गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

देखा जो ख्वाब

फैशन डिज़ायनर रूपा का अपने बुटिक मे आते ही काम मे व्यस्त हो जाना, अपने स्टाफ को काम समझाना,ये उनका डेली का रूटीन था |फैशन डिजा
 '' मिस डिसूजा , मिस रूबी का आर्डर रेडी हुआ की नहीं ? डिसूजा कुछ जवाब देती, उससे पहले ही रमेंद्र से पूछ बैठी '' आस्था मेंम ,की ड्रेस के लिए कल जो डिजायन आपको दिया था ,वो ड्रेस रेडी हुई की नहीं ?
    अरे ! जल्दी -जल्दी सबके आर्डर तैयार करो ! दीपावली का त्यौहार है सबको समय पर अपना आर्डर चाहिए होता है |पर आज रूपा का मन कहीं और है वो ऑफिस मे आराम कुर्सी मे बैठ गयी | त्योहारी सीजन के चलते सास लेने भर की भी फुर्सत नहीं है | थकान सी हो रही थी | उठकर ऑफिस की खिड़की खोली तो हल्की सुनहरी धुप  ऑफिस मे प्रवेश कर गयी | दिसंबर माह मे धुप सुहानी लगती है | धुप मे बैठना रूपा को बचपन से ही अच्छा लगता था |
            रूपा धुप का आनंद लेने लगी | दिमाग को एकांत मिलते ही मन गुजरे वक्त की खटी -मीठी यादो मे गोते लगाने लगा | 'इकलौती संतान थी ,पापा मुझे डॉ. बनाना चाहते थे वो खुद भी डॉ. थे | वो अपना क्लिनिक मुझे सौप कर खुद लोगो की फ्री सेवा करना चाहते थे | मेरी रूचि फैशन डिजायनर बनने मे थी | अपना खुदका बुटिक खोलना चाहती थी | मम्मी हमेशा मेरा ही साथ देती थी | पापा को समझाती 'आप क्यों अपनी मर्जी बच्ची पर थोप रहे हो ,उसे जो करना है करने दो ? पापा को मम्मी की बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो अपनी जिद पर अड़े थे और मै अपनी ....
            आखिर मेरा सीनियर का रिजल्ट आने के बाद मम्मी ने पापा को समझा-बुझा कर मेरा एडमिशन फैशन डिजाइनर के कोर्स के लिए करवा दिया था | मै बहुत खुश थी | अभी मेरा डिप्लोमा पूरा हुए एक माह ही बीता था कि पापा -मुम्मी ने मेरा रिश्ता एक इंजिनियर लड़के निलेश से पक्का कर दिया था | बहुत कोशिश की ,अभी शादी ना हो ,मै पहले अपना बुटिक खोलना चाहती थी | पापा ने मेरी एक न सुनी और कुछ समय बाद शादी हो गयी | मेरी इच्छा मेरे मन के किसी कोने मे दब कर रह गयी |
           ससुराल मे पति निलेश के पापा- मम्मी एक बहन और दादी थे | नई बहु से सबको बहुत सी अपेक्षाए होती है यहाँ भी थी |सब की इच्छा पूरा करने मे अपना सपना याद ही नई रहा | निलेश की जॉब अभी लगी ही थी तो वो मुझे बहुत कम समय दे पाते थे |अक्सर टूर पर जाना होता था | समय अपनी गति से चलता रहा | एक साल बीत गया | आखिर आज निलेश के जन्मदिन के अवसर पर अपनी बात कहने का मौका मिला '' मुझे बुटिक खोलना है प्लीज मेरी मदद कीजिये न आप , मैंने बहुत ही प्यार से कहा |
          अरे ! इसमें प्लीज बोलने की क्या जरुरत है ?
          तुममें योग्यता है ,काम करना चाहती हो मै कल ही लोकेशन देख कर बताता हूँ |
तम्हारा साथ देना मेरा फर्ज है ,मै आज बहुत खुश थी | पर जैसे ही सासु माँ को पता चला उन्होंने तुरंत आदेश दे दिया '' पहले हम घर मे अपने पोते -पोती को देखना चाहते है बुटिक बाद मे खोलना |, माजी का आदेश था तो निलेश भी चुप रह गया | मै एक बार फिर मन मसोस के रह गयी |
            दिन ,महीने ,साल निकलते रहे ,इसी दौरान मै एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गयी थी | अब तो मेरा एक ही काम रह गया था बच्चो ,निलेश और ससुराल वालो की सेवा करना | इन सब के बीच मेरी कला अपना दम तोड़ रही थी | कभी नहीं सोचा था कि मेरी पढाई और मेरे हुनर का ये हाल होगा | निराशा मेरे अन्दर घर कर  गयी |
             समय बीतता रहा अब मेरी बेटी नीता कॉलेज जाने लगी और बेटा निर्भय भी अगले साल कॉलेज  जाने लगेगा | अगले सप्ताह नीता के कॉलेज मे वार्षिक उत्सव होने वाला था नीता ने फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता मे भाग लिया था| उसने टेलर से जो ड्रेस बनवाई वो उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आयी | नीता उदास हो गयी | आज फिर किसी अन्य टेलर के पास गयी | बेटी की उदासी मुझसे देखी नहीं गयी | तभी मुझे अपनी कला का ख्याल आया मैंने आज अपनी कला का उपयोग करके बड़े ही मनोयोग से बेटी के लिए ड्रेस तैयार करली |
             शाम को जब नीता उदास चेहरा लेकर घर वापस आयी | ''कुछ काम नहीं बना क्या ? मैंने पूछा | नहीं माँ , तभी उसके हाथ मे वो ड्रेस रखी मैंने | नीता ख़ुशी से उछल पड़ी ''वाह माँ , आपने कहाँ से बनवाई ड्रेस ?,
            बहुत अच्छी है मुझे एसी ही ड्रेस चाहिए थी |, तभी मेरी सासु माँ ने उसे कहा 'तेरी माँ रूपा ने ही बनाई है | आज हमे अपनी गलती का एह्सास हो रहा है | ' किस गलती का दादी , नीता ने कहा | रूपा बह इतनी टेलेंटेड है पर हमने इसे घर के कामो मे लगा कर रखा,  इसकी कला का कभी सम्मान नहीं किया |, सासु माँ ने कहा |
              तो नीता बोली '' अब भी मम्मी अपना बुटिक खोल सकती है, अब तो हम भी अपना काम खुद कर सकते  है | शाम को निलेश आया सासु माँ और नीता ने उन्हें सब बताया | नीता ने पापा से कहा ,मम्मी इतनी योग्य थी ,अपना बुटिक खोलना चाहती थी ,तो आपने मम्मी को सपोर्ट क्यों नहीं किया ?,एक पति को तो अपनी पत्नी की योग्यता की कद्र करनी चाहिए थी | निलेश को सच मे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और  निलेश ने अगले ही दिन अति व्यस्त बाजार मे एक दुकान देखली और जोरो से तैयारिया चलने लगी | प्रतियोगिता मे नीता का पहला स्थान आया | नीता भी मेरी मदद करने मे लग गयी |
   आखिर पांच माह के बाद आज मेरे बुटिक का उद्घाटन था | जो मैंने अपनी सासु माँ और ससुरजी के हाथो कराया | बहुत सारे कपड़े लोगो ने खरीदे साथ ही इतने आर्डर आये मे एक साल तक के लिए एक साथ व्यस्त हो गयी | आज तो मेरे बनाये कपड़े देश के अन्य भागो मे भी जाने लगे है | ये सब मेरी बेटी और सासु माँ के कारण ही हुआ है | मेम चाय , मिस डिसूजा की आवाज से मेरा चिंतन ख़त्म हुआ | जब जागो तभी सवेरा वाली बात मुझ पर फिट बैठी है | आज मेरा वर्षो पहले देखा सपना या यू सोच लीजिये कि मेरे जीने का मकसद अब मुझे मिला है |

शांति पुरोहित 

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

ममता एक माँ की ...

                                                                                                                                                                                                               क्या ममता ने इसलिए दूसरी शादी की थी ?
कि जिन लोगो के लिए उसने अपना सारा जीवन लगा दिया वो ही लोग उसे इस तरह ठेस पहुँचायेगे ,और वो भी तब जब घर मे इतना अहम् और ख़ुशी का माहोल हो, और बहुत सारे लोग मौजूद हो| और कोई नहीं उसका पति एसी दिल तोड़ने वाली बात करेगा ऐसा होगा कभी नहीं सोचा था |लोग ये तो जानते है की स्त्री सहनशील होती है ,पर ये शायद नहीं जानते कि सहन करने की भी एक सीमा तो होती ही है | स्त्री कोई भी हो छोटी -मोटी बात की तो परवाह नहीं करती पर बात अगर उसके स्वाभिमान की होती है तो चुप नहीं रहती और स्वाभिमान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है |
                      मेरी कहानी की नायिका ममता एक ऐसे पिता की बेटी है जो मजदूरी करके अपनी बेटी को को शिक्षा दिलवा रहा है | और उसकी हर ख्वाहिश को पूरी करने की पुरजोर कोशिश करता था | पिता को मजदूरी करते इस बात का एहसास हो गया कि बिना शिक्षा इंसान को जीवन मे बहुत सारी कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है | और अभाव मे जीना रोज एक मौत मरना जैसे है |उस वक्त ममता का आखिरी साल था फीस भरने की तारीख नजदीक आ रही थी पैसो का इंतजाम नहीं हो रहा तो ममता के पिता रामसिंह ने तब अपने  खेत को गिरवी रखा और ममता के कोलेज की फीस भरी | उस वक्त लाखो के खेत को हजारो मे गिरवी रखना पड़ा था | समय बीतता गया चार साल बाद ममता की पढाई पूरी हुई अब ममता बी .ऐ.बी.एड थी |
                        ममता ने अभी नौकरी करने का सोचा ही था की मम्मी -पापा ने अपना फैसला सुना दिया कि अब हम तुम्हारी शादी करना चाहते है और लड़का भी देख लिया है तुम भी चाहो तो देख सकती हो | लड़के के माता -पिता दोनों नौकरी करते थे और लड़का तुषार जिसने अभी -अभी इंजीनियरिग की पढाई पूरी की और एक बड़ी कम्पनी मे नौकरी लग गया था | बहुत ही नेक और संपन परिवार था | ममता ने कहा ''माता पिता अपने बच्चो के लिए अच्छा ही करते है मुझे मंजूर है जो लड़का आपने मेरे लिए देखा अच्छा ही होगा | और ममता की शादी तुषार संग हो गयी |
                     ममता का ससुराल मे सास ने बहुत स्वागत किया और सर आँखों पर बिठाया शादी के चार दिन बाद जब ममता सास के लिए चाय लेकर गयी तो सास ने ढेरो आशीष के साथ एक लिफाफा ममता के हाथ पर रखा और कहा ''ये तुम दोनों के लिए सिंगापुर जाने की टिकिट है कल निकलना है जाओ तैयारी करो | ममता को बहुत ख़ुशी हो रही थी कि सास उसे कितना प्यार करती है किते अच्छे से संभालती है सास का शुक्रिया कर के ममता जाने की तयारी मे लग गयी थी | ममता ने अपने व्यवहार से सबका दिल जित लिया समय तो चलता रही रहता है |
दो साल बाद
ममता ने घर मे बच्चे के आने की खबर सुनाई सब बहुत खुश हए पर सास लीला तो बहुत ही खुश हुई क्योंकि वो तो कब से ही इस बड़ी ख़ुशी का इंतजार कर रही थी | उसने ममता को गले लगा कर माँ बनने की और बेटे नितिन को बाप बनने की बधाई दी अब तो सास लीला ममता का खूब ख्याल रखने लगी ममता को पंलग से नीचे पैर ही नहीं रखने देती थी | लीला बेसब्री से बच्चे का इंतजार करने लगी थी | सब अच्छे से चल रहा था कि एक दिन तुषार ने माँ को कहा कि'' कल मुझे ऑफिस टूर से दिल्ली जाना है सोच रहा हूँ ममता को ले जाऊ काम ख़त्म करके थोडा हम दोनों घूम लेंगे,ममता की सास ने कहा जाओ पर समय पर खाना,नाश्ता और सोने का ध्यान रखना ,ज्यादा चलना मत बहुत सारी हिदायतों के साथ जाने की इज़ाज़त दे दी |
                      अभी कुछ रास्ता ही तय किया था कि तुषार की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जिसमे तुषार की मौत हो गयी और ममता घायल हुई | डॉ. को ममता का अर्जेंट ओपरेशन करना पड़ा क्योंकि ममता के गर्भाशय मे चोट लगने के कारण संक्रमण हो गया था | और गर्भाशय को तुरंत निकालना पड़ा | अब इसे समय का फेर ही कहेंगे की कितनी खुश थी ममता और अब पलक झपकते  ही उसका सुखी संसार उजड़ गया था | लीला बहुत दुखी हुई उस पर तो जैसे दुखो का पहाड़ ही टूट पड़ा, पर फिर भी उसने अपने आपको संभाला और ममता की देख भाल करने लगी | होश आने पर ममता ने अपने आपको अस्पताल मे पाया तो कुछ ही देर बाद उसको समझ आ गया कि उसका सब कुछ लुट गया वो रोने लगी सास ने ममता को सम्भाला |
                           अहिस्ता -अहिस्ता समय का मरहम हर घाव को भरता है जीने के लिए इंसान को अपने मन को कुछ तो तसल्ली देनी ही पड़ती है अब ममता वापस अपने पिता के घर आ गयी और शिक्षिका की नौकरी कर ली |
तीन साल बाद
अब ममता ने स्कूल मे बच्चो के साथ अपना मन लगा लिया था| और बच्चे भी अपनी ममता मैडम से बहुत प्यार करने लगे थे | स्कूल मे ममता के बिना बच्चो का मन ही नहीं लगता था | स्कूल के प्रिंसिपल भी खुश थे कि बच्चे पढाई मे रूचि ले रहे है सब अच्छे से चल रहा था कि एक दिन पडौस मे रहने वाले रामकिशन की पत्नी का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया | अब चार बच्चो को सम्भालना रामकिशन जी के बस की बात नहीं थी | उन्होंने दूसरी शादी करने का फैसला किया |कितनी ही जगह रिश्ते की बात की पर उनकी शर्त के कारण कोई भी औरत ने हां नहीं की शर्त ये थी कि रामकिशन जी दुसरी शादी से बच्चा नहीं पैदा करेंगे |
                 ममता के तो अब ग्रभाशय ही नहीं था तो बच्चा होने वाला ही नहीं था ये बात ममता के पिता को पता चली तो उन्होंने ये बात घर मे सब के सामने रखी तो सब ने कहा ममता  रामकिशन से बहुत छोटी है और वो चार बच्चो का पिता था | ममता का मन भी अब दूसरी शादी करने का बिल्कुल भी नहीं था |वो सोचने लगी कि ये दूसरी शादी किसलिए ? पिता के घर मे बेटी का रहना आज भी बोझ समझा जाता है,या इसलिए कि रामकिशन जी के चार बच्चो को सम्भाल सकू |और बिना पैदा किये सीधा चार बच्चो की माँ बनू तो क्या बुरा है कुछ तय नहीं कर सकी थी | अगर ममता अपने पिता के घर मे रहकर जीवन काटे तो इसमें क्या बुराई थी |अब तो वो उसने स्कूल मे नौकरी भी कर ली थी |पर उसके माता -पिता का ये सोचना था कि बेटी का अपना एक ठिकाना होना चाहिये| ये कैसी सोच थी समाज वालो की उसे समझ नहीं आ रहा था, कि क्यों एक विधवा अकेले अपना जीवन नहीं बिता सकती ? और फिर ठिकाने के लिए क्या ये चार बच्चो का बाप ही मिला था | रामकिशन फिर ममता के हां- ना की परवाह किसे थी | सिर्फ हाँ बोलना था |और शादी हो गयी |
                           अब तीस साल की ममता चार बच्चो की माँ बन गयी | जीवन का रुख ही बदल गया |जो किस्मत मे था हुआ उसने भी चुप -चाप स्वीकार किया और लगी नई गृहस्थी सम्भालने शादी होने के बाद कभी उसके माता -पिता ने ये नहीं पूछा की पति और बच्चो के साथ उसका रिश्ता कैसा है |बस वो तो खुश थे कि उनकी बेटी के ठिकाना हो गया है |दिन, महीने , साल बित्तते गये पर चार बच्चो को संभालना वो भी सौतेले बड़ा कठिन काम था | सौतेली माँ के प्रति बच्चो के मन मे ये बात भर दी जाती है ,कि वो सौतेले बच्चो को प्यार नहीं कर सकती बल्कि मारती है|पर लोग ये नहीं समझते कि माँ तो माँ होती है चाहे वो सौतेली हो या खुद, की माँ के दिल मे बच्चो के लिए केवल और केवल प्यार रहता है| वात्सल्य और ममत्व का भाव रहता है माँ ही उनको आगे बढ़ने मे उनके लिए दिशा निर्धारित करने मे उनकी मदद करती है |
                     यहाँ रामकिशन के बच्चो के दिल मे भी सौतेली माँ के खिलाफ जहर भर दिया गया था| बच्चे ममता के पास भी नहीं फटकते थे| पर ममता ने धीरे -धीरे उन्हें प्यार से उनकी सोच बदल दी अब वो अपनी ममता माँ की हर बात मानने लगे अपनी माँ को अब याद नहीं करते और ममता माँ के पास ही रहते थे समय बीतता रहा अब बच्चे बड़े हो गये पढ़ -लिख लिए | बड़े बेटे नितिन की तो नौकरी भी लग गयी |नितिन की शादी का मौका था |बेटे की शादी के लिए ममता ने बहुत सारी तैयारी की पर उसने जो चाहा वो तो नहीं हुआ रामकिशन ने शादी के मांगलिक काम अपने छोटे भाई -भाभी को करने को कहा क्योंकि उनकी नजरो मे वो अब भी विधवा थी |इतने साल उनके साथ उनकी पत्नी बने रहने के बाद भी ममता के उपर से विधवा का ठप्पा नहीं हटा ये उनकी ओछी सोच थी |तो क्या रामकिशन उसे अपने बच्चो की आया समझता था ये उसकी समझ से परे था?|
                          ममता कुछ नहीं बोली चुप -चाप सहन कर लिया शादी हुई बहु भी समझदार थी और सास भी समझदार तो दोनों मे खूब पटने लगी | माँ बेटी का रिश्ता हो गया दोनों मे |बहु ने सास को आते ही कह दिया कि अब आप आराम करो बाकि सब मे सम्भालती हूँ |आप तो मुझे आदेश करो अब आप और पापा अपने लिए जिओ | बहु का प्रेम देख ममता रोने लगी | दो साल बाद ममता की बहु ने बच्चा आने की खबर सुनाई सब खुश थे | सातवा माह था बहु की गोद भराई की रश्म थी आज जैसे ही ममता ने सगुन लेकर बहु के पास जाने को कदम बढाया तभी बहु के मायके वालो मे से किसी ने कहा की आपकी कभी गोद भरी नहीं तो आप रहने दो ममता ये सहन ना कर सकी और कमरे मे जाकर रोने लगी रामकिशन ये सब देख सुन रहे थे पर शादी के वक्त भी कहाँ साथ दिया जो अब देंगे | पर ममता की बहु ने भी कह दिया कि ''मेरी गोद अगर मेरी सास नहीं भर सकती तो मुझे ये सब करना ही नहीं है, मै ऐसे ही ठीक हूँ | नितिन ने भी कहा कि कौन कहता है ममता माँ माँ नहीं है वो तो चार बच्चो की माँ है ये ना होती तो हम आज किसी बुरी सगत मे पड गये होते | ममता माँ ये सब सुन कर खुश हुई| चलो अब गोद भराई शुरू करो हम और हमारे बच्चे को आपके आशीर्वाद की जरुरत है और ममता ने सोचा कि कैसे कहू इनको सौतेले ये बच्चे तो खुद के बच्चो से भी ज्यादा प्यार करते है मुझे और ममता ने अपने पति की और देखा जैसे कह रही हो कि आप से तो आपके बच्चे अच्छे है कितना सम्मान किया है |
                     शांति पुरोहित
                                  

विदेश मे शादी के मायने

                                                                                                                                                                                             आज सुबह ही दिव्या का फोन आया था , उसने अपनी सारी तखलीफ को भुला कर, अपनी जैसी मुसीबत मे फंसी हजारो  भारतीय लडकियों का विदेश मे जीवन बर्बाद ना हो ,उसके लिए वहां के स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N. G. O. खोला है | आज रमा बहुत खुश है , बेटी ने वो काम कर के दिखाया है,जिसकी उसने तो कभी कल्पना ही न की थी |
      रमा अपनी छोटी सी ग्रहस्थी मे बहुत खुश थी | पति विकास और एक प्यारी सी बिटिया दिव्या ही उसका परिवार था  रमा का| विकास के साथ प्रेम-विवाह हुआ था , ससुराल वालो ने बेटे -बहु को अपनाने से इंकार कर दिया था | कारण, वो ही सदियों पुरानी 'जाति -धर्म' की मानसिकता थी | रमा ब्राह्मण परिवार से थी, और विकास जैन धर्म को मानने वाला था |
      कॉलेज मे साथ पढ़ते थे, दोनों मे पहले दोस्ती हुई फिर प्रेम के बीज का अंकुरण हुआ,पल्वित हुआ और रमा और विकास ने घर वालो की रजामंदी के बिना ही शादी कर ली थी | दोनों को अपनी नहीं गृहस्थी बसाने मे ज्यादा परेशानी नहीं हुई, विकास एक बड़ी कंपनी मे मैनेजेर के पद पर कार्य करता था | पगार अच्छी थी | कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं हुई थी |
        समय अपनी गति से चलता रहा | पता ही नहीं चला कब तीन साल निकल गये,इसी दौरान रमा एक प्यारी सी बच्ची की माँ बन गयी थी | रमा का पूरा ध्यान अपनी बेटी दिव्या की देख -भाल मे लगा रहता था | विकास ने घर के काम -काज के लिए दो-दो नौकर रख लिए थे | घर के काम से रमा बिलकुल ही फ्री थी | विकास और रमा बहुत खुश थे | पर कुदरत ने रमा की ख़ुशी का वक़्त बहुत कम तय कर के रखा था | अचानक ही रमा की खुशियों को न जाने किसकी नजर लगी , उसका सब कुछ बर्बाद हो गया |
        विकास का कार दुर्घटना मे प्राणान्त हो गया | पल भर मे रमा का जीवन छिन्न -भिन्न  हो गया | पति के इस तरह बीच राह मे छोड़ कर जाने से रमा पत्थर सी निष्प्राण हो गयी | सामाजिक लोकाचार के बाद सब रिश्तेदार वापस चले गये ,तब रमा को अपनी बेटी दिव्या का ख्याल आया, की वो अकेली नन्ही सी जान के साथ कैसे जियेगी | रमा के पास कोई नौकरी भी नहीं थी | ससुराल मे तो उसे कोई अपनाएगा नहीं फिर भी उसने वहीं जाने का निर्णय किया |
        ' इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए पहले से ही बंद है,फिर क्यों आई हो अपना मनहूस साया लेकर यहाँ, चली जाओ वापस |,पहले हमारे बेटे को हमसे दूर किया और अब इस दुनिया से ही दूर हो गया | अब यहाँ क्या करने आयी हो | सास ने जली -कटी सुनाकर अपना दरवाजा बंद कर लिया | दुखी रमा ने वापस अपने घर जाना ही उचित समझा |
        रमा ने कुछ दिनों के लिए मम्मी -पापा के घर जाने का निश्चय किया | मम्मी के गले लगकर रमा बहुत रोई | मम्मी ने कहा ' रमा ये तुम्हारा ही घर है ,जब तक मन करे यही रहो, और मै तो कहती हूँ ,अब वहाँ अकेली रह कर क्या करोगी, हमारे पास ही रहो |, माँ के प्यार भरे स्पर्श से रमा के आर्त -मन को कुछ तो राहत मिली | भाभी तो रूखेपन से बस मुस्कराई भर थी, और रसोई मे चाय बनाने चली गयी | रमा को समझते देर ना लगी कि भाभी को मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा है |
        अभी कुछ दिन ही हुए रमा को यहाँ आये कि भाभी का हर छोटी -मोटी बात पर रमा को टोकना ,नीचा दिखाना चालू हो गया | रमा अनदेखा करती रही | पर आज तो रमा ने जो सुना,उसके बाद उसने मम्मी के घर से जाने का निश्चय कर लिया | भाभी भाई से कह रही थी कि ' आप अपनी बहन को यहाँ से जाने के लिए बोल दो ,ये जब से अपनी फूटी किस्मत लेकर यहाँ आई है ,मुझे अपनी चिंता होने लगी है | मुझे डर है कि कहीं आपको कुछ हो ना जाये |, इसके रहने ,खाने का खर्च हम वहन कर लेंगे ,आप तो इसको यहाँ से चलता करो |,
              भाई ने कहा 'कुछ दिन ही तो हुए है कितने बड़े दुःख से गुजरी है ,कुछ दिन बाद खुद ही चली जाएगी|,ये सब सुनकर रमा हैरान रह गयी ,जाने के लिए मम्मी को भी तो राजी करना होगा | सुबह चाय पीते हुए रमा ने मम्मी से कहा ' मम्मी अब मै अपने घर जाना चाहती हूँ , यहाँ इस उम्र मे आप पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहती |, मम्मी ने कहा क्यों ?  वहां कोई भी तो नहीं,किसके सहारे रहोगी |, 'नहीं मम्मी जाने दो ,और इससे पहले भाई उसे जाने का बोले, वो किसी तरह मम्मी को समझाकर अपने घर आ गयी |
          शाम को भाई ने रमा को घर मे नहीं देखा तो पत्नी से पूछा 'रमा कहाँ है ? 'चली गयी अपने घर अपने को कुछ कहना ही ना पडा ,चलो बला टली |, पत्नी ने खुश होते हुए कहा | बहु -बेटे की बाते सुनकर रमा की मम्मी के रमा के जाने का कारण समझ मे आ गया था | रमा अपने घर मे विकास की यादो के सहारे जीने की कोशिश करने लगी | विकास की कम्पनी ने रमा को सहानुभूति वश कम्पनी मे काम दे दिया था ,जिससे रमा का जीवन सुचारू रूप से चलने लगा
          अब रमा का सारा ध्यान अपनी बेटी दिव्या पर था, जो उसका एक मात्र जीने का सहारा भी थी | समय अपनी गति से चलता रहा | दिव्या अब बड़ी हो गयी, पढने मे वो कुशाग्र बुधि की थी | उसने ऍम ,बी .ए . किया | कॉलेज मे दिव्या का प्लेसमेंट मे एक बड़ी कंपनी मे जॉब का ऑफर आ गया था | पर रमा उसकी शादी करना चाहती थी | माँ -बेटी मे इस मामले मे बहुत बार बहस होती थी | दिव्या माँ को अकेला छोड़ कर शादी नहीं करना चाहती थी | रमा कहती ' दिव्या तेरे हाथ पीले करके तुझे अपने घर विदा करदू तो मे चैन से जी लुंगी अपना बाकि का जीवन |,
        रमा ने आखिर दिव्या के ना चाहने पर भी उसके लिए रिश्ते देखने शुरू किये | बहुत रिश्ते देखे ,पर कुछ रमा को पसंद नहीं आते ,तो कुछ को दिव्या नहीं पसंद आती थी |समय बीतता जा रहा था | रमा की चिंता बढती जा रही थी | दिव्या २७ वा साल पूरा करने वाली है | कोई भी रिश्तेदार रमा की मदद भी नहीं कर रहा था | सबका ये सोचना था कि माँ -बेटी की किस्मत अच्छी नहीं है ,कहीं हमारी खुशियों को भी ग्रहण ना लग जाये | रमा करे तो क्या करे! अब रमा के दिन -रात इसी चिंता मे बीतने लगे थे | दिव्या माँ के गले लगकर हमेशा बोलती थी कि 'मेरी शादी की चिंता छोड़ दो,मै आपके बुढ़ापे का सहारा बनुगी |,
            दिव्या के कॉलेज जाने के बाद रमा उदास बैठी थी, तभी फोन की घंटी बजी | रमा ने फोन उठाया ,हल्लो , सामने से कमला ताई की आवाज आई 'मै कमला अमेरिका से बोल रही हूँ ,
  आज हमारी याद कैसे आई , रमा ने बोला |
  दिव्या के रिश्ते के लिए मेरे देवर का बेटा संदीप कैसा रहेगा ,
  'वो जिसका परिवार अम्रतसर मे रहता है , रमा ने कहा |
  'हाँ ,वही, कमला ताई ने कहा |
 ' तुम चाहो तो अम्रतसर चले जाओ , हाँ ठीक है ,देखते है , रमा ने फोन कट किया |
        रमा के दिल मे विचार चल रहा था कि इतनी दूर सात समन्दर पार दिव्या का ब्याह करना ठीक रहेगा ?,
        दिव्या से बात की तो वो बोली ' विदेश मे रहने  वाले लडको पर मुझे तो भरोसा नहीं है , आपके पहचान वाले है, तो ठीक है | रमा को बात ठीक लगी, अम्रतसर जाकर संदीप के माता -पिता से मिली ,सब ठीक लगा ,दिव्या की संदीप के साथ शादी की बात पक्की हो गयी | दो माह बाद शादी हो गयी | रमा के कोई रिश्तेदार नहीं होने के कारण ,अम्रतसर जाकर एक सादे समारोह मे शादी कर दी | आखिरकार शादी के बीस दिन बाद दिव्या के अमेरिका जाने का समय आ गया |रमा ने नम आँखों से बेटी को विदाई दी | संदीप और कमला ताई को बेटी को प्यार से रखने की बात कह कर रमा अपने घर आ गयी |
     प्लेन की कुछ घंटो की यात्रा के बाद दिव्या 'अमेरिका के न्यूयॉर्क, शहर मे थी | संदीप का आलिशान घर और और उसका अपने प्रति इतना प्रेम देख कर ,दिव्या अपनी किस्मत पर बहुत खुश हो रही थी | संदीप रोज ऑफिस से जल्दी आ जाता, और दिव्या को बाहर घुमाने ले जाता था | करीब बीस दिनों तक संदीप उसे पार्टी,होटल आदि ले जाता रहा| शाम का खाना तो प्राय बाहर ही खा कर आते थे | दिव्या बहुत खुश थी |
          दिव्या की ख़ुशी ज्यादा दिन तक ना रही,आज संदीप ने दिव्या को साथ ले जाने से इंकार किया | दिव्या ने कारण जानना चाहा ,तो उसे गुस्सा आ गया दिव्या को डांटने लगा | फिर भी दिव्या ने जानना चाहा, तो सुनो संदीप ने कहा ' मैंने यहाँ की एक विदेशी लड़की से घर वालो को बिना बताये शादी कर ली है,हमारे एक बच्चा भी है, तुमसे शादी की तो सिर्फ माँ -पापा को खुश रखने के लिए | और हाँ ,तुम अपने घर दिल्ली जाने का तो सोचना भी मत , तुम्हारा पासपोर्ट मेरे पास ही रहेगा, मै नहीं चाहता मेरे घरवालो को इस बात की भनक भी लगे | तुम्हे यहाँ सब कुछ मिलेगा तुम्हे किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी , इतना कहकर वो अपनी पहली पत्नी के घर चला गया | दिव्या को ये सब सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके शारीर से रक्त का एक -एक कतरा निकाल लिया हो और वो निष्प्राण हो गयी | उसे अपनी दुनिया उजडती हुई साफ दिखाई दे रही थी |
        हैरान,परेशांन दिव्या ने कुछ देर बाद अपने अंदर इस मुसीबत से लड़ने की हिम्मत पैदा की, दिव्या एक बहुत ही समझदार और संस्कारी लड़की थी | पति के इस कृत्य मे चुप रहकर अन्याय सह कर उसे बढ़ावा देने वालो मे से नहीं थी | अब उसे अपना आत्म सम्मान बचाना था | उसने पहला कदम बढ़ाया, संदीप से बात करने का कोई फायदा नहीं था | उसने पुलिस  -स्टेशन जाकर, संदीप पर धोखे से शादी करने के लिए ऍफ़ .आई .र . लिखवा दी | संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया | संदीप ने सोचा नहीं कि दिव्या उसके साथ ऐसा कुछ करेगी |
          पुलिस ने दिव्या का पासपोर्ट भी संदीप से लेकर दिव्या को दे दिया ,और कहा 'आप इंडिया जाना चाहो तो हम सरकारी खर्च पर भेज सकते है |, दिव्या ने कहा 'नहीं जाना अभी तो मुझे बहुत काम करने है | संदीप को सबक सिखाना है |
          दिव्या ने कुछ स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N.G.O.खोला , जिसके अंतर्गत तमाम भारतीय लडकियों की मदद की जा सके, जो उसकी तरह मुसीबत मे फंस जाये | पुलिस ने भी अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया | इससे भारतीय लडकियों का जीवन बर्बाद होने से बच जायेगा |
        संदीप की विदेशी पत्नी को उसके बारे मे ये सब पता चला तो उसने उसे छोड दिया | संदीप को एक साल की सजा हुई | एक साल की सजा काट कर जब संदीप वापस आया , तो दिव्या उसके घर से जाने लगी ,उसने अपना अलग घर ले लिया था, वो एक कम्पनी मे मार्केटिंग मैनेजर की हेसियत से काम करती थी | संदीप ने उसे रोका और कहा ' दिव्या मुझे छोडकर मत जाओ, अब मै कहाँ जाऊंगा ? जूलिया तो मुझे पहले ही छोडकर चली गयी है | अब कभी तुम्हे धोखा नहीं दूंगा |, पर दिव्या ने उसके साथ रहने से साफ इंकार कर दिया और चली गयी | इस तरह संदीप को दोनों औरतो ने छोड़ दिया , दोनों ने अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की | किसी ने सच ही कहा है, जैसी करनी वैसी भरनी |
               शांति पुरोहित  
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

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शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

स्वीकारोक्ति एक पुरुष की

स्वीकारोक्ति एक पुरुष की
मेरे नाम से मुझे
जब पुकारती हैं एक लड़की
और तहाती हैं मेरे धुले हुए कपडे
झुन्झुलाता हुआ मैं
झिड़क देता हूँ अक्सर
और तब भी खामोश रहती हैं
बिना किसी उम्मीद के
प्यार में होती हैं न वोह !!!
और मैं उदास सा करवट बदलता हुआ
याद करता हूँ सिर्फ एक जिस्म
जिस्म जो दिन रात \ मेरे इर्द गिर्द
घूमता हैं एक निश्चित परिधि में
बिना अपना ख्याल किये!!!!
यह लडकियां कितनी कमजर्फ होती हैं
कमबख्त होती हैं
कितना भी दुत्कारो और फिर पुचकारो
सावन की झड़ी सी बरसती रहती हैं
बस एक पल के सानिध्य के लिय
माँ कहती थी !!!
लडकिया ख्याल भर नही होती
एक उम्र भर होती हैं
और इस एक उम्र में जी लेती हैं
आने वाली सात उमरो को
सिर्फ सात फेरो का खेल खेलकर
पैरो के तले पर गुदगुदी से
खिलकर हसने वाली लड़की
रो देती हैं जरा सी बात
अनसुनी करने पर
और अक्सर
लडकिया भूल जाती हैं
बड़ी बड़ी बाते
और सीने से लगा
छोटी छोटी बाते
घुलती रहती हैं / शक्कर सी
राइ का पहाड़ बना रोती हैं/ लिपट कर
पहाड़ जैसे मुसीबतों से
पार पा जाती हैं /अक्सर चुपचाप सी
दम्भी अहंकारी आजाद होने का नाटक करती
नही समझ पाती हैं इरादे
अपने वैध / पुरुष साथी के
और
अक्सर माँ सी पिघल जाती हैं
ओर
एक जायज माँ बन जाने को
क्या क्या नही कर जाती लडकिया
और बिस्तर पर पढ़ी सलवटो सी
सहम जाती हैं
फिर तड़पती हुयी
उम्र भर निभाती हैं
रिश्ता
रिसता हुआ भी
यह कमबख्त लडकिया …..नीलिमा शर्मा @

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

HAPPY BIRTHDAY AMITABH BACHCHAN JI .

बमुश्किल दुनिया का ऐसा नसीब होता है ,
ख्वाब इतना हकीकत के करीब होता है .
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निशाना लगता है जिसका हमेशा मंजिल पर ,
सफलता के शिखर पर भी गरीब होता है .
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हयात गुजरी है जिसकी ज्वार-भाटों सी ,
निशाखातिर हुनर का ही नकीब होता है .
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अदाकारी का कोई पहलू अछूता जिसने न छोड़ा ,
कला-मर्मज्ञ ये काबिल अदीब होता है .
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बख्तावर है वतन अपना नवाज़ा जिसको कुदरत ने ,
हरिवंश न हिन्द समूचा इनसे खुशनसीब होता है .
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जन्मदिन बहुत मुबारक हो कहे बच्चन से ''शालिनी'',
शान भारत की ये इन्सां मुखालिफ न रकीब होता है .
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शब्दार्थ-नकीब-चारण/ वंदी,निशाखातिर-मन में होने वाला पूर्ण विश्वास .

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .


  Thai Massage
फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .

करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत  के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .


मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .


फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .

हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,
नादानी करें औरतें ,देती हमें दुत्कार .


माँ का करूँ तो बीवी को बर्दाश्त नहीं है ,
मिलती हैं लानतें अगर बेगम से करूँ प्यार .

बन्दर बना हूँ ''शालिनी ''इन बिल्लियों के बीच ,
फ़रजानगी फंसने में नहीं ,यूँ होता हूँ फरार .




     शालिनी कौशिक
           [WOMAN ABOUT MAN]
 

शब्दार्थ :फरमाबरदार -आज्ञाकारी ,बेजार-नाराज ,मक़बूलियत -कबूल किये जाने का भाव ,मनुहार-खुशामद,मनसबी-औह्देदारी ,फरहत-ख़ुशी ,फैयाजी-उदारता मकसूम -बंटा हुआ .फर्ज़ंगी -बुद्धिमानी .