शनिवार, 15 जून 2013

झुका दूं शीश अपना

                              
झुका दूं शीश अपना ये बिना सोचे जिन चरणों में ,
ऐसे पावन चरण मेरे पिता के कहलाते हैं .




बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .


शिक्षा दिलाई हमें बढाया साथ दे आगे ,
मुसीबतों से हमें लड़ना सिखलाते हैं .


मिथ्या अभिमान से दूर रखकर हमें ,
सादगी सभ्यता का पाठ वे पढ़ाते हैं .


कर्मवीरों की महत्ता जग में है चहुँ ओर,
सही काम करने में वे आगे बढ़ाते हैं .


जैसे पिता मिले मुझे ऐसे सभी को मिलें ,
अनायास दिल से ये शब्द निकल आते हैं .

                शालिनी कौशिक 

10 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

excellent post .happy father's day you too .

shalini rastogi ने कहा…

पिता को समर्पित एक शानदार रचना ...
आपकी यह उत्कृष्ट रचना कल दिनांक १६ जून २०१३ को http://blogprasaran.blogspot.in/ ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है , कृपया पधारें व औरों को भी पढ़े...

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर पक्तियां.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

मन भावन रचना ...बहुत खूब

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है पिता जीवन मिएँ नीव की तरह होते हैं ... मजबूत कठोर पर अंदर से कोमल ...
सुन्दर रचना है आज के दिन ...

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर .... ऐसे ही पिता सबको मिलें ।

Dr. Shorya ने कहा…

बेटे-बेटियों में फर्क जो करते यहाँ ,
ऐसे कम अक्लों को वे आईना दिखलाते हैं .

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

बेनामी ने कहा…

सुन्दर रचना

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति