गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

तुम भाग्य विधाता नही हो..

.बहुत चाह है तुम्हे ...
भगवन बन जाने की
लेकिन मेरी किस्मत की लकीर
तुमने नही लिखी
रच्येता हो तुम
मेरे कर्मो के
क्युकी बांधा है तुमने
मुझे बन्धनों में
मुझे क्या करना है
मुझे क्या नही करना है
तुम निश्चित करते हो
लेकिन उनका पुरस्कार या
iतरस्कार क्या होगा
तुम नही लिख सकते
तुम भाग्य विधाता नही हो.....................................


तुम सिर्फ एक पिता हो
तुम सिर्फ एक पति हो
तुम एक पुत्र हो
कितना भी आधुनिक हो जाओ
फिर भी यही चाहते हो भीतर से
क अपनी जिन्दगी में आई
हर स्त्री पर हुकूमत कर सको
चाहे कुछ पल क लिए ही सही
जमाना बदला हो या न
सोच बदल गयी है अब
अब स्त्री तुम्हे साथी का दर्ज़ा देती है
अपने किस्मत के रचियेता का नही
अपनी जिन्दगी की भाग्यविधाता वोह खुद है
क्युकी वोह इस सृष्टि की रच्येता है

जन्म वोह देती है जीवन को !!!!!!
  नीलिमा शर्मा

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नीलिमा जी बेहतरीन रचना के लिये बधाई

Shalini kaushik ने कहा…

MOST WELCOME NEELIMA JI.भावात्मक अभिव्यक्ति ह्रदय को छू गयी आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें नरेन्द्र से नारीन्द्र तक .महिला ब्लोगर्स के लिए एक नयी सौगात आज ही जुड़ें WOMAN ABOUT MANजाने संविधान में कैसे है संपत्ति का अधिकार-1

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

आत्मविश्वास से भरी कविता। निलीमा जी को यह कविता लिखने वाले के लिए बधाई और जिसने भी इस पोस्ट के साथ चित्र जोडा उसे भी। अब एहसास हो रहा है नारियां अपने जीवन के भीतर पुरूष के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोक सकती है।

Unknown ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे लिखे शब्दों की सराहना के शब्द देने के लिए

Macks ने कहा…

really very nice