गुरुवार, 21 नवंबर 2013

मोदी तो गली गली की खाक......

"I am not here to make you emotional, but to wipe your tears," said BJP PM candidate Narendra Modi at a rally in Jhansi on Oct 25. That was directly aimed at Congress AICC vice-president Rahul Gandhi, who recently made an emotional speech saying, "

सुषमा स्वराज कहती हैं -''मैं हमेशा से शालीन भाषा के पक्ष में रही हूँ .हम किसी के दुश्मन नहीं हैं कि अमर्यादित भाषा प्रयोग में लाएं .हमारा विरोध नीतियों और विचारधारा के स्तर पर है .ऐसे में हमें मर्यादित भाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए .''

और आश्चर्य है कि ऐसी सही सोच रखने वाली सुषमा जी जिस पार्टी से सम्बध्द हैं उसी पार्टी ने जिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है उन्ही ने मर्यादित भाषा की सारी सीमायें लाँघ दी हैं.व्यक्तिगत आक्षेप की जिस राजनीती पर मोदी उतर आये हैं वह राजनीति का स्तर निरंतर नीचे ही गिरा रहा है .सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर व्यक्तिगत आक्षेप कर वे यह समझ रहे हैं कि अपने लिए प्रधानमन्त्री की सीट सुरक्षित कर लेंगे जबकि उनसे पहले ये प्रयास भाजपा के ही प्रमोद महाजन ने भी किया था उन्होंने शिष्ट भाषण की सारी सीमायें ही लाँघ दी थी किन्तु तब खैर ये थी कि वे भाजपा के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नहीं थे .
अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे सुलझे हुए नेतृत्व में रह चुकी यह पार्टी जानती होगी कि कैसे संसदीय व् मर्यादित भाषा के इस्तेमाल के द्वारा अपने विरोधियों को भी अपना प्रशंसक बनाया जाता है .सत्ता की होड़ में लगे सभी दलों का अपना अपना स्थान बनाने की अपनी अपनी शैली होती है और सभी विरोधी दलों को उनके सिद्धांतों ,नीतियों की खुली आलोचना कर उसे जनता के समक्ष बेनकाब करते हैं किन्तु भाजपा के ये नए उम्मीदवार इस कसौटी पर कहीं भी खरे नहीं उतरते और न ही स्वयं भाजपा क्योंकि इस पार्टी में एक प्रदेश से आये व्यक्ति को बरसों बरस से दल की सेवा कर रहे अनुभवी ,योग्य ,कर्मठ नेताओं के ऊपर बिठा दिया जाता है और वह केवल इस दम पर कि वे चारों तरफ से अपना पलड़ा मजबूत कर आगे बढ़ रहे हैं बिलकुल वैसे ही जैसे पुराने राजा -महाराजाओं में कोई भी अपनी ताकत के बलपर राजा को जेल में डाल देता था और स्वयं राजा बन जाता था ठीक वैसे ही भाजपा की ओर से कब से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बैठे आडवाणी जी ,भाजपा के अत्यंत योग्य सुषमा स्वराज जी ,अरुण जेटली जी एक ओर बिठा दिए जाते हैं और मोदी जैसे तलवार के दम पर आगे बढ़ जाते हैं .
आज भाजपाई भारत रत्न के विवाद के बढ़ने पर कॉंग्रेस को चित करने के लिए अटल जी के लिए भारत रत्न की बात करते हैं अरे पहले अपने दल में तो उन्हें रत्न का दर्जा दीजिये ,इस तरह उन्हें नकारकर तो ये दल स्वयं को और उन्हें हंसी का पात्र ही बना रहा है स्वयं अपने घर में जिसकी कद्र न हो उसे बाहर का कुछ नहीं भाता और अटल जी के साथ ये पार्टी वही व्यवहार कर रही है जो आज इस दल की मुख्य पंक्ति करती है .भारतीय जनता में आज बुजुर्गों के साथ इसी तरह का उपेक्षा पूर्ण व्यवहार का प्रयोग में लाया जाता है और सभी देख रहे हैं कि कैसे आज भाजपा ने अटल जी को एक तरफ फैंक दिया है ये तो मात्र कॉंग्रेस के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति है जो वे याद किये जा रहे हैं

आडवाणी जी ये समझ रहे हैं और इसलिए अपने को ऐसे हाल से बचाने के लिए विरोध के बावजूद ऊपर से भले ही ''नमो -नमो ''का उच्चारण कर रहे हैं किन्तु अंदर से जाप मरो-मरो का ही कर रहे हैं और यही कारण है कि मोदी की तुलना ओबामा से करते हैं खुद से क्यूँ नहीं करते ?जानते हैं कि मोदी ''देशी भेष में अमरीकन दिल ''लिए फिरते हैं और जैसे कि सभी जानते हैं कि
''इश्क़ व् मुश्क़ छिपाये नहीं छिपते ''
वैसे ही मोदी का अमरीका प्रेम भी कहाँ छिपने वाला है जब तब वहाँ के वीज़ा मिलने की ख़बरें आज की पेड़ न्यूज़ द्वारा निकलवाते रहते हैं इसलिए आडवाणी जी ओबामा से ही मोदी की तुलना में भलाई समझते हैं और इस तरह अपने दोनों हाथ तेल में और सिर कढ़ाई में रखते हैं कि अगर मोदी बाईचांस प्रधानमंत्री बन गए तो ओबामा से तुलना का श्रेय और नहीं बने तो मैंने तो पहले ही विरोध किया था और फिर आज प्रचार की जिस बुलंदी पर अन्य भाजपाइयों के मुकाबले मोदी हैं कोई भी अन्य भाजपाई ''आ बैल मुझे मार ''कह मोदी से क्यूँ भिड़ेगा ?
स्थानीय क्षेत्रों में भी वह व्यक्ति जो पुलिस वालों से बदतमीजी से ,असभ्यता से बातचीत कर लेता है वह बहुत बड़ा नेता माना जाता है क्योंकि आमतौर पर लोग पुलिस वालों के साथ चापलूसी ,खुशामदी रवैया अपनाते हैं किन्तु उनकी बहादुरी वहाँ नज़र आती है जब पुलिस वाले उनसे अपना काम निकालने के लिए उन्हें अपनी व् कानून की ताकत दिखाते हैं और तब वे बड़े बड़े बोल बोलने वाले पुलिस वालों के जूते साफ करते नज़र आते हैं ,वही स्थिति यहाँ नज़र आ रही है .यहाँ स्थानीय नेता की भूमिका में नरेंद्र मोदी हैं और पुलिस की भूमिका में राहुल व् सोनिया गांधी ,जनता पर अपना प्रभाव दिखाने को ,देश की किसी भी समस्या के बारे में जानकारी न रखने वाले ,किसी भी स्थिति का सही सामान्य ज्ञान न रखने वाले मोदी मात्र राहुल सोनिया के विरोध के दम पर ही अपने झंडे गाड़ने की कोशिश में भाजपा की कथित सभ्य ,देश की संस्कृति का सम्मान करने की छवि का रोज अपमान करते जा रहे हैं और अपमान कर रहे हैं भारतीय संविधान का जिसने १९५० में ही देश को गणतंत्र घोषित किया और सम्राट परम्परा का अंत किया .
समझ नहीं आता कि ऐसे में भाजपा को नेताओं की ऐसे क्या कमी पड़ गयी है जो मोदी जी जैसे अशिष्ट ,असभ्य और अल्पज्ञ व्यक्ति को अपना २०१४ के नेतृत्व सौंप दिया जबकि उनके जैसे नेता तो भारत की हर गली में खाक छानते फिरते हैं .

शालिनी कौशिक
[ कौशल ]

शनिवार, 16 नवंबर 2013

सरकारी अफसर

                                                                                                                                                                                                      आज ऑफिस की छुट्टी है| सिरिष ड्राइंग रूम मे कपिल के साथ बैठा है | कपिल की नन्ही -नन्ही शरारते देख रहा है | कुछ देर की मस्ती के बाद कपिल थक कर सो जाता है सिरिष उसे उठाकर पलंग पर सुला देता है | खुद भी तकिये का सहारा लेकर लेट जाता है,अपने गत जीवन के चिंतन मे खो जाता है |
                  रीमा पिछले बीस -पच्चीस दिनों से हॉस्पिटल के आई .सी .यू .वार्ड मे बीमारी से लड़ रही थी | उसकी किडनी मे इन्फेक्सन हुआ था | डॉ के अनुसार ठीक होने के बहुत कम चांस है | किडनी फ़ैल भी हो सकती है | सिरिष अपने पांच माह के दूधमुहे बच्चे को लेकर रात -दिन पत्नी की सेवा मे इसी आशा के साथ लगा है कि वो जल्दी ठीक होकर हमारे बच्चे को संभालेगी |
                  सिरिष का परिवार अमेरिका मे रहता है,सिरिष को अपने देश भारत मे रहना अच्छा  लगता था ,वो अपनी पढाई ख़त्म होते ही भारत आ गया यहाँ आकर रीमा से शादी कर ली | उस दिन सिरिष आई .सी .यु .के बाहर बैठा था होस्पिटल मे शांत वातावरण था सिरिष विचार मग्न| भविष्य मे आने वाली समस्याओ के बारे मे सोच कर परेशान हो रहा है कि कब ठीक होकर रीमा बच्चे को फिर से सम्भालेगी ? ओर  कुछ सोचता, उससे पहले आई.सी.यु.से नर्स दौडती हुई बाहर आई ,डॉ सात नंबर पेशेंट की तबियत बिगड़ गयी,उसे सास लेने मे तखलीफ़ हो रही है |, सिरिष किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गया उसे तो पता ही था सात नंबर पेशेंट रीमा ही है | डॉ ने भाग कर रीमा को चेक किया ,उसकी सास उखड़ रही थी | रीमा के शरीर के सभी पार्ट्स ने लगभग काम करना बंद कर दिया | डॉ के अथक प्रयास के बाद भी रीमा बच नहीं सकी उसके जीवन की डोर टूट गयी |
                    सॉरी सर ,रीमा इज नो मोर , डॉ ने कहा | सिरिष की आँखों मे आंसू आ गये ,कपिल को भी जैसे आभास हो गया उसकी माँ उसे अकेला छोड़ गयी ,वो भी पापा के साथ जोर -जोर से रोने लगा था | कपिल के रोने से सिरिष चुप हुआ | डॉ. ने कहा 'होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करके आप घर जा सकते हो | कुछ भी सोचने -समझने की ताकत नहीं बची थी | अपनी ओर अपने नन्हे बच्चे के जीवन मे आने वाली तमाम परेशानियों को भुला कर,सिरिष रीमा की डेड बॉडी को घर ले जाने के लिए होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करने लगा | रीमा को अंतिम विदाई देने के लिए परिवार आ चुका था |
                   रीमा को अंतिम विदाई देने के बाद सिरिष इतने लोगो के बीच भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था | रीमा के जाने के तीसरे ही दिन सिरिश मुन्सिपलटी बोर्ड के ऑफिस मे रीमा का  मृत्यु  -प्रमाण पत्र लेने पहुँच गया | गोद मे कपिल को लिए वो सम्बन्धित अफसर से बोला 'सर मेरी पत्नी का मृत्यु -प्रमाण पत्र बना दीजिये |, पर वो अफसर कुछ नहीं बोला | सिरिष ने कई बार कहा पर वो जान -बूझ कर फ़ाइल् के पन्ने पलटता रहा |कपिल भी रोने लगा तो सिरिश ऑफिस की सीढियों मे बैठ गया | तभी वो अफसर उसके पास गया और बोला प्रमाण पत्र बनवाने के पांच सौ रुपया दे दो, कल आकर मृत्यु प्रमाण -पत्र ले जाना |, सिरिष को बहुत गुस्सा आया मेरी सत्ताईस साल की जवान बीवी मर गयी इसे रुपयों की पड़ी है | अपने गुस्से को काबू करके उसने रुपया दे दिया | उसे समझ आ गया ऑफिस मे सी.सी.टीवी कैमरा लगा था इसलिए वहां पैसा नहीं लिया| रिश्वत लेने के मामले मे सावधान जो है |
                दुसरे दिन सिरिष ऑफिस गया तो सीट पर दूसरा  अफसर  बैठा था | सिरिष ने उनसे मृत्यु -प्रमाण पत्र माँगा, उसने दो मिनिट मे बना कर दे दिया | अरे ! 'ये क्या आपने बिना रिश्वत लिए ही बना दिया ?, सिरिष ने कहा | कल उस अफसर ने पांच सौ रूपया लिया है मुझसे | 'मै कभी किसी से एक पैसा नहीं लेता हूँ | आपका कोई भी काम हो आप आना मै करूँगा आपका काम|, दुसरे अफसर  ने कहा |सिरिष ने उस रिश्वत खोर  अफसर  को सबक सिखाने का मन बना लिया और  उन इमानदार ऑफिसर के साथ मिलकर उस रिश्वत खोर  अफसर को रंगे हाथो पकड़वाया | किसी ने सच ही कहा है कि एक व्यक्ति की गलती के कारण  पूरा विभाग बदनाम हो जाता है
शांति पुरोहित 

सोमवार, 11 नवंबर 2013

मुश्किल फैसला ...

                                                                                                                                                                                                                                                                               निशा ने राहुल को स्कूल के लिये तैयार किया और उसका लंच बॉक्स उसे दिया | राजेश को भी आज जल्दी निकलना था उनका भी लंच बॉक्स तैयार किया और निशा ने उन दोनों को विदा किया | घर का सारा काम ख़तम करते -करते आधा दिन ख़तम हो गया | अब निशा थोड़ी देर आराम करने अपने कमरे मे आयी ही थी कि फोन की बेल बजी | निशा ने रूखे -पन से फोन उठाया |
हेल्लो ,निशा मै काव्या बोल रही हूँ,अरे ! काव्या तुम,निशा ने खुश होते हुए कहा ,कैसी हो,ससुराल मे सब ठीक है ना, लोग अच्छे है ना जीजू अच्छे है ना ,निशा ने जैसे सवालों की झड़ी लगा दी | काव्या ने कहा ''रुको निशा, तम्हे सब बताने के लिये ही फोन किया है पर यहाँ फोन पर नहीं, तुम कल मेरे घर आ जाओ फिर  बैठ कर बाते करते है ,काव्या, ने दुखी मन से कहा और फोन कट कर दिया |
कल का जाना तय हुआ जानकर निशा, ने राहत महसूस की क्योंकि आज वो बहुत थकी हुई थी, पर अब उसको काव्या से मिलने की बेसब्री भी बहुत हो रही थी, तो उसको नींद भी नहीं आ रही थी | दुसरे दिन निशा ने जल्दी -जल्दी काम ख़तम किया और काव्या के घर पहुँच गयी | निशा ने काव्या को देखते ही कहा ''अरे! ये तेरे चेहरे पर उदासी क्यों ? नई -नई शादी हुई है,लालिमा की जगह ये कालिमा क्यो है ? क्या कुछ ठीक नहीं है क्या ससुराल मे ? काव्या ने कहा सब बताती हूँ''निशा मुझे लगता है मेरे पति क्ल्पेस के मन मे कोई बात है, जिसको लेकर वो मुझसे नाराज है; या उसके दिल मे कुछ और ही चल रहा है, पर क्या ? ये मेरी समझ मे नहीं आया | उसने मुझसे इन सात दिनों मे कभी कोई बात नहीं करी और अगले दिन भैया मुझे पग- फेरे की रश्म के लिये लिवाने आ गये मै, उनके साथ वापस यहाँ आ गयी हूँ |,
''तो क्या तुम्हारा वैवाहिक जीवन शुरू ही नहीं हुआ ? कल्पेश ने तुम्हे छुआ तक नहीं क्या,निशा ने पूछा, नहीं,काव्या ने कहा | तुमने कल्पेश से इस बारे मे पूछा कभी,''बहुत बार पूछा पर उसने कभी मेरी बात ही नहीं सुनी | ओह ! तमने अपने ससुराल मे किसी को बताया ?,नहीं , ये मैंने सही नही.. समझा इससे  कलपेश की और मेरी इज्जत ही कम होती ना| थोड़ी देर काव्या से बाते कर के निशा भारी मन से अपने घर आ गयी थी |
समय बीतता गया अब काव्या को छ माह से भी ज्यादा समय हो गया था, कल्पेश उसे लेने आया और ना ही उसका कोई सन्देश आया | काव्या ने एक पत्र भी लिखा था पर कोई जवाब नहीं आया | काव्या के मम्मी -पापा और बाकि सब भी काव्या को देख कर दुखी थे पर क्या कर सकते थे | काव्या के पापा ने कभी नहीं सोचा था कि इतना पढ़ा लिखा लड़का काव्या के लिये देखा फिर भी ये सब ये सब भुगतना पड़ेगा |
उस वक़्त काव्या को बी.कॉम .का दूसरा साल चल रहा था | एक दिन रात के खाने के वक़्त देवराज ने अपनी पत्नी उमा को कहा कि ''मैंने काव्या के लिये एक लड़का देख लिया है चार दिन बाद लडके वाले काव्या को देखने आयेगे |,अरे ! अभी क्या जल्दी है काव्या की शादी की अभी तो उसकी पढाई भी पूरी नहीं हुई है,कौनसी मेरी बेटी की उम्र बहुत ज्यादा हो गयी है ? पर काव्या के पापा ने हुकुम जरी करते हुए कह दिया कि अब इस बारे मे कोई बहस नहीं होगी | लड़के वाले आते ही होंगे एक दो दिन मे | तुम सब तैयार रहना |
काव्या ने ये सब निशा को बताया तो निशा ने काव्या को कहा कि ''काव्या ये कोई मजाक नहीं है, शादी गुड्डे -गुड्डी का खेल नहीं होती है | ये तुम्हारे भविष्य का सवाल है किसी तरह अपने पापा को समझा कर अभी शादी मत होने दो और अपनी पढाई पूरी कर लो तुम |,निशा ने कहना जरी रखा कि ''काव्या कभी -कभी हम औरतो के जीवन मे मुश्किल घड़ी आ जाती है तब अगर हम किसी योग्य है तो अपना मुश्किल वक़्त भी आसानी से तय कर सकती है नहीं तो नहीं | काव्या ने कहा ''निशा अब कुछ नहीं होने वाला है पापा का फैसला अटल है मम्मी ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की पर सब बेकार गयी पापा जो चाहते है वो ही होता है | आख़िरकार काव्या की शादी कर दी गयी थी |
अब काव्य के पापा मम्मी बहुत दुखी है अपने फैसले से सोच रहे है कि काश ,काव्या को पढने दिया होता तो आज ये दिन ना देखना पढता | वो ये सोच के और भी हैरान है कि इतना पढ़ा -लिखा समझदार लड़का है कल्पेश पर उसने ऐसा क्यों किया काव्या के साथ, क्या गल्ती हुई होगी काव्या से | उमा देवी अपने पति को अपनी बेटी काव्या की इस हलत का जिम्मेदार मानती है | पर इन सब मे काव्या को ही भुगतना पढ़ रहा है |
आखिरकर काव्या के पापा ने एक फैसला किया कि कल्पेश से बात करने के लिये अपने बेटे हरीश को भेजा जाये | अपनी पत्नी उमा से कहा कि कल हरीश को जल्दी से खाना बना के दे देना उसे काव्या की ससुराल जाना है | उमा को ये बात ठीक लगी क्योंकि वो अपनी बेटी को अब और दुखी नहीं देख सकती थी |पूरी रात ट्रेन का सफर तय कर के जब हरीश काव्या की ससुराल पहुंचा तो सब ने उसकी बहुत खातिर की | जिसकी उसने उम्मीद नहीं की थी | खाना खाने के बाद जब कल्पेश उसे अपने कमरे मे ले गया तो हरीश ने अच्छा मौका जानकर कहा ''आप काव्या को लेने अब तक क्यों नहीं आये ऐसा क्या हुआ था उससे जिसकी आपने उसे इतनी बड़ी सजा दे दी | काव्या का आपके इस रूखेपन से बुरा हाल है उसका सुख -चैन सब आपके कारण खो गया है |,
अब कल्पेश ने अपने मन की बात बताने मे ही भलाई समझी ''मैंने मन -ही मन आप से ये उम्मीद की थी कि आप क्लिनिक खोलने मे मेरी आर्थिक मदद करोगे,पर आपकी और से कोई आश्वासन ना पाकर मैंने काव्या को मायके भेज कर अपना सारा ध्यान बैंक लोन ,और पैसो के जुगाड़ मे लगाया  ,सोचा काव्या काव्या को भेज कर अपना काम आराम से कर सकूंगा ,जब क्लिनिक खुल जायेगा वापस काव्या को घर ले आऊंगा |, इतनी बात कह कर कल्पेश ने कहा जल्दबाजी मे मै इस बारे मे काव्या और किसी को भी कुछ बता नहीं सका ,इसके लिए आप सब से माफ़ी चाहता हूँ |,इतनी सी बात के लिये आपने इतने दिन लगा दिए | ,आपका काम हो जायेगा,हरीश ने कहा,आप एक इशारा करते आपका काम हो जाता  और वो उन सब से विदा लेकर अपने घर आ गया था |
मम्मी -पापा उसकी प्रतीक्षा मे ही थे जैसे ही हरीश आया उन्होंने पूछना शुरू किया ''क्या हुआ वहां जाने स कुछ बात बनी ,'हाँ सब ठीक है बस कल्पेश को रूपया चाहिए अपने क्लीनिक के लिये |, पापा ने कहा ''ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, कल ही तुम दस लाख का चेक और काव्या को ले कर जाना | काव्या ने पापा और भैया की बाते सुनली थी और उसने एक मुश्किल फैसला कर लिया |अगले ही दिन माँ ने काव्या को हरीश के ससुराल जाने को कहा तो उसने कहा ''मैंने आपकी और भैया की सब बाते सुनली है,सुनने के बाद मैंने अपने जीवन का मुश्किल फैसला कर लिया है कि मै, ऐसे आदमी के साथ अपना जीवन नहीं काट सकती, जिसको इंसान की कोई कद्र नहीं है, और जो पैसो के आगे इंसान की भावना की कद्र ना कर सके | आपको एक पैसा भेजने की जरुरत नहीं है | अब मै अकेले ही अपना जीवन गुजारुंगी | इतना कह कर वो अपने कमरे चली गयी और रोने लगी |
थोड़ी देर रोने के बाद काव्या ने तय किया की अब वो रोएगी नहींऔर अपने जीवन के रास्ते को एक नया मोड़ देगी | और कल्पेश को भी सबक सिखाएगी | उसने गरीब बच्चो को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला | उस स्कूल मे सिर्फ वो ही बच्चे आ सकते थे जिनके माता -पिता मजदूरी करते है |अपने बच्चो का सिर्फ पेट भर सकते है | काव्या के इस काम मे उसके पापा ने पूरा सहयोग देने को कहा | पैसा तो बहुत था उनके पास तो काव्या ने पापा से कहा ''कल्पेश को उसकी मांग पर एक बार पैसा देते तो उसकी मांग बार -बार बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है | उसकी नाजायज मांग पूरी करने के बजाय तो इन गरीब बच्चो का भला करे तो इनकी जिन्दगी संवर जाएगी |
एक साल बाद काव्या की स्कूल मे ऐसे सौ बच्चे पढने के लिए आ गए थे | पढाई के साथ काव्या बच्चो को कपड़े,किताबे ,कापी के आलावा दोपहर का भोजन भी देती थी | अब काव्या ने कल्पेश से कानूनन अलग होने के लिए कोर्ट मे एप्लीकेसन लगा दी | तो कल्पेश की माँ आई और कया को घर चलने को कहा | काव्या ने भी कह दिया ''आप उस वक्त क्यों नहीं कुछ बोले जब मुझे कल्पेश की और आपकी ज्यादा जरुरत थी अब मैंने अकेले रह कर जीना सीख लिया है|, और वो अपने कमरे मे चली गयी | उसे बहुत काम जो देखना था |
 शांति पुरोहित 

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

पापा ने कितना मना किया था ........

    तनु महाराष्ट्र के मुंबई शहर मे रहती है | जो देश की आर्थिक राजधानी और माया नगरी के नाम से जानीi जाती है |मुंबई मे रहने वाले हर इंसान को वहां की भागती हुई जिन्दगी जीने का आदि होना पड़ता है| अगर वो समय के साथ ना चले तो पूरा दिन बेकार हो जाता है | सुबह जल्दी तैयार होकर ऑफिस के लिये अपने पापा को बिना नाश्ता किये रोज जाते हुए देखती है तनु को बड़ा अजीब लगता है | सुबह उठने के बाद एक पल के किये भी चैन नहीं, कितने ही दिनों तक वो, पापा के साथ बैठ कर नाश्ता भी नहीं कर पाती थी | कई बार तो कितने दिनों तक पापा से बात भी नहीं हो पाती थी | तनु ने ऍम.ए.''समाज शास्त्र'' मे टॉप करने के बाद ''रास्ट्रीय जूनियर फेलोशिप'' परीक्षा पास करी,इसके लिये उसने ''ग्रामीण जीवन, के बारे मे रिसर्च करने को अपना टोपिक चुना | अब इसके लिये तनु, को तीन माह तक गाँव मे जाकर रहना पड़ा था | पर मुंबई की  आधुनिक जीवन शैली मे पली -बड़ी तनु का तीन माह गाँव मे रहने से ही सब कुछ बदल गया | अब उसे गाँव का जीवन अच्छा लगने लगा था | वहां के लोगो की सरलता ,निश्चलता और आराम की जिन्दगी उसे भा गयी थी | उसने तो फैसला भी कर लिया था कि वो शादी करेगी तो किसी गाँव मे ही करेगी |
महेश भाई और सुहास, की इकलौती संतान थी तनु ,जिसे उन्होंने बहुत प्यार से फूलो की तरह पाला है | महेश भाई का तैयार वस्त्रो का आयात -निर्यात का काम था| वे मुंबई के रसूखदार आदमी थे | अपनी बेटी के लिये दुनिया के हर माँ बाप का ये सपना रहता है, कि उनकी बेटी का विवाह किसी ऐसे इंसान, से हो जो जिन्दगी भर उसे सुखी रख सके | महेश भाई और सुहास ने भी ये सपना देखा है, कि तनु की शादी मुंबई मे ही करेंगे तो वो सुखी रहेगी और उनकी आँखों के सामने ही रहेगी|
पर जब भी तनु के लिये मंबई से कोई रिश्ता आता, तनु कोई न कोई बहाने से मना कर देती थी | जब कई बार ऐसा हुआ तो तनु की मम्मी ने उससे इसका कारण जानना चाहा तो तनु ने कहा ''मै मुंबई मे नहीं किसी गाँव मे अपनी शादी करना चाहती हूँ | मै इस भाग -दौड़ की जिन्दगी से तंग आ चुकि हूँ |' उन दोनों ने बेटी को बहुत समझाया कि गाँव का जीवन हम शहर वालो के बस का नहीं है तुम जल्दी ही परेशांन हो जाओगी पर वो अपनी जिद पर अटकी रही |
आखिरकार कलकता के किसी गाँव मे सुरेश के साथ उसकी शादी कर दी गयी | जैसा कि तनु, पहले से ही वाकिफ थी गाँव मे कितनी नीरव शांति रहती है| यहाँ किसी को कोई जल्दी नहीं है | सब कुछ आराम से,आराम से सोना,आराम से उठाना, आराम से खाना और आराम से ही ऑफिस जाना |बस शांति ही शांति तनु को यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा था, कि अब सब साथ मिलकर सुकून की जिन्दगी जियेंगे सुरेश भी कितने अच्छे है, उनका सुविधाओ से सुसज्जित बहुत बड़ा घर है, और उतनी ही बडी उनकी फैक्ट्री है | बहुत पैसा कमाते थे, साल मे करोडो रूपियो का मुनाफा कमाते थे, क्योंकि भारत के बाहर भी उनकी फैक्ट्री मे बने कपड़ो की बहुत मांग रहती थी |
एक दिन उसने सुरेश से कहा ''मै एक पढ़ी-लिखी लड़की हूँ आपको काम मे अच्छी खासी मदद कर सकती हूँ |,पर सुरेश ने तनु को मना कर दिया कहा कि ''मेरी बीवी काम करे ये ''मै ,कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता तुम घर मे रानी की तरह रहो |'' पर मुंबई की जीवन शैली मे पली -बढ़ी तनु को आराम अब भरी लगने लगा |सास -ससुर इतना प्यार करते थे, उससे कि कोई काम नहीं करने देते थे| करती भी कैसे नौकरो की फौज खड़ी कर दी थी उन्होंने उसके लिये तो कोई क्या काम करे | ये भी एक परेशान करने वाली ही बात थी ना |तनु के लिये | अब  तनु सोच रही है कि क्या उसका गाँव मे शादी करना और गाँव मे रहना का फैसला सही नहीं है? गाँव मे जिन्दगी जीने का निर्णय तो उसका अपना ही था ,पर अब तनु गाँव रुपी पिंजरे मे अपने आप को बंद हुआ महसूस कर रही है | और अपने को खुले आसमान मे उड़ता हुआ देखना चाहती है | और इसी के बारे सोच कर वो उदास रहने लगी और ये उदासी उसकी सास से छुपी ना रह सकी | शायद वो भी इस दौर से गुजर चुकी थी | और तनु के आज मे उसका अतीत उसे साकार रूप मे दिखाई दे रहा हो| तनु की सास शीला ये नहीं चाहती थी कि तनु अकेलेपन की आग मे जले |
शीला ने कहा ''तनु तुम कुछ दिन अपने मायके मुंबई घूम कर आओ|, पर सुरेश ने मना किया उसने कहा 'मुझे तुम्हारे बिना बिना रहना अब बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है तुम कहीं नहीं जाओगी |,सुरेश तनु को बहुत प्यार करते थे पर केवल प्यार से ही तो जीवन नहीं चलता है | समय बिताने के लिये कुछ करना भी पड़ता है अगर इंसान काबिल है तो खाली तो बैठना उसके लिये सजा भुगतने के जैसा होता है मन की शांति बिना कैसे कोई चैन से जी सकता है |तनु ने इतनी पढाई की थी पर यहाँ आकर उसका कोई मतलब नहीं रहा | सुरेश उसे कुछ करने ही नहीं दे रहा था | मुंबई मे तो वो अपने पापा के साथ ऑफिस जाती पापा का काम संभालती थी | पापा ने कितना मना किया था पर तब उनकी बात समझ नहीं आई पर अब लगता है कि वो सही कह रहे थे, पर अब कैसे निकलू इस जेल से | जब कभी सुरेश की इच्छा हुई तो वो कहीं लेकर जाता, उसे अपनी मर्जी से उसे कहीं नहीं जाना था |
अब उसे अपनी गल्ती समझ आ गयी, कि जिस परिवेश मे हम पलते है, रहते है आगे का सारा जीवन उसी तरह ही काटना पड़ता है | अपने माता -पिता से ज्यादा देर तक कोई भी दूर नहीं रह सकता है | अपनों के साथ बिना इंसान 'पर कटे पक्षी' की तरह मेहसूस करता है तनु के पास अब कोई कारण भी नहीं था, कि वो सुरेश से 'तलाक, लेकर आजाद हो जाये इस कैदखाने से |  उसकी तबियत बिगड़ने लगी थी | तनु की सास से उसका ये हाल देखा नहीं जाता था वो उसने फिर कहा सुरेश को ' सुरेश बहु को मायके भेज दो या तुम कहीं उसे घुमाने लेकर जाओ|,तनु को ये बहुत अच्छा लगा कि सास उसका कितना ध्यान रखती है कितना संभालती है | एक बार शीला ने तनु को बताया था कि वो भी कलकता जैसे बड़े शहर से यहाँ आई थी तब उसे ऐसा लगा कि जैसे वो सोने के पिंजरे मे कैद होकर रह गयी है | बहुत मुश्किल से अपने आपको संभाला है
तनु को अभी तक सुरेश ने अपनी फैक्ट्री नहीं दिखाई तो आज तनु ने सोचा कि चलो फक्ट्री देखने जाती हूँ | तनु ने अपनी सास -ससुर को बिना बताये ही जाने के लिये बाहर आकर अपने ड्राइवर से कहा ''मुझे फेक्ट्री ले चलो |' पर ड्राइवर ने मना कर दिया और कहा ''मालिक कहेंगे तो ही ले जाऊंगा |' तनु को आश्चर्य हुआ, क्या मालकिन का कोई महत्व नहीं ? उसने सुरेश को फोन किया ''अपने ड्राइवर से कहो मुझसे बदतमीजी ना करे और फैक्ट्री लेकर आये मुझे फैक्ट्री देखनी है |' पर सुरेश ने इनकार कर दिया कहा कि ''आज नहीं कल मै खुद तुम्हे अपने साथ लेकर जाऊंगा आज मै तुम्हे वक़्त नहीं दे पाउँगा |' वो सुरेश का कहा मान गयी, पर वो कल आज तक नहीं आया | आखिरकार आज फिर तनु ने जाने का याद दिलाया तो सुरेश ने गुस्सा किया,फैक्ट्री मे औरतो का क्या काम है| और हाँ ऐसा क्या है देखने जैसा | मै तुम्हे कहीं घुमाने ले जाऊंगा, जब मुझे टाइम मिलेगा | पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि फैक्ट्री दिखाने मे सुरेश को क्या तखलीफ़ थी | तनु की तो ये आदत ही थी कि वो जो सोचती है| वो कर के रहती है | एक दिन वो टैक्सी लेकर फैक्ट्री पहुँच गयी |
फैक्ट्री के ऑफिस मे सुरेश के साथ एक बहुत ही खुबसूरत औरत बैठी है | उसको देख कर ऐसा लगा जैसे वो इस फैक्ट्री की मैनेजर है | गजब का व्यक्तित्व  था उसका | तनु ने फैक्ट्री मे काम करने वाले एक आदमी से पूछा ये''औरत कौन है|' उसने कहा ''मालिक की पत्नी है |' तनु हैरान रह गयी, अपनी तसल्ली के लिये एक बार फिर पूछा ''कौन है, उसने फिर वो ही कहा ''हमारे मालिक सुरेश जी की पत्नी है |' अब तो तनु टूट ही चुकी थी | तनु का अब मन नहीं कर रहा था फैक्ट्री देखने का और वो वापस घर आ गयी | रात होने का इंतजार करने लगी | आज इंतजार करना बड़ा भारी लग रहा था | रात को जब सुरेश आये तो तनु ने पूछा ''तुम्हारी पहली पत्नी और एक बच्चा भी है, तो उनको कहाँ रखा है आपने ?,मेरे मुह से इस अप्रत्याशित प्रश्न को सुनकर सुरेश डर गये और घबरा गये सोचने लगे कि तनु को कैसे पता चला ये सब के बारे मे,थोडा अपने आप को संभाल कर उन्होंने कहना शरू किया ''तनु विजया और मै एक दुसरे को चाहते थे| शादी करना चाहते थे, पर माँ -बाबूजी इस शादी के लिये कभी हाँ नहीं बोलते क्योंकि हम दोनों का धरम अलग था | तो हमने 'माँ -बाबूजी, को बताये बिना ही कोर्ट मे शादी की थी | अब हमारे दो बच्चे भी है |'
तनु ने कहा तो फिर 'आपने मुझसे शादी क्यों की| ''माँ -बाबूजी के कहने से करनी पड़ी |' और हाँ, ये फैक्ट्री मेरी नहीं विजया की है| ये सब सुनकर तनु ने,अपने जाने की तैयारी की और यहाँ से जाने मे ही अपनी भलाई समझी| उसने सोचा जो अपने माता -पिता को इतना बड़ा धोखा दे सकता है| वो मेरे साथ मौका पड़ने पर कुछ भी कर सकता है तनु वापस मुंबई अपने घर आ गयी |और सब से पहले उसने सुरेश के कारनामे को यहाँ के प्रसिद अख़बार मे छपवाया और एक प्रति अख़बार की विजया को भेज दी | विजया ने सुरेश की असलियत जानने के बाद अपनी फैक्ट्री मे से उसे उसी वक़्त निकाल दिया, और हमेशा के लिये उससे नाता तोड़ लिया | अब तनु को सुरेश के माता -पिता के लिये दुःख हो रहा था| पर सुरेश को उसके किये की सजा तो मिलनी ही चाहिये, जो तनु उसे दी है | तनु सोच रही है, कि आम तौर पर शहर वाले ऐसा काम करने के लिये बदनाम है| पर अब तो गाँव वाले भी किसी से कम नहीं है | और अब तनु खुद को वापस अपनी मुंबई मे समा लेना चाहती है |तनु के पापा महेश भाई और माँ अब तनु के लिये खुश है, कि अब वो अपनी बेटी का फिर से घर बसायेंगे | अब तनु के जीवन से दुःख रूपी अँधेरा छंट चूका है |अब तनु फिर से खुले आकाश मे सांस ले सकती है |
शांति पुरोहित
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

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शनिवार, 2 नवंबर 2013

नाम लिखा दो लखपतियों में ,तुम्हें बुलाते हैं .-दीपावली सभी को शुभ हो

लक्ष्मी आन विराजो ,लख-लख दीप जलाते हैं ,
नाम लिखा दो लखपतियों में ,तुम्हें बुलाते हैं .
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घर का हर कोना चमकाएं ,रंग-बिरंगा उसे सजाएँ ,
खन-खन कान में बजवाने को समय लगाते हैं .
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सोने चांदी के सिक्कों से गणपति पूजें साथ तेरे ,
छप्पर फाड़ मेरे घर आओ ,भोग लगाते हैं .
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धन-दौलत की खातिर माता पूजन करते बड़े बड़े ,
उल्लू को अँधा करने को बल्ब जलाते हैं .
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लक्ष्मी पाने की खातिर ही रखते हैं हम द्वार खुले ,
कभी कभी लालच में मैया हम लूट जाते हैं .
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शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN ]