मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अब मिलेगी हमें भी आजादी......

सबको नए वर्ष की बहुत-२ हार्दिक शुभकामनाएं :-)
बाकी बीते सालों की तरह 2014 की भी शुरुआत हो ही गयी हैं 
पता नहीं क्यों पर इस बार मेरा भी मन नये साल को सेलिब्रेट करने का कर रहा हैं 
शायद हम पीछे के कुछ पन्नों को पलट कर देखे तो हम पाएंगे कि 
1947 को भी 1st जनवरी को बुधवार ही था 
थोड़ा आगे बढे तो इस बार भी 26th जनवरी  व 15th अगस्त 
उसी ही दिन सेलिब्रेट किये जायेंगे १९४७ में जिस दिन किये गए थे 
खैर देखना दिलचस्प तो तभी होगा जब सच में कुछ बदलेगा.... 
1947 में हमें अंग्रजों से आजादी मिली थी 
उम्मीद करते हैं इस बार हमें अपनों (भ्रष्टाचार ,रिश्वत ,etc )से आजादी मिले 
उम्मीद करते हैं कि इस बार तो सच्चे भारत का निर्माण हो 
हां लड़कियां भी तो भला अभी तक कहाँ आज़ाद हो पायी हैं 
बांधकर हमारे पैरों में बेड़ियाँ कहते हो 
अब तुम आज़ाद हो जाओ उड़ो 
इजाजत नहीं पैरो को फैलाने और फड़फड़ाने की भी 
और कहते हो कि उड़ सकती हो ???????
बताओ कैसे ???????
हर कोई उड़ने की चाह रखता है तो फिर
पुरुषों को नारी का उड़ना गवारा क्यों नहीं ????
अगर आज हमारे देश में नारी बेबस ,लाचार
मजबूर और लावारिश हैं तो
सच पुछो अपने दिल से कि क्या हमारा देश
आजाद हैं ?????                                           
मैं कदापि इसे आजादी नहीं मानती हू
आज न्यूज़ पेपर में हर रोज यही न्यूज़ क्यूँ आती हैं कि
यहाँ इस औरत की हत्या कर दी गयी
वहाँ उस लड़की का अपहरण कर लिया गया क्यूँ आखिर क्यों ??????????
अगर लोग हर रोज ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहे तो
हम भला कहा आजाद हैं ?????
आम लड़कियों का तो इन घटनाओं को
सुनकर घर से बहार निकलना भी दुर्लभ हो जायेगा !!!!!!!!!
आज हम चाहे किसी भी केस को उठाकर देख ले
चाहे भंवरी देवी हत्याकांड या अनुराधा बाली (फिज़ा )
का केस हो या फिर गीतिका हत्याकांड हो ?????
हर एक केस में औरत को  ही कीमत चुकानी पड़ी हैं और वो
भी अपनी जान गवांकर :-(
इन लोगों को कतई हक नहीं है कि यह औरत को
सजा-ए-मौत दे और
हरेक केस में औरत का ही मर्डर क्यों हुआ हैं या फिर
औरत ने ही आत्महत्या क्यूँ की हैं ????????
(यह मेरे ब्लॉग की पोस्ट नारी मेरी डायरी से कॉपी किया गया हैं )
खैर शायद २०१४ हमें भी आज़ाद कर जाये क्या पता 
आसमां अभी और भी ऊँचा हैं :-)



सारिका !!!!!!

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं

 
Farooq Abdullah scared of women!
अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
……………………………………………………………………
आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
…………………..
बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
……………………………………….
खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
…………………………………………………
नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
………………………………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .

Muslim bride and groom at the mosque during a wedding ceremony - stock photo
फिरते थे आरज़ू में कभी तेरी दर-बदर ,
अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .
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लगती थी तुम गुलाब हमको यूँ दरअसल ,
करते ही निकाह तुमसे काँटों से भरा घर .
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पहले हमारे फाके निभाने के थे वादे ,
अब मेरी जान खाकर तुम पेट रही भर .
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कहती थी मेरे अपनों को अपना तुम समझोगी ,
अब उनको मार ताने घर से किया बेघर .
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पहले तो सिर को ढककर पैर बड़ों के छूती ,
अब फिरती हो मुंह खोले न रहा कोई डर .
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माँ देती है औलाद को तहज़ीब की दौलत ,
मक्कारी से तुमने ही उनको किया है तर .
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औरत के बिना सूना घर कहते तो सभी हैं ,
औरत ने ही बिगाड़े दुनिया में कितने नर .
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माँ-पिता,बहन-भाई हिल-मिल के साथ रहते ,
आये जो बाहरवाली होती खटर-पटर .
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जीना है जो ख़ुशी से अच्छा अकेले रहना ,
''शालिनी ''चाहे मर्दों के यूँ न कटें पर .
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शालिनी कौशिक

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा

पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा
I am not resigning, says Justice AK Ganguly, indicted in sexual harassment case
महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है किन्तु क्या इसका साफ तौर पर यह मतलब लगा लेना चाहिए कि पुरुष के अशक्त होने का दौर आरम्भ हो चुका है ?क्या वास्तव में महिला तभी सशक्त हो सकती है जब पुरुष अशक्त हो फिर क्यूँ ये कहा जाता है कि ये दोनों एक ही रथ के दो पहिये हैं ?
आज हर ओर स्त्री पर हो रहे अन्यायों को लेकर ही विरोध के झंडे बुलंद किये जा रहे हैं ,होने भी चाहियें ,स्त्री आरम्भ से लेकर आज तक शोषण का शिकार रही है किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि मात्र वही शोषण पीड़ित है ,शोषण तो पुरुषों का भी होता आया है .जैसे पुरुषों ने महिलाओं का शोषण किया वैसे ही महिलाओं ने भी पुरुषों को नहीं बख्शा .सूपर्णखा भी एक नारी थी जिसने अपनी दुर्भावना के पूरी न होने पर सम्पूर्ण लंका को युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया .नारी जाति में आज भी ऐसी कलां कथा मौजूद हैं जो कानून का दुरूपयोग कर कभी पुरुष को कभी दहेज़ में कभी छेड़छाड़ में तो कभी बलात्कार के मिथ्या आरोप में फंसा रही हैं मैं नहीं कहती कि जो आरोप अभी हाल ही में प्रतिष्ठित शख्सियतों पर लगाये गए हैं वे दुर्भावना से प्रेरित होकर लगाये गए हैं किन्तु कानून सबूतों और गवाहों के बयानों पर आगे की कार्यवाही करता है और उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचता है .
अभी हाल ही में हुए दो मामले प्रतिष्ठित व्यक्तियों से जुड़े हैं ,तरुण तेजपाल के मामले में तो मामला तरुण तेजपाल द्वारा अपने अपराध की स्वीकारोक्ति करने पर लगभग सुलझ गया किन्तु जस्टिस गांगुली पर लगे आरोप और तीन सदस्यीय पैनल की रिपोर्ट उनकी अपराध में संलिप्तता साबित नहीं करती और जब तक यह संलिप्तता साबित न हो या जस्टिस गांगुली स्वयं अपना अपराध स्वीकार न कर लें उन्हें अपराधी मानना और पश्चिमी बंगाल के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से उनका इस्तीफा मांगना गलत है .

लोकसभा में गूंजा जस्टिस गांगुली का मामला

इस तरह तो कोई भी किसी पर आरोप लगा दे और स्वयं के नारी होने का लाभ उठाते हुए पुरुष को शर्मसार कर दे यह गलत ही कहा जाना चाहिए .मात्र आरोप किसी को अपराधी नहीं बनाता और पहले भी ऐसे मामले आये हैं जिसमे साजिश करके सही लोगों से उनके पद छीने गए हैं इसलिए सही जाँच ज़रूरी है .
और सबसे बड़ी बात यह कि यदि स्त्री को सम्मान से जीने का अधिकार है तो पुरुष को भी गरिमामय वातावरण अपने सही आचरण पर मिलना ही चाहिए क्योंकि यदि सारी नारी दुष्टा नहीं हैं तो सभी पुरुष भी तो कलंकित नहीं हैं .इसलिए अपराध साबित होने से पहले इस्तीफे की मांग किया जाना व्यर्थ का प्रलाप है और यह बंद होना चाहिए .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN]

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

औरत :आदमी की मात्र गुलाम

Hanging_dead : Suicide. Goth girl. Stock Photo

अभी अभी एक नए जोड़े को देखा पति चैन से जा रहा था और पत्नी घूंघट में ,भले ही दिखाई दे या न दे किन्तु उसे अब ऐसे ही चलने का अभ्यास करना होगा आखिर करे भी क्यूँ न अब वह विवाहित जो है जो कि एक सामान्य धारणा के अनुसार यह है कि अब वह धरती पर बोझ नहीं है ऐसा हमारे एक परिचित हैं उनका कहना है कि ''जब तक लड़की का ब्याह न हो जाये वह धरती पर बोझ है .''
मैंने अपने ही एक पूर्व आलेख ''विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं '' में विवाह को दासता जैसी कुरीति से अलग बताया था किन्तु यह वह स्थिति है जिसमे विवाह संस्कार को वास्तविक रूप में होना चाहिए किन्तु ऐसा होता कहाँ है ?वास्तविक रूप में यहाँ कोई इस संस्था को रहने ही कहाँ देता है कहीं लड़के के माँ-बाप इस संस्कार का उद्देश्य मात्र लड़की वालों को लूटना -खसोटना और यदि देहाती भाषा में कहूँ तो'' मूंडना '' मान लेते हैं तो कहीं स्वयं लड़की वाले कानून के दम पर लड़के वालों को कानूनी दबाव में लेकर इसके बल पर ''कि दहेज़ में फंसाकर जेल कटवाएंगे ''उन्हें अपने जाल में फंसाते हैं और धन ऐंठकर ही छोड़ते हैं .कहीं लड़का ये सोचकर ''कि नारी हीन घर भूतों का डेरा ,नारी बिना कौन करेगा ढेर काम मेरा ''या ''इस लड्डू को जब जो खाये वह पछताए जो न खाये वह पछताए तो क्यूँ न खा कर पछताऊं ''किसी लड़की को ब्याहकर घर लाता है तो कहीं लड़की भी अपनी सामाजिक स्थिति को मजबूत करने के लिए,क्योंकि उसे समाज में ''बाप के ऊपर पहाड़ '' जैसी उक्तियों से नवाज़ा जाता है ,से मुक्ति पाने के लिए तो कहीं [कहने वालों और भुक्तभोगियों के अनुसार ]अपने कई स्वार्थ संजोये बहू बन आती है किन्तु जो सच्चाई हो कही वही जाती है और सच्चाई यही है कि आदमी औरत को अपनी गुलाम से बढ़कर कुछ नहीं समझता और अगर ऐसा नहीं है -
* तो क्यूँ एक जगह विवाह के समय लड़के द्वारा यह मांग कि लड़की अपने बड़े बड़े बालों को कटवाकर छोटा कर ले और एक जगह छोटे बालों वाली लड़की से अपने बाल बढाकर शादी करने की शर्त रखी जाती है ?
*क्यूँ शादी के बाद लड़की के रहन सहन ,पहनावे का बदल जाना ,मांग में सिन्दूर ,गले में मंगलसूत्र ,साडी या सूट हो किन्तु सिर ढका होना ,कहीं कहीं पूरे मुंह पर घूंघट पड़ा होना ,पैरों में बिछुए कहने को ये सब विवाहित होने की पहचान हैं ,स्त्री के सुहाग की रक्षा के लिए तो फिर पुरुष के रहन सहन पहनावे में कोई अंतर क्यूँ नहीं ?
*क्यूँ उसपर अपनी सुहागन की रक्षा का कोई दायित्व नहीं ,हाथ पैरों से तो उसकी पत्नी भी उसकी सेवा करती है तब भी उसपर इतने प्रतिबन्ध फिर सिर्फ उसके साथ को ही क्यूँ उसकी पत्नी की मजबूती माना जाता है उसे क्यूँ नहीं पहनने होते ये आभूषण आदि ?
* क्यूँ उसका विवाहित दिखना उसी तरह ज़रूरी नहीं जैसे नारी का विवाहित दिखना ज़रूरी है ?
* क्यूँ वही अगले जन्म में भी अपने पति को पाने के लिए व्रत रखे ,क्यूँ पति पर इस व्रत का दायित्व नहीं इसलिए तो नहीं क्योंकि वह धरती पर बोझ नहीं है उसका ब्याह हो या न हो वह तारणहार की भूमिका में ही है .अगर किसी नारी का पति किसी बीमारी या दुर्घटना वश मर जाये तो उसपर विधवा का ठप्पा लग जाता है और अगर किसी तरह उसका दूसरा विवाह होता है तो एक ''बेचारी ''कहकर ही किया जाता है किन्तु एक पुरुष भले ही दहेज़ के लिए स्वयं ही पत्नी की हत्या कर दे उसके लिए लड़कियों की ''कुंवारी ''लड़कियों की लाइन लगी रहती है ,यहाँ तक कि बुज़ुर्ग से बुजुर्ग पुरुषों को भी ''बेचारी तो बेचारी ''कुंवारी छोटी उम्र की लड़कियां भी सहजता से विवाह के लिए उपलब्ध हो जाती हैं भले ही उनके अपने बच्चे भी उस लड़की से बड़ी उम्र के ही क्यूँ न हों .
आज ''लिव इन रिलेशन ''को न्याय की संरक्षक सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट ही कानूनी जामा पहनाने में लगी है जबकि इसमें भी औरत की स्थिति रखैल की स्थिति से बेहतर नहीं है क्योंकि पुरुष विवाहित है या नहीं है उसकी कोई पहचान नहीं है और पहचान होने पर भी नारी की जो स्थिति है वह ''दिल के हाथों मजबूर'' की है और ऐसे में चंद्रमोहन चंद्रमोहन रहे या चाँद ,लाभ में रहता है और अनुराधा बाली फ़िज़ा बन लाश बन जाती है .
लड़कियां ही शादी के लिए खरीदी जाती हैं ,लड़कियां ही भ्रूण हत्या का शिकार बनती हैं , न कोई बड़ी उम्र की औरत शादी के लिए लड़का खरीदती है न कोई लड़का भ्रूण हत्या का शिकार होता है ऐसी बहुत सी स्थितियां हैं जहाँ ये स्पष्ट होता है कि नारी को पुरुषों ने केवल अपने गुलाम का दर्जा ही दिया है इससे बढ़कर कुछ नहीं जबकि हमारे शास्त्रों में पुराणों में नारी हीन घर भूतों का डेरा ,कहा गया है ,नारी की स्थिति को ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ''कहकर सम्मानजनक स्थान दिया गया है किन्तु पहले कभी मिलने वाला ये सम्मान आज कहीं नहीं दिखाई देता आज नारी का केवल एक उत्पाद ,एक गुलाम की तरह ही इस्तेमाल नज़र आता है .कहीं नारी का घूंघट से ढका चेहरा तो कहीं छत के कुंडे में लटकता शरीर नज़र आता है .

शालिनी कौशिक

[WOMAN ABOUT MAN]