मंगलवार, 3 सितंबर 2013

पुरुष: दंभ का मानवीय रूप

 
पुरुष
दंभ का मानवीय रूप

टूट जायेगा
पर
झुकेगा नहीं !
दंभ
या तो फूलेगा
गैस के गुब्बारे की तरह
नहीं तो
डूब जायेगा
ऐसे अंधकार में
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .

ऐसे ही पुरुष
गैस के गुब्बारे की तरह फूलता है
और बिना सोचे विचारे
स्वयं को मान सर्वशक्तिमान
बढ़ता रहता है
उड़ता रहता है
नहीं लगता उसे
संसार में कोई अपने
समकक्ष
किन्तु एक समय आता है
जब वह
स्वयं को अकेला पाता है

किन्तु झुकना नहीं
सीखा कभी
इसलिए
असहाय महसूस
करने पर भी
वह किसी से कुछ
नहीं कहता
और
कर लेता है
स्वयं को ऐसे
अंधकार के आधीन
जहाँ साया
अपना साया
भी
साथ छोड़ खिसक जाता है
दूर कहीं अनंत पथ पर .
 
                 शालिनी कौशिक
         [WOMAN ABOUT MAN]




5 टिप्‍पणियां:

sriram ने कहा…

nice and sweet...real poetry

Guzarish ने कहा…

आपकी यह रचना कल बुधवार (04-09-2013) को ब्लॉग प्रसारण : 106 पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सादर
सरिता भाटिया

रश्मि शर्मा ने कहा…

मानव मन का आकलन..

virendra sharma ने कहा…

अज्ञान से पैदा होता है दम्भ और अहंकार ,मूंछों की मरोड़।

shalini rastogi ने कहा…

बिलकुल सही लिखा है शालिनी जी .. पुश का दंभ झुकना नहीं जानता ....यथार्थपरक कविता!