गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

देखा जो ख्वाब

फैशन डिज़ायनर रूपा का अपने बुटिक मे आते ही काम मे व्यस्त हो जाना, अपने स्टाफ को काम समझाना,ये उनका डेली का रूटीन था |फैशन डिजा
 '' मिस डिसूजा , मिस रूबी का आर्डर रेडी हुआ की नहीं ? डिसूजा कुछ जवाब देती, उससे पहले ही रमेंद्र से पूछ बैठी '' आस्था मेंम ,की ड्रेस के लिए कल जो डिजायन आपको दिया था ,वो ड्रेस रेडी हुई की नहीं ?
    अरे ! जल्दी -जल्दी सबके आर्डर तैयार करो ! दीपावली का त्यौहार है सबको समय पर अपना आर्डर चाहिए होता है |पर आज रूपा का मन कहीं और है वो ऑफिस मे आराम कुर्सी मे बैठ गयी | त्योहारी सीजन के चलते सास लेने भर की भी फुर्सत नहीं है | थकान सी हो रही थी | उठकर ऑफिस की खिड़की खोली तो हल्की सुनहरी धुप  ऑफिस मे प्रवेश कर गयी | दिसंबर माह मे धुप सुहानी लगती है | धुप मे बैठना रूपा को बचपन से ही अच्छा लगता था |
            रूपा धुप का आनंद लेने लगी | दिमाग को एकांत मिलते ही मन गुजरे वक्त की खटी -मीठी यादो मे गोते लगाने लगा | 'इकलौती संतान थी ,पापा मुझे डॉ. बनाना चाहते थे वो खुद भी डॉ. थे | वो अपना क्लिनिक मुझे सौप कर खुद लोगो की फ्री सेवा करना चाहते थे | मेरी रूचि फैशन डिजायनर बनने मे थी | अपना खुदका बुटिक खोलना चाहती थी | मम्मी हमेशा मेरा ही साथ देती थी | पापा को समझाती 'आप क्यों अपनी मर्जी बच्ची पर थोप रहे हो ,उसे जो करना है करने दो ? पापा को मम्मी की बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था वो अपनी जिद पर अड़े थे और मै अपनी ....
            आखिर मेरा सीनियर का रिजल्ट आने के बाद मम्मी ने पापा को समझा-बुझा कर मेरा एडमिशन फैशन डिजाइनर के कोर्स के लिए करवा दिया था | मै बहुत खुश थी | अभी मेरा डिप्लोमा पूरा हुए एक माह ही बीता था कि पापा -मुम्मी ने मेरा रिश्ता एक इंजिनियर लड़के निलेश से पक्का कर दिया था | बहुत कोशिश की ,अभी शादी ना हो ,मै पहले अपना बुटिक खोलना चाहती थी | पापा ने मेरी एक न सुनी और कुछ समय बाद शादी हो गयी | मेरी इच्छा मेरे मन के किसी कोने मे दब कर रह गयी |
           ससुराल मे पति निलेश के पापा- मम्मी एक बहन और दादी थे | नई बहु से सबको बहुत सी अपेक्षाए होती है यहाँ भी थी |सब की इच्छा पूरा करने मे अपना सपना याद ही नई रहा | निलेश की जॉब अभी लगी ही थी तो वो मुझे बहुत कम समय दे पाते थे |अक्सर टूर पर जाना होता था | समय अपनी गति से चलता रहा | एक साल बीत गया | आखिर आज निलेश के जन्मदिन के अवसर पर अपनी बात कहने का मौका मिला '' मुझे बुटिक खोलना है प्लीज मेरी मदद कीजिये न आप , मैंने बहुत ही प्यार से कहा |
          अरे ! इसमें प्लीज बोलने की क्या जरुरत है ?
          तुममें योग्यता है ,काम करना चाहती हो मै कल ही लोकेशन देख कर बताता हूँ |
तम्हारा साथ देना मेरा फर्ज है ,मै आज बहुत खुश थी | पर जैसे ही सासु माँ को पता चला उन्होंने तुरंत आदेश दे दिया '' पहले हम घर मे अपने पोते -पोती को देखना चाहते है बुटिक बाद मे खोलना |, माजी का आदेश था तो निलेश भी चुप रह गया | मै एक बार फिर मन मसोस के रह गयी |
            दिन ,महीने ,साल निकलते रहे ,इसी दौरान मै एक बेटी और एक बेटे की माँ बन गयी थी | अब तो मेरा एक ही काम रह गया था बच्चो ,निलेश और ससुराल वालो की सेवा करना | इन सब के बीच मेरी कला अपना दम तोड़ रही थी | कभी नहीं सोचा था कि मेरी पढाई और मेरे हुनर का ये हाल होगा | निराशा मेरे अन्दर घर कर  गयी |
             समय बीतता रहा अब मेरी बेटी नीता कॉलेज जाने लगी और बेटा निर्भय भी अगले साल कॉलेज  जाने लगेगा | अगले सप्ताह नीता के कॉलेज मे वार्षिक उत्सव होने वाला था नीता ने फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता मे भाग लिया था| उसने टेलर से जो ड्रेस बनवाई वो उसे बिलकुल भी पसंद नहीं आयी | नीता उदास हो गयी | आज फिर किसी अन्य टेलर के पास गयी | बेटी की उदासी मुझसे देखी नहीं गयी | तभी मुझे अपनी कला का ख्याल आया मैंने आज अपनी कला का उपयोग करके बड़े ही मनोयोग से बेटी के लिए ड्रेस तैयार करली |
             शाम को जब नीता उदास चेहरा लेकर घर वापस आयी | ''कुछ काम नहीं बना क्या ? मैंने पूछा | नहीं माँ , तभी उसके हाथ मे वो ड्रेस रखी मैंने | नीता ख़ुशी से उछल पड़ी ''वाह माँ , आपने कहाँ से बनवाई ड्रेस ?,
            बहुत अच्छी है मुझे एसी ही ड्रेस चाहिए थी |, तभी मेरी सासु माँ ने उसे कहा 'तेरी माँ रूपा ने ही बनाई है | आज हमे अपनी गलती का एह्सास हो रहा है | ' किस गलती का दादी , नीता ने कहा | रूपा बह इतनी टेलेंटेड है पर हमने इसे घर के कामो मे लगा कर रखा,  इसकी कला का कभी सम्मान नहीं किया |, सासु माँ ने कहा |
              तो नीता बोली '' अब भी मम्मी अपना बुटिक खोल सकती है, अब तो हम भी अपना काम खुद कर सकते  है | शाम को निलेश आया सासु माँ और नीता ने उन्हें सब बताया | नीता ने पापा से कहा ,मम्मी इतनी योग्य थी ,अपना बुटिक खोलना चाहती थी ,तो आपने मम्मी को सपोर्ट क्यों नहीं किया ?,एक पति को तो अपनी पत्नी की योग्यता की कद्र करनी चाहिए थी | निलेश को सच मे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और  निलेश ने अगले ही दिन अति व्यस्त बाजार मे एक दुकान देखली और जोरो से तैयारिया चलने लगी | प्रतियोगिता मे नीता का पहला स्थान आया | नीता भी मेरी मदद करने मे लग गयी |
   आखिर पांच माह के बाद आज मेरे बुटिक का उद्घाटन था | जो मैंने अपनी सासु माँ और ससुरजी के हाथो कराया | बहुत सारे कपड़े लोगो ने खरीदे साथ ही इतने आर्डर आये मे एक साल तक के लिए एक साथ व्यस्त हो गयी | आज तो मेरे बनाये कपड़े देश के अन्य भागो मे भी जाने लगे है | ये सब मेरी बेटी और सासु माँ के कारण ही हुआ है | मेम चाय , मिस डिसूजा की आवाज से मेरा चिंतन ख़त्म हुआ | जब जागो तभी सवेरा वाली बात मुझ पर फिट बैठी है | आज मेरा वर्षो पहले देखा सपना या यू सोच लीजिये कि मेरे जीने का मकसद अब मुझे मिला है |

शांति पुरोहित 

5 टिप्‍पणियां:

nayee dunia ने कहा…

der se hi sahi , kala ki parakh to huyee ..man me kasak rah gayee ye baat aur hai ..bahut achhi kahani hai shanti ji .....:)

बेनामी ने कहा…

sundar prastuti .shanti ji happy deepawali .

Unknown ने कहा…

happy deepavli shalniji

nayee dunia ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 09/11/2013 को एक गृहिणी जब कलम उठाती है ...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 042 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

Unknown ने कहा…

सुन्दर रचना का संसार