लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
एक समाचार -कैप्टेन ने फांसी लगाकर जान दी ,.
बरेली में तैनात २६ वर्षीय वरुण वत्स ,जिनकी पिछले वर्ष २८ जून को एच.सी.एल .कंपनी में सोफ्टवेयर इंजीनियर रुपाली से शादी हुई थी ,ने घटना के कुछ देर पहले ही गुडगाँव में रह रही पत्नी से फोन पर बात की थी जिसमे दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था और समाचार के मुताबिक नौकरी के कारण पति को समय न दे पाने के कारण दोनों में अक्सर विवाद होता था .
ये स्थिति आज केवल एक घर में नहीं है वरन आज आधुनिकता की होड़ में लगे अधिकांश परिवारों में यही स्थिति देखने को मिलेगी .विवाह करते वक़्त लड़कों के लिए प्राथमिकता में वही लड़कियां हैं जो सर्विस करती हैं .यही नहीं एक तरह से आज लड़कियों के स्थान पर उन्हें पत्नी के रूप में एक मशीन चाहिए जो उनके निर्देशानुसार कार्य करती रहे ,अर्थात पहले सुबह को घर के काम निबटाये ,फिर अपने ऑफिस जाये नौकरी करे और फिर घर आकर भी सारे काम करे .बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई मशीन करती है .अब ऐसे में यदि कोई पति पत्नी से अलग से अपने लिए भी समय चाहता है तो उसकी यह उम्मीद तो बेमानी ही कही जाएगी .
आरम्भ से लेकर आज तक महिलाओं के घर के कामों को कोई तरजीह नहीं दे गयी उनके लिए तो यही समझा जाता है कि वे तो यूँ ही हो जाते हैं .हमेशा बाहर जाकर अपनी मेहनत को ही पुरुषों ने महत्व दिया है और इसी का नतीजा है कि आज घर धर्मशाला बनकर रह गए हैं पुरुषों के रंग में रंगी नारियां भी आज काम नहीं वे भी अब वही सब कुछ करना चाहती है जो किसी भी तरह से पुरुषों को उनके सामने नीचा दिखा सके और घर इसलिये वे यहाँ भी पुरुषों के हाथ की कठपुतली ही बनकर रह गयी हैं और इसी विचारधारा के कारण घर ऐसे धर्मशाला बन गए हैं जहाँ दोनों ही कुछ समय बिताते हैं और फिर अपने गंतव्य की ओर मतलब ऑफिस की ओर चल देते हैं और इसका जो दुष्प्रभाव पड़ता है वह नारी पर ही पड़ता है क्योंकि घर तो उसका कार्यक्षेत्र माना जाता है और माना जाता रहेगा और ऐसे में यदि घर में कोई नागवार स्थिति आती है तो दोष उसी नारी के मत्थे मढ़ा जाता रहेगा और उस पर तुर्रा ये कि आज महंगाई इतनी ज्यादा हो गयी है कि दोनों के काम करने पर ही घर चल सकता है ,मुझे तो नहीं लगता क्योंकि इस तरह से नारी के सौन्दर्य प्रसाधन और छोटे छोटे बहुत से व्यर्थ के खर्चे भी इसमें जुड़ जाते हैं और घर की अर्थव्यवस्था वही डांवाडोल बनी रहती है किन्तु मेरी सोच को कौन देखता है देखते हैं नारी सशक्तिकरण जिसका फायदा आज भी पुरुष ही उठा रहा है और नारी को स्वतंत्रता के नाम पर बैलों की तरह जोत रहा है .
पहले पति कमाकर लाता था और पत्नी घर संभालती थी किन्तु आज दोनों को घर से जाने की जल्दी जिसमे पिसती है औरत ,जिसके काम के घंटे कभी कभी तो १८ भी हो जाते हैं और इस स्थिति के कारण बच्चों को जो लापरवाही झेलनी पड़ती है और उन्हें जो कुछ भी करने की आज़ादी मिल जाती है वह अलग ,घर में कोई होता ही नहीं जो देखे कि बच्चा किस दिशा में जा रहा है .वे पैसे से सब कुछ खरीदकर बच्चों के लिए सुख सुविधा का तमाम सामान जुटा देते हैं किन्तु जो सबसे ज़रूरी है वही नहीं दे पाते ,वह प्यार ,जो उन्हें जीवन के रणक्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,वह स्नेह ,जो उन्हें देता है वह ताकत जिससे वे कड़े संघर्ष के बाद भी सफलता हासिल करते हैं ,वह समझ ,जो उनमे भरता है आत्मविश्वास और ये सब नहीं कर पाते हैं इसलिये होते हैं आरुषि जैसे कांड .
आज ये बदलती हुई प्राथमिकताओं का ही असर है कि शादी के वक़्त तो लड़की सुन्दर हो ,पढ़ी लिखी हो ,गृह्कार्यदक्ष हो नौकरी करती हो,देखा जाता है तब तो ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं होती कि वह पति को समय भी दे और शादी के बाद ये भी जुड़ जाती है और फलस्वरूप होते हैं वरुण वत्स जैसे दुखद हादसे जिसके एक मात्र जिम्मेदार आज के युवा ही हैं ,लड़के ही हैं जिन्हें अपने स्टेटस के लिए लड़की चाहिए ''जॉब वाली ''क्योंकि वे नहीं जानते कि घर कैसे बनता है .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN ]
एक समाचार -कैप्टेन ने फांसी लगाकर जान दी ,.
बरेली में तैनात २६ वर्षीय वरुण वत्स ,जिनकी पिछले वर्ष २८ जून को एच.सी.एल .कंपनी में सोफ्टवेयर इंजीनियर रुपाली से शादी हुई थी ,ने घटना के कुछ देर पहले ही गुडगाँव में रह रही पत्नी से फोन पर बात की थी जिसमे दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था और समाचार के मुताबिक नौकरी के कारण पति को समय न दे पाने के कारण दोनों में अक्सर विवाद होता था .
ये स्थिति आज केवल एक घर में नहीं है वरन आज आधुनिकता की होड़ में लगे अधिकांश परिवारों में यही स्थिति देखने को मिलेगी .विवाह करते वक़्त लड़कों के लिए प्राथमिकता में वही लड़कियां हैं जो सर्विस करती हैं .यही नहीं एक तरह से आज लड़कियों के स्थान पर उन्हें पत्नी के रूप में एक मशीन चाहिए जो उनके निर्देशानुसार कार्य करती रहे ,अर्थात पहले सुबह को घर के काम निबटाये ,फिर अपने ऑफिस जाये नौकरी करे और फिर घर आकर भी सारे काम करे .बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई मशीन करती है .अब ऐसे में यदि कोई पति पत्नी से अलग से अपने लिए भी समय चाहता है तो उसकी यह उम्मीद तो बेमानी ही कही जाएगी .
आरम्भ से लेकर आज तक महिलाओं के घर के कामों को कोई तरजीह नहीं दे गयी उनके लिए तो यही समझा जाता है कि वे तो यूँ ही हो जाते हैं .हमेशा बाहर जाकर अपनी मेहनत को ही पुरुषों ने महत्व दिया है और इसी का नतीजा है कि आज घर धर्मशाला बनकर रह गए हैं पुरुषों के रंग में रंगी नारियां भी आज काम नहीं वे भी अब वही सब कुछ करना चाहती है जो किसी भी तरह से पुरुषों को उनके सामने नीचा दिखा सके और घर इसलिये वे यहाँ भी पुरुषों के हाथ की कठपुतली ही बनकर रह गयी हैं और इसी विचारधारा के कारण घर ऐसे धर्मशाला बन गए हैं जहाँ दोनों ही कुछ समय बिताते हैं और फिर अपने गंतव्य की ओर मतलब ऑफिस की ओर चल देते हैं और इसका जो दुष्प्रभाव पड़ता है वह नारी पर ही पड़ता है क्योंकि घर तो उसका कार्यक्षेत्र माना जाता है और माना जाता रहेगा और ऐसे में यदि घर में कोई नागवार स्थिति आती है तो दोष उसी नारी के मत्थे मढ़ा जाता रहेगा और उस पर तुर्रा ये कि आज महंगाई इतनी ज्यादा हो गयी है कि दोनों के काम करने पर ही घर चल सकता है ,मुझे तो नहीं लगता क्योंकि इस तरह से नारी के सौन्दर्य प्रसाधन और छोटे छोटे बहुत से व्यर्थ के खर्चे भी इसमें जुड़ जाते हैं और घर की अर्थव्यवस्था वही डांवाडोल बनी रहती है किन्तु मेरी सोच को कौन देखता है देखते हैं नारी सशक्तिकरण जिसका फायदा आज भी पुरुष ही उठा रहा है और नारी को स्वतंत्रता के नाम पर बैलों की तरह जोत रहा है .
पहले पति कमाकर लाता था और पत्नी घर संभालती थी किन्तु आज दोनों को घर से जाने की जल्दी जिसमे पिसती है औरत ,जिसके काम के घंटे कभी कभी तो १८ भी हो जाते हैं और इस स्थिति के कारण बच्चों को जो लापरवाही झेलनी पड़ती है और उन्हें जो कुछ भी करने की आज़ादी मिल जाती है वह अलग ,घर में कोई होता ही नहीं जो देखे कि बच्चा किस दिशा में जा रहा है .वे पैसे से सब कुछ खरीदकर बच्चों के लिए सुख सुविधा का तमाम सामान जुटा देते हैं किन्तु जो सबसे ज़रूरी है वही नहीं दे पाते ,वह प्यार ,जो उन्हें जीवन के रणक्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,वह स्नेह ,जो उन्हें देता है वह ताकत जिससे वे कड़े संघर्ष के बाद भी सफलता हासिल करते हैं ,वह समझ ,जो उनमे भरता है आत्मविश्वास और ये सब नहीं कर पाते हैं इसलिये होते हैं आरुषि जैसे कांड .
आज ये बदलती हुई प्राथमिकताओं का ही असर है कि शादी के वक़्त तो लड़की सुन्दर हो ,पढ़ी लिखी हो ,गृह्कार्यदक्ष हो नौकरी करती हो,देखा जाता है तब तो ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं होती कि वह पति को समय भी दे और शादी के बाद ये भी जुड़ जाती है और फलस्वरूप होते हैं वरुण वत्स जैसे दुखद हादसे जिसके एक मात्र जिम्मेदार आज के युवा ही हैं ,लड़के ही हैं जिन्हें अपने स्टेटस के लिए लड़की चाहिए ''जॉब वाली ''क्योंकि वे नहीं जानते कि घर कैसे बनता है .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN ]
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उम्दा .
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