बुधवार, 23 अप्रैल 2014

औरत का दूसरा नाम त्याग.....

औरत कुछ तो जन्म के वक़्त जज्बाती होती ही हैं 
और थोड़ा और ज्यादा जज्बाती उसे यह दुनिया बना देती हैं :-)
क्यों बनें हमेशा हम ही महान पता हैं ना 
महानता बलिदान और त्याग मांगती हैं 
चार तालियों की गड़गड़ाहट के पीछे अपनी आवाज को क्यों खो जाने दे ??
अपनों के लिए अपने वजूद को क्यों खो दें ??

बच्ची होती हैं ना चाहे वो अपने भाई से बड़ी हो या छोटी 
हमेशा अपनी टॉफियाँ अपने भाई के नाम कर देती हैं 
वो अपनी हर चीज़ उसके साथ ख़ुशी-२ शेयर कर लेती हैं 
कपड़ों से लेकर पेन-पेंसिल तक 
कहने भर का हैं भाई-बहन का रिश्ता अटूट होता हैं 
पर हमेशा उसे सहेजने, संभालने व बनाये रखने का जिम्मा बहन ही 
के सर होता हैं :-)

लड़की बेचारी थोड़ी बड़ी होती हैं कि 
अपने लिए जीने का सोचती हैं 
अपने पैरों को फैलाकर उस गगन को चुम लेना चाहती हैं 
अपने लिए सपनें संजोने का प्रयास मात्र करती हैं कि 
उसकी आँखों के सामने एक मजबूर पिता का चेहरा गुम जाता हैं 
कितना मुश्किल हो जाता हैं दुनिया के सबसे ताकतवर 
इंसान को अपने सामने कमजोर होते देखना 
वो अपने पिता की मजबूरियों, लाचारियों को भांपकर 
अपने उस सपनों के घरोंदे को ढा देती हैं :(

पिता के अरमानों को पूरा करने के लिए हो जाती हैं वो परायी 
किसी और की दुनिया को बना लेती हैं अपना भी 
दूसरों के सपनों को पूरा करते-२ वो अपने सपने तो भूल ही जाती हैं 
दूसरों की दुनिया को संवारते-२ वो खुद सजना-संवरना ही भूल जाती हैं 
दूसरों के नाम को ही अपनी पहचान बताते-२ 
उसे अपना नाम किसी गीली मिट्टी के तले दबता सा नजर आता हैं :(

बच्चे……हुह 
वो नहीं जानती कि जिन्हें आज वो अपनी जान से भी ज्यादा 
चाह रही हैं कल को कुछ वक़्त के लिए वो ही बेटी कहेगी 
कि माँ आप मुझे सलाह मत दीजिए मुझे सब पता हैं कि 
मेरे लिए क्या सही हैं और क्या गलत ???
आप तो कुछ नहीं जानती हैं 
खैर कुछ वक़्त बाद फिर से इतिहास दोहराया जाता हैं :(

आप कभी जान और समझ नहीं सकते कि 
किसी औरत ने आपके लिए क्या रोल अदा किया हैं 
जाने-अनजाने में उसने आपको कौनसी जड़ी-बूटी दी हैं 
जिसने आपका जीना थोड़ा और खुशनुमा कर दिया हो :-)
हो सकता हैं यह बातें सबके जीवन से ना मिलती हो 
पर यक़ीनन कुछ जिन्दगियों से तो जरूर मिलती होगी :-)
she is the creature of the GOD who no one can complete
respect every girl/lady in your life because

 u will never know what she has sacrificed for you.....

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

स्वीकार नहीं......

एक पुरुष को एक स्त्री हर रूप में स्वीकार ही होती हैं
या यू कह दो रिश्ते उसे भी मजबूर करते हैं सो ना
चाहते हुए भी बेटी, पत्नी के अनचाहे से रिश्तों को मंजूर करना ही पड़ता हैं :-)
औरत………………हाह इन्हें भला कहाँ किसी से समस्या होती हैं
और होती भी हैं तो सुनता भी कौन हैं इसलिए चुप्पी ही बेस्ट हैं
फिर भी औरतें रिश्तों को सहेजना व सम्भालना जानती हैं
वो इन्हें ख़ुशी-२ निभाती हैं बिना किसी गीले-शिकवे के
हर रिश्ता वो अपने में समेटना जानती हैं
पर एक बात मुझे बड़ा परेशान कर रही हैं
एक पुरुष अपनी पत्नी के हर रिश्ते को सहर्ष स्वीकार करता हैं
"पर उसे किसी पुरुष का अपनी पत्नी का दोस्त होना कभी स्वीकार नहीं होता हैं "
हो सकता हैं यह बात पूरी तरह से सही नहीं हो लेकिन यह बहुत हद तक सही हैं :-)
इसमें गलत क्या हैं ????
रिश्ते उस खुदा ने ही तो बनाये हैं फिर क्यों कुछ लोगों की सोच इन्हें बदनाम कर देती हैं ??
पुरुष क्यों नहीं समझ पाता हैं कि जैसे उसे दोस्ती के रिश्ते की जरुरत होती हैं
वैसी जरुरत स्त्री को भी होती होगी आखिर वो भी इंसान हैं :(
अगर पुरुष भाई, पति आदि रिश्तों में स्वीकार हैं तो दोस्त के रूप में क्यों नहीं ???
स्त्री और पुरुष के बिच में महज एक ही रिश्ता क्यों हो सकता हैं ???
कोई पुरुष मात्र उसका दोस्त तक क्यों नहीं हो सकता ????
जरुरत होती हैं कभी हमें भी अपने दर्द का सैलाब बहाने की
ढूंढते हैं दो कंधे पर नहीं मिल पाते हैं आंसू पोंछने वाले हाथ :(
यह इंसान कितना दोगला होता हैं ना
अगर कोई औरत इनकी दोस्त रहे तो इन्हें कोई आपति नहीं
अरे भई क्यों वो भी तो आखिर किसी की पत्नी हैं ????
अगर पैसे वाले गुनाह करें तो सब जायज और गरीबों पर क़यामत ढा दी जाती हैं
ठीक वैसे ही इन्हें स्त्री दोस्त रूप में स्वीकार पर अपनी पत्नी का कोई दोस्त स्वीकार नहीं :(
मैं तो बस इतना ही कहूँगी कि -
"नजर को बदल दो ,नज़ारे बदल जायेंगे !
सोच को बदल दो ,रिश्ते बदल जायेंगे !!"
मुझे जज्बातों को शब्द देना नहीं आया
पर जानती हू मैं आप लोग बहुत समझदार हैं
मेरी बातों को खुद-बेखुद समझ गए हैं :-)