शनिवार, 1 नवंबर 2014

बेटी का भाग्य

 तुम रानी बनकर राज करोगी जब तुम किसी के घर की शोभा बनोगी |
         तुम जिस घर में जाओगी उस घर का बन्टाधार हो जायेगा |
''तुम बहुत भाग्यशाली हो|
एकदम गुलाब के फुल की तरह सुवासित होजब तुम पैदा हुई ना तो तेरे बाप को अपने व्यापर में बहुत बड़ा आर्डर मिला और हम उतरोतर तरक्की करते गये |
      तुम अभागी होउस कांटे की तरह जो शूल बनकर चुभता है तुम्हारे जन्म के दिन ही तुम्हारे बाप का काम-धन्धा सब चौपट हो गया हम रोटी को भी मोहताज हो गये थे 

धन और सम्पनता लडकी के भाग्य से कब और कैसे जुड़ गयाअर्थ को लडकी से जोड़कर इतना जहर क्यों उगला जा रहा है लडकी उदास बैठी सोच रही है

शान्ति पुरोहित 

जीवन रथ के नर और नारी पहिये हैं दो मान यही ,

 

आज करूँ आगाज़ नया ये अपने ज़िक्र को चलो छुपाकर ,
कदर तुम्हारी नारी मन में कितनी है ये तुम्हें बताकर .


 जिम्मेदारी समझे अपनी सहयोगी बन काम करे ,
साथ खड़ी है नारी उसके उससे आगे कदम बढाकर .



 बीच राह में साथ छोड़कर नहीं निभाता है रिश्तों को ,
अपने दम पर खड़ी वो होती ऐसे सारे गम भुलाकर .


 कैद में रखना ,पीड़ित करना ये न केवल तुम जानो ,
जैसे को तैसा दिखलाया है नारी ने हुक्म चलाकर .


 धीर-वीर-गंभीर पुरुष का हर नारी सम्मान करे ,
आदर पाओ इन्हीं गुणों को अपने जीवन में अपनाकर .


 जो बोओगे वो काटोगे इस जीवन का सार यही ,
नारी से भी वही मिलेगा जो तुम दोगे साथ निभाकर .


 जीवन रथ के नर और नारी पहिये हैं दो मान यही ,
''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
            
           शालिनी कौशिक
  [WOMAN ABOUT MAN]

सोमवार, 11 अगस्त 2014

नारी जीवन

नारी जीवन

                                  नारी जीवन
‘’यत्र नार्यस्तु पूज्यते,ते तत्र देवता ‘’ इससे समझा जा सकता है कि वैदिक काल में नारी को सम्मान की द्रष्टि से देखा जाता था| उसे सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त था| जैसे --वेदाध्ययन,शास्त्रार्थ करना, पति के साथ युद्ध भूमि में लड़ने जाना आदि आदि| 
              कुछ विदुषिया जैसे-- मैत्रेयी,गार्गी आदि उदाहरण है जिन्होंने स्वयं अपनी प्रबुधता और आत्मबल से अपनी अलग पहचान बनायी, समाज की नारियो को नई दिशा दी| मध्य काल में आते आते नारी की दशा में आमूल परिवर्तन हुआ| और आज तो नारी की जो हालत है वो सर्वविदित है | पांच वर्ष की बच्ची हो या 70 वर्ष की औरत कोई भी सुरक्षित नहीं है | हर रोज देश के हर भाग में नारी के साथ अत्याचार होते है | कानून भी कोई ऐसा नहीं बना कि औरत के साथ अत्याचार करने वाले दरिन्दे को सख्त से सख्त सजा मिल सके | बीसवी सदी में औरतो की ये हालत है जैसे वो जंगल राज में रहती है | लडकियों को पढने के लिए कहीं बाहर भेजते हुए माता- पिता की रूह काँप जाती है | अपनी बेटी के साथ कुछ अनहोनी ना हो इसलिए अधिंकांश माता- पिता तो टेलेंट होते हुए भी अपनी बेटियों को पढने बाहर नहीं भेजते है | सरकार को प्रभावी कानून बनाना चाहिए जिससे देश में औरत भी खुली हवा में संस ले सके |

शनिवार, 12 जुलाई 2014

अपने को किसी हाल ये सुधारते नहीं !


औरत पे ज़ुल्म हो रहे कर रहा आदमी
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं ,
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलना
ये कर रहे हैं काम मगर मानते नहीं !
.........................................................
औरत को जूती पैर की ही माने आदमी
सम्मान देने रोग मान पालते नहीं ,
ये चाहें इसपे बस हुक्म चलाना
 करना भला इसका कभी विचारते नहीं !
..........................................................
औरत लुटा दे मर्द पर भले ही ज़िंदगी
वे रहते हैं कभी किसी मुगालते नहीं ,
खिदमत हमारी करना औरत की है किस्मत
करना है कुछ उसके लिए ये जानते नहीं !
..............................................................
जनम-जनम का साथ है पत्नी पति का मांगती
ये पत्नी को दिल में कभी उतारते नहीं ,
चाह रखके बेटों की ये बेटियां हैं मारती
ये बुराई तक माँ के लिए हैं मारते नहीं !
.............................................................
''शालिनी ''की तड़प का है ना सबूत कोई
अपने किये को ये कभी धिक्कारते नहीं ,
बेटी हो या बहन हो ,ये पत्नी हो या माँ हो
अपने को किसी हाल ये सुधारते नहीं !
...................................................................
शालिनी कौशिक
       [कौशल ]

रविवार, 29 जून 2014

क्या पुरुषों को सम्मान से जीने का अधिकार नहीं ?

Pavitra Bandhan 20th June 2014 EpisodePavitra Bandhan 25th June 2014 Episode

[False dowry case? Man kills self

Express news service Posted: Feb 07, 2008 at 0321 hrs
Lucknow, February 6 A 30-year-old man, Pushkar Singh, committed suicide by hanging himself from a ceiling fan at his home in Jankipuram area of Vikas Nagar, on Wednesday.In a suicide note, addressed to the Allahabad High Court, Singh alleges that he was framed in a dowry case by his wife Vinita and her relatives, due to which he had to spend time in judicial custody for four months.
The Vikas Nagar police registered a case later in the day.
“During the investigation, if we find it necessary to question Vinita, we will definitely record her statement,” said BP Singh, Station Officer, Vikas Nagar.
Pleading innocence and holding his wife responsible for the extreme step he was taking, Singh’s note states: “I was sent to jail after a false dowry case was lodged against me by Vinita and her family, who had demanded Rs 14 lakh as a compensation. Neither my father nor I had seen such a big amount in our lives. We even sold our house to contest the case.”
According to reports, Singh married Vinita about two years ago and lived in Allahabad since.
Early last year, his wife left him and started living with her family.
A case under Sections 323 (voluntarily causing hurt), 498 (A) (cruelty by husband or relatives of husband) and 504 (intentional insult) was lodged by Vinita and her relatives before she left him.
In the note, Singh wrote he was in the Naini Central Jail from “September 29 to December 24, 2007”.
Shishupal Singh, Singh's brother-in-law, said he was disturbed ever since he released from jail. The court case constantly haunted him.
“After he was bailed out, he was living with his mother, younger sister and a physically-challenged brother in a rented house in Jankipuram.” The family had their own house in Indira Nagar, which was recently sold to meet the legal expenses, he added.
“While he searched for a job, he drove a three-wheeler for a living. A few days ago, he received a notice from the court and since then, he stopped stepping out of the house,” he said.
In the note, Singh further wrote: “I would also like to request Vinita not to harass my family in future. It was my mistake to marry her and I am repenting it by sacrificing my life.”]

''मुझे दहेज़ कानून की धारा ४९८-ए,३२३ और ५०४ के तहत जेल जाना पड़ा ,मेरी पत्नी विनीता ने शादी के 2 साल बाद हमारे परिवार के खिलाफ दहेज़ के रूप में 14 लाख रुपये मांगने का झूठा मुकदमा लिखाया था .इतनी रकम कभी मेरे पिता ने नहीं कमाई ,मैं इतना पैसा मांगने के बारे में कभी सोच भी नहीं सकता था ,मेरी भी बहने हैं ,इस मुक़दमे के चलते मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया है ,हम आर्थिक तंगी के शिकार हो गए ,मकान बिक गया ,अब मैं ज़िंदा नहीं रहना चाहता हूँ ख़ुदकुशी करना चाहता हूँ ,मेरी मौत के लिए मेरी ससुराल के लोग जिम्मेदार होंगे .''
       ये था उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम सेक्टर -सी में रहने वाले पुष्कर सिंह का ख़ुदकुशी से पहले लिखा गया पत्र ,जिसे लिखने के बाद ६ फरवरी २००८ को पुष्कर ने फांसी का फंदा गले में डाल कर ख़ुदकुशी कर ली .
       दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक  'पवित्र बंधन 'में एक पात्र मीनाक्षी ,जो कि एक एडवोकेट है और धारावाहिक के नायक गिरीश रॉय चौधरी की मृतक पत्नी की सहेली ,वह गिरीश राय चौधरी से एकतरफा पागलपन की हद तक प्यार करती है और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने को तैयार है .अपने इस प्रयास में विफल रहने पर वह स्वयं को चोटें मारती है ,स्वयं के कपडे फाड़ती है और पुलिस लेकर पहुँच जाती है गिरीश राय चौधरी के घर ,ये इलज़ाम लेकर कि गिरीश ने उसके साथ 'बलात्कार का प्रयास किया है '.
     ये दोनों ही मामले ऐसे हैं जो संविधान द्वारा दिए गए प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के मूल अधिकार से एक हद तक पुरुष जाति को वंचित करते हैं .पुरुषों ने महिलाओं पर अत्याचार किये हैं ,उनके साथ बर्बर व्यवहार किये हैं किन्तु ये आंकड़ा अधिकांशतया होते हुए भी पूर्णतया के दायरे में नहीं आता .अधिकांश पुरुषों ने अधिकांश महिलाओं के जीवन को कष्ट पहुँचाया है किन्तु इसका तात्पर्य यह तो नहीं कि सभी पुरुषों ने महिलाओं को कष्ट पहुँचाया है .अधिकांश महिलाएं पुरुषों के द्वारा पीड़ित रही हैं किन्तु इस बात से ये तो नहीं कहा जा सकता कि सभी महिलाएं पुरुषों के द्वारा पीड़ित रही हैं और इसीलिए अधिकांश के किये की सजा अगर सभी को दी जाती है तो ये कैसे कहा जा सकता है कि संविधान द्वारा सभी को जीने का अधिकार दिया जा रहा है .जीने का अधिकार भी वह जिसके बारे में स्वयं संविधान के संरक्षक उच्चतम न्यायालय ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ ए.आई.आर.१९७८ एस.सी.५९७ में कहा है -
''प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाये रखते हुए जीने का अधिकार है .''
 फ्रेंसिसी कोरेली बनाम भारत संघ ए.आई.आर.१९८१ एस.सी. ७४६ में इसी निर्णय का अनुसरण करते हुए उच्चतम न्यायालय  ने कहा -''अनुच्छेद २१ के अधीन प्राण शब्द से तात्पर्य पशुवत जीवन से नहीं वरन मानव जीवन से है इसका भौतिक अस्तित्व ही नहीं वरन आध्यात्मिक अस्तित्व है .प्राण का अधिकार शरीर के अंगों की संरक्षा तक ही सीमित नहीं है जिससे जीवन का आनंद मिलता है या आत्मा वही जीवन से संपर्क स्थापित करती है वरन इसमें मानव गरिमा के साथ  जीने का अधिकार भी सम्मिलित है जो मानव जीवन को पूर्ण बनाने के लिए आवश्यक है .''
     और ऐसे मामले जहाँ कानून से मिली छूट के आधार पर शादी के सात साल के अंदर के विवाह को दहेज़ से जोड़ देना और नारी के द्वारा स्वयं ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करने पर पुरुष से धिक्कार पाने पर उसे बलात्कार के प्रयास का रूप दे दिया जाना सीधे तौर पर पुरुष की गरिमा पर ,जीने के अधिकार पर हमले कहें जायेंगें क्योंकि इन मामलों में नारी का पक्ष न्यायालय के सामने मजबूत रहता है और एक यह पक्ष भी न्यायालय के सामने रहता है कि नारी ऐसे मामलों में शिकायत की पहल नहीं करती है और इसका खामियाजा पुरुषों को भुगतना पड़ता है .ऐसे मामलों में सबूतों ,गवाहों की कमी यदि महिलाओं को रहती है तो पुरुषों को भी इसका सामना करना पड़ता है और अपने मामलों को साबित करना दोनों के लिए ही कठिन हो जाता है किन्तु महिला के लिए न्यायालय का कोमल रुख यहाँ पुरुषों के लिए और भी बड़ी कठिनाई बन कर उभरता है .यूँ तो अधिकांशतया नारियों पर ही अत्याचार होते हैं किन्तु जहाँ एक तरफ ख़राब चरित्र के पुरुष हैं वहीँ ख़राब चरित्र की नारियां भी हैं और इसका फायदा वे ले जाती हैं क्योंकि ख़राब चरित्र का पुरुष ऐसे जाल में नहीं फंसता वह पहले से ही अपने बचाव के उपाय किये रहता है जबकि अच्छे चरित्र का पुरुष उन बातों के बारे में सोच भी नहीं पाता जो इस तरह की तिकड़मबाज नारियां सोचे रहती हैं और अमल में लाती हैं .
       जैसे कि हमारे ही एक परिचित के लड़के से ब्याही लड़की विवाह के कुछ समय तो अपनी ससुराल में रही और बाद में अपने मायके चली गयी और वहां से ये बात पक्की करके ही ससुराल में आई कि लड़का ससुराल से अलग घर लेकर रहेगा .लड़के के अलग रहने पर वह आई और कुछ समय रही और बाद में एक दिन जब लड़का कहीं बाहर गया था तो घर से अपना सामान उठाकर अपने भाइयों के साथ चली गयी और अपने घर जाकर अपने पति पर दहेज़ का मुकदमा दायर कर दिया ,सबसे अलग रहने के बावजूद घर के अन्य सभी को भी पति के साथ ४९८-ए के अंतर्गत क्रूरता के घेरे में ले लिया .स्थिति ये आ गयी कि लड़के के मुंह से यह निकल गया -''कि बस अब तो ऊपर जाने के मन करता है .''वह तो बस भगवान की कृपा कही जाएगी या फिर उसके घरवालों का साथ कि अपनी कोई जमीन बेचकर उन्होंने लड़की वालों को १० लाख रूपये दिए और लड़के को ख़ुदकुशी और खुद को जेल जाने से बचाया किन्तु अफ़सोस यही रहा कि कानून कहीं भी साथ में खड़ा नज़र नहीं आया .
        ऐसे ही ये बलात्कार या बलात्कार का प्रयास का आरोप है जिसमे या तो लम्बी कानूनी कार्यवाही या लम्बी जेल और या फिर ख़ुदकुशी ही बहुत सी बार निर्दोष चरित्रवान पुरुषों का भाग्य बनती है .हमारी जानकारी के ही एक महोदय का अपनी संपत्ति को लेकर एक महिला से दीवानी मुकदमा चल रहा है और वह महिला जब अपने सारे हथकंडे आज़मा कर भी उन्हें मुक़दमे में पीछे न हटा पायी तो उसने वह हथकंडा चला जिसे सभ्य समाज की कोई भी महिला कभी भी नहीं आज़माएगी .उसने इन महोदय के एकमात्र पुत्र पर जो कि उससे लगभग १५ साल छोटा होगा ,पर यह आरोप लगा दिया कि उसने मेरे घर में घुसकर मेरे साथ 'बलात्कार का प्रयास 'किया .वह तो इन महोदय का साथ समाज के लोगों ने दिया और कुछ राजनीतिक रिश्तेदारी ने जो इनका एकमात्र पुत्र जेल जाने से बच गया और उसका जीवन तबाह होने से बच गया किन्तु कानून के नारी के प्रति कोमल रुख ने इस नारी के हौसलों को ,जितने दिन भी वह इन्हें इस तरह परेशान रख सकी से इतने बुलंद कर दिए कि वह आये दिन जिस किसी से भी उसका कोई विवाद होता है उसे बलात्कार का प्रयास का आरोप लगाने की ही धमकी देती है और कानून कहीं भी उसके खिलाफ खड़ा नहीं होता बल्कि उसे और भी ज्यादा छूट देता है .भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा १४६[३] में अधिनियम संख्या ४ सं २००३ द्वारा परन्तुक अंतःस्थापित कर कानून ने ऐसी ही छूट दी है .जिसमे कहा गया है -
   [बशर्ते कि बलात्कार या बलात्कार करने के प्रयास के अभियोजन में अभियोक्त्री से प्रतिपरीक्षा में उसके सामान्य अनैतिक चरित्र के विषय में प्रश्नों को करने की  अनुज्ञा नहीं होगी .]
        क्या यही है कानून कि एक निर्दोष चरित्रवान मात्र इसलिए अपमानित हो ,जेल काटे कि वह एक पुरुष है .अगर बाद में कानूनी दांवपेंच के जरिये वह अपने ऊपर लगे आरोपों से मुक्ति पा भी लेता है तब भी क्या कानून उसके उस टुकड़े-टुकड़े हुए आत्मसम्मान की भरपाई कर पाता है जो उसे इस तरह के निराधार आरोपों से भुगतनी पड़ती है ?क्या ज़रूरी नहीं है ऐसे में गिरफ़्तारी से पहले उन मेडिकल परीक्षण ,सबूत ,गवाह आदि का लिया जाना जिससे ये साबित होता हो कि पीड़िता के साथ यदि कुछ भी गलत हुआ है तो वह उसी ने किया है जिस पर वह आरोप लगा रही है .ऐसे ही दहेज़ के मामले ,क्रूरता के मामले जिस तरह एकतरफा होकर महिला का पक्ष लेते हैं क्या ये कानून के अंतर्गत सही कहा जायेगा कि निर्दोष सजा पाये और दोषी खुला घूमता रहे .आज कितने ही मामलों में महिलाएं ही पहले घर वालों के द्वारा की गयी जबरदस्ती में शादी कर लेती हैं और बाद में उस विवाह को न निभा कर वापस आ जाती हैं और दहेज़ कानून का दुरूपयोग करती हैं .कानून को गंभीरता से इन मुद्दों को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के लिए सही व्यवस्था करनी ही होगी अन्यथा इस देश में मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार पुरुषों को भी है यह बात भूलनी ही होगी .

शालिनी कौशिक 
  [कानूनी ज्ञान ]

बुधवार, 18 जून 2014

कल्पना हर पुरुष मन की .



अधिकार 

सार्वभौमिक सत्ता 
सर्वत्र प्रभुत्व 
सदा विजय 
सबके द्वारा अनुमोदन 
मेरी अधीनता 
सब हो मात्र मेरा 

कर्तव्य 

गुलामी 
दायित्व ही दायित्व 
झुका शीश 
हो मात्र तुम्हारा 
मेरे हर अधीन का 

बस यही कल्पना 

हर पुरुष मन की .

शालिनी कौशिक 

   

रविवार, 18 मई 2014

याचना

 ''मेंम साब, पति अपाहिज ना हुआ होता तो वो कभी मुझे काम करने नहीं देता|, रमिया ने दुखी होते हुए कहा| रमिया का पति दिन भर धेले से माल धोने का काम करता था | एक बार ऑटो रिक्शा ने उसको टक्कर मारदी | जिससे उसका एक पैर बुरी तरह जख्मी हुआ |पैर को काटना पडा |
दो बच्चो और पति की जिम्मेदारी अब रमिया के कन्धो पर थी |
    आलिशान घरो में रहने वालो के पास काम मागंने के सिवा रमिया के पास अब कोई चारा नहीं था |मिसेज शर्मा ने उस पर तरस खाते हुए काम पर रखा | जब पैसो की बात आयी तो कहा ''फ़िक्र मत कर तेरी मेहनत का रखूंगी नहीं |लेकिन जब महीने के अंत में रमिया ने पैसे मांगे तो उसके हाथ पर कुछ दस -दस के नोट रखे| रमिया ये देख कर सकते में आ गयी | बोली ''मेम साब ,इतना बड़ा घर ,इतना काम और इतनी कम मजूरी,इतने से मै किस -किस का पेट भरुंगी '' मिसेज राही ने झल्लाते हुए कहा ''लेने है तो लो वरना निकलो यहाँ से मै कोई और बाई रख लुंगी |,, दुसरे घर की मालकिन ने बताया '' मिसेज राही सब बाई के साथ ऐसा ही करती है| रमिया को दूसरा काम मिल गया पर उसके बाद मिसेज राही को कोई बाई नहीं मिली |क्युकी रमिया ने सब बाई से मिलकर अपना एक संगठन बना लिया था |

पुरुष के रूप....

हुह आज थोड़ा भटकी हुई सी हू 
असमंजस में हू कि क्या लिखूँ ??
एक दिन ब्लॉग्स पढ़ते-२ मेरी आँखों के सामने 
वुमन अबाउट मैन टाइटल नाम का ब्लॉग आ गया था 
इसकी दो लाइन्स ही मेरे दिल पर गहरा असर कर गयी थी 
पुरुष मात्र पुरुष नहीं होता .एक नारी की दृष्टि से वह पिता है ,भाई है ,पति है ,पुत्र है ,जीजा ,बहनोई ,देवर,जेठ,सहयोगी,सहकर्मी और न जाने कितनी भूमिकाओं में नारी जीवन को प्रभावित करता है पुरुष
शालिनी मैम की लिखी यह दो लाइन्स ही कितना कुछ कह जाती हैं 
उस दिन मुझे वो पुराने दिन याद आ गए जब 
मैसेजेस में सवाल पूछे जाते थे दोस्ती क्या हैं ,प्यार क्या हैं ??etc 
उन्हीं दिनों किसी ने और दो सवाल पूछे थे 
पहला- लड़कियाँ क्या हैं ??
उम्र बहूत कम होने की वजह से जवाब भी बच्चों जैसा ही सूझ रहा था कि 
मैंने कह दिया -it`s eighth wonder of the world......
दूसरा-पुरुष क्या हैं ??
हम्म बहूत मुश्किल सवाल हैं ना 
कहाँ आसान हैं इंसानों को परिभाषाओं में बाँधना ??
थोड़ा सोच विचार करके फिर एक दृष्टि अपने परिवार 
पर डालने के बाद मैंने जवाब दिया कि -
when i look at my father n brother then
मुझे लगता हैं कि पुरुष दूसरों की मदद करने वाले ,
अपनों की फ़िक्र करने वाले व उस खुदा के बनाये सबसे अच्छे इंसान होते हैं :-)
गुस्सा व नाराजगी लाज़मी हैं पर हर किसी बात के लिए 
केवल पुरुष को जिम्मेदार ठहरना भी तो ठीक नहीं हैं 
हमें बगावत करनी हैं तो पुरुषों के प्रति क्यों ??
बगावत गलत धारणाओं व गलत चीज़ों के प्रति होनी चाहिए ना :-)
हम जिस पुरुष को पिता के रूप में दुनिया का सबसे कठोर इंसान समझते हैं 
क्या पता वो अकेले में अपनी आँखों के कितने सैलाब बहाता होगा 
वो खुलकर हमें पुचकार नहीं पाते हैं ,माँ की तरह लाड़ नहीं लुटाते हैं 
तो क्या वो इंसान हमसे प्यार करता ही नहीं :(
एक भाई लड़ लेता हैं तो क्या हुआ 
हमें आग़े बढ़ने की ज़िद्द भी तो वो ही सिखाता हैं 
एक पति हमेशा पत्नी को पीछे रहने की नसीहत देता हैं तो क्या हुआ 
बराबर का हक़ व अधिकार भी वो ही तो देता हैं 
एक प्रेमी……………हेहेहे यही भी नहीं कह सकती कि 
सबसे कमजोर होता हो या कुछ नहीं सिखाता हो 
आपको जीने का अंदाज सिखाता हैं, दर्द को महसूस करना सिखाता हैं 
अरे वो सब सीखा देता हैं जो जिंदगी के बीस सालों में आपके पेरेंट्स तक नहीं सीखा पाते हैं:-)
हम्म टॉपिक से थोड़े सटक गए उफ्फ...................
अब मुझसे कोई यह कहता हैं कि तुम एक लड़की हो 
तब मैं थोड़ा गंभीर होकर केवल इतना ही कहती हू कि मैं एक इंसान हू:-)
छोड़िए भी जरा लड़की व लड़का की सोच से थोड़ा ऊपर उठकर 
इंसानो की दुनिया के बारे में भी विचार कर लीजिए जी :!!!!!!!
पुरुष का प्यार औरत के जज्बातों से थोड़ा अलग होता हैं पर कम नहीं :-)
सही हैं पुरुष को मात्र पुरुष रूप में ही मत देखिए 
वो भी हर रूप में एक बेहद अच्छा इंसान हैं :-)

सोमवार, 5 मई 2014

पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,

आज की सच्चाइयाँ कुबूल कीजिये सभी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
................................................
नारी को है नारी से ईर्ष्या डाह द्वेष
नारी रोके नारी की उन्नति राहें सभी ,
अपने से आगे किसी को ये करे नहीं पसंद
बढ़ चले अगर कोई ,सुलगे चिंगारी दबी .
खुद यदि है शादमा रखे खुश सबको तभी
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
.......................................................
पर पुरुष की असलियत इससे भी है भयावह
डर है अपनी जात से जिसमे वासना भरी ,
वहशी बनके कर रहा है पुरुष ही दरिंदगी
कैसे ऐसी नज़र से बचाये अपना घर अभी .
पुरुष ही पुरुष से बचके भागता फिरे,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
.........................................................
नारी अपनी रंजिशों को खुद से ही संभालती
पुरुष बनता दुश्मनी में इसको ही अपनी छुरी ,
पुरुष बनाके खेल इसकी ज़िंदगी से खेलता
खिलौना बनती नारी खुद ही दासी बन इसकी पड़ी .
पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
..................................................
शालिनी कौशिक
[woman about man]

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

औरत का दूसरा नाम त्याग.....

औरत कुछ तो जन्म के वक़्त जज्बाती होती ही हैं 
और थोड़ा और ज्यादा जज्बाती उसे यह दुनिया बना देती हैं :-)
क्यों बनें हमेशा हम ही महान पता हैं ना 
महानता बलिदान और त्याग मांगती हैं 
चार तालियों की गड़गड़ाहट के पीछे अपनी आवाज को क्यों खो जाने दे ??
अपनों के लिए अपने वजूद को क्यों खो दें ??

बच्ची होती हैं ना चाहे वो अपने भाई से बड़ी हो या छोटी 
हमेशा अपनी टॉफियाँ अपने भाई के नाम कर देती हैं 
वो अपनी हर चीज़ उसके साथ ख़ुशी-२ शेयर कर लेती हैं 
कपड़ों से लेकर पेन-पेंसिल तक 
कहने भर का हैं भाई-बहन का रिश्ता अटूट होता हैं 
पर हमेशा उसे सहेजने, संभालने व बनाये रखने का जिम्मा बहन ही 
के सर होता हैं :-)

लड़की बेचारी थोड़ी बड़ी होती हैं कि 
अपने लिए जीने का सोचती हैं 
अपने पैरों को फैलाकर उस गगन को चुम लेना चाहती हैं 
अपने लिए सपनें संजोने का प्रयास मात्र करती हैं कि 
उसकी आँखों के सामने एक मजबूर पिता का चेहरा गुम जाता हैं 
कितना मुश्किल हो जाता हैं दुनिया के सबसे ताकतवर 
इंसान को अपने सामने कमजोर होते देखना 
वो अपने पिता की मजबूरियों, लाचारियों को भांपकर 
अपने उस सपनों के घरोंदे को ढा देती हैं :(

पिता के अरमानों को पूरा करने के लिए हो जाती हैं वो परायी 
किसी और की दुनिया को बना लेती हैं अपना भी 
दूसरों के सपनों को पूरा करते-२ वो अपने सपने तो भूल ही जाती हैं 
दूसरों की दुनिया को संवारते-२ वो खुद सजना-संवरना ही भूल जाती हैं 
दूसरों के नाम को ही अपनी पहचान बताते-२ 
उसे अपना नाम किसी गीली मिट्टी के तले दबता सा नजर आता हैं :(

बच्चे……हुह 
वो नहीं जानती कि जिन्हें आज वो अपनी जान से भी ज्यादा 
चाह रही हैं कल को कुछ वक़्त के लिए वो ही बेटी कहेगी 
कि माँ आप मुझे सलाह मत दीजिए मुझे सब पता हैं कि 
मेरे लिए क्या सही हैं और क्या गलत ???
आप तो कुछ नहीं जानती हैं 
खैर कुछ वक़्त बाद फिर से इतिहास दोहराया जाता हैं :(

आप कभी जान और समझ नहीं सकते कि 
किसी औरत ने आपके लिए क्या रोल अदा किया हैं 
जाने-अनजाने में उसने आपको कौनसी जड़ी-बूटी दी हैं 
जिसने आपका जीना थोड़ा और खुशनुमा कर दिया हो :-)
हो सकता हैं यह बातें सबके जीवन से ना मिलती हो 
पर यक़ीनन कुछ जिन्दगियों से तो जरूर मिलती होगी :-)
she is the creature of the GOD who no one can complete
respect every girl/lady in your life because

 u will never know what she has sacrificed for you.....

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

स्वीकार नहीं......

एक पुरुष को एक स्त्री हर रूप में स्वीकार ही होती हैं
या यू कह दो रिश्ते उसे भी मजबूर करते हैं सो ना
चाहते हुए भी बेटी, पत्नी के अनचाहे से रिश्तों को मंजूर करना ही पड़ता हैं :-)
औरत………………हाह इन्हें भला कहाँ किसी से समस्या होती हैं
और होती भी हैं तो सुनता भी कौन हैं इसलिए चुप्पी ही बेस्ट हैं
फिर भी औरतें रिश्तों को सहेजना व सम्भालना जानती हैं
वो इन्हें ख़ुशी-२ निभाती हैं बिना किसी गीले-शिकवे के
हर रिश्ता वो अपने में समेटना जानती हैं
पर एक बात मुझे बड़ा परेशान कर रही हैं
एक पुरुष अपनी पत्नी के हर रिश्ते को सहर्ष स्वीकार करता हैं
"पर उसे किसी पुरुष का अपनी पत्नी का दोस्त होना कभी स्वीकार नहीं होता हैं "
हो सकता हैं यह बात पूरी तरह से सही नहीं हो लेकिन यह बहुत हद तक सही हैं :-)
इसमें गलत क्या हैं ????
रिश्ते उस खुदा ने ही तो बनाये हैं फिर क्यों कुछ लोगों की सोच इन्हें बदनाम कर देती हैं ??
पुरुष क्यों नहीं समझ पाता हैं कि जैसे उसे दोस्ती के रिश्ते की जरुरत होती हैं
वैसी जरुरत स्त्री को भी होती होगी आखिर वो भी इंसान हैं :(
अगर पुरुष भाई, पति आदि रिश्तों में स्वीकार हैं तो दोस्त के रूप में क्यों नहीं ???
स्त्री और पुरुष के बिच में महज एक ही रिश्ता क्यों हो सकता हैं ???
कोई पुरुष मात्र उसका दोस्त तक क्यों नहीं हो सकता ????
जरुरत होती हैं कभी हमें भी अपने दर्द का सैलाब बहाने की
ढूंढते हैं दो कंधे पर नहीं मिल पाते हैं आंसू पोंछने वाले हाथ :(
यह इंसान कितना दोगला होता हैं ना
अगर कोई औरत इनकी दोस्त रहे तो इन्हें कोई आपति नहीं
अरे भई क्यों वो भी तो आखिर किसी की पत्नी हैं ????
अगर पैसे वाले गुनाह करें तो सब जायज और गरीबों पर क़यामत ढा दी जाती हैं
ठीक वैसे ही इन्हें स्त्री दोस्त रूप में स्वीकार पर अपनी पत्नी का कोई दोस्त स्वीकार नहीं :(
मैं तो बस इतना ही कहूँगी कि -
"नजर को बदल दो ,नज़ारे बदल जायेंगे !
सोच को बदल दो ,रिश्ते बदल जायेंगे !!"
मुझे जज्बातों को शब्द देना नहीं आया
पर जानती हू मैं आप लोग बहुत समझदार हैं
मेरी बातों को खुद-बेखुद समझ गए हैं :-)

शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,

 
बहाने खुद बनाते हैं,हमें खामोश रखते हैं ,
बहाना बन नहीं पाये ,अकड़कर बात करते हैं .
.......................................................
हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,
हुकुम मनवाने की ताकत ,पैर में साथ रखते हैं .
...............................................................
मेहरबानी होती इनकी .मिले दो रोटी खाने को ,
मगर बदले में औरत के ,लहू से पेट भरते हैं .
...............................................................
महज़ इज़ज़त है मर्दों की ,महज़ मर्दों में खुद्दारी ,
साँस तक औरत की अपने ,हाथ में बंद रखते हैं .
.........................................................
पूछकर पढ़ती-लिखती हैं ,पूछकर आती-जाती हैं ,
इधर ये मर्द बिन पूछे ,इन्हीं पर शासन करते हैं .
........................................................
इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,
खिलाफत खुलकर होने पर ,भी अपनी चाल चलते हैं .
...................................................................
नहीं हम कर सकते हैं कुछ भी ,टूटकर कहती ''शालिनी ''
बनाकर  जज़बाती हमको ,ये हम पर राज़ करते हैं .

..
शालिनी कौशिक 
   [WOMAN ABOUT MAN

रविवार, 16 मार्च 2014

लड़की होना एक अभिशाप......

बेशक हम अपने मन को बहलाने के लिए कभी-कभार प्राउड कर सकते हैं कि हम एक लड़की हैं 
पर बाबा उस पल दो पल की ख़ुशी पर मेरी उम्र बहुत भारी हैं 
मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा कि उस खुदा ने मुझे एक लड़की बनाया 
केवल कुछ औरतों को आजादी मिल जाने से बाकि आधी आबादी के बराबर 

की औरतों की  बेड़ियों को भी काट दिया गया हो जरुरी तो नहीं ??
अरे बाबा यहाँ पर तो लड़की के बोलने तक पर पाबन्दी लगा दी जाती हैं 
कुछ करना तो बहुत दूर की बात हैं :(
किसी के टोकने या डाँटने पर बेचारी लड़कियां बेचारी कुछ नहीं बोलती हैं 
बस चुपचाप वो उस जिल्लत के आंसू पीती रहती हैं 
जो गुनाह बेचारी लड़कियां कभी करती ही नहीं हैं, वो उसका भी जुल्म बिना कुछ कहे सह लेती हैं 
मैं पिछले कहीं सालों से विरोध कर रही हू किसी और के लिए नहीं केवल अपने ही लिए 
और मेरे घर में मुझे इसका पूरा हक़ व अधिकार दिया भी गया हैं 
यक़ीनन आपके पेरेंट्स का सपोर्ट आपके साथ हो तो 
सारी कायनात भी खुद-बेखुद आपकी और हो ही जाती हैं 
बहुत हद तक सोच बदल भी गयी हैं लड़कियों के कपड़ों से लेकर सोच व विचार तक.… 
पर शायद अभी तो हक़ की लड़ाई बहुत अधूरी सी हैं 
अभी तो बहुत जहर पीना बाकी हैं 
अभी तो हर मोड़ पर अग्नि परीक्षा हम लड़कियों का इंतज़ार कर रही हैं 
बेशक कभी ना कभी तो जलना ही हैं 
i hate to me, my life, this society n this world.....
सही हैं हर दिन रविवार नहीं होता हैं इसलिए हर दिन खुशियाँ भी केवल हमारा ही इंतज़ार नहीं कर रही होती हैं जिसमें से लड़कियों का तो बिल्कुल भी नहीं 
गॉड आप इतने निर्दयी नहीं हो सकते या तो दिला दो हम गर्ल्स को हमारा हक़ व अधिकार 
या फिर आप भी इस दुनिया में आओ और देखो कुछ दिन हम लड़कियों की तरह जीकर 
महसूस करो यहाँ की जिल्लत व घुटनभरी जिंदगी को थोड़ा आप भी 
ताकि आपको भी तो पता चले कि आखिर लड़कियां इतने अधिकार क्यों मांगने लगी हैं 
क्यूँ हर बात पर सिहर उठती हैं :(
हो गया ना रंग में भंग........ 
anyway wish u a very happy holi to all........

शनिवार, 8 मार्च 2014

सिर्फ एक ही दिन महिला दिवस क्यों.....

पिछले 4-5 दिनों से कोशिश कर रही हू महिलाओं पर कुछ स्पेशल लिखने की
खैर अब वो तो आप ही लोगों की हौसला अफजाई से पता चलेगा कि मेहनत कितना रंग लायी हैं :-)

आज महिला दिवस हैं खुश हो जाओ भई आज तो अपना दिन हैं 
पर यक़ीनन मेरे गांव की चाचियों, दादियों के लिए इस दिन का कोई महत्व नहीं हैं 
इवन उन्हें तो शायद पता भी नहीं होगा कि यह होता क्या हैं ????
आज मेरे मन में जो पहला सवाल कौंधा वो यह था कि 
सिर्फ एक ही दिन महिला दिवस क्यों ????
या महिला दिवस की ही तरह किसी एक दिन पुरुष दिवस क्यों नहीं ??
जवाब खुद-बेखुद ढूंढा कि वो शायद इसलिय ताकि बाकि के 364 दिन पुरुष दिवस मनाया जा सके !!
और मनाये भी क्यों ना अरे भई! अपना समाज पुरुष प्रधान ही तो हैं 
मनाने का इनका हक़ बनता हैं :(
देखिए मूल भावना को समझें पुरुष मूलत: नारी का बड़ा सम्मान करते हैं 
नारी को देवी मानते हैं, सती पूजा करते हैं और अगर नारियाँ पूजा चाहती हैं तो जलना आवश्यक हैं 
नारियाँ कभी पति की चिता पर जलती थी 
अब इस युग में हमारा सम्मान इस कदर बढ़ गया हैं कि 
स्वयं पति अपने हाथ से भी हमें जला सकता हैं :(
आजकल के लड़कें चाहते तो सीता जैसी पत्नी हैं पर 
राम कोई नहीं बनना चाहता 
उफ्फ पुरुषों का सोचना हैं कि नारियाँ गंगा सी पवित्र रहें और 
पुरुष बगल में गंदे नालें जैसे बहते रहें :-)
पुरुषों को अधिकार हैं कि वो हमेशा हमें हमारी हदें बताते रहे 
हर जगह नारियों के लिए लक्ष्मण रेखायें खिंच दी जाती हैं 
ऑफिस जाओ पर किसी से बेमतलब की बातें मत करना 
कॉलेज में पढ़ाई कर लो लेकिन किसी से दिल मत लगा बैठना 
गुमने जा सकती हो पर कहीं बहक मत जाना 
मूवी देख सकती हो पर सिनेमा हॉल जाना हमें गवारा नहीं etc !!
कैसा देश हैं कैसी दुनिया हैं जहाँ का पुरुष ही हमेशा से कर्ता-धर्ता रहा हैं 
यह पुरुष ही हैं जो एक पति के रूप में होता हैं तो अपनी  पत्नी पर शक करता हैं 
जब एक बाप के रूप में होता हैं तो बेवजह अपनी बेटी को अपने प्यार से दूर कर देता हैं 
यह पुरुष ही हैं जब उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया जाता हैं तब तेजाब से लड़की की जिंदगी को ही जला डालता हैं 
पुरुषों की हार्दिक इच्छा हैं कि नारी आगे बढे बस नारी इस बात का 
ख्याल रखे कि वो पुरुषों से आगे बढ़ने की कोशिश ना करे !!
वाह रे मेरे देश यहाँ कभी प्रतिभा पाटिल का गिरना ब्रैकिंग न्यूज़ बन जाता हैं 
तो कभी जूलिया गिलार्ड का पैर से जूता निकल जाना 
यह पुरुष ही हैं जो आज तक महज नारी को सामान और सम्पति की तरह पेश करता आया हैं 
वरना क्या मजाल कि केवल लड़कियों को ही आइटम की तरह पेश किया जाए ??
यह समाज ही हैं जो लड़की के दुप्पटे के महज खिसक जाने से भी उसे निचता का तमगा पहना दिया जाता हैं 
जबकि पुरुष खून करने के बाद भी सफाई देते नजर आते हैं कि मैंने कुछ गलत नहीं किया 
उनके सौ गुनाह माफ, और औरत का एक बार बहक जाना मतलब मृत्युढण्ड :(
कैसा महिला दिवस, कैसे अधिकार और कैसा हक़ ????
नहीं चाहिए हमें एक दिन का मान-सम्मान, बराबर हक़ करने का दिखावा 
इसकी तस्वीर अब बदलनी ही चाहिए !!!!!
"आधी शिक्षा, आधी सेहत ,आधी मजदूरी मिली 
सब हुए आजाद पर हमको न आजादी मिली 
देश में बेटियां अगर मायूस हैं नाशाद हैं 
तो दिल पर हाथ रखकर कहिए क्या हम आजाद हैं ????
क्या हम महिला दिवस भी हमेशा नहीं मना सकते ????"
जितना अनुभव किया उसके अनुसार इतना ही कह सकती हु नारी ही सच्ची शक्ति हैं 
बेशक मेरे घर में भी मेरा भाई हैं पापा हैं पर यक़ीनन पुरुषों को सम्भालने का काम महिला ही करती हैं 
जब पुरुष और महिला दोनों ही एक पहिए के दो पहलू हैं तो महिला को महज बराबर अधिकार देने का कहा जाता हैं पर दिये क्यों नहीं जाते हैं ?????
हम सहनशक्ति जरुर हैं पर जिस दिन सहन करने की हद हो गई उस दिन जरुर यह समाज और इसकी तस्वीर बदलेगी !!!!!!!!
बेशक किन्हीं महाशय जी को मेरी बातें बुरी लग सकती हैं 
पर आप भी थोड़ी सहनशक्ति रखना सिख लीजिए ना आफ्टर आल मैंने कुछ बुरा तो कहा नहीं जो सच हैं बस हैं झुठलाने से तो भला सच बदल नहीं सकता ना ??????
अंत में इतना ही कि -
नारी का परिचय इतना कि यह भारत की तस्वीर हैं 
यह जीजा की परम सहेली पन्ना की प्रतिछाया हैं 
कृष्णा के कूल की मर्यादा लक्ष्मी का शमशीर हैं 
इनका परिचय इतना कि यह भारत की तस्वीर हैं :-)
CHEER TO ALL GIRLS.....
HAPPY INTERNATIONAL WOMAN DAY.....!!!!!

मंगलवार, 4 मार्च 2014

''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''



Assam woman dies of burn wounds, police say she's not the one who kissed Rahul

मीडिया और सियासत यदि आज के परिप्रेक्ष्य देखा जाये तो एक सिक्के के दो पहलू बनकर रह गए हैं .आज की परिस्थितियों में मीडिया पूर्णरूपेण इसी ताक में लगा है कि किसी भी तरह कोई भी मुद्दा सियासी राहों में उछलकर हड़कम्प मचा दिया जाये.कोई वेबसाइट और कोई भी समाचार आज इस समाचार को अपने मुख्य पृष्ठ पर स्थान देने से नहीं चूका कि ''राहुल गांधी को चूमने पर पति ने की हत्या ''.राहुल गांधी आज अपनी कर्मशील कार्यशैली और जगह जगह जाकर जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जानकर उनके निवारण सम्बन्धी कार्यक्रम को अपने दल के घोषणा पत्र में स्थान देने में व्यस्त हैं और उनका यह कार्यक्रम जनता में खासा लोकप्रिय हो रहा है किन्तु मीडिया ये सब नहीं चाहता उसकी चाहत एकमात्र यही है कि ''जिसे मीडिया उभारे जनता उसे ही स्वीकारे '' और इसलिए बार-बार राहुल गांधी का नाम उछालकर उनके अभियान में रुकावटें पैदा करने में लगा है नहीं देख रहा है कि वह अपने मुख्य कर्त्तव्य से इस नाते विमुख हो रहा है जिसका आगाज़ और अंजाम दोनों ही सच्चाई और ईमानदारी को साथ लेकर अन्याय व् अत्याचार का नाश करने में है .
औरत आरम्भ से ही आदमी द्वारा अपनी संपत्ति की तरह समझी गयी ,गुलाम से बढ़कर उसकी कभी आदमी ने कोई हैसियत होने नहीं दी .आदमी के अनुसार औरत बस उसकी कठपुतली बनकर रहे और अपना कोई अलग अस्तित्व कभी न समझे .सोमेश्वर चुटिया एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिसने पुरुष सत्तात्मक समाज की इसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर अपनी पत्नी बॉँटी चुटिया को जिन्दा जलाकर मार डाला ,अब इस बात के पीछे ये कहा जा रहा है कि उसने उसे राहुल गांधी के कार्यक्रम में जाने से रोका था ,उसने उसे राहुल गांधी को चूमने के कारण जलाकर मार डाला .पडोसी ये कारण कह रहे हैं तो प्रशासन उसकी वहाँ उपस्थिति से ही इंकार कर रहा है. कोई मतलब नहीं इन बातों का ,मामला सीधा और साफ है पुरुष और नारी का सम्बन्ध ,जिसे नारी द्वारा देवता का दर्जा दिया गया उसी ने नारी को पैर की जूती समझा ,कोई नहीं कह रहा कि क्या हक़ बैठता है पुरुष को नारी को जिन्दा मार देने का ?क्या नारी का जीवनदाता वह है ?अगर नारी का यह आचरण उसे नापसंद है तो वह स्वयं को उससे अलग कर सकता है ,स्वयं का वह जो चाहे कर सकता है किन्तु कोई अधिकार उसे इस बात का नहीं है कि वह उसे इस तरह से या कैसे भी ज़िंदगी से महरूम कर दे ,पर कहीं भी यह आवाज़ नहीं उठायी जा रही है .वही मीडिया जो नारी सशक्तिकरण के लिए कभी बेटी ही बचाएगी जैसे अभियान चलाता है ,तो कभी मोमबत्ती जलाकर सोये समाज को जागने के लिए ललकारता है वह ऐसे मामले में सही पथ का अनुसरण क्यूँ नहीं करता ?क्यूँ नहीं इस समाचार का शीर्षक ''पति द्वारा पत्नी की जलाकर हत्या ''रखा गया ?पत्नी वह जो कि सामान्य घरेलू महिला न होकर बेकाजन ग्राम पंचायत की पार्षद थी ,क्यूँ मीडिया को नहीं दिखी यहाँ विकास की राहों पर कदम बढ़ाती पत्नी के लिए पति ईर्ष्या ?समाचार का शीर्षक कहें या मामले का एकमात्र सत्य ,वह यही है कि ''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''क्यूँ मीडिया ने इस सत्य को नहीं स्वीकारा ?क्यूँ नहीं कहा कि आदमी को तो बस एक बहाना चाहिए औऱत पर कहर ढाने का और औरत जहाँ चूक जाती है वहाँ ऐसा ही अंजाम पाती है और हद तो ये है कि ऐसे समय पर हर वह ऊँगली जिसे किसी को निशाना बनाना हो वह उस तरफ उठकर अपना उल्लू सीधा कर जाती है और यही यहाँ हो रहा है .पुरुष के दमनात्मक रवैये की शिकार औरत की हालत का जिम्मेदार राहुल गांधी को बनाकर अपना उल्लू ही तो सीधा किया जा रहा है .
''औरत पे ज़ुल्म हो रहे ,कर रहा आदमी ,
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं .
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलाना
ये कर रहे हैं काम ,मगर मानते नहीं .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

रविवार, 2 मार्च 2014

सिर्फ लड़की ही :-)

उस उदास लड़की के चेहरे को ध्यान से पढ़ो 
वहाँ आपको दुःख के सूखे हुए आंसू साफ़ नजर आयेंगे 
यह दुःख सिर्फ उसका नहीं हैं 
माँ ,दादी, भुआ ,बहन यहाँ तक कि 
पिता की भी पीड़ा समेटे हैं उसकी आँखें 
उनके तमाम दुखों के बीच वह भूल ही जाती हैं अपना दुःख 
कि यह सारे लोग इसलिए भी दुखी हैं कि 
वह लड़की हैं ,लड़का नहीं हैं !!!!

उसका नन्हा सा भाई मचलता रहता हैं उसकी गोद में चढ़ने को 
और गोद में उठाते ही वह ख़ुशी के मारे किलकारियाँ करने लगता हैं 
उसकी ख़ुशी से भूल ही जाती हैं वह अपना सारा दुःख 
यह भी कि भाई के नाम पर ही मारे जाते हैं उसे ताने 
उसे ही मिलता हैं सारा दुलार उसके हिस्से का 
इन सबके परे वह तो बस प्यार करती हैं उसे !!!!!


यकीनन लड़की जन्म से लेके अंत तक दूसरों या अपनों 
की ख़ुशी के लिये ही जीती हैं वो जिस दिन से यह सुनना शुरू 
करती हैं कि तुम लड़की हो तब से वो शुरू करती हैं अपनी खुशियों को कम करना 
वो शुरुआत करती हैं अपने सपनों को दफ़न करने की !!
लड़की का संस्कारी और समझदार होना ही उसकी आजादी को छीन लेता हैं 
चलो भई कई अरसे बीते अच्छे बनने के अब हम लड़कियाँ भी क्यों ना बन जाए थोड़ी बुरी 
ताकि जी सकेंगे हम भी थोड़ा अपने लिये, हम भी थोड़ी बाँहें फैला सकेंगे गुनगुनी सी धुप में !!

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

माँ की महिमा :-)

माँ भूखी रहती हैं ,
                          खिलाने के लिये !!
मेहनत-मजदूरी करती हैं, 
                                     पढ़ाने के लिये !!
सादगी से रहती हैं,
                           अच्छा पहनाने के लिये !!
लाल-पीली होती हैं ,
                           सही राह दिखाने के लिये !!
खून-पसीना बहाती हैं ,
                                 अच्छा इंसान बनाने के लिये !!
हर गम सहती हैं,
                         बुराइयों से बचाने के लिये !!
छुपकर आंसू बहाती हैं ,
                                   मेरे गुनाहों को भुलाने के लिये !!
हर वक़्त दुआ करती हैं ,
                                    बदी से बचाने के लिये !!
आओ बड़े होकर कुछ कर दिखाए ,
                                                  गर्व करने के लिये !!
किसी एक के लिये नहीं ,
                                    "सारिका "कहती हैं सारे ज़माने के लिये !!:-)

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

मेरी डायरी के कुछ पुराने पन्नें.....

पता हैं औरत हर रोल कर सकती हैं जबकि आदमी कभी भी नहीं
औरत आदमी की जिमेदारियों को उससे भी ज्यादा अच्छे से निभा सकती हैं जबकि
आदमी हुह अच्छा तो छोड़ो बेमुश्किल निभा पाएंगे :-)
हां महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं इससे अच्छी बात और क्या हो सकती हैं ??
पर हमारे लिए तो हर रोज वहीं ढाक के तीन पात वाली ही बात हैं
अगर महिलाऐं आगे बढ़ने लगी तो बस लोगों ने इसके लिए विरोध करना शुरू कर दिया
कि महिलाओं के आगे आने से पुरुष प्रधान समाज की वैल्यू कम हो जायेगी
क्यों.....आखिर क्यों ?????
मुझे एक नारी होने के साथ-२ यह सोचकर ख़ुशी होती हैं कि
चाहे कोई महिला इस देश की राष्ट्रपति भी क्यों ना हो
पर वो हमेशा अपने पति की इज्जत करते हैं ,उनकी कद्र करते हैं 
एक नारी कितने भी उच्च पद पर क्यों न हो
पर हमेशा वो अपने पति के सामने झुकी हुई हैं
फिर भी कुछ लोगों को ना जाने क्यूँ अपने मान-सम्मान की चिंता लगी रहती हैं ??
जबकि वो नारी तो उसका सम्मान बढ़ा रही हैं
हमें अपने दिमाग से इस बात को निकालना ही होगा तथा
इस दुनिया के पुरुष प्रधान तथा नारी समाज से परे केवल
एक अच्छे इंसानो के समाज का उदय करना होगा :-)
अगर आज पुरुषों को केवल नारी के इतना सा आगे बढ़ने से ही इतनी तकलीफ हो रही हैं
तो इन्हें सोचना चाहिए कि नारी तो आज तक इन्हें बर्दाश्त करती आयी हैं !!
क्यों आज की बढ़ती हुयी नारी इन्हें पसंद नहीं आयी ???
इस देश के लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि 
अगर लड़कियां रैम्प पर कैटवॉक करके फैशन डिज़ाइनर (मॉडल) बन सकती हैं 
तो वो ही लड़की तलवार के बल पर लड़कर दुश्मनों को मिट्टी में मिलाकर झाँसी की रानी भी बन सकती हैं :-)
लड़की का काम केवल चूल्हा-चौका ही सम्भालना नहीं 
वो एक अच्छी बिज़नेस वुमन भी बन सकती हैं 
हम अगर मिस यूनिवर्स बन सकते हैं तो हम एक बेस्ट डॉटर भी बन सकते हैं 
हम रिश्तों को केवल निभाना ही नहीं सही से इन्हें संजोकर रखना भी जानते हैं 
हम केवल नारी रूप को ही नहीं 
हम बेटी रूप ,बहु रूप और माँ के रूप तक को अच्छे से सुशोभित करना जानते हैं !!!!!!
"लड़की लड़की नहीं चिंगारी हैं 
हम अबला नहीं आज की सबला भारतीय नारी हैं !!"

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

आत्म सम्मान .......एक लघु कथा

''तमने अपने पति की हत्या क्यों की ?,
इंस्पैक्टर ने कमला को जेल ले जाते हुए पूछा |
  इस सती सावित्री,अनसुइया के पावन देश मे तूमने ऐसा अपराध किया ;घोर आश्चर्य !
     कमला ने बेहिचक कहा ''सावित्री ,अनसुइया के पति ने कभी अपनी पत्नी पर ऐसा मर्यादाहीन लांछन लगाया? इंस्पैक्टर सोचने पर मजबूर हो गया|
  ''मेरे पति के दोस्त मुझ पर बुरी नजर रखते थे| मेरे पति देख कर भी अनदेखा कर देते थे| जो मुझे बिलकुल गवारा नहीं था|| फिर भी जब मैंने उनसे इस बात की शिकायत की तो उल्टा मुझे ही बदचलन  कहा गया| ,
     अब तो रोज ही मुझे इस उपाधि से नवाजा जाने लगा| कब तक बर्दाश्त करती| मै भी एक इंसान थी|
आत्म सम्मान से जीने का हक मुझे भी ही है| उसी आत्म सम्मान की रक्षा के लिए कल रात मैंने उनको उनके किये की सजा दिलाई|, कमला ने अपनी बात ख़त्म की और शुन्य मे ताकने लगी

शांति पुरोहित

  

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

आभास और संकेत

कल्पना
ख्वाब
गफलत
आभास एक नारी मन का !
हकीकत
चेतन
यथार्थ
संकेत एक पुरुष सोच का !
कल्पना कर नारी सजाये सुन्दर घर
ख्वाब देख रखे खुशियों की तमन्ना
गफलत में माने सब अपना .
हकीकत दिखाए जीवन की पुरुष सबको
चेतन अवस्था में ले आये शिथिल मन को
यथार्थ ला उजाड़े ख्वाबों के उपवन को .

शालिनी कौशिक

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

जश्न-ए-बर्बादी...

माता ने खून से सींचा था
पिता ने की थी रखवाली
आज वहीं बेटी बाबुल
का कर जायेगी घर खाली !!

दिल में उमंगो,हसरतों से
सजी हैं तमन्नाओं की सेज
हर हसरत तब चूर हुई
जब रोक फेरों को माँगा देहज !!


देहज लेकर डोली उठी
पर भेड़िये की भूख ना मिटी
मांग पर माँग बढ़ती गयी
मासूम बिटिया खूब पिटी !!


जब माँगे पूरी न हो सकी
जुल्म की  इंतेहा हो गयी
मासूम निर्दोष बाबुल की गुड़िया
देहज के कुएं में खो गयी !!

सुन लो ओ बेटियों वालों
देहज लेकर ना करे शादी
ना बजे कोई शहनाई
ना मनेगी जश्न-ए-बर्बादी :( !!