झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .
शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .
मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .
कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .
जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .
शालिनी कौशिक
10 टिप्पणियां:
excellent post .happy father's day you too .
पिता को समर्पित एक शानदार रचना ...
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक १६ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...
सुन्दर पक्तियां.
मन भावन रचना ...बहुत खूब
सच है पिता जीवन मिएँ नीव की तरह होते हैं ... मजबूत कठोर पर अंदर से कोमल ...
सुन्दर रचना है आज के दिन ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
बहुत सुंदर .... ऐसे ही पिता सबको मिलें ।
बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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