बुधवार, 18 सितंबर 2013

सही हर सोच है इनकी,भले बैठें गलत घर पर .

 
तखल्लुस कह नहीं सकते ,तखैयुल कर नहीं सकते ,
तकब्बुर में घिरे ऐसे ,तकल्लुफ कर नहीं सकते .
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मुसन्निफ़ बनने की सुनकर ,बेगम मुस्कुराती हैं ,
मुसद्दस लिखने में मुश्किल हमें भी खूब आती है ,
महफ़िलें सुन मेरी ग़ज़लें ,मुसाफिरी पर जाती हैं ,
मसर्रत देख हाल-ए-दिल ,मुख्तलिफ ही हो जाती है .
मुकद्दर में है जो लिखा,पलट हम कर नहीं सकते ,
यूँ खाली पेट फिर-फिर कर तखल्लुस कह नहीं सकते .
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ज़बान पर अवाम की ,मेरे अशआर चढ़ जाएँ ,
मुक़र्रर हर मुखम्मस पर ,सुने जो मुहं से कह जाये ,
मुखालिफ भी हमें सुनने ,भरे उल्फत चले आयें ,
उलाहना न देकर बेगम ,हमारी कायल हो जाएँ .
नक़ल से ऐसी काबिलियत हैं खुद में भर नहीं सकते ,
यूँ सारी रात जग-जगकर तखैयुल कर नहीं सकते .
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शहंशाही मर्दों की ,क़ुबूल की है कुदरत ने ,
सल्तनत कायम रखने की भरी हिम्मत हुकूमत ने ,
हुकुम की मेरे अनदेखी ,कभी न की हकीकत ने ,
बनाया है मुझे राजा ,यहाँ मेरी तबीयत ने .
तरबियत ऐसी कि मूंछे नीची कर नहीं सकते ,
तकब्बुर में घिरे ऐसे कभी भी झुक नहीं सकते .
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मुहब्बत करके भी देखो, किसी से बंध नहीं सकते ,
दिलकश हर नज़ारे को, यूँ घर में रख नहीं सकते ,
बुलंद इकबाल है अपना ,बेअदबी सह नहीं सकते
चलाये बिन यहाँ अपनी ,चैन से रह नहीं सकते .
चढ़ा है मतलब सिर अपने ,किसी की सुन नहीं सकते ,
शरम के फेर में पड़कर, तकल्लुफ कर नहीं सकते .
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शख्सियत है बनी ऐसी ,कहे ये ''शालिनी ''खुलकर ,
सही हर सोच है इनकी,भले बैठें गलत घर पर .
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शब्दार्थ-तखल्लुस-उपनाम ,तखैयुल-कल्पना ,तकब्बुर-अभिमान ,तकल्लुफ-शिष्टाचार ,मुसन्निफ़-लेखक,मुसाफिरी-यात्रा ,मसर्रत-ख़ुशी ,मुख्तलिफ -अलग
मुसद्दस -उर्दू में ६ चरणों की कविता ,मुखम्मस-५ चरणों की कविता ,मुखालिफ-विरोधी ,उल्फत-प्रेम, उलाहना -शिकायत ,कायल-मान लेना ,तरबियत-पालन-पोषण ,बुलंद इकबाल -भाग्यशाली
                  शालिनी कौशिक
                       [woman  about  man  ]

2 टिप्‍पणियां:

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