहब्बत हमेशा जिंदा रहती है .जब मुझे मलेरिया हुआ ,वह किसी नर्स की तरह बुखार उतरने तक मेरे माथे पर गीली पट्टियाँ रखते रहे ,हमारा दांपत्य जीवन किसी दूसरे दंपत्ति से अलग नहीं रहा .''
बड़ों के प्रति सम्मान उनके संस्कारों में भरा है कहती हैं जया -
''मेरे घर पहुँचने में देरी होने पर अमित जी मेरी माँ से इतने प्यारे ढंग से माफ़ी मांगते थे कि  वे तुरंत नरम पड़ जाती थी .सच कहूं तो दूसरों का ख्याल रखना और आदर देना उनके संस्कारों में शामिल हैं .''
 अपने परिवार को प्रमुखता देना अमिताभ जी का विशेष गुण है और इसलिए वे अपने परिवार में बहुत प्रिय हैं .एक साक्षात्कार में जब अभिषेक बच्चन से पूछा गया -''व्यक्ति,पिता और परिवार के मुखिया के रूप में आप उनका चित्रण कैसे करेंगे ?'' तो वे कहते हैं -''हर रूप में सर्वोत्तम .''

अमिताभ जी जहाँ काम करते हैं पूरे दिल  से करते हैं और इसी का परिणाम है उनके हर काम में सफलता का मिलना .अमिताभ जी के जो मन में आता है वह करते हैं और उसे पूरी शिद्दत से करते हैं कोई कितना भी उन्हें डिगाने की कोशिश करे वे कभी विचलित नहीं होते ''कौन बनेगा करोड़पति ''शो द्वारा टेलीविजन पर उतरने वाले अमिताभ जी ने ये मिसाल पेश की है की कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता बल्कि वह उसे करने वाले की शख्सियत और मेहनत पर निर्भर है और ये शो उन्होंने तब किया जबकि जया जी इसके खिलाफ थी क्योंकि वे सोचती थी कि इससे अमिताभ जी की विशाल छवि टीवी तक सिकुडकर रह जाएगी .गुजरात जहाँ गोधरा दंगों की काली छाया ने पर्यटन को बहुत नुकसान पहुँचाया था उसे संवारा फिर से अमिताभ जी ने .साइबर संसार में सुपर लाइक अमिताभ जी के लिए हुए  बीबीसी के एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में उन्हें ''स्टार ऑफ़ द मिलेनियम  '' के ख़िताब दिया गया .सुपर स्टार की हैसियत पाने के बाद हृषिकेश मुखर्जी अमिताभ बच्चन को ''महाराज'' कहकर बुलाते थे .ऐसे हैं अमिताभ जी कि मन करता है कि कहूं  ,एक बार नहीं बार बार कहूं -
''कुछ लोग वक़्त के सांचों में ढल जाते हैं ,
कुछ लोग वक़्त के सांचों को ही बदल जाते हैं ,
माना कि वक़्त माफ़ नहीं करता किसी को ,
पर क्या कर लोगे उनका जो वक़्त से आगे निकल जाते हैं .''
         सीखिए आज के हीरों बनने चले आज कल के युवाओं कि सच्चा मर्द कैसे बना जाता है .
शालिनी कौशिक

शनिवार, 16 मार्च 2013

नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले



http://www.ourtripvideos.com/images/PicturesForBlog/2013/RepDayIndGbltMD12/Big/DSC_1210.jpg Republic Day Parade




 अभी अभी देश ने पूर्ण श्रृद्धा और उल्लास से अपना ६४ वां गणतंत्र दिवस मनाया और ये बात गौर करने लायक है कि ये श्रृद्धा और उल्लास जितना भारत में निवास करने वालों में था उससे कहीं अधिक विदेश में रह रहे भारतीयों में था [आखिरकार ये ही कहना पड़ेगा क्योंकि वैसे भी भारत में रह रहे लोग कुछ ज्यादा ही विदेश में रह रहे भारतीयों के आकर्षण में बंधें हैं ]इसलिए उनके द्वारा मनाया गया भारत का कोई भी पर्व धन्य माना जाना चाहिए और फिर ये तो है ही गर्व की बात कि वे आज भी भारतीय गणतंत्र से जुड़े हैं और इसके प्रति श्रृद्धा रखते हैं भले ही इसके लिए अपना जो योगदान उन्हें करना चाहिए उसे यहाँ की सरकार की,अर्थव्यवस्था की आर्थिक मदद द्वारा सहयोग कर अपने  इस देश के प्रति उसी प्रकार कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं जैसे हम सभी किसी आयोजन चाहे धार्मिक हो या सामाजिक ,पारिवारिक हो या वैवाहिक में अपने पास किसी वस्तु न होने की स्थिति में रूपये /पैसे दे उसकी आपूर्ति  मान लेते हैं .

       हम अगर अपने देश से प्रेम करते हैं और इसकी तरक्की के आकांक्षी हैं तो क्या ये सही है कि हम सभी तरह की योग्यता ग्रहण कर मात्र अधिक कमाई के फेर में अपने देश को छोड़ कर किसी और देश में जा बसें ?क्या देश को उन्नति पथ गामी बनाना  हमारा कर्तव्य नहीं है ? इस तरह के कई सवाल हमारे मन में कौंधते हैं किन्तु हम अपनी उन्नति को वरीयता दे इन सवालों को दरकिनार कर देते हैं किन्तु हर देश वासी ऐसा नहीं होता और इसलिए वह रत्न होता है और ऐसे ही एक रत्न हैं पानीपत [हरियाणा ] के नसीब सभ्रवाल .[अकी],आज केवल मैं कह रही हूँ कल आप भी कहेंगे   दैनिक जागरण के झंकार में ६ जनवरी को ''मेरी कहानी मेरा जागरण''शीर्षक के अंतर्गत नसीब सभ्रवाल की कहानी पढ़ी और मन कर गया कि इसे आप सभी से साझा करूँ ताकि जैसे मेरा सिर नसीब जी के देशप्रेम के आगे नत हो गया ऐसे ही अन्य देशवासियों का भी हो .
    नसीब जी बताते हैं कि बात उन दिनों की है जब वे मुंबई में क्राफ्ट इंस्ट्रक्टर का कोर्स कर रहे थे पढाई के दौरान उन्हें अपनी कक्षा के सभी छात्रों के साथ समुंद्री जहाज बनाने के प्रसिद्द सरकारी उपक्रम मंझगांव  डाकयार्ड   में  जाकर कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ वहां कार्यरत एक वरिष्ठ  इंजीनियर उनका मार्गदर्शन करते हुए कंपनी की प्रत्येक गतिविधि से अवगत करा रहे थे उन्होंने उन्हें बताया कि कंपनी में शिवालिक ,सह्याद्रि और सतपुड़ा नाम के तीन बड़े युद्धपोत बनाने का कार्य तेज़ी से चल रहा है इसके अतिरिक्त वहां कई पनडुब्बी बनाई जा रही थी .नसीब जी आगे कहते हैं ''जब वह वरिष्ठ इंजीनियर उस संस्थान की उपलब्धियों का बखान कर रहे थे ,तब मेरा ध्यान कहीं और था .दरअसल ,उस वक्त मेरा चयन दुबई की एक कंपनी में अच्छे पैकेज पर हो चुका था .वहां जाने के  लिए मेरा वीजा भी जल्दी मिलने वाला था,जिसको लेकर मैं खासा उत्साहित  था .मुझे कहीं और ध्यान मग्न देखकर कम्पनी के इंजीनियर और उस वक्त हमारे मार्गदर्शक ने मुझे बीच में ही टोक दिया .उनके टोकते ही मैं कल्पना लोक से सीधे यथार्थ  की ज़मीन पर आ गिरा .उन्होंने मुझ पर अपना गुस्सा निकलते हुए कहा ,''आपके लिए तो यह एक नाटक चल रहा होगा ?''नहीं सर आपको कुछ ग़लतफ़हमी हो गयी है .दोस्तों के सामने अपनी फजीहत से बचने के लिए नसीब जी ने घबराहट में जल्दी से अपना बचाव किया मगर वे कहते  हैं कि इससे उनके वे इंजीनियर साहब संतुष्ट नहीं हुए .वे समझ गए थे कि बात क्या है .वे फिर से उनपर बरस पड़े .उन्होंने उन नवनिर्मित जहाजों की ओर इशारा करते हुए कहा ,''बेटा ,इन्हें बनाने  में हमारे साथियों ने अपनी सारी उम्र लगा दी ,तब कहीं जाकर हम यहाँ तक पहुंचे हैं .बरसों पहले जब हम यहाँ आये थे ,उस वक्त भी दूसरे मुल्क हमें लाखों डालर के पैकेज देने के लिए तैयार थे ,परन्तु अपने देश के लिए हमने यहाँ कुछ हज़ार रुपये की पगार पर ही बरसों गुजार दिए .''बात करते करते उस प्रौढ़ उम्र के इंजीनियर की आँखों में मुझे इत्मिनान और आत्मविश्वास के भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे थे .उन्होंने बताया कि''हमारे डाक्टर  ,वैज्ञानिक व् इंजीनियर भारत से बड़ी बड़ी डिग्रियां हासिल करके विदेश निकल जाते हैं .जीवन भर विदेश में काम करके भारत लौटते हैं तो कितनी आसानी से कह देते हैं -''भारत आज भी वैसा ही है जैसा बीस साल पहले था .इतने सालों में यहाँ कोई बदलाव नहीं आया .कोई तरक्की नहीं हुई ,जबकि हम यह कभी नहीं सोचते कि हमने देश के लिए क्या किया है ?''  
    इंजीनियर की बातों का नसीब जी के मस्तिष्क पर गहरा असर हो चला था .उन्होंने कहा ,''भारत आपसे और हमसे मिलकर ही बनता है .इसकी तरक्की के लिए भी एक एक आदमीं का सहयोग अपेक्षित है .दूसरे मुल्क हमारी प्रतिभाओं को ऊँची कीमत पर खरीद लेते हैं और उन्हीं के बूते वे तरक्की के पायदान चढ़ते जा रहे हैं ,जबकि हम उनसे पिछड़ जाते हैं .''उस प्रबुद्ध  इंजीनियर के निश्छल देश प्रेम ने नसीब जी के शब्दों में ''मुझे अन्दर तक झकझोर दिया था .''उन्हें लगा कि जब ये काम तनख्वाह पाकर भी देश के लिए इतना कुछ कर रहे हैं तो क्या मैं ....?उनकी बातें सुनकर नसीब जी की आत्मा ग्लानि से भर गयी और उनके अन्दर भी देश प्रेम की  भावना दम भरने लगी .
       ''मैंने उसी वक्त विदेश न जाने का  दृढ निश्चय कर लिया उस इंजीनियर की देश प्रेम से ओत-प्रोत बातों ने मेरे अन्दर भी देश के प्रति कर्तव्य बोध का जागरण कर दिया था .''ये कहते हुए देश प्रेम से गर्वित होते नसीब जी आज तक एक स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेज  में शिक्षक के पद पर कार्य कर रहे हैं और अपने देश के विकास में थोडा किन्तु महत्वपूर्ण योगदान दे उसकी तरक्की में भागीदार बन रहे हैं .
    ये थोडा ही सही किन्तु बहुत महत्वपूर्ण ही कहा जायेगा क्योंकि सभी जानते हैं कि ''बूँद बूँद से ही घड़ा भरता है ''और आज विकास की राह पर अग्रसर अपने भारत वर्ष की तरक्की में यदि हम सच्चे देश भक्त हैं तो हमें माखन लाल चतुर्वेदी जी की ''पुष्प की अभिलाषा ''को ही अपनी अभिलाषा बनाना होगा ताकि हमारा देश विश्व में सिरमौर के रूप में सुशोभित हो सके -
   ''चाह नहीं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं ,
      चाह नहीं प्रेमी माला में विन्ध नित प्यारी को ललचाऊँ ,
    चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरी डाला जाऊं ,
    चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं ,भाग्य पर इठलाऊँ ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना फैंक
मातृभूमि पर शीश चढाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक .''
नसीब जी के देश प्रेम की ये भावना समस्त भारतीयों  के नयनों का स्वप्न बन जाये और यहाँ से पलायन करने वाली प्रतिभाओं के पैर यहाँ जमा दे तो मेरा ये आलेख लिखने का उद्देश्य सफल हो जाये .नसीब जी को मेरा सादर प्रणाम .
   शालिनी कौशिक
     [WOMAN ABOUT MAN]
 

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

शुक्रवार, 15 मार्च 2013


कलयुग की महाभारत


                                 सब कुछ तो लगा दिया

                                 मैंने खुद ही

                                 अपना दाँव पर

                                 पद, प्रतिष्ठा, अपना घर

                                 फिर भी तुमने

                                 किया मुझसे छल

                                 और दिया धोखा

                                 अर्जुन के हाथों ही

                                 निर्वस्त्र हुयी द्रौपदी

                                 कैसी अजीब रही

                                 यह कलयुग की महाभारत


गुरुवार, 14 मार्च 2013

तुम मुझको क्या दे पाओगे?

तुम मुझको क्या दे पाओगे?


Women Revolutionaries
google se sabhar
तुम भूले सीता सावित्री ,क्या याद मुझे रख पाओगे ,
खुद तहीदस्त हो इस जग में तुम मुझको क्या दे पाओगे?

मेरे हाथों में पल बढ़कर इस देह को तुमने धारा है ,
मन में सोचो क्या ये ताक़त ताजिंदगी भी तुम पाओगे ?

संग चलकर बनकर हमसफ़र हर मोड़ पे साथ निभाया है ,
क्या रख गुरूर से दूरी तुम ताज़ीम मुझे दे पाओगे ?

कनीज़ समझ औरत को तुम खिदमत को फ़र्ज़ बताते हो,
उस शबो-रोज़ क़ुरबानी का क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

फ़ितरत ये औरत की ही है दे देती माफ़ी बार बार ,
क्या उसकी इस इनायत का इकबाल कभी कर पाओगे?

शहकार है नारी खिलक़त की ''शालिनी ''झुककर करे सलाम ,
इजमालन सुनलो इबरत ये कि खाक भी न कर पाओगे.


शब्दार्थ :तहीदस्त-खाली हाथ ,इनायत- कृपा ,ताजिंदगी -आजीवन 
ताज़ीम -दूसरे को बड़ा समझना ,आदर भाव ,सलाम 
कनीज़ -दासी ,इजमालन -संक्षेप में ,इबरत -चेतावनी ,
इकबाल -कबूल करना ,शहकार -सर्वोत्कृष्ट कृति ,
खिलक़त-सृष्टि 
      
                    शालिनी कौशिक 
                                  [कौशल ]

बृहस्पतिवार, 14 मार्च 2013




कैसे है नारी अबला 
                                                             
                                              

(Courtesy: Image from google)

                   सीता का हरण
                   बन गया था

                   रावण का मरण





(Courtesy: Image from google)

                                                           



                      द्रौपदी का चीर-हरण 
                      खत्म कर देता है
                      समूचा कुरूवंश







                           
(Courtesy: Image from google)
                                                                                              





                        काली की
                        प्रचंडता रोकने के लिए 
                        स्वयं शंकर को
                        लेटना पड़ा था राह में


                                                              

                    
                                              समझ में नहीं आता 
                                              इस सबके बावजूद

                                              कैसे है नारी अबला

                                              पुरूषों की निगाह में? ∙



मंगलवार, 12 मार्च 2013

जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,

                              
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .
शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .
मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .
कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .
                शालिनी कौशिक 

रविवार, 10 मार्च 2013

''एक हल्की बात कर देती है किरदार तार-तार !''

 ये पोस्ट पूर्व में एक पुरुष ब्लोगर की टिप्पणी पर प्रकाशित की थी -

''एक हल्की बात कर देती है किरदार तार-तार !''

ब्लॉग जगत अपने मूल स्वरुप में बुद्धिजीवियों का समूह है .ब्लॉग जगत में ऐसी हल्की बात की उम्मीद कोई भी सभ्य-सुशिक्षित ब्लोगर नहीं कर सकता है .ब्लोगर स्त्री है या पुरुष -क्या आप यह देखकर किसी के ब्लॉग पर जाते हैं ?आप ब्लॉग पर पोस्ट की गयी रचना-आलेख पर ध्यान देते हैं या प्रोफाइल में चिपकी ब्लोगर की फोटो पर ? मेरा मानना है कि कोई भी सभ्य ब्लोगर सिर्फ पहचान के लिए प्रोफाइल फोटो पर एक नज़र डाल लेता है .ऐसे में यदि कोई आपको बार-बार यह सलाह दे कि आप ब्लॉग पर अपने प्रोफाइल में ''अच्छी फोटो ''लगायें इससे पाठकों की संख्या बढती है तो इसे आप क्या सलाह देने वाले के दिमाग का दिवालियापन नहीं कहेंगे !
जो पाठक आपकी रचनाओं के स्थान पर आपकी फोटो पर ज्यादा ध्यान देते हैं -वे पाठक हैं ही कहाँ ?वे तो दर्शक हैं .उनके लिए तो बहुत सामग्री नेट पर अन्यत्र भी उपलब्ध है .ऐसे ब्लोगर न तो साहित्य प्रेमी कहे जा सकते हैं और न ही विशुद्ध आलोचक .वे केवल तफरी करने के लिए ब्लॉग बना कर बैठ गएँ हैं .ब्लॉग जगत में सुन्दर चेहरों को फोटो में तलाशने का उद्देश्य रखने वाले ऐसे ब्लोगर्स को यह जान लेना चाहिए कि यदि ब्लॉग को प्रसिद्द करने का यही तरीका होता तो न तो अच्छा लिखने वालों को कोई पूछता और न ही उम्रदराज ब्लोगर्स को जबकि ब्लॉग जगत में दोनों की ही महत्ता सिर चढ़ कर बोल रही है .
यदि सुन्दर फोटो लगाकर कोई ब्लॉग जगत में अपनी पाठक संख्या बढाने का ख्वाब देखता है तो यह केवल दिवास्वप्न ही है क्योंकि यदि ऐसा होता तो यहाँ भी फ़िल्मी हीरो-हिरोइन -मॉडल का बोलबाला हो चुका होता.इसके पीछे कारण यही है कि आम आदमी न तो उनकी तरह अपनी शारीरिक सुन्दरता को लेकर सचेत होता है और न ही उसके पास इन की तरह शरीर को सुन्दर-सुडोल बनाने का समय व् पैसा होता है .फिल्म-मॉडलिंग से जुड़े लोग अपने शरीर को दुकान के माल की तरह सजा-सवाँर कर रखते हैं क्योंकि यह उनके पेशे का हिस्सा है पर यहाँ ब्लॉग जगत में हम सभी का उद्देश्य मात्र अपने विचारों और भावों को अपने सामान आम लोगों तक संप्रेषित करना है व् अन्य ब्लोगर्स के विचारों से अवगत होना है .वास्तव में जो किसी को ऐसी घटिया सलाह देता है वह सबसे पहले किसी की निजता को चोट पहुंचाता है फिर सभ्यता की सीमाओं को लांघता है और इस सबके बाद वह स्वयं विचारकर देखे कि वह कितनी हल्की बात कर रहा है ! इससे उसका किरदार भी तो तार-तार हो जाता है .क्या ऐसा नहीं है ?

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .

 

आज करूँ आगाज़ नया ये अपने ज़िक्र को चलो छुपाकर ,
कदर तुम्हारी नारी मन में कितनी है ये तुम्हें बताकर .


 जिम्मेदारी समझे अपनी सहयोगी बन काम करे ,
साथ खड़ी है नारी उसके उससे आगे कदम बढाकर .



 बीच राह में साथ छोड़कर नहीं निभाता है रिश्तों को ,
अपने दम पर खड़ी वो होती ऐसे सारे गम भुलाकर .


 कैद में रखना ,पीड़ित करना ये न केवल तुम जानो ,
जैसे को तैसा दिखलाया है नारी ने हुक्म चलाकर .


 धीर-वीर-गंभीर पुरुष का हर नारी सम्मान करे ,
आदर पाओ इन्हीं गुणों को अपने जीवन में अपनाकर .


 जो बोओगे वो काटोगे इस जीवन का सार यही ,
नारी से भी वही मिलेगा जो तुम दोगे साथ निभाकर .


 जीवन रथ के नर और नारी पहिये हैं दो मान यही ,
''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
            
           शालिनी कौशिक
  [WOMAN ABOUT MAN]

गुरुवार, 7 मार्च 2013

यादें-बाबा जी की

यादें-बाबा जी की
 दादा जी केवल दादा जी होते हैं ...वो एक पुरुष हैं ये तो बहुत बाद में जान पाते हैं .मेरे जीवन में मेरे दादा जी [बाबा जी ] का बहुत खास स्थान हैं .उनके विषय में मेरे उद्गार -
 पिता की मृत्यु के पश्चात् जो बालक जन्म लेता है उसकी व्यथा को शायद वो या उसके जैसी परिस्थिति  से गुजरने वाला बालक ही समझ सकता है.आज मैं उस बालक की  मनोस्थिति को कुछ कुछ  समझने का प्रयास करती हूँ तो मुझे अपने बाबा जी से एकाएक सहानूभूति  हो आती है .हमारे  पड़बाबा  जी   की अट्ठारह  वर्ष की अल्प आयु में मृत्यु के छः माह पश्चात् हमारे बाबा जी  का जन्म हुआ .संयुक्त परिवार में ऐसा बालक दया का अधिकारी तो हो जाता है पर पिता का स्नेह उसे कोई नहीं दे सकता .यही कारण था कि वे अपनी माता जी  के बहुत निकट रहे और उनकी मृत्यु होने पर अस्थियों को काफी समय बाद गंगा में प्रवाहित किया .एक अमीन के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई पर हमारे लिए तो वे केवल बाबा जी थे .जब तक जीवित रहे तब तक हमने कभी उन्हें लड़का-लड़की में भेद करते नहीं देखा . किसी भी प्रतियोगिता में यदि हम इनाम पाते तो उन्हें अत्यधिक हर्ष होता  .एक बुजुर्ग का साया प्रभु की कितनी बड़ी नेमत होती है -वे ही जान सकते है जिन्हें ये नसीब होता है .हमें ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिए हम प्रभु के आभारी हैं .रोजमर्रा की बातों में ही उन्होंने हमारे अन्दर संस्कारों के बीज बो दिए .मैं अपने समस्त परिवार की ओर से प्रभु से कामना करती हूँ कि  वे उनकी आत्मा को शांति दें व् हमें ऐसी सद्बुद्धि दें कि हम उनके दिखाए आदर्श  पथ से कभी न भटकें .

        शिखा कौशिक 'नूतन'