पुरुष मात्र पुरुष नहीं होता .एक नारी की दृष्टि से वह पिता है ,भाई है ,पति है ,पुत्र है ,जीजा ,बहनोई ,देवर,जेठ,सहयोगी,सहकर्मी और न जाने कितनी भूमिकाओं में नारी जीवन को प्रभावित करता है पुरुष .इसकी पड़ताल करेगा यह ब्लॉग .नारी की दृष्टि में पुरुष .अगर आप भी इससे जुड़ना चाहती हैं तो मुझे मेल करें -kaushik_shalini@hotmail.com
शुक्रवार, 11 अप्रैल 2025
कल्पना पुरुष मन की
अधिकार सार्वभौमिक सत्ता सर्वत्र प्रभुत्व सदा विजय सबके द्वारा अनुमोदन मेरी अधीनता सब हो मात्र मेरा कर्तव्य गुलामी दायित्व ही दायित्व झुका शीश हो मात्र तुम्हारा मेरे हर अधीन का बस यही कल्पना हर पुरुष मन की . शालिनी कौशिक
ये पंक्तियाँ पढ़ते ही एक टीस सी उठी दिल में। कितनी सच्चाई और कड़वाहट भरी है इसमें। इस कविता ने तो जैसे समाज की परतें खोलकर सामने रख दीं। सबसे ज़्यादा चुभी वो पंक्ति “बस यही कल्पना, हर पुरुष मन की”... सच में, कितनी गहराई से कह दिया। ऐसी रचनाएँ हर स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई जाएँ, ताकि नई पीढ़ी सोच बदले। तुम्हारी लेखनी बहुत कुछ महसूस करा गई दोस्त, दिल से सलाम!
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ये पंक्तियाँ पढ़ते ही एक टीस सी उठी दिल में। कितनी सच्चाई और कड़वाहट भरी है इसमें। इस कविता ने तो जैसे समाज की परतें खोलकर सामने रख दीं। सबसे ज़्यादा चुभी वो पंक्ति “बस यही कल्पना, हर पुरुष मन की”... सच में, कितनी गहराई से कह दिया। ऐसी रचनाएँ हर स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई जाएँ, ताकि नई पीढ़ी सोच बदले। तुम्हारी लेखनी बहुत कुछ महसूस करा गई दोस्त, दिल से सलाम!
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