शनिवार, 28 दिसंबर 2013

बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं

 
Farooq Abdullah scared of women!
अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
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आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
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बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
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खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
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नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]

2 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़े चलो !

Admin ने कहा…

समाज अब भी औरतों को कमजोर समझता है और अपनी गलती का ठीकरा उन्हीं पर फोड़ देता है। मजे की बात ये है कि जब औरतें हिम्मत से आवाज़ उठाती हैं तो वही लोग उन्हें बदनाम करने लगते हैं। असली ताकत तो नारी की हिम्मत और जज़्बे में है, जो हर बंदिश को तोड़कर आगे बढ़ती है।