"जन्मदिन की पार्टी"
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रतीक शर्मा के बेटे के जन्मदिन का अवसर था।
जाहिर सी बात है मेहमानो को तो निमन्त्रित करना ही था
प्रतीक की पत्नी जो जिला शिक्षा अधिकारी थी, चाहती थी कि बेटे का जन्मदिन चुनिंदा लोगो के साथ किसी होटल में मनाया जाय।
पर प्रतीक चाहता था घर में अपने पूरे परिवार के साथ मनाया जाय।
अंत में बेटे का जन्मदिन घर में ही मनाना तय हुआ।
प्रतीक के परिवार के लोग दूसरे शहर से आये थे और पत्नी के उसी शहर से आये थे।
प्रतीक के परिवार के लोग उस समय चकित रह गए जब उन्हें पास ही के खाली पड़े प्रतीक के किसी परिचित के घर यह कह कर ठहराया गया कि रात को जब केक पार्टी होगी आपको लेने आ जाऊँगा।
"भाई साहब क्या सोच रहे हो, प्रतीक के छोटे भाई ने कहा तो प्रतीक की तन्द्रा भंग हुई ,उसे याद आया कि पत्नी ने कभी भी मेरे परिवार के लोगो को अपने बराबर नही समझा बल्कि उन्हें छूत की बीमारी ही समझा। अपने परिवार को श्रेष्ठ , सबकुछ जानते हुए भी एक बार फिर अपने परिवार की तोहीन करवाई ।
शान्ति पुरोहित
जाहिर सी बात है मेहमानो को तो निमन्त्रित करना ही था
प्रतीक की पत्नी जो जिला शिक्षा अधिकारी थी, चाहती थी कि बेटे का जन्मदिन चुनिंदा लोगो के साथ किसी होटल में मनाया जाय।
पर प्रतीक चाहता था घर में अपने पूरे परिवार के साथ मनाया जाय।
अंत में बेटे का जन्मदिन घर में ही मनाना तय हुआ।
प्रतीक के परिवार के लोग दूसरे शहर से आये थे और पत्नी के उसी शहर से आये थे।
प्रतीक के परिवार के लोग उस समय चकित रह गए जब उन्हें पास ही के खाली पड़े प्रतीक के किसी परिचित के घर यह कह कर ठहराया गया कि रात को जब केक पार्टी होगी आपको लेने आ जाऊँगा।
"भाई साहब क्या सोच रहे हो, प्रतीक के छोटे भाई ने कहा तो प्रतीक की तन्द्रा भंग हुई ,उसे याद आया कि पत्नी ने कभी भी मेरे परिवार के लोगो को अपने बराबर नही समझा बल्कि उन्हें छूत की बीमारी ही समझा। अपने परिवार को श्रेष्ठ , सबकुछ जानते हुए भी एक बार फिर अपने परिवार की तोहीन करवाई ।
शान्ति पुरोहित
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