रविवार, 18 मई 2014

याचना

 ''मेंम साब, पति अपाहिज ना हुआ होता तो वो कभी मुझे काम करने नहीं देता|, रमिया ने दुखी होते हुए कहा| रमिया का पति दिन भर धेले से माल धोने का काम करता था | एक बार ऑटो रिक्शा ने उसको टक्कर मारदी | जिससे उसका एक पैर बुरी तरह जख्मी हुआ |पैर को काटना पडा |
दो बच्चो और पति की जिम्मेदारी अब रमिया के कन्धो पर थी |
    आलिशान घरो में रहने वालो के पास काम मागंने के सिवा रमिया के पास अब कोई चारा नहीं था |मिसेज शर्मा ने उस पर तरस खाते हुए काम पर रखा | जब पैसो की बात आयी तो कहा ''फ़िक्र मत कर तेरी मेहनत का रखूंगी नहीं |लेकिन जब महीने के अंत में रमिया ने पैसे मांगे तो उसके हाथ पर कुछ दस -दस के नोट रखे| रमिया ये देख कर सकते में आ गयी | बोली ''मेम साब ,इतना बड़ा घर ,इतना काम और इतनी कम मजूरी,इतने से मै किस -किस का पेट भरुंगी '' मिसेज राही ने झल्लाते हुए कहा ''लेने है तो लो वरना निकलो यहाँ से मै कोई और बाई रख लुंगी |,, दुसरे घर की मालकिन ने बताया '' मिसेज राही सब बाई के साथ ऐसा ही करती है| रमिया को दूसरा काम मिल गया पर उसके बाद मिसेज राही को कोई बाई नहीं मिली |क्युकी रमिया ने सब बाई से मिलकर अपना एक संगठन बना लिया था |

पुरुष के रूप....

हुह आज थोड़ा भटकी हुई सी हू 
असमंजस में हू कि क्या लिखूँ ??
एक दिन ब्लॉग्स पढ़ते-२ मेरी आँखों के सामने 
वुमन अबाउट मैन टाइटल नाम का ब्लॉग आ गया था 
इसकी दो लाइन्स ही मेरे दिल पर गहरा असर कर गयी थी 
पुरुष मात्र पुरुष नहीं होता .एक नारी की दृष्टि से वह पिता है ,भाई है ,पति है ,पुत्र है ,जीजा ,बहनोई ,देवर,जेठ,सहयोगी,सहकर्मी और न जाने कितनी भूमिकाओं में नारी जीवन को प्रभावित करता है पुरुष
शालिनी मैम की लिखी यह दो लाइन्स ही कितना कुछ कह जाती हैं 
उस दिन मुझे वो पुराने दिन याद आ गए जब 
मैसेजेस में सवाल पूछे जाते थे दोस्ती क्या हैं ,प्यार क्या हैं ??etc 
उन्हीं दिनों किसी ने और दो सवाल पूछे थे 
पहला- लड़कियाँ क्या हैं ??
उम्र बहूत कम होने की वजह से जवाब भी बच्चों जैसा ही सूझ रहा था कि 
मैंने कह दिया -it`s eighth wonder of the world......
दूसरा-पुरुष क्या हैं ??
हम्म बहूत मुश्किल सवाल हैं ना 
कहाँ आसान हैं इंसानों को परिभाषाओं में बाँधना ??
थोड़ा सोच विचार करके फिर एक दृष्टि अपने परिवार 
पर डालने के बाद मैंने जवाब दिया कि -
when i look at my father n brother then
मुझे लगता हैं कि पुरुष दूसरों की मदद करने वाले ,
अपनों की फ़िक्र करने वाले व उस खुदा के बनाये सबसे अच्छे इंसान होते हैं :-)
गुस्सा व नाराजगी लाज़मी हैं पर हर किसी बात के लिए 
केवल पुरुष को जिम्मेदार ठहरना भी तो ठीक नहीं हैं 
हमें बगावत करनी हैं तो पुरुषों के प्रति क्यों ??
बगावत गलत धारणाओं व गलत चीज़ों के प्रति होनी चाहिए ना :-)
हम जिस पुरुष को पिता के रूप में दुनिया का सबसे कठोर इंसान समझते हैं 
क्या पता वो अकेले में अपनी आँखों के कितने सैलाब बहाता होगा 
वो खुलकर हमें पुचकार नहीं पाते हैं ,माँ की तरह लाड़ नहीं लुटाते हैं 
तो क्या वो इंसान हमसे प्यार करता ही नहीं :(
एक भाई लड़ लेता हैं तो क्या हुआ 
हमें आग़े बढ़ने की ज़िद्द भी तो वो ही सिखाता हैं 
एक पति हमेशा पत्नी को पीछे रहने की नसीहत देता हैं तो क्या हुआ 
बराबर का हक़ व अधिकार भी वो ही तो देता हैं 
एक प्रेमी……………हेहेहे यही भी नहीं कह सकती कि 
सबसे कमजोर होता हो या कुछ नहीं सिखाता हो 
आपको जीने का अंदाज सिखाता हैं, दर्द को महसूस करना सिखाता हैं 
अरे वो सब सीखा देता हैं जो जिंदगी के बीस सालों में आपके पेरेंट्स तक नहीं सीखा पाते हैं:-)
हम्म टॉपिक से थोड़े सटक गए उफ्फ...................
अब मुझसे कोई यह कहता हैं कि तुम एक लड़की हो 
तब मैं थोड़ा गंभीर होकर केवल इतना ही कहती हू कि मैं एक इंसान हू:-)
छोड़िए भी जरा लड़की व लड़का की सोच से थोड़ा ऊपर उठकर 
इंसानो की दुनिया के बारे में भी विचार कर लीजिए जी :!!!!!!!
पुरुष का प्यार औरत के जज्बातों से थोड़ा अलग होता हैं पर कम नहीं :-)
सही हैं पुरुष को मात्र पुरुष रूप में ही मत देखिए 
वो भी हर रूप में एक बेहद अच्छा इंसान हैं :-)

सोमवार, 5 मई 2014

पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,

आज की सच्चाइयाँ कुबूल कीजिये सभी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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नारी को है नारी से ईर्ष्या डाह द्वेष
नारी रोके नारी की उन्नति राहें सभी ,
अपने से आगे किसी को ये करे नहीं पसंद
बढ़ चले अगर कोई ,सुलगे चिंगारी दबी .
खुद यदि है शादमा रखे खुश सबको तभी
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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पर पुरुष की असलियत इससे भी है भयावह
डर है अपनी जात से जिसमे वासना भरी ,
वहशी बनके कर रहा है पुरुष ही दरिंदगी
कैसे ऐसी नज़र से बचाये अपना घर अभी .
पुरुष ही पुरुष से बचके भागता फिरे,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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नारी अपनी रंजिशों को खुद से ही संभालती
पुरुष बनता दुश्मनी में इसको ही अपनी छुरी ,
पुरुष बनाके खेल इसकी ज़िंदगी से खेलता
खिलौना बनती नारी खुद ही दासी बन इसकी पड़ी .
पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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शालिनी कौशिक
[woman about man]