मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अब मिलेगी हमें भी आजादी......

सबको नए वर्ष की बहुत-२ हार्दिक शुभकामनाएं :-)
बाकी बीते सालों की तरह 2014 की भी शुरुआत हो ही गयी हैं 
पता नहीं क्यों पर इस बार मेरा भी मन नये साल को सेलिब्रेट करने का कर रहा हैं 
शायद हम पीछे के कुछ पन्नों को पलट कर देखे तो हम पाएंगे कि 
1947 को भी 1st जनवरी को बुधवार ही था 
थोड़ा आगे बढे तो इस बार भी 26th जनवरी  व 15th अगस्त 
उसी ही दिन सेलिब्रेट किये जायेंगे १९४७ में जिस दिन किये गए थे 
खैर देखना दिलचस्प तो तभी होगा जब सच में कुछ बदलेगा.... 
1947 में हमें अंग्रजों से आजादी मिली थी 
उम्मीद करते हैं इस बार हमें अपनों (भ्रष्टाचार ,रिश्वत ,etc )से आजादी मिले 
उम्मीद करते हैं कि इस बार तो सच्चे भारत का निर्माण हो 
हां लड़कियां भी तो भला अभी तक कहाँ आज़ाद हो पायी हैं 
बांधकर हमारे पैरों में बेड़ियाँ कहते हो 
अब तुम आज़ाद हो जाओ उड़ो 
इजाजत नहीं पैरो को फैलाने और फड़फड़ाने की भी 
और कहते हो कि उड़ सकती हो ???????
बताओ कैसे ???????
हर कोई उड़ने की चाह रखता है तो फिर
पुरुषों को नारी का उड़ना गवारा क्यों नहीं ????
अगर आज हमारे देश में नारी बेबस ,लाचार
मजबूर और लावारिश हैं तो
सच पुछो अपने दिल से कि क्या हमारा देश
आजाद हैं ?????                                           
मैं कदापि इसे आजादी नहीं मानती हू
आज न्यूज़ पेपर में हर रोज यही न्यूज़ क्यूँ आती हैं कि
यहाँ इस औरत की हत्या कर दी गयी
वहाँ उस लड़की का अपहरण कर लिया गया क्यूँ आखिर क्यों ??????????
अगर लोग हर रोज ऐसी घटनाओं को अंजाम देते रहे तो
हम भला कहा आजाद हैं ?????
आम लड़कियों का तो इन घटनाओं को
सुनकर घर से बहार निकलना भी दुर्लभ हो जायेगा !!!!!!!!!
आज हम चाहे किसी भी केस को उठाकर देख ले
चाहे भंवरी देवी हत्याकांड या अनुराधा बाली (फिज़ा )
का केस हो या फिर गीतिका हत्याकांड हो ?????
हर एक केस में औरत को  ही कीमत चुकानी पड़ी हैं और वो
भी अपनी जान गवांकर :-(
इन लोगों को कतई हक नहीं है कि यह औरत को
सजा-ए-मौत दे और
हरेक केस में औरत का ही मर्डर क्यों हुआ हैं या फिर
औरत ने ही आत्महत्या क्यूँ की हैं ????????
(यह मेरे ब्लॉग की पोस्ट नारी मेरी डायरी से कॉपी किया गया हैं )
खैर शायद २०१४ हमें भी आज़ाद कर जाये क्या पता 
आसमां अभी और भी ऊँचा हैं :-)



सारिका !!!!!!

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं

 
Farooq Abdullah scared of women!
अबला समझके नारियों पे बला टलवाते हैं,
चिड़िया समझके लड़कियों के पंख कटवाते हैं ,
बेशर्मी खुल के कर सकें वे इसलिए मिलकर
पैरों में उसे शर्म की बेड़ियां पहनाते हैं .
……………………………………………………………………
आवारगी पे अपनी न लगाम कस पाते हैं ,
वहशी पने को अपने न ये काबू कर पाते हैं ,
दब कर न इनसे रहने का दिखाती हैं जो हौसला
बदचलन कहने को ये मुंह खुल जाते हैं .
…………………..
बुज़ुर्गी की उम्र में ये युवक बन जाते हैं ,
बेटी समान नारी को ये जोश दिखलाते हैं ,
दिल का बहकना दुनिया में बदनामी न फैले कहीं
कुबूल कर खता बना भगवान बन जाते हैं .
……………………………………….
खुद को नहीं समझके ये सुधार कर पाते हैं ,
गफलतें नारी की अक्ल में गिनवाते हैं ,
कानून की मदद को जब लड़कियां बढ़ाएं हाथ
उनसे बात करने से जनाब डर जाते हैं .
…………………………………………………
नारी पे ज़ुल्म करने से न ये कतराते हैं,
बर्बरता के तरीके नए रोज़ अपनाते हैं ,
अतीत के खिलाफ वो आज खड़ी हो रही
साथ देने ”शालिनी ”के कदम बढ़ जाते हैं .
………………………………….
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .

Muslim bride and groom at the mosque during a wedding ceremony - stock photo
फिरते थे आरज़ू में कभी तेरी दर-बदर ,
अब आ पड़ी मियां की जूती मियां के सर .
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लगती थी तुम गुलाब हमको यूँ दरअसल ,
करते ही निकाह तुमसे काँटों से भरा घर .
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पहले हमारे फाके निभाने के थे वादे ,
अब मेरी जान खाकर तुम पेट रही भर .
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कहती थी मेरे अपनों को अपना तुम समझोगी ,
अब उनको मार ताने घर से किया बेघर .
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पहले तो सिर को ढककर पैर बड़ों के छूती ,
अब फिरती हो मुंह खोले न रहा कोई डर .
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माँ देती है औलाद को तहज़ीब की दौलत ,
मक्कारी से तुमने ही उनको किया है तर .
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औरत के बिना सूना घर कहते तो सभी हैं ,
औरत ने ही बिगाड़े दुनिया में कितने नर .
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माँ-पिता,बहन-भाई हिल-मिल के साथ रहते ,
आये जो बाहरवाली होती खटर-पटर .
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जीना है जो ख़ुशी से अच्छा अकेले रहना ,
''शालिनी ''चाहे मर्दों के यूँ न कटें पर .
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शालिनी कौशिक

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा

पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा
I am not resigning, says Justice AK Ganguly, indicted in sexual harassment case
महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है किन्तु क्या इसका साफ तौर पर यह मतलब लगा लेना चाहिए कि पुरुष के अशक्त होने का दौर आरम्भ हो चुका है ?क्या वास्तव में महिला तभी सशक्त हो सकती है जब पुरुष अशक्त हो फिर क्यूँ ये कहा जाता है कि ये दोनों एक ही रथ के दो पहिये हैं ?
आज हर ओर स्त्री पर हो रहे अन्यायों को लेकर ही विरोध के झंडे बुलंद किये जा रहे हैं ,होने भी चाहियें ,स्त्री आरम्भ से लेकर आज तक शोषण का शिकार रही है किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि मात्र वही शोषण पीड़ित है ,शोषण तो पुरुषों का भी होता आया है .जैसे पुरुषों ने महिलाओं का शोषण किया वैसे ही महिलाओं ने भी पुरुषों को नहीं बख्शा .सूपर्णखा भी एक नारी थी जिसने अपनी दुर्भावना के पूरी न होने पर सम्पूर्ण लंका को युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया .नारी जाति में आज भी ऐसी कलां कथा मौजूद हैं जो कानून का दुरूपयोग कर कभी पुरुष को कभी दहेज़ में कभी छेड़छाड़ में तो कभी बलात्कार के मिथ्या आरोप में फंसा रही हैं मैं नहीं कहती कि जो आरोप अभी हाल ही में प्रतिष्ठित शख्सियतों पर लगाये गए हैं वे दुर्भावना से प्रेरित होकर लगाये गए हैं किन्तु कानून सबूतों और गवाहों के बयानों पर आगे की कार्यवाही करता है और उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचता है .
अभी हाल ही में हुए दो मामले प्रतिष्ठित व्यक्तियों से जुड़े हैं ,तरुण तेजपाल के मामले में तो मामला तरुण तेजपाल द्वारा अपने अपराध की स्वीकारोक्ति करने पर लगभग सुलझ गया किन्तु जस्टिस गांगुली पर लगे आरोप और तीन सदस्यीय पैनल की रिपोर्ट उनकी अपराध में संलिप्तता साबित नहीं करती और जब तक यह संलिप्तता साबित न हो या जस्टिस गांगुली स्वयं अपना अपराध स्वीकार न कर लें उन्हें अपराधी मानना और पश्चिमी बंगाल के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से उनका इस्तीफा मांगना गलत है .

लोकसभा में गूंजा जस्टिस गांगुली का मामला

इस तरह तो कोई भी किसी पर आरोप लगा दे और स्वयं के नारी होने का लाभ उठाते हुए पुरुष को शर्मसार कर दे यह गलत ही कहा जाना चाहिए .मात्र आरोप किसी को अपराधी नहीं बनाता और पहले भी ऐसे मामले आये हैं जिसमे साजिश करके सही लोगों से उनके पद छीने गए हैं इसलिए सही जाँच ज़रूरी है .
और सबसे बड़ी बात यह कि यदि स्त्री को सम्मान से जीने का अधिकार है तो पुरुष को भी गरिमामय वातावरण अपने सही आचरण पर मिलना ही चाहिए क्योंकि यदि सारी नारी दुष्टा नहीं हैं तो सभी पुरुष भी तो कलंकित नहीं हैं .इसलिए अपराध साबित होने से पहले इस्तीफे की मांग किया जाना व्यर्थ का प्रलाप है और यह बंद होना चाहिए .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN]

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

औरत :आदमी की मात्र गुलाम

Hanging_dead : Suicide. Goth girl. Stock Photo

अभी अभी एक नए जोड़े को देखा पति चैन से जा रहा था और पत्नी घूंघट में ,भले ही दिखाई दे या न दे किन्तु उसे अब ऐसे ही चलने का अभ्यास करना होगा आखिर करे भी क्यूँ न अब वह विवाहित जो है जो कि एक सामान्य धारणा के अनुसार यह है कि अब वह धरती पर बोझ नहीं है ऐसा हमारे एक परिचित हैं उनका कहना है कि ''जब तक लड़की का ब्याह न हो जाये वह धरती पर बोझ है .''
मैंने अपने ही एक पूर्व आलेख ''विवाहित स्त्री होना :दासी होने का परिचायक नहीं '' में विवाह को दासता जैसी कुरीति से अलग बताया था किन्तु यह वह स्थिति है जिसमे विवाह संस्कार को वास्तविक रूप में होना चाहिए किन्तु ऐसा होता कहाँ है ?वास्तविक रूप में यहाँ कोई इस संस्था को रहने ही कहाँ देता है कहीं लड़के के माँ-बाप इस संस्कार का उद्देश्य मात्र लड़की वालों को लूटना -खसोटना और यदि देहाती भाषा में कहूँ तो'' मूंडना '' मान लेते हैं तो कहीं स्वयं लड़की वाले कानून के दम पर लड़के वालों को कानूनी दबाव में लेकर इसके बल पर ''कि दहेज़ में फंसाकर जेल कटवाएंगे ''उन्हें अपने जाल में फंसाते हैं और धन ऐंठकर ही छोड़ते हैं .कहीं लड़का ये सोचकर ''कि नारी हीन घर भूतों का डेरा ,नारी बिना कौन करेगा ढेर काम मेरा ''या ''इस लड्डू को जब जो खाये वह पछताए जो न खाये वह पछताए तो क्यूँ न खा कर पछताऊं ''किसी लड़की को ब्याहकर घर लाता है तो कहीं लड़की भी अपनी सामाजिक स्थिति को मजबूत करने के लिए,क्योंकि उसे समाज में ''बाप के ऊपर पहाड़ '' जैसी उक्तियों से नवाज़ा जाता है ,से मुक्ति पाने के लिए तो कहीं [कहने वालों और भुक्तभोगियों के अनुसार ]अपने कई स्वार्थ संजोये बहू बन आती है किन्तु जो सच्चाई हो कही वही जाती है और सच्चाई यही है कि आदमी औरत को अपनी गुलाम से बढ़कर कुछ नहीं समझता और अगर ऐसा नहीं है -
* तो क्यूँ एक जगह विवाह के समय लड़के द्वारा यह मांग कि लड़की अपने बड़े बड़े बालों को कटवाकर छोटा कर ले और एक जगह छोटे बालों वाली लड़की से अपने बाल बढाकर शादी करने की शर्त रखी जाती है ?
*क्यूँ शादी के बाद लड़की के रहन सहन ,पहनावे का बदल जाना ,मांग में सिन्दूर ,गले में मंगलसूत्र ,साडी या सूट हो किन्तु सिर ढका होना ,कहीं कहीं पूरे मुंह पर घूंघट पड़ा होना ,पैरों में बिछुए कहने को ये सब विवाहित होने की पहचान हैं ,स्त्री के सुहाग की रक्षा के लिए तो फिर पुरुष के रहन सहन पहनावे में कोई अंतर क्यूँ नहीं ?
*क्यूँ उसपर अपनी सुहागन की रक्षा का कोई दायित्व नहीं ,हाथ पैरों से तो उसकी पत्नी भी उसकी सेवा करती है तब भी उसपर इतने प्रतिबन्ध फिर सिर्फ उसके साथ को ही क्यूँ उसकी पत्नी की मजबूती माना जाता है उसे क्यूँ नहीं पहनने होते ये आभूषण आदि ?
* क्यूँ उसका विवाहित दिखना उसी तरह ज़रूरी नहीं जैसे नारी का विवाहित दिखना ज़रूरी है ?
* क्यूँ वही अगले जन्म में भी अपने पति को पाने के लिए व्रत रखे ,क्यूँ पति पर इस व्रत का दायित्व नहीं इसलिए तो नहीं क्योंकि वह धरती पर बोझ नहीं है उसका ब्याह हो या न हो वह तारणहार की भूमिका में ही है .अगर किसी नारी का पति किसी बीमारी या दुर्घटना वश मर जाये तो उसपर विधवा का ठप्पा लग जाता है और अगर किसी तरह उसका दूसरा विवाह होता है तो एक ''बेचारी ''कहकर ही किया जाता है किन्तु एक पुरुष भले ही दहेज़ के लिए स्वयं ही पत्नी की हत्या कर दे उसके लिए लड़कियों की ''कुंवारी ''लड़कियों की लाइन लगी रहती है ,यहाँ तक कि बुज़ुर्ग से बुजुर्ग पुरुषों को भी ''बेचारी तो बेचारी ''कुंवारी छोटी उम्र की लड़कियां भी सहजता से विवाह के लिए उपलब्ध हो जाती हैं भले ही उनके अपने बच्चे भी उस लड़की से बड़ी उम्र के ही क्यूँ न हों .
आज ''लिव इन रिलेशन ''को न्याय की संरक्षक सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट ही कानूनी जामा पहनाने में लगी है जबकि इसमें भी औरत की स्थिति रखैल की स्थिति से बेहतर नहीं है क्योंकि पुरुष विवाहित है या नहीं है उसकी कोई पहचान नहीं है और पहचान होने पर भी नारी की जो स्थिति है वह ''दिल के हाथों मजबूर'' की है और ऐसे में चंद्रमोहन चंद्रमोहन रहे या चाँद ,लाभ में रहता है और अनुराधा बाली फ़िज़ा बन लाश बन जाती है .
लड़कियां ही शादी के लिए खरीदी जाती हैं ,लड़कियां ही भ्रूण हत्या का शिकार बनती हैं , न कोई बड़ी उम्र की औरत शादी के लिए लड़का खरीदती है न कोई लड़का भ्रूण हत्या का शिकार होता है ऐसी बहुत सी स्थितियां हैं जहाँ ये स्पष्ट होता है कि नारी को पुरुषों ने केवल अपने गुलाम का दर्जा ही दिया है इससे बढ़कर कुछ नहीं जबकि हमारे शास्त्रों में पुराणों में नारी हीन घर भूतों का डेरा ,कहा गया है ,नारी की स्थिति को ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ''कहकर सम्मानजनक स्थान दिया गया है किन्तु पहले कभी मिलने वाला ये सम्मान आज कहीं नहीं दिखाई देता आज नारी का केवल एक उत्पाद ,एक गुलाम की तरह ही इस्तेमाल नज़र आता है .कहीं नारी का घूंघट से ढका चेहरा तो कहीं छत के कुंडे में लटकता शरीर नज़र आता है .

शालिनी कौशिक

[WOMAN ABOUT MAN]

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

मोदी तो गली गली की खाक......

"I am not here to make you emotional, but to wipe your tears," said BJP PM candidate Narendra Modi at a rally in Jhansi on Oct 25. That was directly aimed at Congress AICC vice-president Rahul Gandhi, who recently made an emotional speech saying, "

सुषमा स्वराज कहती हैं -''मैं हमेशा से शालीन भाषा के पक्ष में रही हूँ .हम किसी के दुश्मन नहीं हैं कि अमर्यादित भाषा प्रयोग में लाएं .हमारा विरोध नीतियों और विचारधारा के स्तर पर है .ऐसे में हमें मर्यादित भाषा का ही इस्तेमाल करना चाहिए .''

और आश्चर्य है कि ऐसी सही सोच रखने वाली सुषमा जी जिस पार्टी से सम्बध्द हैं उसी पार्टी ने जिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है उन्ही ने मर्यादित भाषा की सारी सीमायें लाँघ दी हैं.व्यक्तिगत आक्षेप की जिस राजनीती पर मोदी उतर आये हैं वह राजनीति का स्तर निरंतर नीचे ही गिरा रहा है .सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर व्यक्तिगत आक्षेप कर वे यह समझ रहे हैं कि अपने लिए प्रधानमन्त्री की सीट सुरक्षित कर लेंगे जबकि उनसे पहले ये प्रयास भाजपा के ही प्रमोद महाजन ने भी किया था उन्होंने शिष्ट भाषण की सारी सीमायें ही लाँघ दी थी किन्तु तब खैर ये थी कि वे भाजपा के प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नहीं थे .
अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे सुलझे हुए नेतृत्व में रह चुकी यह पार्टी जानती होगी कि कैसे संसदीय व् मर्यादित भाषा के इस्तेमाल के द्वारा अपने विरोधियों को भी अपना प्रशंसक बनाया जाता है .सत्ता की होड़ में लगे सभी दलों का अपना अपना स्थान बनाने की अपनी अपनी शैली होती है और सभी विरोधी दलों को उनके सिद्धांतों ,नीतियों की खुली आलोचना कर उसे जनता के समक्ष बेनकाब करते हैं किन्तु भाजपा के ये नए उम्मीदवार इस कसौटी पर कहीं भी खरे नहीं उतरते और न ही स्वयं भाजपा क्योंकि इस पार्टी में एक प्रदेश से आये व्यक्ति को बरसों बरस से दल की सेवा कर रहे अनुभवी ,योग्य ,कर्मठ नेताओं के ऊपर बिठा दिया जाता है और वह केवल इस दम पर कि वे चारों तरफ से अपना पलड़ा मजबूत कर आगे बढ़ रहे हैं बिलकुल वैसे ही जैसे पुराने राजा -महाराजाओं में कोई भी अपनी ताकत के बलपर राजा को जेल में डाल देता था और स्वयं राजा बन जाता था ठीक वैसे ही भाजपा की ओर से कब से प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले बैठे आडवाणी जी ,भाजपा के अत्यंत योग्य सुषमा स्वराज जी ,अरुण जेटली जी एक ओर बिठा दिए जाते हैं और मोदी जैसे तलवार के दम पर आगे बढ़ जाते हैं .
आज भाजपाई भारत रत्न के विवाद के बढ़ने पर कॉंग्रेस को चित करने के लिए अटल जी के लिए भारत रत्न की बात करते हैं अरे पहले अपने दल में तो उन्हें रत्न का दर्जा दीजिये ,इस तरह उन्हें नकारकर तो ये दल स्वयं को और उन्हें हंसी का पात्र ही बना रहा है स्वयं अपने घर में जिसकी कद्र न हो उसे बाहर का कुछ नहीं भाता और अटल जी के साथ ये पार्टी वही व्यवहार कर रही है जो आज इस दल की मुख्य पंक्ति करती है .भारतीय जनता में आज बुजुर्गों के साथ इसी तरह का उपेक्षा पूर्ण व्यवहार का प्रयोग में लाया जाता है और सभी देख रहे हैं कि कैसे आज भाजपा ने अटल जी को एक तरफ फैंक दिया है ये तो मात्र कॉंग्रेस के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति है जो वे याद किये जा रहे हैं

आडवाणी जी ये समझ रहे हैं और इसलिए अपने को ऐसे हाल से बचाने के लिए विरोध के बावजूद ऊपर से भले ही ''नमो -नमो ''का उच्चारण कर रहे हैं किन्तु अंदर से जाप मरो-मरो का ही कर रहे हैं और यही कारण है कि मोदी की तुलना ओबामा से करते हैं खुद से क्यूँ नहीं करते ?जानते हैं कि मोदी ''देशी भेष में अमरीकन दिल ''लिए फिरते हैं और जैसे कि सभी जानते हैं कि
''इश्क़ व् मुश्क़ छिपाये नहीं छिपते ''
वैसे ही मोदी का अमरीका प्रेम भी कहाँ छिपने वाला है जब तब वहाँ के वीज़ा मिलने की ख़बरें आज की पेड़ न्यूज़ द्वारा निकलवाते रहते हैं इसलिए आडवाणी जी ओबामा से ही मोदी की तुलना में भलाई समझते हैं और इस तरह अपने दोनों हाथ तेल में और सिर कढ़ाई में रखते हैं कि अगर मोदी बाईचांस प्रधानमंत्री बन गए तो ओबामा से तुलना का श्रेय और नहीं बने तो मैंने तो पहले ही विरोध किया था और फिर आज प्रचार की जिस बुलंदी पर अन्य भाजपाइयों के मुकाबले मोदी हैं कोई भी अन्य भाजपाई ''आ बैल मुझे मार ''कह मोदी से क्यूँ भिड़ेगा ?
स्थानीय क्षेत्रों में भी वह व्यक्ति जो पुलिस वालों से बदतमीजी से ,असभ्यता से बातचीत कर लेता है वह बहुत बड़ा नेता माना जाता है क्योंकि आमतौर पर लोग पुलिस वालों के साथ चापलूसी ,खुशामदी रवैया अपनाते हैं किन्तु उनकी बहादुरी वहाँ नज़र आती है जब पुलिस वाले उनसे अपना काम निकालने के लिए उन्हें अपनी व् कानून की ताकत दिखाते हैं और तब वे बड़े बड़े बोल बोलने वाले पुलिस वालों के जूते साफ करते नज़र आते हैं ,वही स्थिति यहाँ नज़र आ रही है .यहाँ स्थानीय नेता की भूमिका में नरेंद्र मोदी हैं और पुलिस की भूमिका में राहुल व् सोनिया गांधी ,जनता पर अपना प्रभाव दिखाने को ,देश की किसी भी समस्या के बारे में जानकारी न रखने वाले ,किसी भी स्थिति का सही सामान्य ज्ञान न रखने वाले मोदी मात्र राहुल सोनिया के विरोध के दम पर ही अपने झंडे गाड़ने की कोशिश में भाजपा की कथित सभ्य ,देश की संस्कृति का सम्मान करने की छवि का रोज अपमान करते जा रहे हैं और अपमान कर रहे हैं भारतीय संविधान का जिसने १९५० में ही देश को गणतंत्र घोषित किया और सम्राट परम्परा का अंत किया .
समझ नहीं आता कि ऐसे में भाजपा को नेताओं की ऐसे क्या कमी पड़ गयी है जो मोदी जी जैसे अशिष्ट ,असभ्य और अल्पज्ञ व्यक्ति को अपना २०१४ के नेतृत्व सौंप दिया जबकि उनके जैसे नेता तो भारत की हर गली में खाक छानते फिरते हैं .

शालिनी कौशिक
[ कौशल ]

शनिवार, 16 नवंबर 2013

सरकारी अफसर

                                                                                                                                                                                                      आज ऑफिस की छुट्टी है| सिरिष ड्राइंग रूम मे कपिल के साथ बैठा है | कपिल की नन्ही -नन्ही शरारते देख रहा है | कुछ देर की मस्ती के बाद कपिल थक कर सो जाता है सिरिष उसे उठाकर पलंग पर सुला देता है | खुद भी तकिये का सहारा लेकर लेट जाता है,अपने गत जीवन के चिंतन मे खो जाता है |
                  रीमा पिछले बीस -पच्चीस दिनों से हॉस्पिटल के आई .सी .यू .वार्ड मे बीमारी से लड़ रही थी | उसकी किडनी मे इन्फेक्सन हुआ था | डॉ के अनुसार ठीक होने के बहुत कम चांस है | किडनी फ़ैल भी हो सकती है | सिरिष अपने पांच माह के दूधमुहे बच्चे को लेकर रात -दिन पत्नी की सेवा मे इसी आशा के साथ लगा है कि वो जल्दी ठीक होकर हमारे बच्चे को संभालेगी |
                  सिरिष का परिवार अमेरिका मे रहता है,सिरिष को अपने देश भारत मे रहना अच्छा  लगता था ,वो अपनी पढाई ख़त्म होते ही भारत आ गया यहाँ आकर रीमा से शादी कर ली | उस दिन सिरिष आई .सी .यु .के बाहर बैठा था होस्पिटल मे शांत वातावरण था सिरिष विचार मग्न| भविष्य मे आने वाली समस्याओ के बारे मे सोच कर परेशान हो रहा है कि कब ठीक होकर रीमा बच्चे को फिर से सम्भालेगी ? ओर  कुछ सोचता, उससे पहले आई.सी.यु.से नर्स दौडती हुई बाहर आई ,डॉ सात नंबर पेशेंट की तबियत बिगड़ गयी,उसे सास लेने मे तखलीफ़ हो रही है |, सिरिष किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा गया उसे तो पता ही था सात नंबर पेशेंट रीमा ही है | डॉ ने भाग कर रीमा को चेक किया ,उसकी सास उखड़ रही थी | रीमा के शरीर के सभी पार्ट्स ने लगभग काम करना बंद कर दिया | डॉ के अथक प्रयास के बाद भी रीमा बच नहीं सकी उसके जीवन की डोर टूट गयी |
                    सॉरी सर ,रीमा इज नो मोर , डॉ ने कहा | सिरिष की आँखों मे आंसू आ गये ,कपिल को भी जैसे आभास हो गया उसकी माँ उसे अकेला छोड़ गयी ,वो भी पापा के साथ जोर -जोर से रोने लगा था | कपिल के रोने से सिरिष चुप हुआ | डॉ. ने कहा 'होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करके आप घर जा सकते हो | कुछ भी सोचने -समझने की ताकत नहीं बची थी | अपनी ओर अपने नन्हे बच्चे के जीवन मे आने वाली तमाम परेशानियों को भुला कर,सिरिष रीमा की डेड बॉडी को घर ले जाने के लिए होस्पिटल की ओपचारिकता पूरी करने लगा | रीमा को अंतिम विदाई देने के लिए परिवार आ चुका था |
                   रीमा को अंतिम विदाई देने के बाद सिरिष इतने लोगो के बीच भी खुद को अकेला महसूस कर रहा था | रीमा के जाने के तीसरे ही दिन सिरिश मुन्सिपलटी बोर्ड के ऑफिस मे रीमा का  मृत्यु  -प्रमाण पत्र लेने पहुँच गया | गोद मे कपिल को लिए वो सम्बन्धित अफसर से बोला 'सर मेरी पत्नी का मृत्यु -प्रमाण पत्र बना दीजिये |, पर वो अफसर कुछ नहीं बोला | सिरिष ने कई बार कहा पर वो जान -बूझ कर फ़ाइल् के पन्ने पलटता रहा |कपिल भी रोने लगा तो सिरिश ऑफिस की सीढियों मे बैठ गया | तभी वो अफसर उसके पास गया और बोला प्रमाण पत्र बनवाने के पांच सौ रुपया दे दो, कल आकर मृत्यु प्रमाण -पत्र ले जाना |, सिरिष को बहुत गुस्सा आया मेरी सत्ताईस साल की जवान बीवी मर गयी इसे रुपयों की पड़ी है | अपने गुस्से को काबू करके उसने रुपया दे दिया | उसे समझ आ गया ऑफिस मे सी.सी.टीवी कैमरा लगा था इसलिए वहां पैसा नहीं लिया| रिश्वत लेने के मामले मे सावधान जो है |
                दुसरे दिन सिरिष ऑफिस गया तो सीट पर दूसरा  अफसर  बैठा था | सिरिष ने उनसे मृत्यु -प्रमाण पत्र माँगा, उसने दो मिनिट मे बना कर दे दिया | अरे ! 'ये क्या आपने बिना रिश्वत लिए ही बना दिया ?, सिरिष ने कहा | कल उस अफसर ने पांच सौ रूपया लिया है मुझसे | 'मै कभी किसी से एक पैसा नहीं लेता हूँ | आपका कोई भी काम हो आप आना मै करूँगा आपका काम|, दुसरे अफसर  ने कहा |सिरिष ने उस रिश्वत खोर  अफसर  को सबक सिखाने का मन बना लिया और  उन इमानदार ऑफिसर के साथ मिलकर उस रिश्वत खोर  अफसर को रंगे हाथो पकड़वाया | किसी ने सच ही कहा है कि एक व्यक्ति की गलती के कारण  पूरा विभाग बदनाम हो जाता है
शांति पुरोहित 

सोमवार, 11 नवंबर 2013

मुश्किल फैसला ...

                                                                                                                                                                                                                                                                               निशा ने राहुल को स्कूल के लिये तैयार किया और उसका लंच बॉक्स उसे दिया | राजेश को भी आज जल्दी निकलना था उनका भी लंच बॉक्स तैयार किया और निशा ने उन दोनों को विदा किया | घर का सारा काम ख़तम करते -करते आधा दिन ख़तम हो गया | अब निशा थोड़ी देर आराम करने अपने कमरे मे आयी ही थी कि फोन की बेल बजी | निशा ने रूखे -पन से फोन उठाया |
हेल्लो ,निशा मै काव्या बोल रही हूँ,अरे ! काव्या तुम,निशा ने खुश होते हुए कहा ,कैसी हो,ससुराल मे सब ठीक है ना, लोग अच्छे है ना जीजू अच्छे है ना ,निशा ने जैसे सवालों की झड़ी लगा दी | काव्या ने कहा ''रुको निशा, तम्हे सब बताने के लिये ही फोन किया है पर यहाँ फोन पर नहीं, तुम कल मेरे घर आ जाओ फिर  बैठ कर बाते करते है ,काव्या, ने दुखी मन से कहा और फोन कट कर दिया |
कल का जाना तय हुआ जानकर निशा, ने राहत महसूस की क्योंकि आज वो बहुत थकी हुई थी, पर अब उसको काव्या से मिलने की बेसब्री भी बहुत हो रही थी, तो उसको नींद भी नहीं आ रही थी | दुसरे दिन निशा ने जल्दी -जल्दी काम ख़तम किया और काव्या के घर पहुँच गयी | निशा ने काव्या को देखते ही कहा ''अरे! ये तेरे चेहरे पर उदासी क्यों ? नई -नई शादी हुई है,लालिमा की जगह ये कालिमा क्यो है ? क्या कुछ ठीक नहीं है क्या ससुराल मे ? काव्या ने कहा सब बताती हूँ''निशा मुझे लगता है मेरे पति क्ल्पेस के मन मे कोई बात है, जिसको लेकर वो मुझसे नाराज है; या उसके दिल मे कुछ और ही चल रहा है, पर क्या ? ये मेरी समझ मे नहीं आया | उसने मुझसे इन सात दिनों मे कभी कोई बात नहीं करी और अगले दिन भैया मुझे पग- फेरे की रश्म के लिये लिवाने आ गये मै, उनके साथ वापस यहाँ आ गयी हूँ |,
''तो क्या तुम्हारा वैवाहिक जीवन शुरू ही नहीं हुआ ? कल्पेश ने तुम्हे छुआ तक नहीं क्या,निशा ने पूछा, नहीं,काव्या ने कहा | तुमने कल्पेश से इस बारे मे पूछा कभी,''बहुत बार पूछा पर उसने कभी मेरी बात ही नहीं सुनी | ओह ! तमने अपने ससुराल मे किसी को बताया ?,नहीं , ये मैंने सही नही.. समझा इससे  कलपेश की और मेरी इज्जत ही कम होती ना| थोड़ी देर काव्या से बाते कर के निशा भारी मन से अपने घर आ गयी थी |
समय बीतता गया अब काव्या को छ माह से भी ज्यादा समय हो गया था, कल्पेश उसे लेने आया और ना ही उसका कोई सन्देश आया | काव्या ने एक पत्र भी लिखा था पर कोई जवाब नहीं आया | काव्या के मम्मी -पापा और बाकि सब भी काव्या को देख कर दुखी थे पर क्या कर सकते थे | काव्या के पापा ने कभी नहीं सोचा था कि इतना पढ़ा लिखा लड़का काव्या के लिये देखा फिर भी ये सब ये सब भुगतना पड़ेगा |
उस वक़्त काव्या को बी.कॉम .का दूसरा साल चल रहा था | एक दिन रात के खाने के वक़्त देवराज ने अपनी पत्नी उमा को कहा कि ''मैंने काव्या के लिये एक लड़का देख लिया है चार दिन बाद लडके वाले काव्या को देखने आयेगे |,अरे ! अभी क्या जल्दी है काव्या की शादी की अभी तो उसकी पढाई भी पूरी नहीं हुई है,कौनसी मेरी बेटी की उम्र बहुत ज्यादा हो गयी है ? पर काव्या के पापा ने हुकुम जरी करते हुए कह दिया कि अब इस बारे मे कोई बहस नहीं होगी | लड़के वाले आते ही होंगे एक दो दिन मे | तुम सब तैयार रहना |
काव्या ने ये सब निशा को बताया तो निशा ने काव्या को कहा कि ''काव्या ये कोई मजाक नहीं है, शादी गुड्डे -गुड्डी का खेल नहीं होती है | ये तुम्हारे भविष्य का सवाल है किसी तरह अपने पापा को समझा कर अभी शादी मत होने दो और अपनी पढाई पूरी कर लो तुम |,निशा ने कहना जरी रखा कि ''काव्या कभी -कभी हम औरतो के जीवन मे मुश्किल घड़ी आ जाती है तब अगर हम किसी योग्य है तो अपना मुश्किल वक़्त भी आसानी से तय कर सकती है नहीं तो नहीं | काव्या ने कहा ''निशा अब कुछ नहीं होने वाला है पापा का फैसला अटल है मम्मी ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की पर सब बेकार गयी पापा जो चाहते है वो ही होता है | आख़िरकार काव्या की शादी कर दी गयी थी |
अब काव्य के पापा मम्मी बहुत दुखी है अपने फैसले से सोच रहे है कि काश ,काव्या को पढने दिया होता तो आज ये दिन ना देखना पढता | वो ये सोच के और भी हैरान है कि इतना पढ़ा -लिखा समझदार लड़का है कल्पेश पर उसने ऐसा क्यों किया काव्या के साथ, क्या गल्ती हुई होगी काव्या से | उमा देवी अपने पति को अपनी बेटी काव्या की इस हलत का जिम्मेदार मानती है | पर इन सब मे काव्या को ही भुगतना पढ़ रहा है |
आखिरकर काव्या के पापा ने एक फैसला किया कि कल्पेश से बात करने के लिये अपने बेटे हरीश को भेजा जाये | अपनी पत्नी उमा से कहा कि कल हरीश को जल्दी से खाना बना के दे देना उसे काव्या की ससुराल जाना है | उमा को ये बात ठीक लगी क्योंकि वो अपनी बेटी को अब और दुखी नहीं देख सकती थी |पूरी रात ट्रेन का सफर तय कर के जब हरीश काव्या की ससुराल पहुंचा तो सब ने उसकी बहुत खातिर की | जिसकी उसने उम्मीद नहीं की थी | खाना खाने के बाद जब कल्पेश उसे अपने कमरे मे ले गया तो हरीश ने अच्छा मौका जानकर कहा ''आप काव्या को लेने अब तक क्यों नहीं आये ऐसा क्या हुआ था उससे जिसकी आपने उसे इतनी बड़ी सजा दे दी | काव्या का आपके इस रूखेपन से बुरा हाल है उसका सुख -चैन सब आपके कारण खो गया है |,
अब कल्पेश ने अपने मन की बात बताने मे ही भलाई समझी ''मैंने मन -ही मन आप से ये उम्मीद की थी कि आप क्लिनिक खोलने मे मेरी आर्थिक मदद करोगे,पर आपकी और से कोई आश्वासन ना पाकर मैंने काव्या को मायके भेज कर अपना सारा ध्यान बैंक लोन ,और पैसो के जुगाड़ मे लगाया  ,सोचा काव्या काव्या को भेज कर अपना काम आराम से कर सकूंगा ,जब क्लिनिक खुल जायेगा वापस काव्या को घर ले आऊंगा |, इतनी बात कह कर कल्पेश ने कहा जल्दबाजी मे मै इस बारे मे काव्या और किसी को भी कुछ बता नहीं सका ,इसके लिए आप सब से माफ़ी चाहता हूँ |,इतनी सी बात के लिये आपने इतने दिन लगा दिए | ,आपका काम हो जायेगा,हरीश ने कहा,आप एक इशारा करते आपका काम हो जाता  और वो उन सब से विदा लेकर अपने घर आ गया था |
मम्मी -पापा उसकी प्रतीक्षा मे ही थे जैसे ही हरीश आया उन्होंने पूछना शुरू किया ''क्या हुआ वहां जाने स कुछ बात बनी ,'हाँ सब ठीक है बस कल्पेश को रूपया चाहिए अपने क्लीनिक के लिये |, पापा ने कहा ''ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, कल ही तुम दस लाख का चेक और काव्या को ले कर जाना | काव्या ने पापा और भैया की बाते सुनली थी और उसने एक मुश्किल फैसला कर लिया |अगले ही दिन माँ ने काव्या को हरीश के ससुराल जाने को कहा तो उसने कहा ''मैंने आपकी और भैया की सब बाते सुनली है,सुनने के बाद मैंने अपने जीवन का मुश्किल फैसला कर लिया है कि मै, ऐसे आदमी के साथ अपना जीवन नहीं काट सकती, जिसको इंसान की कोई कद्र नहीं है, और जो पैसो के आगे इंसान की भावना की कद्र ना कर सके | आपको एक पैसा भेजने की जरुरत नहीं है | अब मै अकेले ही अपना जीवन गुजारुंगी | इतना कह कर वो अपने कमरे चली गयी और रोने लगी |
थोड़ी देर रोने के बाद काव्या ने तय किया की अब वो रोएगी नहींऔर अपने जीवन के रास्ते को एक नया मोड़ देगी | और कल्पेश को भी सबक सिखाएगी | उसने गरीब बच्चो को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला | उस स्कूल मे सिर्फ वो ही बच्चे आ सकते थे जिनके माता -पिता मजदूरी करते है |अपने बच्चो का सिर्फ पेट भर सकते है | काव्या के इस काम मे उसके पापा ने पूरा सहयोग देने को कहा | पैसा तो बहुत था उनके पास तो काव्या ने पापा से कहा ''कल्पेश को उसकी मांग पर एक बार पैसा देते तो उसकी मांग बार -बार बढ़ना कोई बड़ी बात नहीं है | उसकी नाजायज मांग पूरी करने के बजाय तो इन गरीब बच्चो का भला करे तो इनकी जिन्दगी संवर जाएगी |
एक साल बाद काव्या की स्कूल मे ऐसे सौ बच्चे पढने के लिए आ गए थे | पढाई के साथ काव्या बच्चो को कपड़े,किताबे ,कापी के आलावा दोपहर का भोजन भी देती थी | अब काव्या ने कल्पेश से कानूनन अलग होने के लिए कोर्ट मे एप्लीकेसन लगा दी | तो कल्पेश की माँ आई और कया को घर चलने को कहा | काव्या ने भी कह दिया ''आप उस वक्त क्यों नहीं कुछ बोले जब मुझे कल्पेश की और आपकी ज्यादा जरुरत थी अब मैंने अकेले रह कर जीना सीख लिया है|, और वो अपने कमरे मे चली गयी | उसे बहुत काम जो देखना था |
 शांति पुरोहित 

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

पापा ने कितना मना किया था ........

    तनु महाराष्ट्र के मुंबई शहर मे रहती है | जो देश की आर्थिक राजधानी और माया नगरी के नाम से जानीi जाती है |मुंबई मे रहने वाले हर इंसान को वहां की भागती हुई जिन्दगी जीने का आदि होना पड़ता है| अगर वो समय के साथ ना चले तो पूरा दिन बेकार हो जाता है | सुबह जल्दी तैयार होकर ऑफिस के लिये अपने पापा को बिना नाश्ता किये रोज जाते हुए देखती है तनु को बड़ा अजीब लगता है | सुबह उठने के बाद एक पल के किये भी चैन नहीं, कितने ही दिनों तक वो, पापा के साथ बैठ कर नाश्ता भी नहीं कर पाती थी | कई बार तो कितने दिनों तक पापा से बात भी नहीं हो पाती थी | तनु ने ऍम.ए.''समाज शास्त्र'' मे टॉप करने के बाद ''रास्ट्रीय जूनियर फेलोशिप'' परीक्षा पास करी,इसके लिये उसने ''ग्रामीण जीवन, के बारे मे रिसर्च करने को अपना टोपिक चुना | अब इसके लिये तनु, को तीन माह तक गाँव मे जाकर रहना पड़ा था | पर मुंबई की  आधुनिक जीवन शैली मे पली -बड़ी तनु का तीन माह गाँव मे रहने से ही सब कुछ बदल गया | अब उसे गाँव का जीवन अच्छा लगने लगा था | वहां के लोगो की सरलता ,निश्चलता और आराम की जिन्दगी उसे भा गयी थी | उसने तो फैसला भी कर लिया था कि वो शादी करेगी तो किसी गाँव मे ही करेगी |
महेश भाई और सुहास, की इकलौती संतान थी तनु ,जिसे उन्होंने बहुत प्यार से फूलो की तरह पाला है | महेश भाई का तैयार वस्त्रो का आयात -निर्यात का काम था| वे मुंबई के रसूखदार आदमी थे | अपनी बेटी के लिये दुनिया के हर माँ बाप का ये सपना रहता है, कि उनकी बेटी का विवाह किसी ऐसे इंसान, से हो जो जिन्दगी भर उसे सुखी रख सके | महेश भाई और सुहास ने भी ये सपना देखा है, कि तनु की शादी मुंबई मे ही करेंगे तो वो सुखी रहेगी और उनकी आँखों के सामने ही रहेगी|
पर जब भी तनु के लिये मंबई से कोई रिश्ता आता, तनु कोई न कोई बहाने से मना कर देती थी | जब कई बार ऐसा हुआ तो तनु की मम्मी ने उससे इसका कारण जानना चाहा तो तनु ने कहा ''मै मुंबई मे नहीं किसी गाँव मे अपनी शादी करना चाहती हूँ | मै इस भाग -दौड़ की जिन्दगी से तंग आ चुकि हूँ |' उन दोनों ने बेटी को बहुत समझाया कि गाँव का जीवन हम शहर वालो के बस का नहीं है तुम जल्दी ही परेशांन हो जाओगी पर वो अपनी जिद पर अटकी रही |
आखिरकार कलकता के किसी गाँव मे सुरेश के साथ उसकी शादी कर दी गयी | जैसा कि तनु, पहले से ही वाकिफ थी गाँव मे कितनी नीरव शांति रहती है| यहाँ किसी को कोई जल्दी नहीं है | सब कुछ आराम से,आराम से सोना,आराम से उठाना, आराम से खाना और आराम से ही ऑफिस जाना |बस शांति ही शांति तनु को यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा था, कि अब सब साथ मिलकर सुकून की जिन्दगी जियेंगे सुरेश भी कितने अच्छे है, उनका सुविधाओ से सुसज्जित बहुत बड़ा घर है, और उतनी ही बडी उनकी फैक्ट्री है | बहुत पैसा कमाते थे, साल मे करोडो रूपियो का मुनाफा कमाते थे, क्योंकि भारत के बाहर भी उनकी फैक्ट्री मे बने कपड़ो की बहुत मांग रहती थी |
एक दिन उसने सुरेश से कहा ''मै एक पढ़ी-लिखी लड़की हूँ आपको काम मे अच्छी खासी मदद कर सकती हूँ |,पर सुरेश ने तनु को मना कर दिया कहा कि ''मेरी बीवी काम करे ये ''मै ,कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता तुम घर मे रानी की तरह रहो |'' पर मुंबई की जीवन शैली मे पली -बढ़ी तनु को आराम अब भरी लगने लगा |सास -ससुर इतना प्यार करते थे, उससे कि कोई काम नहीं करने देते थे| करती भी कैसे नौकरो की फौज खड़ी कर दी थी उन्होंने उसके लिये तो कोई क्या काम करे | ये भी एक परेशान करने वाली ही बात थी ना |तनु के लिये | अब  तनु सोच रही है कि क्या उसका गाँव मे शादी करना और गाँव मे रहना का फैसला सही नहीं है? गाँव मे जिन्दगी जीने का निर्णय तो उसका अपना ही था ,पर अब तनु गाँव रुपी पिंजरे मे अपने आप को बंद हुआ महसूस कर रही है | और अपने को खुले आसमान मे उड़ता हुआ देखना चाहती है | और इसी के बारे सोच कर वो उदास रहने लगी और ये उदासी उसकी सास से छुपी ना रह सकी | शायद वो भी इस दौर से गुजर चुकी थी | और तनु के आज मे उसका अतीत उसे साकार रूप मे दिखाई दे रहा हो| तनु की सास शीला ये नहीं चाहती थी कि तनु अकेलेपन की आग मे जले |
शीला ने कहा ''तनु तुम कुछ दिन अपने मायके मुंबई घूम कर आओ|, पर सुरेश ने मना किया उसने कहा 'मुझे तुम्हारे बिना बिना रहना अब बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है तुम कहीं नहीं जाओगी |,सुरेश तनु को बहुत प्यार करते थे पर केवल प्यार से ही तो जीवन नहीं चलता है | समय बिताने के लिये कुछ करना भी पड़ता है अगर इंसान काबिल है तो खाली तो बैठना उसके लिये सजा भुगतने के जैसा होता है मन की शांति बिना कैसे कोई चैन से जी सकता है |तनु ने इतनी पढाई की थी पर यहाँ आकर उसका कोई मतलब नहीं रहा | सुरेश उसे कुछ करने ही नहीं दे रहा था | मुंबई मे तो वो अपने पापा के साथ ऑफिस जाती पापा का काम संभालती थी | पापा ने कितना मना किया था पर तब उनकी बात समझ नहीं आई पर अब लगता है कि वो सही कह रहे थे, पर अब कैसे निकलू इस जेल से | जब कभी सुरेश की इच्छा हुई तो वो कहीं लेकर जाता, उसे अपनी मर्जी से उसे कहीं नहीं जाना था |
अब उसे अपनी गल्ती समझ आ गयी, कि जिस परिवेश मे हम पलते है, रहते है आगे का सारा जीवन उसी तरह ही काटना पड़ता है | अपने माता -पिता से ज्यादा देर तक कोई भी दूर नहीं रह सकता है | अपनों के साथ बिना इंसान 'पर कटे पक्षी' की तरह मेहसूस करता है तनु के पास अब कोई कारण भी नहीं था, कि वो सुरेश से 'तलाक, लेकर आजाद हो जाये इस कैदखाने से |  उसकी तबियत बिगड़ने लगी थी | तनु की सास से उसका ये हाल देखा नहीं जाता था वो उसने फिर कहा सुरेश को ' सुरेश बहु को मायके भेज दो या तुम कहीं उसे घुमाने लेकर जाओ|,तनु को ये बहुत अच्छा लगा कि सास उसका कितना ध्यान रखती है कितना संभालती है | एक बार शीला ने तनु को बताया था कि वो भी कलकता जैसे बड़े शहर से यहाँ आई थी तब उसे ऐसा लगा कि जैसे वो सोने के पिंजरे मे कैद होकर रह गयी है | बहुत मुश्किल से अपने आपको संभाला है
तनु को अभी तक सुरेश ने अपनी फैक्ट्री नहीं दिखाई तो आज तनु ने सोचा कि चलो फक्ट्री देखने जाती हूँ | तनु ने अपनी सास -ससुर को बिना बताये ही जाने के लिये बाहर आकर अपने ड्राइवर से कहा ''मुझे फेक्ट्री ले चलो |' पर ड्राइवर ने मना कर दिया और कहा ''मालिक कहेंगे तो ही ले जाऊंगा |' तनु को आश्चर्य हुआ, क्या मालकिन का कोई महत्व नहीं ? उसने सुरेश को फोन किया ''अपने ड्राइवर से कहो मुझसे बदतमीजी ना करे और फैक्ट्री लेकर आये मुझे फैक्ट्री देखनी है |' पर सुरेश ने इनकार कर दिया कहा कि ''आज नहीं कल मै खुद तुम्हे अपने साथ लेकर जाऊंगा आज मै तुम्हे वक़्त नहीं दे पाउँगा |' वो सुरेश का कहा मान गयी, पर वो कल आज तक नहीं आया | आखिरकार आज फिर तनु ने जाने का याद दिलाया तो सुरेश ने गुस्सा किया,फैक्ट्री मे औरतो का क्या काम है| और हाँ ऐसा क्या है देखने जैसा | मै तुम्हे कहीं घुमाने ले जाऊंगा, जब मुझे टाइम मिलेगा | पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि फैक्ट्री दिखाने मे सुरेश को क्या तखलीफ़ थी | तनु की तो ये आदत ही थी कि वो जो सोचती है| वो कर के रहती है | एक दिन वो टैक्सी लेकर फैक्ट्री पहुँच गयी |
फैक्ट्री के ऑफिस मे सुरेश के साथ एक बहुत ही खुबसूरत औरत बैठी है | उसको देख कर ऐसा लगा जैसे वो इस फैक्ट्री की मैनेजर है | गजब का व्यक्तित्व  था उसका | तनु ने फैक्ट्री मे काम करने वाले एक आदमी से पूछा ये''औरत कौन है|' उसने कहा ''मालिक की पत्नी है |' तनु हैरान रह गयी, अपनी तसल्ली के लिये एक बार फिर पूछा ''कौन है, उसने फिर वो ही कहा ''हमारे मालिक सुरेश जी की पत्नी है |' अब तो तनु टूट ही चुकी थी | तनु का अब मन नहीं कर रहा था फैक्ट्री देखने का और वो वापस घर आ गयी | रात होने का इंतजार करने लगी | आज इंतजार करना बड़ा भारी लग रहा था | रात को जब सुरेश आये तो तनु ने पूछा ''तुम्हारी पहली पत्नी और एक बच्चा भी है, तो उनको कहाँ रखा है आपने ?,मेरे मुह से इस अप्रत्याशित प्रश्न को सुनकर सुरेश डर गये और घबरा गये सोचने लगे कि तनु को कैसे पता चला ये सब के बारे मे,थोडा अपने आप को संभाल कर उन्होंने कहना शरू किया ''तनु विजया और मै एक दुसरे को चाहते थे| शादी करना चाहते थे, पर माँ -बाबूजी इस शादी के लिये कभी हाँ नहीं बोलते क्योंकि हम दोनों का धरम अलग था | तो हमने 'माँ -बाबूजी, को बताये बिना ही कोर्ट मे शादी की थी | अब हमारे दो बच्चे भी है |'
तनु ने कहा तो फिर 'आपने मुझसे शादी क्यों की| ''माँ -बाबूजी के कहने से करनी पड़ी |' और हाँ, ये फैक्ट्री मेरी नहीं विजया की है| ये सब सुनकर तनु ने,अपने जाने की तैयारी की और यहाँ से जाने मे ही अपनी भलाई समझी| उसने सोचा जो अपने माता -पिता को इतना बड़ा धोखा दे सकता है| वो मेरे साथ मौका पड़ने पर कुछ भी कर सकता है तनु वापस मुंबई अपने घर आ गयी |और सब से पहले उसने सुरेश के कारनामे को यहाँ के प्रसिद अख़बार मे छपवाया और एक प्रति अख़बार की विजया को भेज दी | विजया ने सुरेश की असलियत जानने के बाद अपनी फैक्ट्री मे से उसे उसी वक़्त निकाल दिया, और हमेशा के लिये उससे नाता तोड़ लिया | अब तनु को सुरेश के माता -पिता के लिये दुःख हो रहा था| पर सुरेश को उसके किये की सजा तो मिलनी ही चाहिये, जो तनु उसे दी है | तनु सोच रही है, कि आम तौर पर शहर वाले ऐसा काम करने के लिये बदनाम है| पर अब तो गाँव वाले भी किसी से कम नहीं है | और अब तनु खुद को वापस अपनी मुंबई मे समा लेना चाहती है |तनु के पापा महेश भाई और माँ अब तनु के लिये खुश है, कि अब वो अपनी बेटी का फिर से घर बसायेंगे | अब तनु के जीवन से दुःख रूपी अँधेरा छंट चूका है |अब तनु फिर से खुले आकाश मे सांस ले सकती है |
शांति पुरोहित
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

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शनिवार, 2 नवंबर 2013

नाम लिखा दो लखपतियों में ,तुम्हें बुलाते हैं .-दीपावली सभी को शुभ हो

लक्ष्मी आन विराजो ,लख-लख दीप जलाते हैं ,
नाम लिखा दो लखपतियों में ,तुम्हें बुलाते हैं .
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घर का हर कोना चमकाएं ,रंग-बिरंगा उसे सजाएँ ,
खन-खन कान में बजवाने को समय लगाते हैं .
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सोने चांदी के सिक्कों से गणपति पूजें साथ तेरे ,
छप्पर फाड़ मेरे घर आओ ,भोग लगाते हैं .
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धन-दौलत की खातिर माता पूजन करते बड़े बड़े ,
उल्लू को अँधा करने को बल्ब जलाते हैं .
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लक्ष्मी पाने की खातिर ही रखते हैं हम द्वार खुले ,
कभी कभी लालच में मैया हम लूट जाते हैं .
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शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN ]

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

देखा जो ख्वाब

फैशन डिज़ायनर रूपा का अपने बुटिक मे आते ही काम मे व्यस्त हो जाना, अपने स्टाफ को काम समझाना,ये उनका डेली का रूटीन था |फैशन डिजा
 '' मिस डिसूजा , मिस रूबी का आर्डर रेडी हुआ की नहीं ? डिसूजा कुछ जवाब देती, उससे पहले ही रमेंद्र से पूछ बैठी '' आस्था मेंम ,की ड्रेस के लिए कल जो डिजायन आपको दिया था ,वो ड्रेस रेडी हुई की नहीं ?
    अरे ! जल्दी -जल्दी सबके आर्डर तैयार करो ! दीपावली का त्यौहार है सबको समय पर अपना आर्डर चाहिए होता है |पर आज रूपा का मन कहीं और है वो ऑफिस मे आराम कुर्सी मे बैठ गयी | त्योहारी सीजन के चलते सास लेने भर की भी फुर्सत नहीं है | थकान सी हो रही थी | उठकर ऑफिस की खिड़की खोली तो हल्की सुनहरी धुप  ऑफिस मे प्रवेश कर गयी | दिसंबर माह मे धुप सुहानी लगती है | धुप मे बैठना रूपा को बचपन से ही अच्छा लगता था |
            रूपा धुप का आनंद लेने लगी | दिमाग को एकांत मिलते ही मन गुजरे वक्त की खटी -मीठी यादो मे गोते लगाने लगा | 'इकलौती संतान थी ,पापा मुझे डॉ. बनाना चाहते थे वो खुद भी डॉ. थे | वो अपना क्लिनिक मुझे सौप कर खुद लोगो की फ्री सेवा करना चाहते थे | मेरी रूचि फैशन डिजायनर बनने मे थी | अपना खुदका बुटिक खोलना चाहती थी | मम्मी हमेशा मेरा ही साथ देती थी | पापा को समझाती 'आप क्यों अपनी मर्जी बच्ची पर थोप रहे हो ,उसे जो करना है करने दो ? पापा को मम्मी की बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो अपनी जिद पर अड़े थे और मै अपनी ....
            आखिर मेरा सीनियर का रिजल्ट आने के बाद मम्मी ने पापा को समझा-बुझा कर मेरा एडमिशन फैशन डिजाइनर के कोर्स के लिए करवा दिया था | मै बहुत खुश थी | अभी मेरा डिप्लोमा पूरा हुए एक माह ही बीता था कि पापा -मुम्मी ने मेरा रिश्ता एक इंजिनियर लड़के निलेश से पक्का कर दिया था | बहुत कोशिश की ,अभी शादी ना हो ,मै पहले अपना बुटिक खोलना चाहती थी | पापा ने मेरी एक न सुनी और कुछ समय बाद शादी हो गयी | मेरी इच्छा मेरे मन के किसी कोने मे दब कर रह गयी |
           ससुराल मे पति निलेश के पापा- मम्मी एक बहन और दादी थे | नई बहु से सबको बहुत सी अपेक्षाए होती है यहाँ भी थी |सब की इच्छा पूरा करने मे अपना सपना याद ही नई रहा | निलेश की जॉब अभी लगी ही थी तो वो मुझे बहुत कम समय दे पाते थे |अक्सर टूर पर जाना होता था | समय अपनी गति से चलता रहा | एक साल बीत गया | आखिर आज निलेश के जन्मदिन के अवसर पर अपनी बात कहने का मौका मिला '' मुझे बुटिक खोलना है प्लीज मेरी मदद कीजिये न आप , मैंने बहुत ही प्यार से कहा |
          अरे ! इसमें प्लीज बोलने की क्या जरुरत है ?
          तुममें योग्यता है ,काम करना चाहती हो मै कल ही लोकेशन देख कर बताता हूँ |
तम्हारा साथ देना मेरा फर्ज है ,मै आज बहुत खुश थी | पर जैसे ही सासु माँ को पता चला उन्होंने तुरंत आदेश दे दिया '' पहले हम घर मे अपने पोते -पोती को देखना चाहते है बुटिक बाद मे खोलना |, माजी का आदेश था तो निलेश भी चुप रह गया | मै एक बार फिर मन मसोस के रह गयी |
            दिन ,महीने ,साल निकलते रहे ,इसी दौरान मै एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गयी थी | अब तो मेरा एक ही काम रह गया था बच्चो ,निलेश और ससुराल वालो की सेवा करना | इन सब के बीच मेरी कला अपना दम तोड़ रही थी | कभी नहीं सोचा था कि मेरी पढाई और मेरे हुनर का ये हाल होगा | निराशा मेरे अन्दर घर कर  गयी |
             समय बीतता रहा अब मेरी बेटी नीता कॉलेज जाने लगी और बेटा निर्भय भी अगले साल कॉलेज  जाने लगेगा | अगले सप्ताह नीता के कॉलेज मे वार्षिक उत्सव होने वाला था नीता ने फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता मे भाग लिया था| उसने टेलर से जो ड्रेस बनवाई वो उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आयी | नीता उदास हो गयी | आज फिर किसी अन्य टेलर के पास गयी | बेटी की उदासी मुझसे देखी नहीं गयी | तभी मुझे अपनी कला का ख्याल आया मैंने आज अपनी कला का उपयोग करके बड़े ही मनोयोग से बेटी के लिए ड्रेस तैयार करली |
             शाम को जब नीता उदास चेहरा लेकर घर वापस आयी | ''कुछ काम नहीं बना क्या ? मैंने पूछा | नहीं माँ , तभी उसके हाथ मे वो ड्रेस रखी मैंने | नीता ख़ुशी से उछल पड़ी ''वाह माँ , आपने कहाँ से बनवाई ड्रेस ?,
            बहुत अच्छी है मुझे एसी ही ड्रेस चाहिए थी |, तभी मेरी सासु माँ ने उसे कहा 'तेरी माँ रूपा ने ही बनाई है | आज हमे अपनी गलती का एह्सास हो रहा है | ' किस गलती का दादी , नीता ने कहा | रूपा बह इतनी टेलेंटेड है पर हमने इसे घर के कामो मे लगा कर रखा,  इसकी कला का कभी सम्मान नहीं किया |, सासु माँ ने कहा |
              तो नीता बोली '' अब भी मम्मी अपना बुटिक खोल सकती है, अब तो हम भी अपना काम खुद कर सकते  है | शाम को निलेश आया सासु माँ और नीता ने उन्हें सब बताया | नीता ने पापा से कहा ,मम्मी इतनी योग्य थी ,अपना बुटिक खोलना चाहती थी ,तो आपने मम्मी को सपोर्ट क्यों नहीं किया ?,एक पति को तो अपनी पत्नी की योग्यता की कद्र करनी चाहिए थी | निलेश को सच मे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और  निलेश ने अगले ही दिन अति व्यस्त बाजार मे एक दुकान देखली और जोरो से तैयारिया चलने लगी | प्रतियोगिता मे नीता का पहला स्थान आया | नीता भी मेरी मदद करने मे लग गयी |
   आखिर पांच माह के बाद आज मेरे बुटिक का उद्घाटन था | जो मैंने अपनी सासु माँ और ससुरजी के हाथो कराया | बहुत सारे कपड़े लोगो ने खरीदे साथ ही इतने आर्डर आये मे एक साल तक के लिए एक साथ व्यस्त हो गयी | आज तो मेरे बनाये कपड़े देश के अन्य भागो मे भी जाने लगे है | ये सब मेरी बेटी और सासु माँ के कारण ही हुआ है | मेम चाय , मिस डिसूजा की आवाज से मेरा चिंतन ख़त्म हुआ | जब जागो तभी सवेरा वाली बात मुझ पर फिट बैठी है | आज मेरा वर्षो पहले देखा सपना या यू सोच लीजिये कि मेरे जीने का मकसद अब मुझे मिला है |

शांति पुरोहित 

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

ममता एक माँ की ...

                                                                                                                                                                                                               क्या ममता ने इसलिए दूसरी शादी की थी ?
कि जिन लोगो के लिए उसने अपना सारा जीवन लगा दिया वो ही लोग उसे इस तरह ठेस पहुँचायेगे ,और वो भी तब जब घर मे इतना अहम् और ख़ुशी का माहोल हो, और बहुत सारे लोग मौजूद हो| और कोई नहीं उसका पति एसी दिल तोड़ने वाली बात करेगा ऐसा होगा कभी नहीं सोचा था |लोग ये तो जानते है की स्त्री सहनशील होती है ,पर ये शायद नहीं जानते कि सहन करने की भी एक सीमा तो होती ही है | स्त्री कोई भी हो छोटी -मोटी बात की तो परवाह नहीं करती पर बात अगर उसके स्वाभिमान की होती है तो चुप नहीं रहती और स्वाभिमान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है |
                      मेरी कहानी की नायिका ममता एक ऐसे पिता की बेटी है जो मजदूरी करके अपनी बेटी को को शिक्षा दिलवा रहा है | और उसकी हर ख्वाहिश को पूरी करने की पुरजोर कोशिश करता था | पिता को मजदूरी करते इस बात का एहसास हो गया कि बिना शिक्षा इंसान को जीवन मे बहुत सारी कठिनाइयो का सामना करना पड़ता है | और अभाव मे जीना रोज एक मौत मरना जैसे है |उस वक्त ममता का आखिरी साल था फीस भरने की तारीख नजदीक आ रही थी पैसो का इंतजाम नहीं हो रहा तो ममता के पिता रामसिंह ने तब अपने  खेत को गिरवी रखा और ममता के कोलेज की फीस भरी | उस वक्त लाखो के खेत को हजारो मे गिरवी रखना पड़ा था | समय बीतता गया चार साल बाद ममता की पढाई पूरी हुई अब ममता बी .ऐ.बी.एड थी |
                        ममता ने अभी नौकरी करने का सोचा ही था की मम्मी -पापा ने अपना फैसला सुना दिया कि अब हम तुम्हारी शादी करना चाहते है और लड़का भी देख लिया है तुम भी चाहो तो देख सकती हो | लड़के के माता -पिता दोनों नौकरी करते थे और लड़का तुषार जिसने अभी -अभी इंजीनियरिग की पढाई पूरी की और एक बड़ी कम्पनी मे नौकरी लग गया था | बहुत ही नेक और संपन परिवार था | ममता ने कहा ''माता पिता अपने बच्चो के लिए अच्छा ही करते है मुझे मंजूर है जो लड़का आपने मेरे लिए देखा अच्छा ही होगा | और ममता की शादी तुषार संग हो गयी |
                     ममता का ससुराल मे सास ने बहुत स्वागत किया और सर आँखों पर बिठाया शादी के चार दिन बाद जब ममता सास के लिए चाय लेकर गयी तो सास ने ढेरो आशीष के साथ एक लिफाफा ममता के हाथ पर रखा और कहा ''ये तुम दोनों के लिए सिंगापुर जाने की टिकिट है कल निकलना है जाओ तैयारी करो | ममता को बहुत ख़ुशी हो रही थी कि सास उसे कितना प्यार करती है किते अच्छे से संभालती है सास का शुक्रिया कर के ममता जाने की तयारी मे लग गयी थी | ममता ने अपने व्यवहार से सबका दिल जित लिया समय तो चलता रही रहता है |
दो साल बाद
ममता ने घर मे बच्चे के आने की खबर सुनाई सब बहुत खुश हए पर सास लीला तो बहुत ही खुश हुई क्योंकि वो तो कब से ही इस बड़ी ख़ुशी का इंतजार कर रही थी | उसने ममता को गले लगा कर माँ बनने की और बेटे नितिन को बाप बनने की बधाई दी अब तो सास लीला ममता का खूब ख्याल रखने लगी ममता को पंलग से नीचे पैर ही नहीं रखने देती थी | लीला बेसब्री से बच्चे का इंतजार करने लगी थी | सब अच्छे से चल रहा था कि एक दिन तुषार ने माँ को कहा कि'' कल मुझे ऑफिस टूर से दिल्ली जाना है सोच रहा हूँ ममता को ले जाऊ काम ख़त्म करके थोडा हम दोनों घूम लेंगे,ममता की सास ने कहा जाओ पर समय पर खाना,नाश्ता और सोने का ध्यान रखना ,ज्यादा चलना मत बहुत सारी हिदायतों के साथ जाने की इज़ाज़त दे दी |
                      अभी कुछ रास्ता ही तय किया था कि तुषार की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी जिसमे तुषार की मौत हो गयी और ममता घायल हुई | डॉ. को ममता का अर्जेंट ओपरेशन करना पड़ा क्योंकि ममता के गर्भाशय मे चोट लगने के कारण संक्रमण हो गया था | और गर्भाशय को तुरंत निकालना पड़ा | अब इसे समय का फेर ही कहेंगे की कितनी खुश थी ममता और अब पलक झपकते  ही उसका सुखी संसार उजड़ गया था | लीला बहुत दुखी हुई उस पर तो जैसे दुखो का पहाड़ ही टूट पड़ा, पर फिर भी उसने अपने आपको संभाला और ममता की देख भाल करने लगी | होश आने पर ममता ने अपने आपको अस्पताल मे पाया तो कुछ ही देर बाद उसको समझ आ गया कि उसका सब कुछ लुट गया वो रोने लगी सास ने ममता को सम्भाला |
                           अहिस्ता -अहिस्ता समय का मरहम हर घाव को भरता है जीने के लिए इंसान को अपने मन को कुछ तो तसल्ली देनी ही पड़ती है अब ममता वापस अपने पिता के घर आ गयी और शिक्षिका की नौकरी कर ली |
तीन साल बाद
अब ममता ने स्कूल मे बच्चो के साथ अपना मन लगा लिया था| और बच्चे भी अपनी ममता मैडम से बहुत प्यार करने लगे थे | स्कूल मे ममता के बिना बच्चो का मन ही नहीं लगता था | स्कूल के प्रिंसिपल भी खुश थे कि बच्चे पढाई मे रूचि ले रहे है सब अच्छे से चल रहा था कि एक दिन पडौस मे रहने वाले रामकिशन की पत्नी का अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया | अब चार बच्चो को सम्भालना रामकिशन जी के बस की बात नहीं थी | उन्होंने दूसरी शादी करने का फैसला किया |कितनी ही जगह रिश्ते की बात की पर उनकी शर्त के कारण कोई भी औरत ने हां नहीं की शर्त ये थी कि रामकिशन जी दुसरी शादी से बच्चा नहीं पैदा करेंगे |
                 ममता के तो अब ग्रभाशय ही नहीं था तो बच्चा होने वाला ही नहीं था ये बात ममता के पिता को पता चली तो उन्होंने ये बात घर मे सब के सामने रखी तो सब ने कहा ममता  रामकिशन से बहुत छोटी है और वो चार बच्चो का पिता था | ममता का मन भी अब दूसरी शादी करने का बिल्कुल भी नहीं था |वो सोचने लगी कि ये दूसरी शादी किसलिए ? पिता के घर मे बेटी का रहना आज भी बोझ समझा जाता है,या इसलिए कि रामकिशन जी के चार बच्चो को सम्भाल सकू |और बिना पैदा किये सीधा चार बच्चो की माँ बनू तो क्या बुरा है कुछ तय नहीं कर सकी थी | अगर ममता अपने पिता के घर मे रहकर जीवन काटे तो इसमें क्या बुराई थी |अब तो वो उसने स्कूल मे नौकरी भी कर ली थी |पर उसके माता -पिता का ये सोचना था कि बेटी का अपना एक ठिकाना होना चाहिये| ये कैसी सोच थी समाज वालो की उसे समझ नहीं आ रहा था, कि क्यों एक विधवा अकेले अपना जीवन नहीं बिता सकती ? और फिर ठिकाने के लिए क्या ये चार बच्चो का बाप ही मिला था | रामकिशन फिर ममता के हां- ना की परवाह किसे थी | सिर्फ हाँ बोलना था |और शादी हो गयी |
                           अब तीस साल की ममता चार बच्चो की माँ बन गयी | जीवन का रुख ही बदल गया |जो किस्मत मे था हुआ उसने भी चुप -चाप स्वीकार किया और लगी नई गृहस्थी सम्भालने शादी होने के बाद कभी उसके माता -पिता ने ये नहीं पूछा की पति और बच्चो के साथ उसका रिश्ता कैसा है |बस वो तो खुश थे कि उनकी बेटी के ठिकाना हो गया है |दिन, महीने , साल बित्तते गये पर चार बच्चो को संभालना वो भी सौतेले बड़ा कठिन काम था | सौतेली माँ के प्रति बच्चो के मन मे ये बात भर दी जाती है ,कि वो सौतेले बच्चो को प्यार नहीं कर सकती बल्कि मारती है|पर लोग ये नहीं समझते कि माँ तो माँ होती है चाहे वो सौतेली हो या खुद, की माँ के दिल मे बच्चो के लिए केवल और केवल प्यार रहता है| वात्सल्य और ममत्व का भाव रहता है माँ ही उनको आगे बढ़ने मे उनके लिए दिशा निर्धारित करने मे उनकी मदद करती है |
                     यहाँ रामकिशन के बच्चो के दिल मे भी सौतेली माँ के खिलाफ जहर भर दिया गया था| बच्चे ममता के पास भी नहीं फटकते थे| पर ममता ने धीरे -धीरे उन्हें प्यार से उनकी सोच बदल दी अब वो अपनी ममता माँ की हर बात मानने लगे अपनी माँ को अब याद नहीं करते और ममता माँ के पास ही रहते थे समय बीतता रहा अब बच्चे बड़े हो गये पढ़ -लिख लिए | बड़े बेटे नितिन की तो नौकरी भी लग गयी |नितिन की शादी का मौका था |बेटे की शादी के लिए ममता ने बहुत सारी तैयारी की पर उसने जो चाहा वो तो नहीं हुआ रामकिशन ने शादी के मांगलिक काम अपने छोटे भाई -भाभी को करने को कहा क्योंकि उनकी नजरो मे वो अब भी विधवा थी |इतने साल उनके साथ उनकी पत्नी बने रहने के बाद भी ममता के उपर से विधवा का ठप्पा नहीं हटा ये उनकी ओछी सोच थी |तो क्या रामकिशन उसे अपने बच्चो की आया समझता था ये उसकी समझ से परे था?|
                          ममता कुछ नहीं बोली चुप -चाप सहन कर लिया शादी हुई बहु भी समझदार थी और सास भी समझदार तो दोनों मे खूब पटने लगी | माँ बेटी का रिश्ता हो गया दोनों मे |बहु ने सास को आते ही कह दिया कि अब आप आराम करो बाकि सब मे सम्भालती हूँ |आप तो मुझे आदेश करो अब आप और पापा अपने लिए जिओ | बहु का प्रेम देख ममता रोने लगी | दो साल बाद ममता की बहु ने बच्चा आने की खबर सुनाई सब खुश थे | सातवा माह था बहु की गोद भराई की रश्म थी आज जैसे ही ममता ने सगुन लेकर बहु के पास जाने को कदम बढाया तभी बहु के मायके वालो मे से किसी ने कहा की आपकी कभी गोद भरी नहीं तो आप रहने दो ममता ये सहन ना कर सकी और कमरे मे जाकर रोने लगी रामकिशन ये सब देख सुन रहे थे पर शादी के वक्त भी कहाँ साथ दिया जो अब देंगे | पर ममता की बहु ने भी कह दिया कि ''मेरी गोद अगर मेरी सास नहीं भर सकती तो मुझे ये सब करना ही नहीं है, मै ऐसे ही ठीक हूँ | नितिन ने भी कहा कि कौन कहता है ममता माँ माँ नहीं है वो तो चार बच्चो की माँ है ये ना होती तो हम आज किसी बुरी सगत मे पड गये होते | ममता माँ ये सब सुन कर खुश हुई| चलो अब गोद भराई शुरू करो हम और हमारे बच्चे को आपके आशीर्वाद की जरुरत है और ममता ने सोचा कि कैसे कहू इनको सौतेले ये बच्चे तो खुद के बच्चो से भी ज्यादा प्यार करते है मुझे और ममता ने अपने पति की और देखा जैसे कह रही हो कि आप से तो आपके बच्चे अच्छे है कितना सम्मान किया है |
                     शांति पुरोहित
                                  

विदेश मे शादी के मायने

                                                                                                                                                                                             आज सुबह ही दिव्या का फोन आया था , उसने अपनी सारी तखलीफ को भुला कर, अपनी जैसी मुसीबत मे फंसी हजारो  भारतीय लडकियों का विदेश मे जीवन बर्बाद ना हो ,उसके लिए वहां के स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N. G. O. खोला है | आज रमा बहुत खुश है , बेटी ने वो काम कर के दिखाया है,जिसकी उसने तो कभी कल्पना ही न की थी |
      रमा अपनी छोटी सी ग्रहस्थी मे बहुत खुश थी | पति विकास और एक प्यारी सी बिटिया दिव्या ही उसका परिवार था  रमा का| विकास के साथ प्रेम-विवाह हुआ था , ससुराल वालो ने बेटे -बहु को अपनाने से इंकार कर दिया था | कारण, वो ही सदियों पुरानी 'जाति -धर्म' की मानसिकता थी | रमा ब्राह्मण परिवार से थी, और विकास जैन धर्म को मानने वाला था |
      कॉलेज मे साथ पढ़ते थे, दोनों मे पहले दोस्ती हुई फिर प्रेम के बीज का अंकुरण हुआ,पल्वित हुआ और रमा और विकास ने घर वालो की रजामंदी के बिना ही शादी कर ली थी | दोनों को अपनी नहीं गृहस्थी बसाने मे ज्यादा परेशानी नहीं हुई, विकास एक बड़ी कंपनी मे मैनेजेर के पद पर कार्य करता था | पगार अच्छी थी | कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं हुई थी |
        समय अपनी गति से चलता रहा | पता ही नहीं चला कब तीन साल निकल गये,इसी दौरान रमा एक प्यारी सी बच्ची की माँ बन गयी थी | रमा का पूरा ध्यान अपनी बेटी दिव्या की देख -भाल मे लगा रहता था | विकास ने घर के काम -काज के लिए दो-दो नौकर रख लिए थे | घर के काम से रमा बिलकुल ही फ्री थी | विकास और रमा बहुत खुश थे | पर कुदरत ने रमा की ख़ुशी का वक़्त बहुत कम तय कर के रखा था | अचानक ही रमा की खुशियों को न जाने किसकी नजर लगी , उसका सब कुछ बर्बाद हो गया |
        विकास का कार दुर्घटना मे प्राणान्त हो गया | पल भर मे रमा का जीवन छिन्न -भिन्न  हो गया | पति के इस तरह बीच राह मे छोड़ कर जाने से रमा पत्थर सी निष्प्राण हो गयी | सामाजिक लोकाचार के बाद सब रिश्तेदार वापस चले गये ,तब रमा को अपनी बेटी दिव्या का ख्याल आया, की वो अकेली नन्ही सी जान के साथ कैसे जियेगी | रमा के पास कोई नौकरी भी नहीं थी | ससुराल मे तो उसे कोई अपनाएगा नहीं फिर भी उसने वहीं जाने का निर्णय किया |
        ' इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए पहले से ही बंद है,फिर क्यों आई हो अपना मनहूस साया लेकर यहाँ, चली जाओ वापस |,पहले हमारे बेटे को हमसे दूर किया और अब इस दुनिया से ही दूर हो गया | अब यहाँ क्या करने आयी हो | सास ने जली -कटी सुनाकर अपना दरवाजा बंद कर लिया | दुखी रमा ने वापस अपने घर जाना ही उचित समझा |
        रमा ने कुछ दिनों के लिए मम्मी -पापा के घर जाने का निश्चय किया | मम्मी के गले लगकर रमा बहुत रोई | मम्मी ने कहा ' रमा ये तुम्हारा ही घर है ,जब तक मन करे यही रहो, और मै तो कहती हूँ ,अब वहाँ अकेली रह कर क्या करोगी, हमारे पास ही रहो |, माँ के प्यार भरे स्पर्श से रमा के आर्त -मन को कुछ तो राहत मिली | भाभी तो रूखेपन से बस मुस्कराई भर थी, और रसोई मे चाय बनाने चली गयी | रमा को समझते देर ना लगी कि भाभी को मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा है |
        अभी कुछ दिन ही हुए रमा को यहाँ आये कि भाभी का हर छोटी -मोटी बात पर रमा को टोकना ,नीचा दिखाना चालू हो गया | रमा अनदेखा करती रही | पर आज तो रमा ने जो सुना,उसके बाद उसने मम्मी के घर से जाने का निश्चय कर लिया | भाभी भाई से कह रही थी कि ' आप अपनी बहन को यहाँ से जाने के लिए बोल दो ,ये जब से अपनी फूटी किस्मत लेकर यहाँ आई है ,मुझे अपनी चिंता होने लगी है | मुझे डर है कि कहीं आपको कुछ हो ना जाये |, इसके रहने ,खाने का खर्च हम वहन कर लेंगे ,आप तो इसको यहाँ से चलता करो |,
              भाई ने कहा 'कुछ दिन ही तो हुए है कितने बड़े दुःख से गुजरी है ,कुछ दिन बाद खुद ही चली जाएगी|,ये सब सुनकर रमा हैरान रह गयी ,जाने के लिए मम्मी को भी तो राजी करना होगा | सुबह चाय पीते हुए रमा ने मम्मी से कहा ' मम्मी अब मै अपने घर जाना चाहती हूँ , यहाँ इस उम्र मे आप पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहती |, मम्मी ने कहा क्यों ?  वहां कोई भी तो नहीं,किसके सहारे रहोगी |, 'नहीं मम्मी जाने दो ,और इससे पहले भाई उसे जाने का बोले, वो किसी तरह मम्मी को समझाकर अपने घर आ गयी |
          शाम को भाई ने रमा को घर मे नहीं देखा तो पत्नी से पूछा 'रमा कहाँ है ? 'चली गयी अपने घर अपने को कुछ कहना ही ना पडा ,चलो बला टली |, पत्नी ने खुश होते हुए कहा | बहु -बेटे की बाते सुनकर रमा की मम्मी के रमा के जाने का कारण समझ मे आ गया था | रमा अपने घर मे विकास की यादो के सहारे जीने की कोशिश करने लगी | विकास की कम्पनी ने रमा को सहानुभूति वश कम्पनी मे काम दे दिया था ,जिससे रमा का जीवन सुचारू रूप से चलने लगा
          अब रमा का सारा ध्यान अपनी बेटी दिव्या पर था, जो उसका एक मात्र जीने का सहारा भी थी | समय अपनी गति से चलता रहा | दिव्या अब बड़ी हो गयी, पढने मे वो कुशाग्र बुधि की थी | उसने ऍम ,बी .ए . किया | कॉलेज मे दिव्या का प्लेसमेंट मे एक बड़ी कंपनी मे जॉब का ऑफर आ गया था | पर रमा उसकी शादी करना चाहती थी | माँ -बेटी मे इस मामले मे बहुत बार बहस होती थी | दिव्या माँ को अकेला छोड़ कर शादी नहीं करना चाहती थी | रमा कहती ' दिव्या तेरे हाथ पीले करके तुझे अपने घर विदा करदू तो मे चैन से जी लुंगी अपना बाकि का जीवन |,
        रमा ने आखिर दिव्या के ना चाहने पर भी उसके लिए रिश्ते देखने शुरू किये | बहुत रिश्ते देखे ,पर कुछ रमा को पसंद नहीं आते ,तो कुछ को दिव्या नहीं पसंद आती थी |समय बीतता जा रहा था | रमा की चिंता बढती जा रही थी | दिव्या २७ वा साल पूरा करने वाली है | कोई भी रिश्तेदार रमा की मदद भी नहीं कर रहा था | सबका ये सोचना था कि माँ -बेटी की किस्मत अच्छी नहीं है ,कहीं हमारी खुशियों को भी ग्रहण ना लग जाये | रमा करे तो क्या करे! अब रमा के दिन -रात इसी चिंता मे बीतने लगे थे | दिव्या माँ के गले लगकर हमेशा बोलती थी कि 'मेरी शादी की चिंता छोड़ दो,मै आपके बुढ़ापे का सहारा बनुगी |,
            दिव्या के कॉलेज जाने के बाद रमा उदास बैठी थी, तभी फोन की घंटी बजी | रमा ने फोन उठाया ,हल्लो , सामने से कमला ताई की आवाज आई 'मै कमला अमेरिका से बोल रही हूँ ,
  आज हमारी याद कैसे आई , रमा ने बोला |
  दिव्या के रिश्ते के लिए मेरे देवर का बेटा संदीप कैसा रहेगा ,
  'वो जिसका परिवार अम्रतसर मे रहता है , रमा ने कहा |
  'हाँ ,वही, कमला ताई ने कहा |
 ' तुम चाहो तो अम्रतसर चले जाओ , हाँ ठीक है ,देखते है , रमा ने फोन कट किया |
        रमा के दिल मे विचार चल रहा था कि इतनी दूर सात समन्दर पार दिव्या का ब्याह करना ठीक रहेगा ?,
        दिव्या से बात की तो वो बोली ' विदेश मे रहने  वाले लडको पर मुझे तो भरोसा नहीं है , आपके पहचान वाले है, तो ठीक है | रमा को बात ठीक लगी, अम्रतसर जाकर संदीप के माता -पिता से मिली ,सब ठीक लगा ,दिव्या की संदीप के साथ शादी की बात पक्की हो गयी | दो माह बाद शादी हो गयी | रमा के कोई रिश्तेदार नहीं होने के कारण ,अम्रतसर जाकर एक सादे समारोह मे शादी कर दी | आखिरकार शादी के बीस दिन बाद दिव्या के अमेरिका जाने का समय आ गया |रमा ने नम आँखों से बेटी को विदाई दी | संदीप और कमला ताई को बेटी को प्यार से रखने की बात कह कर रमा अपने घर आ गयी |
     प्लेन की कुछ घंटो की यात्रा के बाद दिव्या 'अमेरिका के न्यूयॉर्क, शहर मे थी | संदीप का आलिशान घर और और उसका अपने प्रति इतना प्रेम देख कर ,दिव्या अपनी किस्मत पर बहुत खुश हो रही थी | संदीप रोज ऑफिस से जल्दी आ जाता, और दिव्या को बाहर घुमाने ले जाता था | करीब बीस दिनों तक संदीप उसे पार्टी,होटल आदि ले जाता रहा| शाम का खाना तो प्राय बाहर ही खा कर आते थे | दिव्या बहुत खुश थी |
          दिव्या की ख़ुशी ज्यादा दिन तक ना रही,आज संदीप ने दिव्या को साथ ले जाने से इंकार किया | दिव्या ने कारण जानना चाहा ,तो उसे गुस्सा आ गया दिव्या को डांटने लगा | फिर भी दिव्या ने जानना चाहा, तो सुनो संदीप ने कहा ' मैंने यहाँ की एक विदेशी लड़की से घर वालो को बिना बताये शादी कर ली है,हमारे एक बच्चा भी है, तुमसे शादी की तो सिर्फ माँ -पापा को खुश रखने के लिए | और हाँ ,तुम अपने घर दिल्ली जाने का तो सोचना भी मत , तुम्हारा पासपोर्ट मेरे पास ही रहेगा, मै नहीं चाहता मेरे घरवालो को इस बात की भनक भी लगे | तुम्हे यहाँ सब कुछ मिलेगा तुम्हे किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी , इतना कहकर वो अपनी पहली पत्नी के घर चला गया | दिव्या को ये सब सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके शारीर से रक्त का एक -एक कतरा निकाल लिया हो और वो निष्प्राण हो गयी | उसे अपनी दुनिया उजडती हुई साफ दिखाई दे रही थी |
        हैरान,परेशांन दिव्या ने कुछ देर बाद अपने अंदर इस मुसीबत से लड़ने की हिम्मत पैदा की, दिव्या एक बहुत ही समझदार और संस्कारी लड़की थी | पति के इस कृत्य मे चुप रहकर अन्याय सह कर उसे बढ़ावा देने वालो मे से नहीं थी | अब उसे अपना आत्म सम्मान बचाना था | उसने पहला कदम बढ़ाया, संदीप से बात करने का कोई फायदा नहीं था | उसने पुलिस  -स्टेशन जाकर, संदीप पर धोखे से शादी करने के लिए ऍफ़ .आई .र . लिखवा दी | संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया | संदीप ने सोचा नहीं कि दिव्या उसके साथ ऐसा कुछ करेगी |
          पुलिस ने दिव्या का पासपोर्ट भी संदीप से लेकर दिव्या को दे दिया ,और कहा 'आप इंडिया जाना चाहो तो हम सरकारी खर्च पर भेज सकते है |, दिव्या ने कहा 'नहीं जाना अभी तो मुझे बहुत काम करने है | संदीप को सबक सिखाना है |
          दिव्या ने कुछ स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N.G.O.खोला , जिसके अंतर्गत तमाम भारतीय लडकियों की मदद की जा सके, जो उसकी तरह मुसीबत मे फंस जाये | पुलिस ने भी अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया | इससे भारतीय लडकियों का जीवन बर्बाद होने से बच जायेगा |
        संदीप की विदेशी पत्नी को उसके बारे मे ये सब पता चला तो उसने उसे छोड दिया | संदीप को एक साल की सजा हुई | एक साल की सजा काट कर जब संदीप वापस आया , तो दिव्या उसके घर से जाने लगी ,उसने अपना अलग घर ले लिया था, वो एक कम्पनी मे मार्केटिंग मैनेजर की हेसियत से काम करती थी | संदीप ने उसे रोका और कहा ' दिव्या मुझे छोडकर मत जाओ, अब मै कहाँ जाऊंगा ? जूलिया तो मुझे पहले ही छोडकर चली गयी है | अब कभी तुम्हे धोखा नहीं दूंगा |, पर दिव्या ने उसके साथ रहने से साफ इंकार कर दिया और चली गयी | इस तरह संदीप को दोनों औरतो ने छोड़ दिया , दोनों ने अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की | किसी ने सच ही कहा है, जैसी करनी वैसी भरनी |
               शांति पुरोहित  
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

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