हैं ये इकबाल नारी का ,इन्हीं की इज्ज़त है नारी ,
हुकूमत इनकी चलती है गुलामी करती है नारी .
इल्लत पालते हैं ये ,ईमान इनका न कोई ,
उल्फत करते फिरते ये ,होती बदनाम है नारी .
गुरूर करते हैं खुद पर ,ज़हीन खुद को ही मानें ,
नाज़ रखें ये नाजायज़ ,निभाती उनको है नारी .
ख्याली पुलाव ही खाएं ,ख्वाबी महल बनवाएं ,
समझदारी दिमागों में अगर भर पाए न नारी .
खोखली इनकी जिंदगी, भूतिया घर या हवेली ,
अँधेरे जीवन में इनके चांदनी लाये है नारी .
सदा गर्मी दिखाकर ही करें औरत को ये खामोश ,
अक्ल में इनसे ऊपर जो,खटकती है वो हर नारी .
न बदलें चाल-ढाल अपनी ,लिबास अपने न देखें ,
है तुर्रा उस पर ये देखो ,साँस भी पूछ ले नारी .
खुदी में रब हैं ये बनते ,खुदी बन जाएँ ये भरतार ,
''शालिनी ''ही न अकेली भुगतती इनको हर नारी .
शब्दार्थ.-इकबाल-सौभाग्य ,ईमान-नीयत ,ज़हीन-तीक्ष्ण बुद्धिवाला ,इल्लत-दुर्व्यसन ,तुर्रा-कोड़ा या चाबुक ,गर्मी दिखाकर-क्रोध दिखाकर ,नाजायज़-अनुचित ,नाज़-नखरा .
शालिनी कौशिक
[कौशल]
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर .
देवी कात्यायिनी माता की जय !
नारी की वास्तविक दशा कासतीक वर्णन १
नारी, अपरीक्षित सम्बन्ध जोडती क्यों है?
नारी ,नुमाइश की ओधनी ओढते क्यों है??
अच्छे फलों की फ्न्चान वह करती क्यों नहीं?
नारी,कृमि-खाये रसहीन फल निचोड़ती क्यों है ??
मुझसे तो कुछ कहा ही नहीं जा रहा ...ऐसा सब सोच कर भी दुःख होता है ..
एक टिप्पणी भेजें