आज की सच्चाइयाँ कुबूल कीजिये सभी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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नारी को है नारी से ईर्ष्या डाह द्वेष
नारी रोके नारी की उन्नति राहें सभी ,
अपने से आगे किसी को ये करे नहीं पसंद
बढ़ चले अगर कोई ,सुलगे चिंगारी दबी .
खुद यदि है शादमा रखे खुश सबको तभी
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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पर पुरुष की असलियत इससे भी है भयावह
डर है अपनी जात से जिसमे वासना भरी ,
वहशी बनके कर रहा है पुरुष ही दरिंदगी
कैसे ऐसी नज़र से बचाये अपना घर अभी .
पुरुष ही पुरुष से बचके भागता फिरे,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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नारी अपनी रंजिशों को खुद से ही संभालती
पुरुष बनता दुश्मनी में इसको ही अपनी छुरी ,
पुरुष बनाके खेल इसकी ज़िंदगी से खेलता
खिलौना बनती नारी खुद ही दासी बन इसकी पड़ी .
पुरुष रुपी बल्ले पर नारी गेंद बन पड़ी ,
भुगत रहा इंसान है रोज़-रोज़ नहीं कभी .
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शालिनी कौशिक
[woman about man]
6 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना बुधवार 07 मई 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
दोनों एक से हैं अपनी अपनी जगह ... कोई किसी को नहीं देख पाता ...
bahut badhiya
सच्चाई है ।
bilkul sahi kaha mam....:-)
mujhe aapki yah baat bahut jyada hi sahi lagti hain ki naari ki dushman khud naari....
नारी की दुश्मन नारी
पुरुष का दुश्मन पुरुष
मानव का दुश्मन मानव
क्या हो गया है दुनिया को ?!
रचना के माध्यम से मंथन के अवसर की उपलब्धि सराहनीय है शालिनी जी
आभार एवं मंगलकामनाएं !
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