मर्द की हकीकत
''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया .जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है ?किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं .स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहें जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है .
सेना में प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं किन्तु अब आये दिन अपने आस पास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है .पत्नी के माध्यम से पुलिस अफसरों से मेल-जोल ये कहकर-
''कि थानेदार साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है .''
नेताओं से दोस्ती ये कहकर कि -
''मेरी बेटी से मिलिए .''
तो घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पुरुषों का ही कारनामा है .बेटी को शादी के बाद मायके ले आना और वापस ससुराल न भेजना जबकि उसे वहां कोई दिक्कत नहीं संशय उतपन्न करने को काफी है और उस पर पति का यह आक्षेप कि ये अपनी बेटी को कहीं बेचना चाहते हैं जबकि मैने इनके कहने पर अपने घर से अलग घर भी ले लिया था तब भी ये अपनी बेटी को नहीं भेज रहे हैं ,इसी संशय को संपुष्ट करता है .ये कारनामा हमारी कई फिल्मे दिखा भी चुकी हैं तेजाब फिल्म में अनुपम खेर एक ऐसे ही बाप की भूमिका निभा रहे हैं जो अपनी बेटी का किसी से सौदा करता है .
जो पुरुष स्त्री को संपत्ति में हिस्सा देना ही नहीं चाहता आज वही स्टाम्प शुल्क में कमी को लेकर संपत्ति पत्नी के नाम खरीद रहा है पता है कि मेरे कब्जे में रह रही यह अबला नारी मेरे खिलाफ नहीं जा सकती तो जहाँ पैसे बचा सकता हूँ क्यूं न बचाऊँ ,इस तरफ सरकारी नारी सशक्तिकरण को चूना लगा रहा है . जिसके घर में पत्नी बेटी की हैसियत गूंगी गुडिया से अधिक नहीं होती वही सीटों के आरक्षण के कारन स्थानीय सत्ता में अपना वजूद कायम रखने के लिए पत्नी को उम्मीदवार बना रहा है .जिस पुरुष के दंभ को मात्र इतने से कि ,पत्नी की कमाई खा रहा है ,गहरी चोट लगती है ,वह स्वयं को -
''जी मैं उन्ही का पति हूँ जो यहाँ चैयरमेन के pad के लिए खड़ी हुई थी ,''
या फिर अख़बारों में स्वयं के फोटो के नीचे अपने नाम के साथ सभासद पति लिखवाते शर्म का लेशमात्र भी नहीं छूता .
पुरुष के लिए नारी मात्र एक जायदाद की हैसियत रखती है और वह उसके माध्यम से अपने जिन जिन स्वार्थों की पूर्ति कर सकता है ,करता है .सरकारी योजनाओं के पैसे खाने के लिए अपने रहते पत्नी को ''विधवा ''तक लिखवाने इसे गुरेज नहीं .संपत्ति मामले सुलझाने के लिए घोर परंपरावादी माहौल में पत्नी को आगे बढ़ा बात करवाने में शर्म नहीं .बीवी के किसी और के साथ घर से बार बार भाग जाने पर जो व्यक्ति पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता फिरता है वही उसके लौट आने पर भी उसे रखता है और उसे कोई शक भी नहीं होता क्योंकि वह तो पहले से ही जानता है कि वह घर से भागी है बल्कि उसके घर आने पर उसे और अधिक खुश रखने के प्रयत्न करता है वह भी केवल यूँ कि अपने जिस काम से वह कमाई कर रही है वह दूसरों के हाथों में क्यों दे ,मुझे दे ,मेरे लिए करे ,मेरी रोटी माध्यम बने .
पुरुष की एक सच्चाई यह भी है .कहने को तो यह कहा जायेगा कि ये बहुत ही निम्न ,प्रगति से कोसों दूर जनजातियों में ही होता है जबकि ऐसा नहीं है .ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे उन्ही जातियों में ज्यादा दिखाई देंगे क्योंकि आज के बहुत से माडर्न परिवारों ने इसे आधुनिकता की दिशा में बढ़ते क़दमों के रूप में स्वीकार कर लिया है किन्तु वे लोग अभी इस प्रवर्ति को स्वीकारने में सहज नहीं होते और इसलिए उन्हें गिरा हुआ साबित कर दिया जाता है क्योंकि वे आधुनिकता की इन प्रवर्तियों को गन्दी मानते हैं किन्तु यहाँ मैं जिस पुरुष की बात कह रही हूँ वे आज के सभ्यों में शामिल हैं ,हाथ जोड़कर नमस्कार करना ,स्वयं का सभ्य स्वरुप बना कर रखना शालीन ,शाही कपडे पहनना और जितने भी स्वांग रच वे स्वयं को आज की हाई सोसाइटी का साबित कर सकते हैं करते हैं ,किन्तु इस सबके पीछे का सच ये है कि वे शानो-शौकत बनाये रखने के लिए अपनी पत्नी को आगे कर दूसरे पुरुषों को लूटने का काम करते हैं .इसलिए ये भी है आज के मर्द की एक हकीकत .
शालिनी कौशिक
[WOMAN ABOUT MAN]
17 टिप्पणियां:
पत्नी को दाँव लगा कर जीतने का लोभ तो तथा कथित धर्मराज भी नहीं छोड़ पाते ,कहने को कुछ बचा है क्या ... !
इतना गिरा हुआ समाज केवल हमारे यहाँ ही हो सकता है, घिन आती है एसे समाज से www.omjaijagdeesh.blogspot.com
बहुत घ्रणित सत्य है , शब्द नही है बाकि और कुछ कहने को
shalini ji purushon ke bare me aapke yah vichar kuchh mamlo me to sahi ho sakte hain aur jahan tak mahilaon ke istemal ke bare me aapne kayi kisse likhe hain ve aaj ki baat nahi mahabharat kaal me bhi draupadi ko juye ke daav par lagaya gaya tha fir aap kaun si nayi baat kar rahi hain aisa kyun nahi likh rahi hain ki aaj mahilayen kitni aadhunik aur chalak ho gayi hain ki jab fayda kamane ki baat samne aati hai to mahilayen purush ke mukable jyada aage dikhayi deti hain aapn e mahila secretary mahila PA ko dekhi hongi kaise ve apne purush Boss ko lubhane ke liye roj ardhnagn kapde pahankar office aati hain atah aapka yah kahna ki purush mahilaon ka istemal kar dhan kamane ki koshis me hain main is tathy ko nahi manta ab in sab baton ke liye purush aur mahila saman roop se doshi hain aaap 50 saal pahle ki baten likh rahi hain
शालिनी जी ,समाज में घटने वाली घटनाओं के पीछे जो मानसिकता है उसकी जितनी भी निंदा की जाए वो कम है लेकिन कुछ घटनाओं को लेकर सम्पूर्ण पुरुष वर्ग को ही कटघरे में खड़ा करना कहाँ तक उचित है ! आपनें खुद ही अपनें लेख में दो तरह की मानसिकताओं का वर्णन करते हुए लिखा है कि यकीन नहीं होता है लेकिन यकीन करना पड़ता है जिसका सीधा मतलब यही है कि सम्पूर्ण पुरुष वर्ग में एक ही मानसिकता नहीं पायी जाती है और सबकी मानसिकता एक जैसी नहीं होती है तो फिर सबको कठघरे में खड़ा करना कहाँ तक सही हो सकता है !!
purush ki hakikat se rubru karati aapki post sarahniy hai .aabhar
प्रतिभा जी ,अभिषेक जी ,शौर्य जी ,अशोक जी और शिखा जी सुन्दर सार्थक विचारों की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद् .
@अशोक जी ,सादर नमस्कार आपकी सभी बातें वाजिब हैं केवल यह छोड़कर कि ये ५० साल पुरानी हैं ,नहीं ये आजकल की ही बातें हैं और मेरी स्वयं की देखी हुई हैं हाँ आप जो कह रहे हैं वे मेट्रो सीटीस की बात हैं और मैं जो कर रही हूँ वे कस्बों की बात हैं .
shaliniji,
Aap ne vrtmaana samaj ko najar me rakh kar bhut sundar vichaara vyakta kiye hai.
Atisundar,
Please visit my blog "Unwarat.com" for my new article Musibto kaa saamanaa kaise kare. Please give your suggestions.My article is open for your views.
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Vinnie
puran ji v vinne ji thanks a lot .
@puran ji .maine aalekh ke ant me swayam hi kaha hai ..ye bhi hai mard kee hakikat ''aapse purntaya sahamat .
समाज में सब किस्म के लोग हैं मैं नकारात्मक ही क्यों देखूं . शोषण बेशक शोषण ही कहायेगा पुरुष करे या नारी .एक प्रवृत्ति ऐसी है ज़रूर जिसके खिलाफ आवाज़ उठाने का हौसला दिखाइये .
यदि यह सच है तो अत्यंत घ्रणित काम किया गया है | थू है ऐसी मर्दानगी पर और मर्दों पर |
आपकी यह रचना निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
यही वह भारतीय संस्कृति है जिस पर हम गर्व करते हैं?????
thanks to veerubhai ji ,brijesh ji ,tushar raj ji and dinesh rai ji .
पर हम गर्व करते हैं
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