बुधवार, 18 सितंबर 2013

सही हर सोच है इनकी,भले बैठें गलत घर पर .

 
तखल्लुस कह नहीं सकते ,तखैयुल कर नहीं सकते ,
तकब्बुर में घिरे ऐसे ,तकल्लुफ कर नहीं सकते .
.........................................................................
मुसन्निफ़ बनने की सुनकर ,बेगम मुस्कुराती हैं ,
मुसद्दस लिखने में मुश्किल हमें भी खूब आती है ,
महफ़िलें सुन मेरी ग़ज़लें ,मुसाफिरी पर जाती हैं ,
मसर्रत देख हाल-ए-दिल ,मुख्तलिफ ही हो जाती है .
मुकद्दर में है जो लिखा,पलट हम कर नहीं सकते ,
यूँ खाली पेट फिर-फिर कर तखल्लुस कह नहीं सकते .
..................................................................................
ज़बान पर अवाम की ,मेरे अशआर चढ़ जाएँ ,
मुक़र्रर हर मुखम्मस पर ,सुने जो मुहं से कह जाये ,
मुखालिफ भी हमें सुनने ,भरे उल्फत चले आयें ,
उलाहना न देकर बेगम ,हमारी कायल हो जाएँ .
नक़ल से ऐसी काबिलियत हैं खुद में भर नहीं सकते ,
यूँ सारी रात जग-जगकर तखैयुल कर नहीं सकते .
....................................................................... 
शहंशाही मर्दों की ,क़ुबूल की है कुदरत ने ,
सल्तनत कायम रखने की भरी हिम्मत हुकूमत ने ,
हुकुम की मेरे अनदेखी ,कभी न की हकीकत ने ,
बनाया है मुझे राजा ,यहाँ मेरी तबीयत ने .
तरबियत ऐसी कि मूंछे नीची कर नहीं सकते ,
तकब्बुर में घिरे ऐसे कभी भी झुक नहीं सकते .
.....................................................................
मुहब्बत करके भी देखो, किसी से बंध नहीं सकते ,
दिलकश हर नज़ारे को, यूँ घर में रख नहीं सकते ,
बुलंद इकबाल है अपना ,बेअदबी सह नहीं सकते
चलाये बिन यहाँ अपनी ,चैन से रह नहीं सकते .
चढ़ा है मतलब सिर अपने ,किसी की सुन नहीं सकते ,
शरम के फेर में पड़कर, तकल्लुफ कर नहीं सकते .
........................................................................
शख्सियत है बनी ऐसी ,कहे ये ''शालिनी ''खुलकर ,
सही हर सोच है इनकी,भले बैठें गलत घर पर .
.........................................................................
शब्दार्थ-तखल्लुस-उपनाम ,तखैयुल-कल्पना ,तकब्बुर-अभिमान ,तकल्लुफ-शिष्टाचार ,मुसन्निफ़-लेखक,मुसाफिरी-यात्रा ,मसर्रत-ख़ुशी ,मुख्तलिफ -अलग
मुसद्दस -उर्दू में ६ चरणों की कविता ,मुखम्मस-५ चरणों की कविता ,मुखालिफ-विरोधी ,उल्फत-प्रेम, उलाहना -शिकायत ,कायल-मान लेना ,तरबियत-पालन-पोषण ,बुलंद इकबाल -भाग्यशाली
                  शालिनी कौशिक
                       [woman  about  man  ]

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हाँ..... तुम स्वतन्त्र हो

हाँ ... तुम स्वतन्त्र हो 
पूरी तरह स्वतन्त्र 
पर देखो 
इस आज़ादी का  मतलब 
कुछ गलत मत लगाना ....
जीने का पूरा हक़ है तुम्हें
पर ज़रूरत से ज्यादा साँसे मत लेना 
हक़ रखती हो बोलने का 
अपने दिल की कहने का 
पर देखो 
जो अच्छा सबको लगे 
केवल वही तुम  कहना 
.....
किसने कहा कि घर की चौहद्दियों में कैद हो तुम 
आधुनिक नारी हो 
कोई हद भला बाँधेगी तुम्हे क्यों कर 
पर कदम घर से बाहर रखने से पहले 
इजाजत मेरी तुम लेना 
हाँ 
बिलकुल स्वतन्त्र हो 
पूरी तरह आज़ाद हो तुम ...



मंगलवार, 3 सितंबर 2013

पुरुष: दंभ का मानवीय रूप

 
पुरुष
दंभ का मानवीय रूप

टूट जायेगा
पर
झुकेगा नहीं !
दंभ
या तो फूलेगा
गैस के गुब्बारे की तरह
नहीं तो
डूब जायेगा
ऐसे अंधकार में
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .

ऐसे ही पुरुष
गैस के गुब्बारे की तरह फूलता है
और बिना सोचे विचारे
स्वयं को मान सर्वशक्तिमान
बढ़ता रहता है
उड़ता रहता है
नहीं लगता उसे
संसार में कोई अपने
समकक्ष
किन्तु एक समय आता है
जब वह
स्वयं को अकेला पाता है

किन्तु झुकना नहीं
सीखा कभी
इसलिए
असहाय महसूस
करने पर भी
वह किसी से कुछ
नहीं कहता
और
कर लेता है
स्वयं को ऐसे
अंधकार के आधीन
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .
 
                 शालिनी कौशिक
         [WOMAN ABOUT MAN]