रविवार, 24 मार्च 2013

शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .

शख्सियत होने की सजा भुगत रहे संजय दत्त :बस अब और नहीं .
   1993 Mumbai Bomb Blast Case: Sanjay Dutt will file appeal against the conviction
जमील मानवी के शब्दों में -
''तेरी हथेली पर रखा हुआ चिराग हूँ मैं ,
तेरी ख़ुशी है कि जलने दे या बुझा दे मुझे.''
शख्सियत होना और एक चिराग होना एक ही बात है. हर कोई चाहता है कि मैं एक कामयाब इन्सान बनूँ और अपने खानदान का चश्म-ओ-चिराग और दोनों ही स्थितियां ऐसी हैं जिसमे ऐसी चाह रखने वाला ऐसा जलता है जैसे दिया और ये चाहत उसे भीतर तक भस्म कर डालती है भले ही बाहर से वह कितना ही रोशन दिखाई दे भीतर से वह खत्म हो चुका होता है .कुछ ऐसी ही विडम्बना से भरा है संजय दत्त का जीवन .
      साल १९९२ अयोध्या कांड मुंबई के लिए तो भयावह साबित हुआ ही साथ ही दुखदायी कर गया सुनील दत्त का जीवन और भी ,जो कि पहले से ही संजय दत्त की जीवन शैली से आजिज था .अपनी माँ नर्गिस की असमय मृत्यु से संजय दत्त इतने भावुक हुए कि नशेबाज हो गए और बाद में अपने पिता की मदद की प्रवर्ति के कारण कानून तोड़ने वाले और ये बहुत भारी पड़ा सुनील दत्त पर लगातार मिलती धमकियाँ सुनील दत्त को तो नहीं डरा सकी किन्तु ३३ वर्षीय यह युवा अपनी दो बहनों और अपनी पत्नी व् बच्ची के कारण  डर गया और उसने कानून को अपने हाथ में लेने का मन बना लिया किसी भी तरफ से सुरक्षा की गारंटी न मिलना भी इसकी एक मुख्य वजह रहा और इसी डर के कारण  सनम फिल्म के निर्माता हनीफ और  समीर  हिंगोरा की मदद से एक एके -५६ रायफल और एक पिस्टल रख ली लेकिन नहीं जानते थे कि इन्हें रखकर वे अपने परिवार की सुरक्षा तो क्या करेंगे उलटे उनके दिल का दर्द ही बन जायेंगे.
      लगभग १८ महीने जेल में बिता चुके संजय के लिए २००६ में टाडा अदालत ने स्वयं कहा था -''संजय एक आतंकवादी नहीं है और उन्होंने अपने घर में गैर कानूनी रायफल अपनी हिफाजत के लिए रखी थी ''इसके बाद से उन पर टाडा के आरोप ख़त्म कर दिए गए और उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत ६ साल की सजा सुनाई गयी और अब २१ मार्च को जो घटाकर ५ साल कर दी गयी जो १८ महीने जेल में काटने के कारण साढ़े तीन साल रह गयी है .
   यह सही है कि संजय दत्त का अपराध माफ़ी योग्य नहीं है इस तरह यदि हर आदमी हथियारों को अपने घर में स्थान दे अपनी हिफाजत का स्वयं इंतजाम करने लगा तो कानून व्यवस्था डगमगा जाएगी किन्तु संजय दत्त एक आम इन्सान नहीं है एक शख्सियत हैं और इस हैसियत के नाम पर उन्हें क्या मिला मात्र दर्द और असुरक्षा का भाव .जहाँ उन जैसी शख्सियत की सुरक्षा की गुहार का यह अंजाम होता है वहां आम आदमी कैसे अपनी सुरक्षा का भरोसा कर सकता है ?
    एक आदमी जो कि आम है फिर भी स्वतंत्र है क्योंकि वह यदि हथियार रखता है तो किस को पता नहीं चलता पता केवल तभी चलता है जब वह उससे किसी वारदात को अंजाम देता है और बहुत सी बार किसी और का लाइसेंस किसी और के काम भी आ  जाता है अर्थात पिस्टल किसी की और प्रयोग किसी और ने की चाहे लूट कर चाहे चोरी से किन्तु यहाँ तो ऐसा कुछ हुआ ही नही यहाँ तो ऐसा कोई साक्ष्य नही कि संजय दत्त ने उन हथियारों से कोई गलत काम किया हो या उनके हथियार का कोई गलत इस्तेमाल हुआ हो और फिर सुप्रीम कोर्ट तो पहले ही उन्हें अच्छे चाल-चलन के आधार पर जमानत  दे चुकी  है .
   संजय दत्त के अपराध में सजा में माफ़ी नहीं दी जाती किन्तु सजा में विलम्ब को तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही न्याय मान चुकी है .टी.व्.वाथेसरन  बनाम तमिलनाडु राज्य ए.आई.आर.१९८३ सु.को.३६१ में उच्चतम न्यायलय ने कहा -''कि जहाँ अभियुक्त  का मृत्यु दंड दो वर्षों से अधिक विलंबित रखा गया हो ,वहां उसके दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जाना उचित है क्योंकि इतनी लम्बी अवधि तक अभियुक्त पर मृत्यु की विभीषिका छाई रहना उसके प्रति अन्याय है तथा इस प्रक्रियात्मक व्यतिक्रम के दुष्प्रभाव के शमन के लिए एकमात्र उपाय मृत्यु दंड को घटाकर आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया जाता है।''
    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम लल्लू ए.आई.आर १९८६ सु.को.५७६ के वाद में यद्यपि अभियुक्त ने ग्राम प्रमुख का सर धड से अलग करके उसकी निर्मम हत्या की थी परन्तु मृत्यु दंडादेश पारित किये जाने के बाद दस वर्ष की लम्बी अवधि बीत जाने के कारण उसके मृत्यु दंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया .
     ऐसे में जब प्रत्येक मामले में सुप्रीम कोर्ट वाद के तथ्यों व् परिस्थियों को सामने रख अपने निर्णय करता है तो आज जब हम दांडिक मामलों में सुधारात्मक  प्रक्रिया को अपनाने की ओर बढ़ रहे हैं ,साथ ही हम गाँधी के देश के रहने वाले हैं जो कहते थे कि ''पाप से घृणा करो पापी से नहीं .''और जब पूर्व न्यायाधीश मारकंडे काटजू भी संजय दत्त को माफ़ी दिए जाने को कह रहे हैं तब संजय का तब से लेकर अब तक का कोई अपराधिक इतिहास न रहना और इस मामले में भी न उनके हाथ न हथियार का खून से रंग होना और उनका अच्छा चाल-चलन उनके लिए माफ़ी का ही विधान करता है .
     संजय दत्त जैसे व्यक्ति को उस जेल की काल कोठरी में भेज जाना सुधार की ओर बढती हुई बहुत सी अन्य जिंदगियों को भी अपराध  की ओर ही धकेल सकता है जो आज वार्ता व् समर्पण के जरिये अपराध की राह छोड़ फिर से जीवन यापन की ओर ही बढ़ रही है .
   ऐसे में यही सही होगा कि संजय दत्त की वह १८ महीने की जेल और सजा मिलने में इतने लम्बे विलम्ब को आधार मानकर उन्हें माफ़ी दे दी जाये और एक जिंदगी जिससे जुडी कई और जिंदगियां जो आज खुशहाली की राह पर कदम बढ़ा रही हैं उनके पांव में बेड़ियाँ न डाली जाएँ .साथ ही ये कहना कि कानून सबके साथ समान होना चाहिए तो ये तो संजय दत्त भी कह सकते हैं हमारी उस प्रतिक्रिया पर जो हम अन्य हथियार उठाये भटके लोगों द्वारा हथियार छोड़ उनके  मुख्यधारा  में  आने पर देते हैं फिर संजय दत्त को उनसे अलग क्यों रखा जा रहा है क्या हम भूल गए है कि यदि सुबह का भटका शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते .जब हम अन्य अपराधियों के मुख्यधारा में लौटने का समर्थन करते हैं तो यही हमें संजय दत्त के मामले में भी करना चाहिए और वैसे भी संजय दत्त मात्र आर्म्स एक्ट के दोषी हैं भारतीय दंड सहिंता के नहीं टाडा के नहीं लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि संजय दत्त एक शख्सियत हैं आम आदमी नहीं .के,एन,कौल के अनुसार -
    ''खुद रह गया खुदा  भूल गया ,
     भूलना किसको था क्या भूल गया ,
      याद हैं मुझको तेरी बातें लेकिन ,
     तू ही खुद अपना कहा भूल गया .''

            शालिनी कौशिक
                  [कौशल]

8 टिप्‍पणियां:

रश्मि शर्मा ने कहा…

बढ़ि‍या आलेख..मेरा भी मानना है कि संजय दत्‍त को माफ़ी दे दी जाए।

कविता रावत ने कहा…

'खुद रह गया खुदा भूल गया ,
भूलना किसको था क्या भूल गया ,
याद हैं मुझको तेरी बातें लेकिन ,
तू ही खुद अपना कहा भूल गया .
...बढ़ि‍या आलेख..

Shalini kaushik ने कहा…

aabhar rashmi ji aur kavita ji

Rohit Singh ने कहा…

संजय दत्त को माफी दी जाएगी तो बात उस जेबुन्निसा नाम कि महिला कि भी करनी पड़ेगी जिसे दस साल की सजा दी गई है। उसका अपराध भी सिर्फ इतना ही था कि उसके घर पर हथियार लाए गए औऱ फिर कहीं ओऱ ले जाए गए। ऐसा ही अनेक गरीबों के लिए भी करना होगा। हां ये बात सच है कि संजय दत्त एक प्रसिद्ध हस्ती हैं इसलिए वो एक उदाहरण बन सकते हैं भला इंसान बनने की। पर ये भी सच है कि माफिया सरगनाओं से उनकी फोन काल की डिटेल के बाद भी उनपर कोई अपराधिक मुकदमा नहीं चलाया गया है। आप वकील हैं इसलिए बेहतर जानती होंगी कि इस तरह के सबूत मिलने पर सजा होती है या नहीं। उदारहण के तौर पर नक्कीरण के उस संपादक को याद कीजिएगा जिसे सिर्फ वीरप्पन का इंटरव्यू छापने के अधार पर गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था।

देवदत्त प्रसून ने कहा…

होली की वधाई के साथ-
भोलेपन में फँस गया,'भंवरा 'भ्रम के जाल' |
धोखा खाया भूल से , फंसा काल के गाल ||

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

sanjay datt ko mafi dena sarvtha anuchit hi hoga ,,,,loktantr me kanoon sab ke liye ak hona chahiye ,,,,prabhavshali aalekh ke liye aabhar Kushik ji ,

Rohit Singh ने कहा…

होली की हार्दिक बधाई हो शालिनी जी.....इसी तरह लोगो का मार्गदर्शन करते रहा करें....

Rajesh Kumari ने कहा…

कानून भावनाओं में नहीं बहता ये आपसे अधिक कौन जान सकता है वरना यहाँ तो कई-कई खून करके भी खुले घूमते हैं शानदार आलेख, नए ब्लॉग के लिए शुभकामनायें जुड़ गई हूँ आपके ब्लॉग से