फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .
मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .
फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .
हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत ,
नादानी करें औरतें ,देती हमें दुत्कार .
माँ का करूँ तो बीवी को बर्दाश्त नहीं है ,
मिलती हैं लानतें अगर बेगम से करूँ प्यार .
बन्दर बना हूँ ''शालिनी ''इन बिल्लियों के बीच ,
फ़रजानगी फंसने में नहीं ,यूँ होता हूँ फरार .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN]
शब्दार्थ :फरमाबरदार -आज्ञाकारी ,बेजार-नाराज ,मक़बूलियत -कबूल किये जाने का भाव ,मनुहार-खुशामद,मनसबी-औह्देदारी ,फरहत-ख़ुशी ,फैयाजी-उदारता मकसूम -बंटा हुआ .फर्ज़ंगी -बुद्धिमानी .
1 टिप्पणी:
फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
सच कहा आपने कविता के लिए आभार
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