भारत वर्ष में दहेज़ को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता में भी प्रावधान हैं और इसके लिए अलग से दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम भी बनाया गया है जिसकी जानकारी आप मेरे ब्लॉग कानूनी ज्ञान की इस पोस्ट
''कानून है तब भी " से ले सकते हैं किन्तु इस सबके बावजूद दहेज़ हत्याओं में कमी नहीं आयी है और एक बार को गरीब तबके को छोड़ भी दें वो इसलिए कि पहले तो उनमे इसका इतना प्रचलन नहीं है क्योंकि इसके लिए बड़े तबकों के लोग यह कह देते हैं कि ''इन्हें लड़की मिलती ही कहाँ है ये तो लड़की को खरीदते हैं ''किन्तु अपने गिरेबान में अगर ये बड़े तबके झांक लें तो इनमे लड़की को खरीदने जैसी कुप्रथा तो नहीं अपितु लड़कों को बेचने जैसी माखन लपेट सुप्रथा का प्रचलन है और इसी तबके में आज भी लड़कियां दहेज़ के लिए मारी जा रही हैं ,जलाई जा रही हैं।
और इसका जीता जागता प्रमाण है कल देश के ६९ वें गणतंत्र दिवस पर समाचारों की सुर्ख़ियों में रही यह खबर -''पिता मिनिस्टर तो ससुर सांसद रहे, फिर भी इतनी टॉर्चर हुई थी ये लड़की''
कल इस मामले में कोर्ट का फैसला आया जिसमे पूर्व सांसद और बीजेपी नेता नरेंद्र कश्यप बहू को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिए गए हैं। उनकी पत्नी देवेंद्री और बेटे सागर को भी मामले में दोषी करार दिया गया है। पुलिस ने तीनों आरोपियों को अरेस्ट कर डासना जेल भेज दिया है। बता दें, नरेंद्र की बहू हिमांशी का शव 6 अप्रैल 2016 को ससुराल में बाथरूम में बरामद हुआ था।
कोर्ट ने इस मामले में लड़की के ससुर ,सास व् पति को दोषी करार दिया है और ये ज़रूरी भी था क्योंकि बहू अपनी ससुराल में ही मरी थी और घटनाक्रम भी उनके दोषी होने की गवाही दे रहा था। सम्पूर्ण घटनाक्रम के अनुसार -
- यूपी के गाजियाबाद जिले के कवि नगर इलाके के संजय नगर सेक्टर-23 में नरेंद्र कश्यप की फैमिली रहती है। बड़े बेटे डॉक्टर सागर की शादी हिमांशी से हुई थी।
- 6 अप्रैल 2016 को हिमांशी का शव बाथरूम में मिला था। उसके हाथ में रिवाॅल्वर भी बरामद हुई थी, जोकि पति सागर की थी।
- ससुरालवालों ने बताया था, बहू ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर खुद को गोली मार ली। उसे तुरंत यशोदा अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
- हिमान्शी की शादी 27 नवंबर 2013 में हुई थी। उसने यूपी के बदायूं से पढ़ाई की थी। पिता हीरा लाल कश्यप पिछली बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री थे। उन्होंने ससुरालवालों के खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज कराया था।
पिता ने बताई थी बेटी की मौत की ये वजह
- हिमान्शी के पिता हीरा लाल कश्यप ने बताया , ''मैंने शव देखा तो बेटी के शरीर पर चोटों के निशान थे। आंखों में घूसे मारे गए थे, नाक टूटी थी, गाल लाल थे और बाल खींचे गए थे। सिर की हड्डी टूटी हुई थी। दो-दो गोली मारी गई थी।''
- ''हाथ मोड़ कर टेढ़े कर दिए गए थे। बेटी गाय की तरह थी, लेकिन उसे दहेज के लिए मार दिया। ससुरालवाले फॉर्च्यूनर कार और हार मांग रहे थे। बड़ी दर्दनाक तरीके से मारा उसे।''
ये सब लड़की का बाप कह रहा है और अपनी बच्ची के लिए एक बाप का यह सब देखना असहनीय है किन्तु अगर गौर किया जाये तो क्या सिर्फ लड़की के ससुराल वालों को ही जिम्मेदार ठहराना सही होगा? क्या लड़की के बाप या परिजनों की कोई जिम्मेदारी नहीं है इस दहेज़ हत्या में जबकि लड़की का बाप खुद कह रहा है -
- ''25 मार्च 2016 को बेटी आखिरी बार जब घर आई थी तो उसने बताया था कि दहेज के लिए हमेशा मार पड़ती है। पति भी प्रताड़ित करता है। उसके कुछ दिन पहले ही सागर ने उसे इतना मारा था कि कान में गंभीर चोटें आई थीं, जिसका इलाज चल रहा था।''
- ''वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी, लेकिन मेरे समझाने के बाद गई। मैंने उससे कहा था कि कुछ दिन रुक जा, मैं कार दे दूंगा। वो बस मुझसे यही कहती थी, पापा मुझे यहां से ले चलो, ये लोग बहुत परेशान करते हैं।''
क्या लड़की के ब्याह के बाद कोई ज़रूरी है कि लड़की अपनी ससुराल में ही रहे और वह भी तब जबकि वहां उसके जीवित रहने की सम्भावना ही न हो,शादी के बाद अक्सर बेटियां अपना सब कुछ खो देती हैं और उनकी स्थिति न घर की न घाट की धोबी के कुत्ते की तरह हो जाती है ससुराल वाले उसे दहेज़ के लिए मारपीट कर मायके भेजते रहते हैं और मायके वाले इस समाज में अपनी यह प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए ''कि उनकी बेटी ससुराल में भली-भांति रह रही है ''उसे बार बार कुछ न कुछ देकर लड़के वालों का मुंह बंद करने को ससुराल में धकेलते रहते हैं और इस तरह ससुराल वालों के मुहँ में दहेज़ के नाम पर वही काम कर देते हैं जो किसी के काटने पर कुत्ते के साथ होता है अर्थात जैसे कुत्ता जब किसी के काटता है तो उसके मुहं में खून लग जाता है और फिर वह बार बार काटता है ऐसे ही बार बार बेटी के साथ मारपीट होने पर भी जब मायके वाले ससुरालियों की महत्वाकांक्षा पूरी करने को उन्हें कुछ न कुछ देते रहते हैं तो उनकी यही आदत बन जाती है कि ''इसकी बेटी का कुछ भी करो यह यहीं भेजेगा इसे ''सोचकर वे अपनी बहु के साथ दुर्दांत अत्याचार करते भी नहीं रुकते और उसका एक परिणाम यही होता है कि या तो अपनी बहू से अपनी महत्वाकांक्षा पूरी न होते देख ससुरालिए उसे निबटा देते हैं या फिर वह लड़की ही अपनी धोबी के कुत्ते वाली स्थिति देख आत्महत्या कर लेती है।
ऐसे में किसी बेटी या बहू की मृत्यु की जिम्मेदारी न केवल ससुरालियों की बनती है बल्कि मायके वालों की भी बनती है और ऐसे में अब दहेज़ कानून में संशोधन की परम आवश्यकता है। हर वह मामला जिसमे किसी भी लड़की की दहेज़ हत्या की बात सामने आती है उसमे ससुराल वालों के लिए तो कानून में प्रावधान है ही ,मायके वालों के लिए भी कुछ नए प्रावधान किये जाने चाहियें और जब दहेज़ देना भी अपराध है तो हर दहेज़ हत्या की रिपोर्ट मायके वालों के खिलाफ भी होनी चाहिए और उनसे भी यह जवाब माँगा जाना चाहिए कि -
-आपने शादी में कानून में अपराध होने के बावजूद जिस सामान की सूची दे रहे हैं ,वह कैसे दिया ?
-आपको दहेज़ की मांग का कब पता लगा ?
-जब ससुराल वालों ने सामान के साथ ही आने को कहा था तो आपने उसे कैसे वहां भेजा ?
-ससुराल वालों की दहेज़ की मांग को कानून का उल्लंघन करते हुए भी क्यों पूरा किया ?
-बेटी का भी घर की संपत्ति में हिस्सा होते हुए आपने उसे जबरदस्ती दूसरे घर में कैसे भेजा ?
इसी तरह से अगर कानून में मायके वालों पर भी कार्रवाही का इंतज़ाम होगा तो पहले तो बेटियों पर ज़ुल्म करने देने का अधिकार ससुराल वालों को देने के मायके वालों के हाथ बंधेंगे और साथ ही जो बहुत सी बार दहेज़ के झूठे केस दायर किये जाते हैं वे भी रुकेंगे क्योंकि बेटी कहूं या लड़की वह भी एक इंसान है और स्वयं अपनी मालिक है किसी अन्य की बांदी या गुलाम नहीं। बार बार लड़की को मौत के मुंह में भेजने वाले हीरालाल कश्यप भले ही अब बेटी के लिए न्याय की मांग में आत्मदाह की घोषणा करें किन्तु हिमांशी की दहेज़ हत्या में वे भी नरेंद्र कश्यप जितने ही जिम्मेदार हैं और देखा जाये तो उससे भी ज्यादा क्योंकि उनके लिए तो वह दूसरे की लड़की थी पर हीरालाल का तो वह अपना खून थी।
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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