अभिमन्यु
बनता जा रहा
आज का युवा
अपने ही चारों ओर
अपने ही द्वारा रचित
चक्रव्यूह में
अपने अंतर्द्वंद्वों को झेलता,
खुद से लड़ता,
स्वयं हथियार बन वार करता
स्वयं ढाल बन बचता।
स्वयं छिन्न-भिन्न हो, निशस्त्र होता।
स्वयं रथचक्र बन
स्वरक्षा हेतु घूमता ,
बनता जाता
क्या नियति के हाथों
इस बार भी धराशायी होगा?
या रण विजेता बन
लौटेगा सदर्प?
अभिमन्यु !!
~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
बनता जा रहा
आज का युवा
अपने ही चारों ओर
अपने ही द्वारा रचित
चक्रव्यूह में
अपने अंतर्द्वंद्वों को झेलता,
खुद से लड़ता,
स्वयं हथियार बन वार करता
स्वयं ढाल बन बचता।
स्वयं छिन्न-भिन्न हो, निशस्त्र होता।
स्वयं रथचक्र बन
स्वरक्षा हेतु घूमता ,
बनता जाता
क्या नियति के हाथों
इस बार भी धराशायी होगा?
या रण विजेता बन
लौटेगा सदर्प?
अभिमन्यु !!
~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी
1 टिप्पणी:
सुंदर व सार्थक
एक टिप्पणी भेजें