बुधवार, 26 जून 2013

:अब पछताए क्या होत-[कहानी]



[कहानी] शालिनी  कौशिक :अब पछताए क्या होत


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विनय के घर आज हाहाकार मचा था .विनय के पिता का कल रात ही लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया .विनय के पिता चलने फिरने में कठिनाई अनुभव करते थे .सब जानते थे कि वे बेचारे किसी तरह जिंदगी के दिन काट रहे थे और सभी अन्दर ही अन्दर मौत की असली वजह भी जानते थे किन्तु अपने मन को समझाने के लिए सभी बीमारी को ही मौत का कारण मानकर खुद को भुलावा देने की कोशिश में थे .विनय की माँ के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे .बच्चे और पत्नी इधर उधर के कामों में व्यस्त थे ....नहीं थी तो बस अवंतिका......विनय की बेटी....कहाँ है अवंतिका ...छोटी सी सबकीआँखों का तारा आज कहाँ है ,दादा जी के आगे पीछे डोल डोल कर कभी टॉफी ,कभी आइसक्रीम के लिए उन्हें मनाने वाली अवंतिका .....सोचते सोचते विनय अतीत में पहुँच गया.
मम्मी पापा का इकलौता बेटा होने का खूब सुख उठाया विनय ने ,जो भी इच्छा होती तत्काल पूरी की जाती ,अब कॉलिज जाने लगा था .मित्र मण्डली में लड़कियों की संख्या लडकों से ज्यादा थी .दिलफेंक ,आशिक ,आवारा ,दीवाना न जाने ऐसी कितनी ही उपाधियाँ विनय को मिलती रहती पर मम्मी ,वो तो शायद बेटे के प्यार में अंधी थी ,कहती -''यही तो उम्र है  अब नहीं करेगा तो क्या बुढ़ापे में करेगा .''और पापा शायद पैसा कमाने में ही इतने व्यस्त थे कि बेटे की कारगुज़ारी पता ही नहीं चलती और यदि चल भी जाती तो जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखता है ऐसे ही पैसे के आगे उन्हें कुछ नहीं दिखता .
ऐसे ही गुज़रती जा रही थी विनय की जिंदगी .एक दिन वह  माँ के साथ बाज़ार गया .....मम्मी..मम्मी ....मम्मी विनय फुसफुसाया ...हाँ ... मम्मी बोली तब विनय ने माँ का हाथ पकड़कर कहा -''माँ !मेरी उस लड़की से दोस्ती करा दो ,देखो कितनी सुन्दर ,स्मार्ट है .हाँ ...सो तो है ..मम्मी ने कहा ...पर .बेटा ...मैं नहीं जानती उसे ...मम्मी प्लीज़ ...अच्छा ठीक है .....कोशिश करती हूँ ,तुम यहीं रुको मैं आती हूँ .मम्मी उस लड़की के पास पहुंची ,''बेटी !हाँ हाँ ....मैं तुम्ही से कह रही हूँ .जी -वह युवती बोली ...क्या अपनी गाड़ी में तुम मुझे मेरे घर तक छोड़ दोगी...,पर ...आंटी मैं आपको नहीं जानती हूँ न आपके घर को फिर भला मैं आपको आपके घर कैसे छोड़ सकती हूँ  .... युवती ने हिचकिचाते हुए कहा ..बेटी मेरी तबीयत ख़राब हो रही है ,मेरा बेटा साथ है पर वह बाईक पर है और मुझे कुछ चक्कर आ रहे हैं .....यह कहते हुए मम्मी ने थोड़े से चक्कर आने का नाटक किया ....लड़की कुछ घबरा गयी और उन्हें गाड़ी में बिठा लिया ....अच्छा आंटी अब अपना पता बताओ ,मैं घर पहुंचा दूँगी ....मम्मी ने धीरे धीरे घर का पता बताया और आराम से गाड़ी में बैठ गयी .
''लो आंटी ''ये ही है आपका घर ,युवती बोली ..हाँ बेटी ...यही  है ...''आओ आओ अन्दर तो आओ ''गाड़ी से उतारते हुए मम्मी ने कहा ,नहीं आंटी जल्दी है .... ....फिर कभी ...ये कह युवती ने जाना चाहा  तो मम्मी बोली....नहीं बेटा ऐसा नहीं हो सकता ..... तुम मेरे घर तक आओ और बिना चाय पिए चली जाओ ...मम्मी की जबरदस्ती के आगे युवती की एक नहीं चली और उसे घर में आना ही पड़ा .थोड़ी ही देर में विनय भी आ गया .विनय बेटा....तुम इनके साथ यहाँ बैठो ,मैं चाय लेके आती हूँ ...बीमार मम्मी एकदम ठीक होती हुई रसोईघर में चली गयी और थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम से हंसने खिलखिलाने की आवाज़ आने लगी .
फिर तो ये रोज़ का सिलसिला शुरू हो गया .एक दिन विनय एक लड़की के साथ ड्राइंगरूम में उसकी गोद में सिर रखकर लेटा हुआ था कि पापा आ गए .पापा !आप ....कहकर हडबड़ाता  हुआ विनय उठा ....हाँ मैं ये कहकर गुस्सा दबाये पापा बाहर चले गए ....पर विनय घबरा गया और लड़की को फिर मिलने की बात कह टाल दिया .घबराया विनय मम्मी के पास पहुंचा ,''मम्मी मम्मी !....क्या है इतना क्यूं घबरा रहा है ?मम्मी पापा आये थे ....पापा आये थे ....कहाँ हैं पापा ..इधर उधर देख मम्मी ने विनय से पूछा और साथ ही कहा तू कहीं पागल तो नहीं हो गया ....नहीं मम्मी ...पापा आये थे और हॉल में मुझे सिमरन की गोद में सिर रखे देखा तो गुस्से में वापस लौट गए .तो तू क्यूं घबरा रहा है ..तेरे पापा को तो मैं देख लूंगी ...तू डर मत ....और हुआ भी यही... रात को पापा के आने पर मम्मी ने उन्हें ऐसी बातें सुने कि पापा की बोलती बंद कर दी ..''वो बड़े घर का लड़का है ,जवान है ,फिर दोस्ती क्या बुरी चीज़ है ...अब आप तो बुड्ढे हो गए हो क्या समझोगे उसकी भावनाओं को और ज्यादा ही है तो उसकी शादी कर दो सब ठीक हो जायेगा ,विनय के पापा को यह बात जँच गयी .
आज विनय की शादी है .मम्मी पापा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं और विनय उसे तो फोन सुनने से ही फुर्सत नहीं ,''अरे यार !कल को मिल रहा हूँ न ,तुम गुस्सा क्यूं हो रही हो ,अच्छा यार कल को मिलते हैं कहकर फोन को काट दिया ...विनय ..हाँ मम्मी ...बेटा ये फोन अभी बंद कर दे कल से जो चाहे करना ....जी मम्मी ...आई लव यू  ..आई लव यू बेटा ...और इस तरह के स्नेहपूर्ण संबोधन के संचार होते ही फोन बंद कर दिया गया .शादी हो गयी .
धीरे धीरे विनय की बाहर की जिंदगी के साथ घर की जिंदगी चलती रही .कहीं कोई बदलाव नहीं था बदलाव था तो बस इतना ही कि विनय के एक बेटा और एक बेटी हो गयी थी .कारोबार पापा ही सँभालते रहे ..विनय तो बस एक दो घंटे को जाता और उसके बाद रातो रातो अपनी मित्र मण्डली में घूमता फिरता .
''विनय'' पापा ने गुस्से में विनय को पुकारा तो विनय अन्दर तक कांप उठा  ''जी पापा!''थाने से फोन आया है ...''क्यूं ''विनय असमंजस भरे स्वर में बोला ..अभय ....तेरा बेटा ...मेरा पोता ..चांदनी जैसे बदनाम होटल में एक कॉल गर्ल के साथ पकड़ा गया है ...''क्याआआआआआअ ''विनय का मुंह खुला का खुला रह गया ...उसकी इतनी हिम्मत ...मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगा ''विनय का मुहं गुस्से से लाल हुआ जा रहा था ...क्यूं मैंने कौन तुम्हे मार डाला ...पापा ने विनय से प्रश्न किया तो विनय सकते  में आ गयाअब पहले अभय की जमानत करनी है फिर देखते हैं क्या करना है चलो मेरे साथ ...पापा के साथ जाकर विनय अभय को घर तो ले आया लेकिन अभय को माफ़ नहीं कर पाया .
एक दिन सुबह जब विनय ने देखा कि घर के सभी लोग सो रहे हैं तो वो अभय के कमरे में पहुँच गया ..पर ये क्या ...अभय वहां नहीं था ..विनय थोड़ी देर अभय का वहां इंतजार कर बाहर निकलने ही वाला था कि पीछे से पापा आ गए ...अभय अब तुम्हे नहीं मिलेगा ...क्यूं पापा? मैंने उसे उसके मामा के घर भेज दिया है ...अच्छे काबिल लोग हैं कम से कम वहां रहकर अभय काबिल तो बनेगा तुम्हारे जैसा आवारा निठल्ला नहीं ...तभी विनय की मम्मी वहां आ गयी और तेज़ आवाज़ में बोली ,''किसने कहा आपसे कि मेरा विनय आवारा निठल्ला है और किसने हक़ दिया आपको अभय को उसके मामा के घर भेजने का ,मैं कहती हूँ आप होते कौन हैं परिवार की बातों में बोलने वाले ,किया क्या है आपने हम सबके लिए ,पैसा वो तो ज़मीन जायदाद से हमें मिलता ही रहता ,आपने कौन कारोबार में अपना समय देकर हमारी जिंदगी बनायीं है ,विनय मेरा बेटा है और मुझे पता है कि वह कितना काबिल है और जिस मामले का आपसे मतलब नहीं है उसमे आप नहीं बोलें तो अच्छा !कभी मेरे लिए या अपने बेटे के लिए दो मिनट भी मिले हैं आपको ..'' विनय की मम्मी बोले चली जा रही थी और विनय के पापा का दिल बैठता जा रहा था ..कितनी मेहनत और संघर्षों से उन्होंने ज़मीन जायदाद को दुश्मनों से बचाया था ...कैसे दिन रात एक कर कारोबार को ऊँचाइयों पर पहुँचाया था ..विनय की मम्मी को इससे कोई मतलब नहीं था ...पापा बीमार रहने लगे और विनय और उसकी मम्मी की बन आई अब उन्हें दिन या रात की कोई परवाह नहीं थी और उधर विनय की पत्नी दिन रात बढती विनय की आवारागर्दी से तंग हर वक़्त रोती रहती थी .घर में नौकरानी से ज्यादा हैसियत नहीं थी उसकी ,उसकी अपनी इच्छा का तो किसी के लिए कोई मूल्य नहीं था .
उधर अवंतिका ,अपने पापा के नक़्शे कदम पर आगे बढती जा रही थी ,दिनभर लडको के साथ घूमना ,फिरना और रात में मोबाइल पर बाते करना यही दिनचर्या थी उसकी .''दादीईईईईईईईईईईईइ ,मैं कॉलिज जा रही हूँ शाम को थोड़ी देर से आऊंगी....क्यूं ...वो मेरी बर्थडे पार्टी दी है नील व् निकी ने होटल में ...ठीक है कोई बात नहीं ....आराम से मजे करना बर्थडे कोई रोज़ रोज़ थोड़े  ही आती है ...थैंक यू दादी ,''सो नाईस ऑफ़ यू ''कह अवंतिका ने दादी के गालों को चूम लिया और उधर अवंतिका की मम्मी उसे रोकना चाहकर भी रोक नहीं पाई क्योंकि अवंतिका माँ के आगे से ऐसे निकल गयी जैसे वो उसकी माँ न होकर कोई नौकरानी खड़ी हो .
रात गयी सुबह हो गयी अब शाम के चार बजने वाले थे अवंतिका घर नहीं आई ...दादी ने अवंतिका को ..उसके दोस्तों को फोन मिलाया पर किसी ने भी फोन नहीं उठाया ..परेशां होकर दादी ने विनय से कहा ,''विनय ..अवंतिका कल सुबह घर से गयी थी अब तक भी नहीं आई ''और आप मुझे अब बता रही हो -विनय गुस्से से बोला .कल उसका बर्थडे था और वह बता कर गयी थी कि दोस्तों ने होटल में पार्टी दी है ..रात को देर से आऊंगी ....घबराते हुए मम्मी ने कहा ..और आपने उसे जाने दिया ..आपको उसे रोकना चाहिए था ...मैंने तुझे कब रोका जो उसे रोकती ...मम्मी मुझमे और उसमे अंतर............कहते हुए खुद को रोक लिया विनय ने ..आखिर वह भी तो लड़कियों के साथ ही मौज मस्ती करता था और आज जब अपनी बेटी वही करने चली तो अंतर दिख रहा था उसे ....विनय सोचता हुआ घर से निकल गया .
विनय देर रात थका मांदा टूटे क़दमों से घर में घुसा तो मम्मी एकदम से पास में आकर बोली ...कहाँ है अवंतिका ...विनय कहाँ है वो ....मम्मी वो रॉकी के साथ भाग गयी ...क्याआआआआआअ  रॉकी के साथ ,हाँ नील ने मुझे बताया और कहा ये प्लान तो उनका एक महीने से बन रहा था  सुन मम्मी अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गयी ...पापा जो अब तक चुप बैठे थे बोले ,''विनय की मम्मी देख लिया अपने लालन पालन का असर यही होना था ,जो आज़ादी तुम बच्चों के लिए वरदान समझ रही थी उसमे यही होना था .बच्चों की इच्छाएं पूरी करना सही है किन्तु सही गलत में अंतर करना क्या वे कहीं और से सीखेंगे कहते कहते पापा कांपने लगे ....पापा आप शांत हो जाइये मैं अवंतिका को ढूंढ लाऊंगा ....बेटा मैं जीवन भर चुप ही रहा हूँ यदि न रहता तो ये दिन न देखना पड़ता कहते कहते पापा रोने लगे और निढाल होकर गिर पड़े ..


''विनय ''चलो बेटा ...सुन जैसे सोते से जाग गया हो उठा और अपने पापा के अंतिम संस्कार के लिए सिर झुका अर्थी के साथ चल दिया .

शालिनी कौशिक 

बुधवार, 19 जून 2013

मर्द की हकीकत


Hand writing I Love Me with red marker on transparent wipe board. - stock photoSelfish business man not giving information to others.Mad expression on his face.White background. - stock photoScale favoring self interest rather than personal values. - stock vector   
मर्द की हकीकत 
''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया .जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है ?किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं .स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहें जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है .
       सेना में प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं किन्तु अब आये दिन अपने आस पास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है .पत्नी के माध्यम से पुलिस अफसरों से मेल-जोल ये कहकर-
''कि थानेदार साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है .''
नेताओं से दोस्ती ये कहकर कि -
''मेरी बेटी से मिलिए .''
तो घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पुरुषों का ही कारनामा है .बेटी को शादी के बाद मायके ले आना और वापस ससुराल न भेजना जबकि उसे वहां कोई दिक्कत नहीं संशय उतपन्न करने को काफी है और उस पर पति का यह आक्षेप कि ये अपनी बेटी को कहीं बेचना चाहते हैं जबकि मैने इनके कहने पर अपने घर से अलग घर भी ले लिया था तब भी ये अपनी बेटी को नहीं भेज रहे हैं ,इसी संशय को संपुष्ट करता है .ये कारनामा हमारी कई फिल्मे दिखा भी चुकी हैं तेजाब फिल्म में अनुपम खेर एक ऐसे ही बाप की भूमिका निभा रहे हैं जो अपनी बेटी का किसी से सौदा करता है .
    जो पुरुष स्त्री को संपत्ति में हिस्सा देना ही नहीं चाहता आज वही स्टाम्प शुल्क में कमी को लेकर संपत्ति पत्नी के नाम खरीद रहा है पता है कि मेरे कब्जे में रह रही यह अबला नारी मेरे खिलाफ नहीं जा सकती तो जहाँ पैसे बचा सकता हूँ क्यूं न बचाऊँ ,इस तरफ सरकारी नारी सशक्तिकरण को चूना लगा रहा है . जिसके घर में पत्नी बेटी की हैसियत  गूंगी गुडिया से अधिक नहीं होती वही सीटों के आरक्षण के कारन स्थानीय सत्ता में अपना वजूद कायम रखने के लिए पत्नी को उम्मीदवार बना रहा है .जिस पुरुष के दंभ को मात्र इतने से कि ,पत्नी की कमाई खा रहा है ,गहरी चोट लगती है ,वह स्वयं को -
''जी मैं  उन्ही  का पति हूँ जो यहाँ  चैयरमेन के pad के लिए खड़ी हुई थी ,''
  या फिर अख़बारों में स्वयं के फोटो के नीचे अपने नाम के साथ सभासद  पति लिखवाते शर्म का लेशमात्र भी नहीं छूता .
   पुरुष के लिए नारी मात्र एक जायदाद की हैसियत रखती है और वह उसके माध्यम से अपने जिन जिन स्वार्थों की पूर्ति कर सकता है ,करता है .सरकारी योजनाओं के पैसे खाने के लिए अपने रहते पत्नी को ''विधवा ''तक लिखवाने  इसे गुरेज नहीं .संपत्ति मामले सुलझाने के लिए घोर परंपरावादी माहौल में पत्नी को आगे बढ़ा बात करवाने में शर्म नहीं .बीवी के किसी और के साथ घर से बार बार भाग जाने पर जो व्यक्ति पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता फिरता है वही उसके लौट आने पर भी उसे रखता है और उसे कोई शक भी नहीं होता क्योंकि वह तो पहले से ही जानता है कि  वह घर से भागी है बल्कि उसके घर आने पर उसे और अधिक खुश रखने के प्रयत्न करता है वह भी केवल यूँ कि अपने जिस काम से वह कमाई कर रही है वह दूसरों के हाथों में क्यों दे ,मुझे दे ,मेरे लिए करे ,मेरी रोटी माध्यम बने . 
    पुरुष की एक सच्चाई यह भी है .कहने को तो यह कहा जायेगा कि ये बहुत ही निम्न ,प्रगति से कोसों दूर जनजातियों में ही होता है जबकि ऐसा नहीं है .ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे उन्ही जातियों में ज्यादा दिखाई देंगे क्योंकि आज के बहुत से माडर्न परिवारों ने इसे आधुनिकता की दिशा में बढ़ते क़दमों के रूप में स्वीकार कर लिया है किन्तु वे लोग अभी इस प्रवर्ति को स्वीकारने में सहज नहीं होते और इसलिए उन्हें गिरा हुआ साबित कर दिया जाता है क्योंकि वे आधुनिकता की इन प्रवर्तियों को गन्दी मानते हैं किन्तु यहाँ मैं जिस पुरुष की बात कह रही हूँ वे आज के सभ्यों में शामिल हैं ,हाथ जोड़कर नमस्कार करना ,स्वयं का सभ्य स्वरुप बना कर रखना शालीन ,शाही कपडे पहनना और जितने भी स्वांग  रच वे स्वयं को आज की हाई सोसाइटी का साबित कर सकते हैं करते हैं ,किन्तु इस सबके पीछे का सच ये है कि वे शानो-शौकत बनाये रखने के लिए अपनी पत्नी को आगे कर दूसरे पुरुषों को लूटने का काम करते हैं .इसलिए ये भी है आज के मर्द की एक हकीकत .
                    शालिनी कौशिक 
                        [WOMAN ABOUT MAN]

रविवार, 16 जून 2013

Thanks father-वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया

   

You Stood By Me...
HAPPY FATHER'S DAY
SHIKHA KAUSHIK 

वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !


सर्दी-गर्मी बारिश से आप टकराये ,
हम रहें महफूज़ ली खुद पर ही बलाएँ ,
आगे बढ़कर फ़र्ज़ पूरा आपने किया !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !


कायदे से रहने की तहजीब सिखलाई ,
क्या भला और क्या बुरा है ये बात बतलाई ,
हर कदम पर साथ मेरा आपने दिया !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !



दे ख़ुदा हमको भी दम हम इतना कर सकें ,
आपकी इज्ज़त हमेशा दिल से कर सकें ,
और एक औलाद क्या कर सकती है भला !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !

        SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

शनिवार, 15 जून 2013

झुका दूं शीश अपना

                              
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .




बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .


शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .


मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .


कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .


जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .

                शालिनी कौशिक 

शुक्रवार, 14 जून 2013

पश्चाताप

   पश्चाताप
                                                                                               

                                                          सुश्री शांति पुरोहित की कहानी    
                                                                                                                                                                                        'सुंदर, थी वो,फूल सी कोमल थी | सुन्दरता के साथ-साथ सरलता भी उतनी ही थी | वाणी इतनी मधुर,बोलती तो  ऐसा लगता,जैसे शीतल जल का झरना बह रहा हो | यहाँ मै अपनी कहानी की नायिका रुनझुन के बारे मे बात कर रही हूँ |
                         गाँव की वो छोरी, रुनझुन,ने सब गाँव वालो के दिल मे अपने लिए जगह बनाली थी | बहुत सुंदर गाँव था 'रामपुर ' अनुपम प्राक्रतिक सौन्दर्य से भरपूर गाँव था | सुबह बहुत ही ठंडी बयार चलती है | खेतो मे सरसों के पीले फूल बड़े ही मन- लुभावन लगते है | मिटटी की सौधी खुशबु का तो कहना ही क्या है | ऐसे मे औरते अपना काम बड़े ही  खुश-मिजाज से करती है,और आदमी गाँव की चौपाल पर आकर बैठ जाते है |
                         फिर होती है,पुरे गाँव वालो के बारे पंचायत शुरू | आज भी लोग आकर बैठ गये और इधर-उधर की बाते शुरू हुई | किसकी बेटी की शादी कहाँ हुई है | कौन क्या कर रहा है आदि | ' जैसे ही बेटियों की शादी की बात चली,तो सूरज ठाकुर की बेटी रुनझुन की बात चली,जो शादी के दो साल बाद ही विधवा हो गयी थी |
                         रुनझुन,सूरज ठाकुर की बेटी,नहीं वो तो सब गाँव वालो की बेटी थी | बचपन के खेल-खेलते -खेलते वो कब बड़ी हो गयी,माँ- बाबा को पता ही नहीं चला | वे तो अब भी उसे अपनी शरारती रुनझुन ही मानते थे | आम के वृक्षों पर चढ़ कर सब दोस्तों को आम तोड़ कर खिलाने मे उसके जैसा कोई फुर्तीला नहीं था | सब के खेतो से वो आम,जामुन और बेर तोड़ लेती थी | कभी पकड़ी जाती तो सामने वाले को अपनी बातो मे उलझा कर नो- दो ग्यारह हो जाती | स्कूल मे सब टीचर से दोस्ती कर ली, जब चाहा वहां से निकल लेती थी | पर फिर भी पढने मे सबसे तेज थी | सब टीचर की चहेती छात्रा थी रुनझुन |
                       ' हायर सेकंडरी' तक ही स्कूल था गाँव मे | रुनझुन ने स्कूल की पढ़ाई, अभी ख़त्म की ही थी,कि घर मे उसके लिए रिश्ते की बात होने लगी थी | बेटी के किशोरावस्था मे प्रवेश करते ही घर वालो को उसको शादी के बंधन, मे बाँधने की जल्दी लग जाती है | सदियों से यही सोच रही है| बेटी पराया धन होती है | उसे उसके ठिकाने पहुंचा दिया जाये,तो ही घर वाले चैन की सांस लेते है | कई बार जल्द बाजी मे किये गये फैसले बेटी के लिए घातक भी हो जाते है खैर छोड़ो |
                      'रुनझुन के लिए एक रिश्ता पास ही के गाँव से आया | रिश्ता लेकर आने वाले बिचोलिये ने,लड़के और उसके खानदान की वो प्रसंशा की,सूरज ठाकुर उसी वक्त  पुरे मन से तैयार हो गये | घर वालो ने बहुत समझाया कि ''सूरज पहले लड़के के बारे मे कुछ जान तो ले, फिर हां करते है |' जब कुछ बुरा होना होता है तो इंसान सिर्फ अपने मन के अतिरिक्त किसी की नहीं सुनता है | खैर छोड़ो
                       ''अगले महीने ही रुनझुन की शादी ठाकुर बलवंत सिंह के साथ हो गयी | ससुराल मे उसका गजब का स्वागत हुआ | सास मान कौर तो ऐसे प्यार करने लगी उसे,जैसे घर मे बहु नहीं बेटी आयी है| रुनझुन को तो वो पलंग से पैर नीचे ही नहीं रखने देती थी | बस बहु और बेटा अपने कमरे मे बैठे बाते करते रहे,उन्हें एक साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त बिताना चाहिए | सास का इतना अपनापन देख कर,रुनझुन मन-ही-मन अपने भाग्य की सराहना खुद करती थी | कुछ समय बाद रुनझुन ने देखा,बलवंत कोई दवा खा रहा है | पास जाकर उसने कहा ''क्या हुआ है आपको,ये दवाई क्यों खा रहे हो ? बलवंत उसे ठीक से जवाब नहीं दे सका | ''बस ऐसे ही थोडा ठीक नहीं लग रहा है |
                         रुनझुन ने कई बार चुपके-चुपके दवाई खाते देखा तो उसे शक हुआ | सास को ये पता चला कि रुनझुन को शक हो गया है| और अब तो बलवंत, को चेक-अप के लिए अस्पताल भी ले कर जाना होगा तो उसने एक दिन रुनझुन से कहा ''तुम कुछ दिनों के लिए अपने माँ-बाबा के घर घूम आओ,बहुत दिनों से गयी नहीं हो |'' अचानक सास से मायके जाने की बात सुन कर तो उसका शक यकीन मे बदलने लगा | वो अपने माँ-बाबा के घर आ गयी | रुनझुन को अचानक आया देख कर माँ-बाबा बहुत खुश हुए | उसका उतरा हुआ चेहरा देख कर चिंतित भी हुए | पूछने पर रुनझुन ने कहा ''कोई चिंता की बात नहीं है | पर मेरे यहाँ आने के बाद  उनकी तबियत बिगड़ गयी है मुझे आज ही वापस जाना होगा |''
                          जब रुनझुन घर पहुंची तो घर मे सास-ससुर और पति कोई नहीं था | नौकर से पूछा ''सब कहाँ गये |' नौकर चुप कुछ नहीं बोला | रुनझुन के बार-बार पूछने पर उसने कहा ''छोटे ठाकुर को लेकर अस्पताल गये है |' सुनकर वो घबराई पर अपने को सम्भाल कर कहा '' क्या हुआ छोटे ठाकुर को,मुझे कुछ बताओगे ?' नौकर घबराया पर बोलना पड़ा '' छोटे ठाकुर की किडनी खराब है | डॉ . ने कहा कभी भी कुछ भी हो सकता है |'' सुनकर रुनझुन धम्म से सोफे पर बैठ गयी | उसको अपने चारो और अँधेरा दिखाई देने लगा |
                        उसी वक्त उसी नौकर के साथ रुनझुन अस्पताल पहुँच गयी | उसे मायके से इतनी जल्दी वापस आया देख कर वो तीनो सकते मे आ गये | रुनझुन तो पति से लिपट कर रोने लगी | सास-ससुर उसे सँभालने मे लग गये | उसने सास को कुछ नहीं कहा रुनझुन गुस्से मे वापस अकेली ही घर चली गयी | अपने आप को कमरे बंद कर लिया और रोने लगी | रुनझुन के सास -ससुर उसके पीछे- पीछे घर आये,देखा रुनझुन अपने कमरे मे बंद है | उन दोनों ने कमरे का दरवाजा खुलवाने की बहुत कोशिश की,पर उसने नहीं खोला | अंत मे सास- ससुर उससे माफ़ी मांगने लगे की हम है, तुम्हारे दुःख का कारण ,पर उसने फिर भी कुछ नहीं कहा | तभी रुनझुन कमरे से बाहर आयी, उसकी आँखे सूजी हुई थी |उसने कहा ''आप माफ़ी मत मांगो मेरी किस्मत मे जो लिखा वो हुआ, आप चिंता मत करो अब उनके साथ हम सब मिलकर ख़ुशीयो के साथ जियेंगे | उनको आभास नहीं होने देना है कि हम दुखी है | सास ने बहु को प्यार से गले से लगाया,दोनों रोने लगी |कुछ  दिनों बाद अस्पताल से छुटी मिली | रुनझुन अब अपने पति की सेवा मे तन-मन से लग गयी | समय भागने लगा | शादी के दो साल बाद ही बलवंत किडनी फ़ैल हो जाने के कारण इस दुनिया से विदा हो गया | रुनझुन ने अपने भाग्य के अतिरिक्त किसी को भी दोषी नहीं ठहराया | सास-ससुर ने बहु रुनझुन को बेटी से भी बढ़ कर प्यार दिया | दिन,महिना,साल बिता सास ने रुनझुन को दूसरी शादी के लिए बहुत मुश्किल से तैयार किया | एक बहुत ही अच्छे घर मे उसकी शादी करवाई | लड़का सरकारी महकमे मे उच्च पोस्ट पर कार्य करता है | मान कौर के दिल से अब बहुत बड़ा भार हल्का हुआ है | सही मायनों मे उसने अपना पश्चाताप पूरा किया है |
            शांति पुरोहित
नाम ;शांति पुरोहित 

जन्म तिथि ; ५/ १/ ६१ 

शिक्षा; एम् .ए हिन्दी 

रूचि -लिखना -पढना

जन्म स्थान; बीकानेर राज.

वर्तमान पता; शांति पुरोहित विजय परकाश पुरोहित 

कर्मचारी कालोनी नोखा मंडीबीकानेर राज .

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बुधवार, 12 जून 2013

क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?




Women Revolutionaries
क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
तुम भूले सीता सावित्री ,क्या याद मुझे रख पाओगे ,
खुद तहीदस्त हो इस जग में तुम मुझको क्या दे पाओगे?

मेरे हाथों में पल बढ़कर इस देह को तुमने धारा है ,
मन में सोचो क्या ये ताक़त ताजिंदगी भी तुम पाओगे ?

संग चलकर बनकर हमसफ़र हर मोड़ पे साथ निभाया है ,
क्या रख गुरूर से दूरी तुम ताज़ीम मुझे दे पाओगे ?

कनीज़ समझ औरत को तुम खिदमत को फ़र्ज़ बताते हो,
उस शबो-रोज़ क़ुरबानी का क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

फ़ितरत ये औरत की ही है दे देती माफ़ी बार बार ,
क्या उसकी इस इनायत का इकबाल कभी कर पाओगे?

शहकार है नारी खिलक़त की ''शालिनी ''झुककर करे सलाम ,
इजमालन सुनलो इबरत ये कि खाक भी न कर पाओगे.


शब्दार्थ :तहीदस्त-खाली हाथ ,इनायत- कृपा ,ताजिंदगी -आजीवन 
ताज़ीम -दूसरे को बड़ा समझना ,आदर भाव ,सलाम 
कनीज़ -दासी ,इजमालन -संक्षेप में ,इबरत -चेतावनी ,
इकबाल -कबूल करना ,शहकार -सर्वोत्कृष्ट कृति ,
खिलक़त-सृष्टि 
      
                    शालिनी कौशिक 
                                  [कौशल ]

शनिवार, 8 जून 2013

"दोस्ती "

सुश्री शांति पुरोहित की कहानी  "दोस्ती  "  






                                                                                                                                                        रुकसाना और हेमा दोनों बहुत अच्छी दोस्त थी | दोनों की उम्र ही क्या थी, रुकसाना,दस साल की ,हेमा आठ साल की,पर दोनों मे गहरी दोस्ती थी | पिछले दो साल से, रुखसाना हेमा को 'ईद, पर सेवइया खिलाती रही है | आज हेमा के घर पर 'सत्यनारायण भगवान ' की कथा रखवाई है |
                                सब को बुलाया गया है | हेमा ने रुकसाना को कहा ''कल हमारे घर सत्यनारायण भगवान की कथा है तुम, जरुर आना |'
                      दोनों बच्चिया मासूम ,धर्म के बारे मे क्या जाने | उनको धर्म की परिभाषा भी पता नहीं थी | हिन्दू -मुसलमान का धर्म भे, वो क्या जाने | दोनों धर्मो मे कोई भेद नहीं है | दोनों  धर्म मे बल्कि दुनिया के तमाम धर्मो मे ,इंसानियत, का ही पाठ पढाया जाता है | इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है | प्रेम,भाईचारा और सम- भाव से जीना ही धर्म का मूल मन्त्र है |
                        हेमा के घर मे कथा की तमाम तैयारिया लगभग पूर्ण हो चुकी थी | पंडित जी आसन पर विराज मान हो गये | सभी आगन्तुक अपने- अपने आसन पर बैठ गये थे | हेमा भी बैठ गयी मम्मी के पास,पर उसका पूरा ध्यान ,दरवाजे की और था | रुकसाना अभी तक नहीं आयी थी |
                             पंडित जी ने कथा आरम्भ कर दी | हेमा का ध्यान कथा मे नहीं ,ये देख कर उसकी ममी ने कहा ''वो नहीं आएगी ,तुम कथा मे ध्यान दो | हेमा चुप-चाप बैठ गयी | सोचने लगी कहा, तो भी रुकसाना अभी तक क्यों नहीं आयी |'
                           तभी पंडित जी ने कथा की पूर्णाहुति की घोषणा की | और कहा ''सब लोग प्रसाद लेकर ही घर जाये ,प्रसाद नहीं लेने से भगवान का अपमान होता है | हेमा ने एक प्लेट मे प्रसाद लिया और दरवाजे की तरफ जाने लगी | उसकी दादी ने उसे रोक कर कहा ''कहाँ जा रही है ?' 'रुकसाना को प्रसाद देने जा रही हूँ |' हेमा ने कहा | ''नहीं जाना है प्रसाद देने,वो मुस्लिम है, भगवान नाराज हो जायेंगे |' हेमा सोच मे पड गयी, कि पंडित जी ने कहा,वो सही है, या दादी कह रही है वो सही है | उसने तय किया ,कि वो रुकसाना को प्रसाद जरुर से देकर आएगी |
                     हेमा ने दादी से छुप कर रुकसाना को प्रसाद खिलाया और वो इंतजार करने लगी कि देखती हूँ ,भगवान्  क्या करते है |,रुकसाना मुझे सेवइया खिलाती है तब तो भगवान नाराज नहीं होते | बाल मन मे फिर शंका उभरी | दस दिन हो गये कुछ नहीं हुआ | हेमा ने सोचा,दादी कुछ नहीं जानती है | भगवान कुछ बुरा नहीं करते है | हमारी दोस्ती ही भगवान् को अच्छी लगी है, तभी कुछ बुरा नहीं हुआ है |

                                                                                                               शांति पुरोहित 

गुरुवार, 6 जून 2013

वो लड़का है ना...-एक लघु कथा


  
''मम्मी ''मैं कॉलिज जा रही हूँ आप गेट बंद कर लेना ,कहकर सुगन्धा जैसे ही गेट से बाहर निकली कि शिशिर ने उसका रास्ता रोक लिया .....क्या भैय्या ,जल्दी है ,आपसे शाम को मिलती हूँ ,नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,सड़कों का माहौल बहुत  ख़राब है और मैं जानता हूँ कि तू और तेरी सहेलियां भी कुछ लड़कों से बहुत परेशान हैं .अरे तो क्या हो गया ये तो चलता ही रहता है अब जाने दो ,आधा घंटा तो कॉलिज पहुँचने में लग ही जायेगा और फर्स्ट पीरियड ही अकडू प्रशांत सर का है अगर देर हुई तो वे सारे टाइम खड़ा ही रखेंगे .सुगन्धा ने भाई की मिन्नतें करते हुए कहा .
     ''नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,''ये कह धमकाते हुए वह जैसे ही उसे घर के अन्दर ले जाने लगा कि पापा-मम्मी दोनों ही बाहर आ गए .क्या हुआ क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों ?शिशिर ने पापा-मम्मी को सारी बात बता दी .
     ''ठीक ही तो कह रहा है शिशिर ,''चल सुगन्धा घर में चल हमें न करानी ऐसी पढाई  जिसमे  लड़की  की जिंदगी व् इज्ज़त और घर का मान सम्मान दोनों ही खतरे में पड़ जाएँ .चल .और बारहवी तो तूने कर ही ली है ,अब प्राइवेट पढले या फिर बस पेपर देने जाना ,वैसे भी कॉलिज में कौन सी पढाई होती है ,ये कह मम्मी सुगन्धा को अन्दर ले गयी और पापा बेटे की पीठ थपथपाते हुए बाइक पर ऑफिस  के लिए निकल गए .
     शाम को मम्मी और सुगन्धा जब बाज़ार से लौट रही थी तो एकाएक सुगन्धा चिल्ला उठी ...मम्मी ....मम्मी ...देखो पापा बाइक पर किसी लेडी के साथ जा रहे हैं ..परेशान होते हुए भी मम्मी ने कहा -होगी कोई इनके ऑफिस से ....पर इन्हें देख कर तो ऐसा नहीं लगता ...सुगन्धा बोली ...चल घर चल ,ये कह मम्मी खींचते हुए उसे घर ले चली .
     तभी एक मोड़ पर ...'''शिशिर मान जाओ ,आगे से अगर तुमने मुझे कुछ कहा तो मैं घर पर सभी को बता दूँगी और तब तुम्हें पिटने से कोई नहीं बचा पायेगा ,''एक लड़की चिल्ला चिल्ला कर शिशिर से कह रही थी ...देखो माँ भैय्या क्या कर रहा है और लड़कियों के साथ और मुझे और लड़कों से बचाने को घर बैठा दिया ,...सही किया उसने ....भाई है तेरा वो ...और वो क्या कर रहा है ....ये तो उसका हक़ है .....वो लड़का है ना ....मम्मी ने गर्व से गर्दन उठाते हुए कहा .
           शालिनी कौशिक 
[WOMAN ABOUT MAN]

मंगलवार, 4 जून 2013

" भक्त,भक्ति और भगवान "

सुश्री शांति पुरोहित की कहानी " भक्त,भक्ति और भगवान "







'बधाई हो, दया बहन ,आज आपके घर मे लक्ष्मी आई है |, वीणा बहन ने खुश होकर दया बहन को बधाई दी |  'सच मे बहुत ख़ुशी की बात है कि आज हमारे घर लक्ष्मी का आगमन हुआ है,मै बहुत ख़ुशी मेहसूस कर रही हूँ |' 'ना, जाने लोग बेटी के जन्म जाने पर क्यों नहीं खुश होते,इसके विपरीत बेटे के जन्म पर बहुत ख़ुशिया मनाते है ?' दया ने चिंता करते हए कहा | 'ऐसा भाव रखना उनकी ओछी मानसिकता को ही दर्शाता है |' वीणा बहन ने कहा |
                       दोनों सहेलिया बाते कर रही थी,तभी अंदर से दया बहन की छोटी बहु प्रिया जल-पान लेकर कमरे मे उपस्थित हुई | ''नमस्ते आंटी, बहु ने वीणा बहन को नमस्ते किया,जल-पान रख कर बाहर चली गयी |चाय पीते हुए दया बहन ने कहा 'अगले महीने बच्ची का नामकरण संस्कार है,मैंने बहुत बडा आयोजन रखवाया है| तुम पूरे परिवार को लेकर जरुर आना |' वीणा बहन अपने घर चली गयी |
                        इतना बड़ा आयोजन, और अपनी बेटी ,का इतना सम्मान देख कर बहु के मम्मी-पापा बहुत खुश हुए | ख़ुशी से उनकी आँखे भर आयी थी |
                          समय बीतता रहा,आज राधिका तीन साल की हो गयी थी | वो जब दो साल की थी,तभी से अपनी दादी दया बहन के साथ पूजा-घर मे बालकृष्ण की पूजा के लिए बैठने लगी थी,और छोटी-छोटी बाल चेष्टा करने लगी थी | दया बहन को बहुत आश्चर्य हुआ, जब राधिका उनके आने से पहले पूजा की सभी तैयारी कर देती थी | इतनी कम उम्र मे राधिका की भगवान के प्रति आस्था और सेवा-भावना देख कर दया बहन को बहुत हैरानी हुई |
                             तीन साल की राधिका अपनी दादी से ज्यादा बालकृष्ण की आराधना मे लग गयी | ये सब देख कर उसके पापा ने दया बहन से कहा ''माँ राधिका को अब स्कूल जाना होगा,अगले माह स्कूल खुलने वाला है | ये कैसे पढेगी,इसका सारा टाइम और सारा ध्यान तो पूजा घर मे ही लगा रहता है |'
                                 पापा की ये चिंता, उस वक्त ख़ुशी मे बदल गयी जब राधिका ने पहले ही साल मे क्लास मे सबसे ज्यादा मार्क्स ला कर प्रथम स्थान पर अपना कब्ज़ा किया | ख़ुशी उस वक्त दुगुनी हो गयी, जब स्कूल से ''हेड -मिस्ट्रेस का फोन आया ''आपकी राधिका ने क्लास मे ही नहीं बल्कि चारो सेक्शन मे प्रथम स्थान पाया है,बहुत बधाई , राधिका का भविष्य उज्वल हो | हमे राधिका पर गर्व है |
                              राधिका को अब बालकृष्ण की आराधना करने से कोई नहीं रोकता | सुबह चार उठ कर नित्य क्रिया-क्रम से निवृत होकर, अपने आराध्य के चरणों अपने आप को स्कूल जाने पहले समर्पित कर देती थी | स्कूल से वापस आकर,अपना होम वर्क पूरा करना,माँ को शाम का खाना बनाने मे उनकी मदद करना,फिर सेवा मे लग जाना बस यही रूटीन बन गया था |
                             समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता | राधिका ने स्कूल टॉप किया,कॉलेज की पढाई पूरी करी | राधिका के मन मे प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना मन मे सालो से पनप रहा था | इसके लिए तैयारी करने के लिए राधिका को दिल्ली जाना पढ़ा |
                                 आखिरकार आज राधिका ''प्रशासनिक अधकारी''बन गयी |आज घर मे उत्सव का सा माहौल है | दया बहन आज बहुत खुश है,सारी कॉलोनी,को भोजन का निमंत्रण दिया है | सभी गण-मान्य लोगो ने राधिका को आशीर्वाद के साथ-साथ उपहार भी दिया |
                              'दया ने अपने बेटे रविकिशन को,राधिका की शादी के लिए रिश्ते देखने की सलाह दी | कितने रिश्ते देखे पर किसी ने हां नहीं कहा | सब ने एक ही आशंका व्यक्त की, कि आपकी बेटी कृष्ण आराधना मे लीन रहती है | उसमे वैराग्य, की भावना कब उत्पन्न हो जाये इसका कोई ठिकाना नहीं है हमे अपने बेटे की शादी करके हमारे वंश को आगे बढ़ाना है | ना की राधिका से शादी कराके चिंता मोल लेनी है |
                              घर वालो के सामने बहुत बड़ी समस्या कड़ी हो गयी,पर राधिका उनको कहती कि आपलोग मेरी शादी की बिलकुल भी चिंता ना करे | बालकृष्ण को सब पता है कब क्या करना है | एक साल की ट्रेनिंग भी पूरी हो गयी |
                              ''कल राधिका को देखने लडके वाले आ रहे है| सब तैयारी आज ही कर लेना |' उसके पापा ने कहा | आखिकार राधिका की शादी तय हो गयी | अगले माह धूम-धाम से शादी हो गयी | ससुराल मे खूब स्वागत हुआ| सास-ससुर ने बेटे-बहु को चार दिन बाद ही शिमला दस दिन घुमने के लिए भेजा |शादी को तीन महीने ही हुए थे,कि सास को पोता चाहिए की डिमांड शुरु हो गयी | अभी तक राधिका की पोस्टिंग होनी बाकी थी,पति से दबाव डलवाया जाने लगा | राधिका एक साल के बाद बच्चा चाहती थी | अब घर मे सब उससे कटे-कटे से रहने लगे,तो वो अपने माँ-पापा के घर रहने आगयी |
                             दो महीने गुजर गये इसी दौरान राधिका की पोस्टिंग भी हो गयी | एक दिन राधिका की सास और पति उसके माँ-पापा के घर उसे वापस लेजाने के लिए आगये | माँ के समजने पर वो उनके साथ ससुराल आगयी | एक साल बाद राधिका के बेटा पैदा हुआ | घर मे जश्न का माहोल था | सास राधिका के पास आयी और उससे कहा ''बहु हमे माफ़ कर देना, हम भी तुम्हारी बालकृष्ण के प्ररि इतनी सेवा भावना देख कर चिंतित थे | तुम्हारे साथ किये ओछे व्यवहार के लिए माफ़ करना |' ''आप नाहक ही चिंतित हुए,मेरे बालकृष्ण मेरे साथ कोई अनहोनी कभी नहीं होने देते है |' राधिका ने सास से कहा |
                           ''क्या तम्हे, कभी अपने बालकृष्ण के दर्शन हुए है ? सास ने कहा | हां कई बार हुए है,कहा राधिका ने | ''कभी हमे भी दर्शन करवा सकती हो ?' कहा सास ने | हां , आप भी करना | जन्माष्टमी आने वाली है,इस दिन दर्शन होते है | आप भी करियेगा | ' राधिका ने कहा |
                              आज जन्माष्टमी है,राधिका ने ऑफिस की छुटी ली और पुरे दिन से कान्हा के जन्दीन की तैयारी मे जुटी हुई है | सास भी बरोबर साथ दे रही है | बालकृष्ण के लिए नये वस्त्र,नया श्रंगार,नया झुला और भोग-सामग्री सब बन गये | ठीक बारह बजे जन्म के समय राधिका ने सास को कहा माँ ,आओ दर्शन करो | पर सास को कोई दर्शन नहीं हुए,बस बंसी की मधुर धुन सुनाई दे रही थी | राधिका को बाल-रूप के दर्शन हुए | सास ने कहा '' हम धन्य हुए आज तुम्हारे कारण,कान्हा की बंसी की धुन सुनी | कभी दर्शन भी होंगे |सास ने अपनी गलती मानी की हमने तुम्हारी भक्ति को शक की नजर से देखा , हमे माफ़ करना | राधिका ने सास को गले से लगाया और कहा '' आप माता-पिता हमारे लिए पूजनीय हो माफ़ी हमसे नहीं कान्हा जी से मांगो | और दोनों की आँखों मे आंसू थे |
                                                                                                  शांति पुरोहित
                       

सोमवार, 3 जून 2013

सूरत पे मेरी चाँद नज़र आता है अब भी क्या ?

Old muslim couple Royalty Free Stock PhotosCartoon of Muslim Man & Woman Stock Image

बीवी ने पूछा मियां से आँखें झपक-झपककर ,
सूरत पे मेरी चाँद नज़र आता है अब भी क्या ?
शौहर ने कहा प्यार से आँखें मसल-मसलकर ,
ऐनक बिना लगाये मुझे दिखता ही है कहाँ .

बीवी ने कहा आपने ये वादा था किया ,
लाओगे तोड़ तारे मेरे लिए यहाँ .
शौहर ने कहा टूट गयी मेरी कमर ही अब ,

कमरे से बाहर जाना भी मुश्किल है जाने जाँ .

बीवी ये बोली टेलीफोन घर में एक लगा लो ,
बच्चों से यहीं बैठके मैं बातें करूंगी .
शौहर ने कहा बातें तेरी मुझको हैं खाती ,

बच्चों के दिमागों को क्यूं करती हो फ़ना .

शौहर ने कहा जाओ अब रोटी दो बना दो ,
फाकाकशी में जान कहीं निकल न जाये .
बीवी ने कहा हाथों में मेरे जान नहीं अब 
जाओ मिटाओ भूख अपनी ढाबे में मियां .


       शालिनी कौशिक 
           [WOMAN ABOUT MAN]

रविवार, 2 जून 2013

एक नई दिशा

सुश्री शांति पुरोहित की कहानी    एक नई दिशा    





                                                                                                                                        अचानक रात को ग्यारह बजे माँ के कराहने की आवाज आई ,मै तुरंत उनके कमरे मे गयी | वहां का द्रश्य देख कर मे घबरा गयी | ' माँ पसीने नहायी हुई और बेहोश होगयी थी | पडौस मे रहने वाले 'शर्मा अंकंल को बुलाने के लिए मै उनके घर गयी |दरवाजा खुलते ही मैंने कहा 'अंकल माँ को कुछ हुआ है,आप चलिए मेरे साथ उनको अस्पताल ले जाना है |' अस्पताल पहुँचते ही डॉ. ने उन्हें आई .सी .यू. मे एडमिट कर कर लिया |
                               माँ को दिल का दौरा पड़ा था | डॉ.के प्रयास और दवाइ के असर से माँ को सुबह तक थोडा आराम आया,तो मै घर चली गयी | घर मे मै और माँ दो ही जन थे | पापा का चार साल पहले देहांत तेज सुगर के कारण उनके ऑफिस मे ही हो गया था | रिटायर होने मे पांच साल और बाकी थे | अब उनकी जगह पर भाई को राज्य सरकार ने अनुकम्पा नौकरी दी है | हम इस शहर मे नए है,भाई ऑफिस टूर के लिए दस दिन के लिए उदयपुर गये हए थे | 
                             सुबह नर्स आयी इंजेक्शन  लगाने के लिए मुझे उठाया | 'आपके साथ मे कौन है, ये दवा मंगवानी है |' नर्स ने कहा | 'सिस्टर अभी कुछ ही देर मे मेरी बेटी आने वाली है |' दवाओ के असर से आँखे नींद से बोझिल थी,बस इतना कह कर मै वापस सो गयी | फिर दो घंटे बाद नर्स आयी,उसने सोचा, मै सो रही हूँ तो वापस चली गयी, मै तो ऐसे ही आँखे बंद करके लेटी हुई थी |
                            घर के जरुरी काम करके और मेरा खाना लेकर मेरी बेटी रश्मि आ गयी थी | उसने मुझे खाना खिलाया,फिर आराम से लिटा दिया | 'मैंने उसे मेरे बेटे राज को फोन करने से मना कर दिया, बेकार मे वो चिंता करता और अपना काम छोड़ कर यहाँ आ जाता | मुझे तो डॉ. ने दस दिन तक अस्पताल मे रहने को कह दिया था |' दोपहर को नर्स आयी, मुझे सुबह की दवाई देकर कहा 'आंटी जी अब कैसी तबियत है ?' मै कुछ नहीं बोली बस मुस्करा रही थी | मुझे मुस्कराता देख वो बोली 'क्या हुआ आंटी आप ठीक हो ना |' 'मुझे ऐसा क्यों लगता है जैसे मैंने तुम्हे कहीं देखा है |' मैंने उसे कहा | 'एक जैसे चेहरों से दुनिया भरी पड़ी है | तभी ओ.पी डी.मे से सिस्टर  मौली का नाम पुकारा जाने लगा और वो बात बीच मे छोड़ कर भागी | मै वापस सोने का उपक्रम करने लगी |
                            जब मेरी शादी हुई, पति सरकारी नौकरी में थे,मै ''टीचर ट्रेनिग'' कर रही थी | समय के कब पंख लग गये पता ही नहीं चला | मै दो बच्चो की माँ बन गयी ! राज और रश्मि स्कूल जाने लगे,तभी एक दिन पोस्ट मैन मेरा जोइनिंग लेटर लेकर आया | घर मे मेरी नौकरी लगने से सब खुश थे,बस मे खुश नहीं थी | बच्चो से दूर रहना पड़ेगा ये सोच कर ही मे घबराने लगी | मेरी पोस्टिंग राजस्थान के गाँव पांचू मे हुई,वहां मुझे अकेले ही रहना था ये सोच कर मै दुखी थी |
                             'मेरा दुःख ख़ुशी मे तब बदल गया, जब मेरे ससुर अपना सामान लेकर मेरे साथ चलने को तैयार खड़े थे | ' वहां स्कूल के ही पास हमने किराये का एक घर लिया,घर के काम के लिए एक बाई भी रखली |बाई अपनी बेटी को साथ लेकर आती थी | वो लड़की इतना चपर-चपर करती कि मेरे तो सर मे दर्द हो जाता था | एक बार मैंने मेरी बाई माया को कहा '' अपनी बेटी को स्कूल क्यों नहीं भेज देती,वहां जाएगी तो  कुछ पढना लिखना सीख जाएगी तो भविष्य मे इसके बहुत काम आएगा |' सुनकर पहले तो कुछ नहीं बोली फिर कहा 'कहाँ से पैसा लाऊ ,इसे पढ़ाने का ,दिन भर खटती हूँ ,तब पेट भरने जितना पैसा कमा पाती हूँ |'
                           'सरकारी स्कूल है, ज्यादा खर्चा नहीं होगा,फिर तुम फ़िक्र मत करो मै सारा खर्चा वहन करुँगी | अगले ही दिन से बाई की बेटी मौली स्कूल आने लगी | स्कूल मे मौली का मन पढने से ज्यादा बाते करने मे ज्यादा लगता था | गाँव मे किसके घर मे शादी है,किसके घर मे बच्चा आने वाला है वो सब जानकारी रखती थी | पौडर,क्रीम और काजल के बिना वो कभी स्कूल नहीं आती थी | 'तुम अपना सारा ध्यान इधर-उधर लगाती रहोगी तो पढ़ोगी कब |' मैंने उसे डांटते हुए कहा | मौली हाजिर जवाब तो थी,तुरंत कहा 'मैडम मै पढ़-लिख कर कॉलेज की लेक्चरार बनुगी ,आप देखना मै जरुर बनुगी |मै शादी करके बच्चो को नहीं पालूंगी |'
                           'मौली ने दसवी पास कर ली थी | मै आश्वस्त थी कि मौली ने जो कहा वो करके रहेगी इसी बीच मेरा ट्रांसफर हो गया,मै वो गाँव और मौली सब को भूल कर अपने काम मे व्यस्त हो गयी | समय बीतता रहा | शाम को जब सिस्टर आयी तो मैंने फिर वही सवाल दोहराया तो वो अपने को रोक नहीं सकी और रो पड़ी |, मैंने उसे कुछ देर रोने दिया | 'मैडम आपने मुझे अब तक नहीं पहचाना,मै तो आपको देखते ही पहचान गयी पर आपको बता कर दुखी नहीं करना चाहती थी |' 'क्या हुआ तुम कॉलेज लेक्चरार बनी नहीं,नर्स कैसे बन गयी |' मैंने उससे पूछा | ' हायर सेकंडरी पास करते ही माँ ने मेरी शादी मेरे से ज्यादा उम्र के आदमी के साथ करा दी | मैंने इसे अपनी किस्मत समझ कर स्वीकार कर लिया,पर मेरी किस्मत मे इससे भी ज्यादा बुरे दिन देखने लिखे थे | मेरे पति के एक पत्नी पहले से ही थी| बच्चा नहीं था इसलिए मुझसे बच्चा पाने के लिए दूसरी शादी की वो भी हमे धोखे मे रख कर |' इतना कह कर वो फिर रोने लगी ,अपने आपको सम्भाल कर फिर कहा 'ये सब मै बर्दाश्त नहीं कर सकी, अपने जीवन को एक नई दिशा देने के लिए मै वहां से वापस अपने घर आ गयी|
                             'पति को तलाक दे कर दीन- दुखियो की सेवा करने के लिए नर्स की ट्रेनिग कर के अस्पताल मे मरीजो की सेवा करना ही अब मेरे जीने का उद्देश्य बन गया है |और मै बहुत खुश हूँ | आज आप मिल गये मै बहुत खुश हूँ | इतना कहकर मौली चुप हो गयी और मेरी गोद मे सर रख कर सो गयी थोड़ी देर |
                               दस दिन तक अस्पताल मे मौली ने मेरी बहुत सेवा की | आज मुझे डिस्चार्ज मिलने वाला था | सुबह से मौली बहुत उदास दिख रही थी | घर जाने से पहले मैंने उसे अपने पास बिठा कर कहा 'तुम अब अकेली नहीं हो ,जब भी मन करे आ जाना |,तुम्हारा अपना घर है तुम आओगी तो मुझे अच्छा लगेगा |' हम दोनों के साथ सब लोगो की आँखो से आंसू बहने लगे |
                                                                                                                  शांति पुरोहित