आज सुबह ही दिव्या का फोन आया था , उसने अपनी सारी तखलीफ को भुला कर, अपनी जैसी मुसीबत मे फंसी हजारो भारतीय लडकियों का विदेश मे जीवन बर्बाद ना हो ,उसके लिए वहां के स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N. G. O. खोला है | आज रमा बहुत खुश है , बेटी ने वो काम कर के दिखाया है,जिसकी उसने तो कभी कल्पना ही न की थी |
रमा अपनी छोटी सी ग्रहस्थी मे बहुत खुश थी | पति विकास और एक प्यारी सी बिटिया दिव्या ही उसका परिवार था रमा का| विकास के साथ प्रेम-विवाह हुआ था , ससुराल वालो ने बेटे -बहु को अपनाने से इंकार कर दिया था | कारण, वो ही सदियों पुरानी 'जाति -धर्म' की मानसिकता थी | रमा ब्राह्मण परिवार से थी, और विकास जैन धर्म को मानने वाला था |
कॉलेज मे साथ पढ़ते थे, दोनों मे पहले दोस्ती हुई फिर प्रेम के बीज का अंकुरण हुआ,पल्वित हुआ और रमा और विकास ने घर वालो की रजामंदी के बिना ही शादी कर ली थी | दोनों को अपनी नहीं गृहस्थी बसाने मे ज्यादा परेशानी नहीं हुई, विकास एक बड़ी कंपनी मे मैनेजेर के पद पर कार्य करता था | पगार अच्छी थी | कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं हुई थी |
समय अपनी गति से चलता रहा | पता ही नहीं चला कब तीन साल निकल गये,इसी दौरान रमा एक प्यारी सी बच्ची की माँ बन गयी थी | रमा का पूरा ध्यान अपनी बेटी दिव्या की देख -भाल मे लगा रहता था | विकास ने घर के काम -काज के लिए दो-दो नौकर रख लिए थे | घर के काम से रमा बिलकुल ही फ्री थी | विकास और रमा बहुत खुश थे | पर कुदरत ने रमा की ख़ुशी का वक़्त बहुत कम तय कर के रखा था | अचानक ही रमा की खुशियों को न जाने किसकी नजर लगी , उसका सब कुछ बर्बाद हो गया |
विकास का कार दुर्घटना मे प्राणान्त हो गया | पल भर मे रमा का जीवन छिन्न -भिन्न हो गया | पति के इस तरह बीच राह मे छोड़ कर जाने से रमा पत्थर सी निष्प्राण हो गयी | सामाजिक लोकाचार के बाद सब रिश्तेदार वापस चले गये ,तब रमा को अपनी बेटी दिव्या का ख्याल आया, की वो अकेली नन्ही सी जान के साथ कैसे जियेगी | रमा के पास कोई नौकरी भी नहीं थी | ससुराल मे तो उसे कोई अपनाएगा नहीं फिर भी उसने वहीं जाने का निर्णय किया |
' इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए पहले से ही बंद है,फिर क्यों आई हो अपना मनहूस साया लेकर यहाँ, चली जाओ वापस |,पहले हमारे बेटे को हमसे दूर किया और अब इस दुनिया से ही दूर हो गया | अब यहाँ क्या करने आयी हो | सास ने जली -कटी सुनाकर अपना दरवाजा बंद कर लिया | दुखी रमा ने वापस अपने घर जाना ही उचित समझा |
रमा ने कुछ दिनों के लिए मम्मी -पापा के घर जाने का निश्चय किया | मम्मी के गले लगकर रमा बहुत रोई | मम्मी ने कहा ' रमा ये तुम्हारा ही घर है ,जब तक मन करे यही रहो, और मै तो कहती हूँ ,अब वहाँ अकेली रह कर क्या करोगी, हमारे पास ही रहो |, माँ के प्यार भरे स्पर्श से रमा के आर्त -मन को कुछ तो राहत मिली | भाभी तो रूखेपन से बस मुस्कराई भर थी, और रसोई मे चाय बनाने चली गयी | रमा को समझते देर ना लगी कि भाभी को मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा है |
अभी कुछ दिन ही हुए रमा को यहाँ आये कि भाभी का हर छोटी -मोटी बात पर रमा को टोकना ,नीचा दिखाना चालू हो गया | रमा अनदेखा करती रही | पर आज तो रमा ने जो सुना,उसके बाद उसने मम्मी के घर से जाने का निश्चय कर लिया | भाभी भाई से कह रही थी कि ' आप अपनी बहन को यहाँ से जाने के लिए बोल दो ,ये जब से अपनी फूटी किस्मत लेकर यहाँ आई है ,मुझे अपनी चिंता होने लगी है | मुझे डर है कि कहीं आपको कुछ हो ना जाये |, इसके रहने ,खाने का खर्च हम वहन कर लेंगे ,आप तो इसको यहाँ से चलता करो |,
भाई ने कहा 'कुछ दिन ही तो हुए है कितने बड़े दुःख से गुजरी है ,कुछ दिन बाद खुद ही चली जाएगी|,ये सब सुनकर रमा हैरान रह गयी ,जाने के लिए मम्मी को भी तो राजी करना होगा | सुबह चाय पीते हुए रमा ने मम्मी से कहा ' मम्मी अब मै अपने घर जाना चाहती हूँ , यहाँ इस उम्र मे आप पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहती |, मम्मी ने कहा क्यों ? वहां कोई भी तो नहीं,किसके सहारे रहोगी |, 'नहीं मम्मी जाने दो ,और इससे पहले भाई उसे जाने का बोले, वो किसी तरह मम्मी को समझाकर अपने घर आ गयी |
शाम को भाई ने रमा को घर मे नहीं देखा तो पत्नी से पूछा 'रमा कहाँ है ? 'चली गयी अपने घर अपने को कुछ कहना ही ना पडा ,चलो बला टली |, पत्नी ने खुश होते हुए कहा | बहु -बेटे की बाते सुनकर रमा की मम्मी के रमा के जाने का कारण समझ मे आ गया था | रमा अपने घर मे विकास की यादो के सहारे जीने की कोशिश करने लगी | विकास की कम्पनी ने रमा को सहानुभूति वश कम्पनी मे काम दे दिया था ,जिससे रमा का जीवन सुचारू रूप से चलने लगा
अब रमा का सारा ध्यान अपनी बेटी दिव्या पर था, जो उसका एक मात्र जीने का सहारा भी थी | समय अपनी गति से चलता रहा | दिव्या अब बड़ी हो गयी, पढने मे वो कुशाग्र बुधि की थी | उसने ऍम ,बी .ए . किया | कॉलेज मे दिव्या का प्लेसमेंट मे एक बड़ी कंपनी मे जॉब का ऑफर आ गया था | पर रमा उसकी शादी करना चाहती थी | माँ -बेटी मे इस मामले मे बहुत बार बहस होती थी | दिव्या माँ को अकेला छोड़ कर शादी नहीं करना चाहती थी | रमा कहती ' दिव्या तेरे हाथ पीले करके तुझे अपने घर विदा करदू तो मे चैन से जी लुंगी अपना बाकि का जीवन |,
रमा ने आखिर दिव्या के ना चाहने पर भी उसके लिए रिश्ते देखने शुरू किये | बहुत रिश्ते देखे ,पर कुछ रमा को पसंद नहीं आते ,तो कुछ को दिव्या नहीं पसंद आती थी |समय बीतता जा रहा था | रमा की चिंता बढती जा रही थी | दिव्या २७ वा साल पूरा करने वाली है | कोई भी रिश्तेदार रमा की मदद भी नहीं कर रहा था | सबका ये सोचना था कि माँ -बेटी की किस्मत अच्छी नहीं है ,कहीं हमारी खुशियों को भी ग्रहण ना लग जाये | रमा करे तो क्या करे! अब रमा के दिन -रात इसी चिंता मे बीतने लगे थे | दिव्या माँ के गले लगकर हमेशा बोलती थी कि 'मेरी शादी की चिंता छोड़ दो,मै आपके बुढ़ापे का सहारा बनुगी |,
दिव्या के कॉलेज जाने के बाद रमा उदास बैठी थी, तभी फोन की घंटी बजी | रमा ने फोन उठाया ,हल्लो , सामने से कमला ताई की आवाज आई 'मै कमला अमेरिका से बोल रही हूँ ,
आज हमारी याद कैसे आई , रमा ने बोला |
दिव्या के रिश्ते के लिए मेरे देवर का बेटा संदीप कैसा रहेगा ,
'वो जिसका परिवार अम्रतसर मे रहता है , रमा ने कहा |
'हाँ ,वही, कमला ताई ने कहा |
' तुम चाहो तो अम्रतसर चले जाओ , हाँ ठीक है ,देखते है , रमा ने फोन कट किया |
रमा के दिल मे विचार चल रहा था कि इतनी दूर सात समन्दर पार दिव्या का ब्याह करना ठीक रहेगा ?,
दिव्या से बात की तो वो बोली ' विदेश मे रहने वाले लडको पर मुझे तो भरोसा नहीं है , आपके पहचान वाले है, तो ठीक है | रमा को बात ठीक लगी, अम्रतसर जाकर संदीप के माता -पिता से मिली ,सब ठीक लगा ,दिव्या की संदीप के साथ शादी की बात पक्की हो गयी | दो माह बाद शादी हो गयी | रमा के कोई रिश्तेदार नहीं होने के कारण ,अम्रतसर जाकर एक सादे समारोह मे शादी कर दी | आखिरकार शादी के बीस दिन बाद दिव्या के अमेरिका जाने का समय आ गया |रमा ने नम आँखों से बेटी को विदाई दी | संदीप और कमला ताई को बेटी को प्यार से रखने की बात कह कर रमा अपने घर आ गयी |
रमा अपनी छोटी सी ग्रहस्थी मे बहुत खुश थी | पति विकास और एक प्यारी सी बिटिया दिव्या ही उसका परिवार था रमा का| विकास के साथ प्रेम-विवाह हुआ था , ससुराल वालो ने बेटे -बहु को अपनाने से इंकार कर दिया था | कारण, वो ही सदियों पुरानी 'जाति -धर्म' की मानसिकता थी | रमा ब्राह्मण परिवार से थी, और विकास जैन धर्म को मानने वाला था |
कॉलेज मे साथ पढ़ते थे, दोनों मे पहले दोस्ती हुई फिर प्रेम के बीज का अंकुरण हुआ,पल्वित हुआ और रमा और विकास ने घर वालो की रजामंदी के बिना ही शादी कर ली थी | दोनों को अपनी नहीं गृहस्थी बसाने मे ज्यादा परेशानी नहीं हुई, विकास एक बड़ी कंपनी मे मैनेजेर के पद पर कार्य करता था | पगार अच्छी थी | कभी किसी चीज की कोई कमी नहीं हुई थी |
समय अपनी गति से चलता रहा | पता ही नहीं चला कब तीन साल निकल गये,इसी दौरान रमा एक प्यारी सी बच्ची की माँ बन गयी थी | रमा का पूरा ध्यान अपनी बेटी दिव्या की देख -भाल मे लगा रहता था | विकास ने घर के काम -काज के लिए दो-दो नौकर रख लिए थे | घर के काम से रमा बिलकुल ही फ्री थी | विकास और रमा बहुत खुश थे | पर कुदरत ने रमा की ख़ुशी का वक़्त बहुत कम तय कर के रखा था | अचानक ही रमा की खुशियों को न जाने किसकी नजर लगी , उसका सब कुछ बर्बाद हो गया |
विकास का कार दुर्घटना मे प्राणान्त हो गया | पल भर मे रमा का जीवन छिन्न -भिन्न हो गया | पति के इस तरह बीच राह मे छोड़ कर जाने से रमा पत्थर सी निष्प्राण हो गयी | सामाजिक लोकाचार के बाद सब रिश्तेदार वापस चले गये ,तब रमा को अपनी बेटी दिव्या का ख्याल आया, की वो अकेली नन्ही सी जान के साथ कैसे जियेगी | रमा के पास कोई नौकरी भी नहीं थी | ससुराल मे तो उसे कोई अपनाएगा नहीं फिर भी उसने वहीं जाने का निर्णय किया |
' इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए पहले से ही बंद है,फिर क्यों आई हो अपना मनहूस साया लेकर यहाँ, चली जाओ वापस |,पहले हमारे बेटे को हमसे दूर किया और अब इस दुनिया से ही दूर हो गया | अब यहाँ क्या करने आयी हो | सास ने जली -कटी सुनाकर अपना दरवाजा बंद कर लिया | दुखी रमा ने वापस अपने घर जाना ही उचित समझा |
रमा ने कुछ दिनों के लिए मम्मी -पापा के घर जाने का निश्चय किया | मम्मी के गले लगकर रमा बहुत रोई | मम्मी ने कहा ' रमा ये तुम्हारा ही घर है ,जब तक मन करे यही रहो, और मै तो कहती हूँ ,अब वहाँ अकेली रह कर क्या करोगी, हमारे पास ही रहो |, माँ के प्यार भरे स्पर्श से रमा के आर्त -मन को कुछ तो राहत मिली | भाभी तो रूखेपन से बस मुस्कराई भर थी, और रसोई मे चाय बनाने चली गयी | रमा को समझते देर ना लगी कि भाभी को मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा है |
अभी कुछ दिन ही हुए रमा को यहाँ आये कि भाभी का हर छोटी -मोटी बात पर रमा को टोकना ,नीचा दिखाना चालू हो गया | रमा अनदेखा करती रही | पर आज तो रमा ने जो सुना,उसके बाद उसने मम्मी के घर से जाने का निश्चय कर लिया | भाभी भाई से कह रही थी कि ' आप अपनी बहन को यहाँ से जाने के लिए बोल दो ,ये जब से अपनी फूटी किस्मत लेकर यहाँ आई है ,मुझे अपनी चिंता होने लगी है | मुझे डर है कि कहीं आपको कुछ हो ना जाये |, इसके रहने ,खाने का खर्च हम वहन कर लेंगे ,आप तो इसको यहाँ से चलता करो |,
भाई ने कहा 'कुछ दिन ही तो हुए है कितने बड़े दुःख से गुजरी है ,कुछ दिन बाद खुद ही चली जाएगी|,ये सब सुनकर रमा हैरान रह गयी ,जाने के लिए मम्मी को भी तो राजी करना होगा | सुबह चाय पीते हुए रमा ने मम्मी से कहा ' मम्मी अब मै अपने घर जाना चाहती हूँ , यहाँ इस उम्र मे आप पर बोझ बन कर नहीं रहना चाहती |, मम्मी ने कहा क्यों ? वहां कोई भी तो नहीं,किसके सहारे रहोगी |, 'नहीं मम्मी जाने दो ,और इससे पहले भाई उसे जाने का बोले, वो किसी तरह मम्मी को समझाकर अपने घर आ गयी |
शाम को भाई ने रमा को घर मे नहीं देखा तो पत्नी से पूछा 'रमा कहाँ है ? 'चली गयी अपने घर अपने को कुछ कहना ही ना पडा ,चलो बला टली |, पत्नी ने खुश होते हुए कहा | बहु -बेटे की बाते सुनकर रमा की मम्मी के रमा के जाने का कारण समझ मे आ गया था | रमा अपने घर मे विकास की यादो के सहारे जीने की कोशिश करने लगी | विकास की कम्पनी ने रमा को सहानुभूति वश कम्पनी मे काम दे दिया था ,जिससे रमा का जीवन सुचारू रूप से चलने लगा
अब रमा का सारा ध्यान अपनी बेटी दिव्या पर था, जो उसका एक मात्र जीने का सहारा भी थी | समय अपनी गति से चलता रहा | दिव्या अब बड़ी हो गयी, पढने मे वो कुशाग्र बुधि की थी | उसने ऍम ,बी .ए . किया | कॉलेज मे दिव्या का प्लेसमेंट मे एक बड़ी कंपनी मे जॉब का ऑफर आ गया था | पर रमा उसकी शादी करना चाहती थी | माँ -बेटी मे इस मामले मे बहुत बार बहस होती थी | दिव्या माँ को अकेला छोड़ कर शादी नहीं करना चाहती थी | रमा कहती ' दिव्या तेरे हाथ पीले करके तुझे अपने घर विदा करदू तो मे चैन से जी लुंगी अपना बाकि का जीवन |,
रमा ने आखिर दिव्या के ना चाहने पर भी उसके लिए रिश्ते देखने शुरू किये | बहुत रिश्ते देखे ,पर कुछ रमा को पसंद नहीं आते ,तो कुछ को दिव्या नहीं पसंद आती थी |समय बीतता जा रहा था | रमा की चिंता बढती जा रही थी | दिव्या २७ वा साल पूरा करने वाली है | कोई भी रिश्तेदार रमा की मदद भी नहीं कर रहा था | सबका ये सोचना था कि माँ -बेटी की किस्मत अच्छी नहीं है ,कहीं हमारी खुशियों को भी ग्रहण ना लग जाये | रमा करे तो क्या करे! अब रमा के दिन -रात इसी चिंता मे बीतने लगे थे | दिव्या माँ के गले लगकर हमेशा बोलती थी कि 'मेरी शादी की चिंता छोड़ दो,मै आपके बुढ़ापे का सहारा बनुगी |,
दिव्या के कॉलेज जाने के बाद रमा उदास बैठी थी, तभी फोन की घंटी बजी | रमा ने फोन उठाया ,हल्लो , सामने से कमला ताई की आवाज आई 'मै कमला अमेरिका से बोल रही हूँ ,
आज हमारी याद कैसे आई , रमा ने बोला |
दिव्या के रिश्ते के लिए मेरे देवर का बेटा संदीप कैसा रहेगा ,
'वो जिसका परिवार अम्रतसर मे रहता है , रमा ने कहा |
'हाँ ,वही, कमला ताई ने कहा |
' तुम चाहो तो अम्रतसर चले जाओ , हाँ ठीक है ,देखते है , रमा ने फोन कट किया |
रमा के दिल मे विचार चल रहा था कि इतनी दूर सात समन्दर पार दिव्या का ब्याह करना ठीक रहेगा ?,
दिव्या से बात की तो वो बोली ' विदेश मे रहने वाले लडको पर मुझे तो भरोसा नहीं है , आपके पहचान वाले है, तो ठीक है | रमा को बात ठीक लगी, अम्रतसर जाकर संदीप के माता -पिता से मिली ,सब ठीक लगा ,दिव्या की संदीप के साथ शादी की बात पक्की हो गयी | दो माह बाद शादी हो गयी | रमा के कोई रिश्तेदार नहीं होने के कारण ,अम्रतसर जाकर एक सादे समारोह मे शादी कर दी | आखिरकार शादी के बीस दिन बाद दिव्या के अमेरिका जाने का समय आ गया |रमा ने नम आँखों से बेटी को विदाई दी | संदीप और कमला ताई को बेटी को प्यार से रखने की बात कह कर रमा अपने घर आ गयी |
प्लेन की कुछ घंटो की यात्रा के बाद दिव्या 'अमेरिका के न्यूयॉर्क, शहर मे थी | संदीप का आलिशान घर और और उसका अपने प्रति इतना प्रेम देख कर ,दिव्या अपनी किस्मत पर बहुत खुश हो रही थी | संदीप रोज ऑफिस से जल्दी आ जाता, और दिव्या को बाहर घुमाने ले जाता था | करीब बीस दिनों तक संदीप उसे पार्टी,होटल आदि ले जाता रहा| शाम का खाना तो प्राय बाहर ही खा कर आते थे | दिव्या बहुत खुश थी |
दिव्या की ख़ुशी ज्यादा दिन तक ना रही,आज संदीप ने दिव्या को साथ ले जाने से इंकार किया | दिव्या ने कारण जानना चाहा ,तो उसे गुस्सा आ गया दिव्या को डांटने लगा | फिर भी दिव्या ने जानना चाहा, तो सुनो संदीप ने कहा ' मैंने यहाँ की एक विदेशी लड़की से घर वालो को बिना बताये शादी कर ली है,हमारे एक बच्चा भी है, तुमसे शादी की तो सिर्फ माँ -पापा को खुश रखने के लिए | और हाँ ,तुम अपने घर दिल्ली जाने का तो सोचना भी मत , तुम्हारा पासपोर्ट मेरे पास ही रहेगा, मै नहीं चाहता मेरे घरवालो को इस बात की भनक भी लगे | तुम्हे यहाँ सब कुछ मिलेगा तुम्हे किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी , इतना कहकर वो अपनी पहली पत्नी के घर चला गया | दिव्या को ये सब सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके शारीर से रक्त का एक -एक कतरा निकाल लिया हो और वो निष्प्राण हो गयी | उसे अपनी दुनिया उजडती हुई साफ दिखाई दे रही थी |
हैरान,परेशांन दिव्या ने कुछ देर बाद अपने अंदर इस मुसीबत से लड़ने की हिम्मत पैदा की, दिव्या एक बहुत ही समझदार और संस्कारी लड़की थी | पति के इस कृत्य मे चुप रहकर अन्याय सह कर उसे बढ़ावा देने वालो मे से नहीं थी | अब उसे अपना आत्म सम्मान बचाना था | उसने पहला कदम बढ़ाया, संदीप से बात करने का कोई फायदा नहीं था | उसने पुलिस -स्टेशन जाकर, संदीप पर धोखे से शादी करने के लिए ऍफ़ .आई .र . लिखवा दी | संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया | संदीप ने सोचा नहीं कि दिव्या उसके साथ ऐसा कुछ करेगी |
पुलिस ने दिव्या का पासपोर्ट भी संदीप से लेकर दिव्या को दे दिया ,और कहा 'आप इंडिया जाना चाहो तो हम सरकारी खर्च पर भेज सकते है |, दिव्या ने कहा 'नहीं जाना अभी तो मुझे बहुत काम करने है | संदीप को सबक सिखाना है |
दिव्या ने कुछ स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N.G.O.खोला , जिसके अंतर्गत तमाम भारतीय लडकियों की मदद की जा सके, जो उसकी तरह मुसीबत मे फंस जाये | पुलिस ने भी अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया | इससे भारतीय लडकियों का जीवन बर्बाद होने से बच जायेगा |
संदीप की विदेशी पत्नी को उसके बारे मे ये सब पता चला तो उसने उसे छोड दिया | संदीप को एक साल की सजा हुई | एक साल की सजा काट कर जब संदीप वापस आया , तो दिव्या उसके घर से जाने लगी ,उसने अपना अलग घर ले लिया था, वो एक कम्पनी मे मार्केटिंग मैनेजर की हेसियत से काम करती थी | संदीप ने उसे रोका और कहा ' दिव्या मुझे छोडकर मत जाओ, अब मै कहाँ जाऊंगा ? जूलिया तो मुझे पहले ही छोडकर चली गयी है | अब कभी तुम्हे धोखा नहीं दूंगा |, पर दिव्या ने उसके साथ रहने से साफ इंकार कर दिया और चली गयी | इस तरह संदीप को दोनों औरतो ने छोड़ दिया , दोनों ने अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की | किसी ने सच ही कहा है, जैसी करनी वैसी भरनी |
शांति पुरोहित
दिव्या की ख़ुशी ज्यादा दिन तक ना रही,आज संदीप ने दिव्या को साथ ले जाने से इंकार किया | दिव्या ने कारण जानना चाहा ,तो उसे गुस्सा आ गया दिव्या को डांटने लगा | फिर भी दिव्या ने जानना चाहा, तो सुनो संदीप ने कहा ' मैंने यहाँ की एक विदेशी लड़की से घर वालो को बिना बताये शादी कर ली है,हमारे एक बच्चा भी है, तुमसे शादी की तो सिर्फ माँ -पापा को खुश रखने के लिए | और हाँ ,तुम अपने घर दिल्ली जाने का तो सोचना भी मत , तुम्हारा पासपोर्ट मेरे पास ही रहेगा, मै नहीं चाहता मेरे घरवालो को इस बात की भनक भी लगे | तुम्हे यहाँ सब कुछ मिलेगा तुम्हे किसी भी बात की कमी नहीं रहेगी , इतना कहकर वो अपनी पहली पत्नी के घर चला गया | दिव्या को ये सब सुनकर ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके शारीर से रक्त का एक -एक कतरा निकाल लिया हो और वो निष्प्राण हो गयी | उसे अपनी दुनिया उजडती हुई साफ दिखाई दे रही थी |
हैरान,परेशांन दिव्या ने कुछ देर बाद अपने अंदर इस मुसीबत से लड़ने की हिम्मत पैदा की, दिव्या एक बहुत ही समझदार और संस्कारी लड़की थी | पति के इस कृत्य मे चुप रहकर अन्याय सह कर उसे बढ़ावा देने वालो मे से नहीं थी | अब उसे अपना आत्म सम्मान बचाना था | उसने पहला कदम बढ़ाया, संदीप से बात करने का कोई फायदा नहीं था | उसने पुलिस -स्टेशन जाकर, संदीप पर धोखे से शादी करने के लिए ऍफ़ .आई .र . लिखवा दी | संदीप को गिरफ्तार कर लिया गया | संदीप ने सोचा नहीं कि दिव्या उसके साथ ऐसा कुछ करेगी |
पुलिस ने दिव्या का पासपोर्ट भी संदीप से लेकर दिव्या को दे दिया ,और कहा 'आप इंडिया जाना चाहो तो हम सरकारी खर्च पर भेज सकते है |, दिव्या ने कहा 'नहीं जाना अभी तो मुझे बहुत काम करने है | संदीप को सबक सिखाना है |
दिव्या ने कुछ स्थानीय लोगो के साथ मिलकर एक N.G.O.खोला , जिसके अंतर्गत तमाम भारतीय लडकियों की मदद की जा सके, जो उसकी तरह मुसीबत मे फंस जाये | पुलिस ने भी अपना पूरा सहयोग देने का वादा किया | इससे भारतीय लडकियों का जीवन बर्बाद होने से बच जायेगा |
संदीप की विदेशी पत्नी को उसके बारे मे ये सब पता चला तो उसने उसे छोड दिया | संदीप को एक साल की सजा हुई | एक साल की सजा काट कर जब संदीप वापस आया , तो दिव्या उसके घर से जाने लगी ,उसने अपना अलग घर ले लिया था, वो एक कम्पनी मे मार्केटिंग मैनेजर की हेसियत से काम करती थी | संदीप ने उसे रोका और कहा ' दिव्या मुझे छोडकर मत जाओ, अब मै कहाँ जाऊंगा ? जूलिया तो मुझे पहले ही छोडकर चली गयी है | अब कभी तुम्हे धोखा नहीं दूंगा |, पर दिव्या ने उसके साथ रहने से साफ इंकार कर दिया और चली गयी | इस तरह संदीप को दोनों औरतो ने छोड़ दिया , दोनों ने अपने आत्म सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की | किसी ने सच ही कहा है, जैसी करनी वैसी भरनी |
शांति पुरोहित
3 टिप्पणियां:
achchi kahani.
bahut si ladkiyon kee dukhad kahani .
bahut sukriya aap dono ka mem
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