रविवार, 19 मई 2013

बस यही कल्पना हर पुरुष मन की .



अधिकार 
सार्वभौमिक सत्ता 
सर्वत्र प्रभुत्व 
सदा विजय 
सबके द्वारा अनुमोदन 
मेरी अधीनता 
सब हो मात्र मेरा 

कर्तव्य 
गुलामी 
दायित्व ही दायित्व 
झुका शीश 
हो मात्र तुम्हारा 
मेरे हर अधीन का 

बस यही कल्पना 
हर पुरुष मन की .

शालिनी कौशिक 
   

11 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

very true .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

धार दार ...
कुछ शब्दों की गहरी चोट ..

Shalini kaushik ने कहा…

aabhar shikha ji aur digambar naswa ji .

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २ १ / ५ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन भारत के इस निर्माण मे हक़ है किसका - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

***Punam*** ने कहा…

थोड़े से शब्द ...
लेकिन गहरी बात....!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक ।

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

jordar aur dhardar

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

jordar aur dhardar

Ranjana verma ने कहा…

बिल्कुल सही कहा....

shashi purwar ने कहा…

sundar , accha laga aapka yah blog